आधी रात में यार ने सड़क पर गांड फ़ाड़ी

(Aadhi Raat Me Yaar Ne Sadak Par Gaand Faadi)

This story is part of a series:

हाय दोस्तो, मैं आपकी दोस्त मधु, एक बार फिर आप सभी पाठकों का अपनी सत्य कथा में स्वागत करती हूँ और आप लोगों का धन्यवाद करती हूँ कि आप सभी ने मेरी कहानी को इतना ज्यादा सराहा। मुझे इतना प्यार देने के लिए आप लोगों का दिल से धन्यवाद करती हूँ।

लेकिन मैं आप लोगों से थोड़ा नाराज भी हूँ। मैंने आप लोगों को बोला था कि मेरी चूची से दो-दो बूंद ही दूध पिएँ.. लेकिन आप लोगों ने मेरी चूचियों का सारा दूध पी लिया.. एक बूँद भी नहीं छोड़ी। मेरे बेटे के बारे में आप लोगों ने थोड़ा भी नहीं सोचा कि वह क्या पियेगा। आखिर में मुझे अपने बेटे को बाहर का दूध पिलाना पड़ा।
आप लोगों से हाथ जोड़कर विनती है कि चूचियों को दाँत से ना काटें क्योंकि मैं भी किसी की अमानत हूँ और प्रेम से चूची पीते हुए कहानी का आनन्द लें।

ज्यादा देर ना करते हुए कहानी पर आती हूँ। पिछली कहानी में आपने पढ़ा था कि अंकल ने मुझे किस तरह चोदा और मैं बिना ब्रा-पैन्टी के ही स्कर्ट-टॉप पहन लिया। आप लोगों को तो पता ही है कि मैंने किसी और का स्कर्ट टॉप पहना हुआ था और वो भी मेरी साईज से छोटे थे। अंकल ने मेरी ब्रा को फाड़ दिया था और पैन्टी दी ही नहीं।

मैंने स्कर्ट तो जैसे-तैसे पहन ली.. लेकिन मेरी बड़ी चूचियां बिना ब्रा के टॉप में सैट ही नहीं हो रही थीं.. ऐसा लग रहा था कि चूचियाँ टॉप ना फाड़ दें।
इस पर हाई हिल की सैंडल पहन कर अभी एक कदम चलती कि मेरी गांड और चूची ऊपर नीचे होने लगतीं। फिर भी ना चाहते हुए मैं कमरे से निकल गई।

मेरी सहेली

कमरे से निकलते ही मैं सबकी नजरों से बचते हुए निकलने की कोशिश कर रही थी.. तभी मेरी सहेली आभा मिल गई।
उसने मुझसे पूछा- यार तुम इतनी देर से कहाँ थीं?

मैं कुछ बोलती इससे पहले मेरी चाल और कपड़े देखकर वो समझ गई कि मेरे साथ कुछ गलत हुआ है। वह मुझे अपने साथ कमरे में ले गई। चलते समय मेरी चूचियों की उछाल देखकर समझ गई कि मैं ब्रा नहीं पहने हूँ। रूम में पहुँचते ही उसने मुझसे सीधे-सीधे पूछा- किससे चुदवा कर आई हो रानी।

मैं उसकी बात को काटते हुए बोली- ऐसी बात नहीं है यार!
उसने बिना कुछ देखे मेरे टॉप ऊपर कर दिया। टॉप ऊपर होते ही मेरी चूचियों को मानो आजादी मिल गई हो।

मेरी चूचियों की दशा सारी दास्तान बयान कर रही थी। मेरी चूचियों पर अंकल ने कई जगह अपने दाँत चुभो दिए थे। जिसके निशान अभी बिल्कुल ताजे थे। फिर आभा ने पूछा- सच-सच बता किससे चुदी हो?

आभा मेरी पक्की सहेली थी.. हम दोनों आपस में सब कुछ शेयर करती थीं। इसलिए मैंने उसे सब कुछ बता दिया।
मेरे बताते ही वह जोर-जोर से हँसने लगी और बोली- आज मेरी लाड़ो की फिर से नथ उतर गई.. वह भी एक बूढ़े के लंड से..
यह बोलकर वो फिर से मजे लेते हुए हँसने लगी।

उसने मेरी स्कर्ट खोल कर फटी हुई चूत देखी।
तब मैं बोली- यार ये सब छोड़.. कहीं से ब्रा-पैन्टी की जुगाड़ कर.. नहीं तो आज ये लोग मुझे छोड़ेंगे नहीं।
फिर आभा बोली- रूक.. मैं देखती हूँ।
उसने कहीं से ढूँढ कर मुझे एक ब्रा दी और बोली- सिर्फ यही है।

मैंने यह सोचकर पहन ली कि कम से कम चूचियां तो काबू में आएगी।

कपड़े पहनकर हम दोनों खाना खाने पहुँचे। वहाँ 2-4 लोग ही थे। फिर आभा बोली- तू तब तक खाना खा मैं मैरिज हॉल में हो कर आती हूँ।
मैं बोली- क्यों.. अभी शादी नहीं हुई हैं क्या?
इस पर आभा बोली- नहीं यार.. अभी तो शुरू ही हुई है। तू खाकर वहीं पहुँच जाना।

मैं समझ गई कि अंकल को ब्रा-पैन्टी ना देना पड़े। इसलिए झूठ बोलकर जल्दी से निकाल दिए।

वेटर मेरे चूतड़ और चूची घूरने लगे

क्योंकि रात के 2 बजने वाले थे। मैं जैसे ही खाना खाने पहुँची.. तो सारे वेटर मुझे ही घूर रहे थे।

मैं प्लेट में खाना लेकर एक साईड में हो गई लेकिन सारे वेटर मेरी उठी हुई गांड को ही घूरे जा रहे थे।

तभी अचानक मेरा ब्वॉयफ्रेंड संतोष आ गया.. वह थोड़ा गुस्से में था। भला हो भी क्यों ना.. मैं उसका लंड खड़ा करवा कर अपनी चूत की गर्मी कहीं और शांत कर आई थी।
संतोष गुस्से में बोला- कहाँ थीं यार.. मैं तुम्हें कब से ढूंढ रहा हूँ।

अब मैं उससे क्या बोलूँ.. मेरी समझ में नहीं आ रहा था.. सच उसे बता नहीं सकती थी।
मैं थोड़ी आलस से बोली- यार सुहागसेज सजाते-सजाते बहुत थक गई हूँ।
उसे क्या पता था कि मैं सुहागसेज सजा कर नहीं.. बल्कि सुहागसेज पर सुहागरात मना कर आई हूँ।

फिर संतोष बोला- यार मैं कब से हाथ में लंड लिए तुम्हारी राह देख रहा था और तुम किसी और की सुहागसेज सजा रही थी।
अब तक मैं खाना खा चुकी थी।

फिर संतोष बोला- चलो अब हम अपनी सुहागरात मनाते हैं।
यह कहते हुए संतोष मुझे एक कोने में लाकर मुझे स्मूच करने लगा, वो मुझे चूमते हुए मेरी चूचियां भी मसलने लगा।

वहाँ से सब मेहमान जा चुके थे.. सिर्फ वेटर ही बचे थे। मेरे मना करने पर भी संतोष नहीं रूक रहा था लेकिन उसे रोकना जरूरी था। क्योंकि मैं अब चुदने के लायक नहीं बची थी.. अभी भी मेरी चूत दर्द दे रही थी।

संतोष अब मेरे टॉप में हाथ डालकर मेरे मम्मों को पागलों की तरह मसल रहा था।

तभी एक वेटर आया और संतोष से बोला- देखो भाई.. यहाँ ये सब मत करो हम लोगों से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है.. कहीं और चले जाओ.. नहीं तो हम लोग मिलकर इस साली का जोरदार चोदन कर देंगे।

मैं यह बात सुनकर डर गई और संतोष से बोली- चलो.. यहाँ से चलते हैं।
हम वहाँ से चल दिए।

तब संतोष बोला- चलो कमरे में चलते हैं.. अब हम सुहागरात मनाएंगे।

मैंने मना कर दी.. मैंने सोचा अगर मैं इसके साथ कमरे में गई.. तो यह मेरी लाल पड़ीं चूचियों और चुदी हुई चूत देखकर सब कुछ समझ जाएगा। लेकिन संतोष मानने को तैयार ही नहीं था.. वह पागलों की तरह जिद करने लगा।

फिर मैं उससे आग्रह करते हुए बोली- प्लीज आज छोड़ दो.. हम दोनों फिर कभी सुहागरात मनाएंगे।
लेकिन वह मानने को तैयार ही नहीं था। वो बोला- यार आज क्यों नहीं.. आज मूड भी है और मौका भी है।
मैं बोली- यार तुम समझ क्यों नहीं रहे हो।
वह थोड़े गुस्से में बोला- ठीक है.. नहीं करूँगा.. पर ये बताओ आज तुम चुदना क्यों नहीं चाहती.. आखिर बात क्या हैं?
अब मैं क्या बोलूँ.. मेरी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।

तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली।
मैं बोली- यार मेरे पीरियड शुरू हो गए हैं।
संतोष ये सुनकर चौंक गया और बोला- अचानक पीरियड कैसे शुरू हो गए?
मैं बोली- यकीन नहीं है तो हाथ लगाकर देख लो.. मैं अभी ही खून साफ करके आई हूँ।
फिर वह थोड़ा शांत हुआ और बोला- यार अब मेरा क्या होगा?
मैं चुप रही।

बॉयफ़्रेंड ने मेरी गांड मार ली

वह फिर बोला- चल चूत नहीं मार सकता.. लेकिन गांड तो मार सकता हूँ।
यह बोलकर उसने मेरी गांड मसल दी।

मैं यह सुनते ही डर गई और सोचने लगी कि अभी मेरी चूत में अंकल का लंड गया तो दर्द से चल नहीं पा रही हूँ.. अगर इसका लंड मेरी गांड में गया तो मैं खड़ा भी नहीं हो पाऊँगी।

मैंने मना कर दिया। लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था। उस पर मानो साक्षात कामदेव सवार थे। तब तक हम फार्म हाउस के बाहर आ चुके थे। वह मुझे साईड में ले जाकर मुझ पर हावी हो गया। वो मेरे होंठ, गाल, गर्दन चूम कम रहा था और काट ज्यादा रहा था। मेरी चूचियों को तो ऐसे दबा रहा था कि चूचियां नहीं.. किसी बस का हॉर्न हों।

मैं भी अब गर्म होने लगी थी और मैं भी उसका साथ देने लगी। वह कभी मेरी चूचियों को दबाता.. तो कभी गांड मसलता।
मेरी अन्तर्वासना फिर से जागने लगी।

अब वह मेरे टॉप को ऊपर करके मेरी चूचियों को पीने लगा। मैं भी उसका लंड सहलाने लगी।
फिर संतोष बोला- यार.. अब चलो भी कमरे में.. अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है।

गर्म तो मैं भी काफी हो गई थी या यूँ कहें कि फिर से चुदने को तैयार हो गई थी। लेकिन मैं उसके साथ कमरे में नहीं जा सकती थी.. अगर जाती तो मेरी पोल खुल जाती।

फिर मैं बोली- यार कमरे में नहीं.. मेरी सारी सहेलियां आई हैं। अगर किसी ने देख लिया तो समस्या हो जाएगी।
तो संतोष ने बोला- फिर कहाँ किया जाए?
मैं बोली- आज रहने दो.. कल चोद लेना।

वह नहीं माना और बोला- यार गांड ही तो मारनी है। यहीं झुको.. मैं यही तुम्हारी गांड मारता हूँ।
मैं बोली- यहाँ नहीं यार.. अगर किसी ने देख लिया.. तो मैं बरबाद हो जाऊँगी।

फिर संतोष मुझे फार्म हाउस से दूर एकदम सुनसान जगह पर सड़क के किनारे एक बिल्डिंग की आड़ में ले गया। वो पूरे रास्ते मुझे मसलते हुए ले गया, मैं भी बहुत ज्यादा गर्म हो गई थी।

संतोष बोला- अब यहाँ तो चुद लो.. यहाँ कोई नहीं आएगा।
मैं भी गर्म हो ही गई थी, मैं बोली- ठीक है.. जो करना है जल्दी करो।

मेरे बोलते ही संतोष ने मेरा पर्स निकाल कर नीचे गिरा दिया और मेरा टॉप उतारने लगा। मैं बोली- टॉप क्यों उतार रहे हो यार.. गांड ही तो मारनी है.. स्कर्ट ऊपर करके मार लो।

लेकिन वह नहीं माना और उसने मेरा टॉप उतार दिया और साथ में ब्रा भी खींच कर निकाल दी। मेरी चूचियों के नंगे होते ही वह अंधेरे में ही पागलों की तरह मेरे रसीले मम्मों को पीने लगा और काटने लगा।

मुझे ऐसा लग रहा था कि यह आज मेरी चूचियों को काट कर ले जाएगा। कभी वह मेरे गाल चूसता.. तो कभी होंठ चूसता.. तो कभी चूचियों को भंभोड़ता।

मैं इतनी गर्म हो गई कि मेरी चूत फिर से पानी छोड़ने वाली थी। मेरे से अब मेरी चुदास बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
मैं बोली- संतोष जल्दी कर लो.. आभा मुझे ढूंढ रही होगी।

संतोष अब मेरी स्कर्ट उतारने लगा।
मैंने नहीं उतारने दी, मैं बोली- यार स्कर्ट ऊपर करके कर लो ना..

वह मान गया फिर मुझे दीवार के सहारे झुका दिया। मेरे झुकते ही मेरी गांड नंगी हो गई। संतोष मेरी गांड को सहलाने लगा.. फिर वह मेरी गांड चाटने लगा।
मैं बोली- क्या कर रहे हो यार?

उसने मेरी बात को नहीं सुना.. अब वो और तेज-तेज चाटने लगा।
वो मेरी गांड को चाट कम रहा था और काट ज्यादा रहा था। उसके काटने से मुझे भी दर्द कम.. और मदहोशी ज्यादा छा रही थी जैसे कि मैं अपने बस में ना थी। मैं अपने आप बड़बड़ाने लगी थी।

मैं संतोष से बोली- जान.. जल्दी करो अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है।
मुझे मजे के साथ में गांड मराने को लेकर थोड़ा डर भी लग रहा था क्योंकि मुझे अपनी फटी हुई चूत याद आ जाती थी।

संतोष ने अपना पैन्ट नीचे किया और लंड बाहर निकाला। संतोष अब मेरे सामने आया और बोला- इसे चाट कर गीला करो।

मैंने मना कर दिया.. तो वह बोला- यार अगर सूखा डाल दिया तो तेरी गांड फट जाएगी और तुम्हें दर्द भी बहुत होगा।
मैं डर गई और सोचने लगी कि चूत फटी तो ठीक से चल नहीं पा रही हूँ और अगर गांड फट गई तो खड़े भी नहीं हो पाऊंगी।

इसलिए ना चाहते हुए भी मैं उसका लंड चूसने के लिए राजी हो गई। ये तो बिल्कुल अंकल के लंड जैसा ही था। संतोष मेरे मुँह में लंड डालकर आगे-पीछे करने लगा जैसे वह मेरे मुँह की चुदाई कर रहा हो।

मुझे लंड की वजह से उल्टी जैसे हो रही थी इसलिए मैंने लंड को निकाल दिया।
संतोष समझ गया कि मुझे अच्छा नहीं लगा इसलिए उसने जिद नहीं की।

अब उसने मुझे झुका कर मेरी गांड पर अपना लंड सैट किया और थोड़ा जोर से धक्का मारा.. लेकिन उसका लंड अन्दर नहीं गया। आखिर अभी गांड की सील पैक थी।

फिर संतोष बोला- बेबी दीवार सही से पकड़ लो।
उसने मेरी गांड पर थूक लगाया और फिर एक बार लंड सैट किया।

इस बार उसने मेरी गांड पकड़ कर जोर से धक्का लगाया और उसका मोटा लंड मेरी गांड में थोड़ी सी अन्दर चला गया। मुझे दर्द होने लगा।
संतोष ने फिर एक जोर का धक्का दिया, इस बार लंड ने शायद आधा रास्ता तय कर लिया था।

मैं दर्द से चिल्लाने लगी.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो किसी ने गांड में गरम सरिया डाल दिया हो। मैं अपने आपको उससे अलग करने के लिए आगे की ओर खिसकी.. लेकिन उसने मेरी कमर को पकड़ कर गांड में से अपना लंड निकलने नहीं दिया, वो मेरे साथ आगे बढ़ने लगा।
जैसे आप लोगों ने सड़क पर कुत्ता और कुतिया की चुदाई देखी होगी, ऐसे ही कुछ हाल मेरा था, मैं भी कुतिया की तरह सड़क पर गांड मरवा रही थी।

अभी मैं कुछ सम्भलती.. इससे पहले संतोष ने एक और तेज झटका मारा और अपना पूरा लंड मेरी गांड में पेल दिया। अब मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगी, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी गांड सुन्ऩ हो गई हो।
मैं गिड़गिड़ाने लगी और बोली- प्लीज यार छोड़ दो.. मैं मर जाऊँगी, बहुत दर्द हो रहा है।

लेकिन शायद उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, वह अपनी धुन में था, वह मेरी गांड में अपना मूसल लंड आगे-पीछे किए जा रहा था।

कुछ देर बाद मुझे थोड़ी सी राहत सी मिली मेरा दर्द कम हुआ और मैं थोड़ा अच्छा महसूस करने लगी।

दो-चार बम पिलाट धक्कों के बाद अब मुझे भी मजा आने लगा। संतोष ने भी अपनी स्पीड को बढ़ा दिया।
अब मुझे गांड मरवाने में बहुत मजा आने लगा, मैं बोलने लगी- आह्ह.. और तेज और तेज चोदो.. फाड़ दो मेरी गांड को।

हम दोनों गांड चुदाई का भरपूर आनन्द ले रहे थे, तभी मेरे फोन की घंटी बजी, मेरा पर्स तो नीचे पड़ा था। किसी तरह अंधेरे में ही टटोलते हुए मैंने पर्स ढूँढ लिया और फोन निकाला, मैंने देखा- मॉम फोन कर रही हैं।

मैं पूरे जोश में चुदवा रही थी। मैंने सोची पहले ठीक से चुदवा लूँ.. फिर फोन कर लूंगी।

अभी घंटी बंद हुए कुछ पल ही हुए थे कि तभी मॉम ने फिर से फोन कर दिया।
मैंने संतोष को रोका और गांड में लंड लिए हुए थोड़ी सीधी हुई और फोन उठाया।

मॉम बोलीं- कहाँ हो बेटा?
मैं बोली- शादी में ही हूँ।

उन्हें क्या पता कि उनकी बेटी अभी थोड़ी देर पहले सुहागसेज पर सुहागरात मना कर आई है और अब बीच सड़क पर कुतिया की तरह गांड मरवा रही है।

फिर मॉम बोलीं- बेटा, वीडियो कालिंग कर और थोड़ी सी शादी दिखा।

वीडियो कालिंग की सुनकर मैं डर गई और सोचा- अब क्या दिखाऊँ कि उनकी बेटी किस तरह गांड मरवा रही है।
मैं बात कर रही थी और संतोष धीरे-धीरे मेरी गांड मार रहा था।

फिर मैं बहाना बना कर बोली- मॉम मैं बाथरूम में हूँ। मैरिज हॉल में पहुँच कर बात करती हूँ।
यह कहकर मैंने फोन काट दिया और संतोष से कहा- जल्दी करो।

यह सुनते ही उसने अपनी स्पीड को बढा़ दिया। मैं भी उसका साथ देने लगी। करीब 10-15 मिनट बाद ही वो झड़ गया, उसने मेरी गांड में अपना गर्मागर्म वीर्य छोड़ दिया।

वो बोला- मेरी जान आज तुम्हारी गांड मारकर मजा आ गया। अब तुम्हारे पीरियड खत्म होते ही तुम्हारी चूत की सील तोडूंगा।
मैं कुछ नहीं बोली.. उसे क्या पता था कि चूत की सील मैं तुड़वा चुकी हूँ।

उसने जैसे ही अपना लंड मेरी गांड से निकाला.. वीर्य धीरे-धीरे निकल कर मेरी जांघों के बीच आने लगा।
मैं सीधी हो गई और संतोष को बोली- तुमने गांड तो मार ली.. अब अपना वीर्य तो साफ करो।

संतोष बोला- यार किस चीज से साफ करूँ.. अन्दर ही रहने दो.. कोई नहीं देखेगा। यह कह कर उसने मेरी स्कर्ट को नीचे कर दिया। फिर उसने मुझे ब्रा और टॉप पहनाया। अब मुझसे दर्द के कारण चला नहीं जा रहा था। फिर भी मैं किसी तरह लड़खड़ाते हुए चलने लगी।

अब हम फिर से फार्म हाउस पहुँच गए और दोनों अलग हो गए। मैंने अपनी चाल सही की और अपनी गांड में अपने ब्वॉयफ्रेंड का वीर्य लेकर मैरिज हॉल की तरफ चल दी।

आगे मेरे साथ क्या हुआ.. यह अगली कहानी में बताऊँगी। अगली चुदाई मेरी किसने की और कहाँ की।
मैं मेरे ब्वॉयफ्रेंड का वीर्य अपनी गांड में लेकर भूखे शेरों के बीच घूम रही थी। आप लोगों को यह कहानी कैसी लगी, कमेंट्स करके जरूर बताएं।
आपकी प्यारी मधु

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