एक दिल चार राहें- 28

(Gaand Sex Ki Kahani )

प्रेम गुरु 2020-08-09 Comments

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गांड सेक्स की कहानी में पढ़ें कि मैं अपने ऑफिस की लड़की की चूत चुदाई के बाद उसकी गांड मारना चाहता था. मैंने इसके लिए उसे कैसे तैयार किया और …

मैंने उसकी एक बांह के नीचे से हाथ डाल कर उसके उरोजों को पकड़ रखा था और अपनी जांघें उसकी जाँघों के बीच फंसाकर अपना लंड उसके नितम्बों की खाई में डाल रखा था। मेरा लंड तो बस उसकी गांड के छेद को टटोलने में लगा हुआ था। नताशा अब करवट तो क्या मेरी मर्ज़ी के बिना ज़रा सी भी नहीं हिल सकती थी।
देखो ना मुझे नितेश के साथ शादी करके क्या मिला?”
“क्यों क्या हुआ?”
“उसे मेरी ना तो कोई परवाह ही है और ना ही कोई क़द्र!”

अब आगे गांड सेक्स की कहानी:

“घर वालों ने मेरी किस्मत ही फोड़ दी … “ कहते हुए नताशा सुबकने सी लगी थी।

भेनचोद इन खूबसूरत लड़कियों के नखरे भी अजीब होते हैं। मैं तो उसकी गांड मारने की सोच रहा था पर अब तो मामला बिगड़ने वाला हो चला था। इसलिए अब स्थिति को संभालना जरूरी था।

“देखो जान … ये शादी विवाह संयोग और किस्मत की बात होते हैं। मैं तुम्हें यह नहीं कहता कि तुम परिस्थितियों से समझौता करो. पर तुम अपना जीवन अपने हिसाब से भी जीने के लिए स्वतंत्र हो. और तुम तो वैसे भी खुद नौकरी करती हो और आत्मनिर्भर हो।”
“हाँ … प्रेम अब मैंने भी फैसला कर लिया है मैं अपना जीवन अपने हिसाब से बिताऊंगी।”

“ब्रेव गर्ल! वैसे एक बात पूछूं?”
”हम्म?”
“अच्छा तुम बताओ अगर तुम्हारी शादी मेरे साथ हो जाती तो तुम क्या करती?”

“काश ऐसा हो पाता … प्रेम मैं तो अब भी तुम्हारे लिए सब कुछ करने को तैयार हूँ? मेरी शादी अगर तुम्हारे जैसे रोमांटिक व्यक्ति के साथ हो जाती तो मैं तो अपना सब कुछ तुम्हें सौम्पकर तुम्हारी पूर्ण समर्पिता बन जाती। तुम जिस प्रकार चाहते और जैसे चाहते मैं तुम्हें खुश करने की हर संभव कोशिश करती, किसी भी चीज या क्रिया के लिए तुम्हें ना तो मना करती ना ही तरसाती … पता है लड़कियां सुहागरात में भी और बाद में भी कितने नखरे करती हैं और पति तो बेचारा अपना मन मार कर रह जाता है।”

अब तो आप सोच सकते हैं मेरा लंड कितना बेकाबू होने लगा था। उसने अपने नितम्बों के बीच मेरे लंड की हिलजुल महसूस कर ली थी और अब तो वह भी अपने नितम्बों को भींचने लगी थी। नताशा के नितम्बों में एक ख़ास बात यह थी कि उसके नितम्ब गोल मटोल तो थे ही पर साथ में आपस में चिपके हुए से भी थे। अक्सर गदराये हुए बदन की स्त्रियों के नितम्ब आपस में चिपके हुए होते हैं। ऐसी औरतों की गांड मारने का अनुभव अपने आप में बेमिसाल होता है।

“जान सच कहूं तो मुझे भी ऐसी ही पत्नी की ख्वाहिश (इच्छा) थी कि वह अन्तरंग पलों में मुझे किसी भी क्रिया के लिए मना ना करे. और वह भी मेरे साथ हर उस सुख को बराबर भोगे जो मैं भोगना चाहता हूँ या भोग रहा हूँ। मेरी बहुत बड़ी इच्छा थी कि मैं …”

कहते हुए मैंने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी। मुझे लगता है नताशा नामक विस्फोटक पदार्थ अब इतनी कमअक्ल तो नहीं होगी कि उसे मेरी इस इच्छा का आभास नहीं हुआ होगा।

“प्रेम … मैं तुम्हारे लिए सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ. जो तुम चाहते हो!”
“नताशा … वैसे तो मधुर मुझे प्रेम सम्बन्ध के समय पूरा सहयोग करती है पर उसे पता नहीं क्यों एक काम बिल्कुल अच्छा नहीं लगता.”
“क्या?” मैंने महसूस किया नताशा के दिल की धड़कन बहुत बढ़ गई है और वह अपनी जाँघों के साथ अपने नितम्बों को भी दबा रही है।

“नताशा सच कहूँ तो तुम्हारे नितम्ब इतने खूबसूरत हैं कि एक बार मुझे उनके बीच अपने लंड को डालने का बहुत मन कर रहा है.”
“ओह …”
“क्या हुआ?”
“पर उसमें तो बहुत दर्द होता है?”
“हाँ पहली बार में थोड़ा तो जरूर होता है पर बाद में बहुत मज़ा भी आता है।“

“क्या तुमने पहले कभी किसी के साथ किया है?”
“मैंने मधुर के साथ एक बार कोशिश की थी पर बीच में ही हमें रुकना पड़ा था.”
“क्यों?”
“वो बोली उसे यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता?”

“नखरे करती होगी साली!”
आज पहली बार नताशा के मुंह से मैंने गाली सुनी थी।

“जबरदस्ती ठोक देते साली को?”
“अरे नहीं … मेरा मानना है प्रेम संबंधों में कभी इतना रयूड (कठोर-अभद्र) नहीं होना चाहिए. यह सब तो एक दूसरे की सहमति और सहयोग से ही यह सब अच्छा रहता है।”
“हम्म!”

मुझे लगा नताशा कुछ सोचने लगी है। शायद वह इस क्रिया को भी एक बार आजमा लेने पर विचार करने लगी है। काश! अगर एक बार वह हाँ कर दे तो फिर तो मैं उसे इस प्रकार अपने झांसे में फंसा लूंगा कि बाद में तो वह कितना भी मना कर चिल्लाये मेरे लंड को अपनी गांड से नहीं निकाल पायेगी।

“प्रेम! मैंने कभी इस प्रकार के संबंधों के बारे में सोचा ही नहीं था. तुम्हें एक बात बताऊँ?”
“हाँ … श्योर!”

“मैं जब कॉलेज में थी तो मैं एक लड़के से प्रेम करती थी। हम दोनों शादी करना चाहते थे पर उसकी जिद थी कि नौकरी लगने के बाद ही शादी करेगा। और मेरी किस्मत देखो घर वालों ने इस जमूरे तथाकथित इंजिनियर के साथ मेरी तकदीर जोड़कर मेरी किस्मत फोड़ दी।”
“मैंने बताया ना शादी कई बार अनचाहे संयोग से भी हो जाती है।“

“वही तो … पता है वह मेरे नितम्बों की कितनी तारीफ़ किया करता था। वह कहता था मेरे नितम्ब दुनिया में सबसे ज्यादा खूबसूरत हैं। उसने एक दो बार मुझे उसमें संबंध बनाने के लिए भी कहा था।”
“फिर?”
“मैंने दर्द के डर से मना कर दिया था.”

“अच्छा नताशा … एक बात बताओ …”
“हम्म?”
“मान लो हमारी शादी हो जाती और मैं तुम्हें इसके लिए कहता तो?” आखिर मैंने अपने तुरप का पत्ता चल ही दिया। अब तो इस मुजसम्मे के लिए मेरे इस प्रस्ताव को सहर्ष मान लेने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचा था।
“प्रेम! … मैं तो बिना शादी के ही तुम्हें अपना सर्वस्व सौम्प कर तुम्हारी पूर्ण समर्पिता बन जाना चाहती हूँ।”
“ओह … थैंक यू मेरी जान” कहते हुए मैंने जोर से उसे अपने आगोश में भींच लिया।
और उसने भी अपने घुटने थोड़े से मोड़कर अपने नितम्बों को मेरी गोद से चिपका दिया।

“नताशा बुरा ना लगे तो एक बात पूछूं?”
“हम्म?”
“वो … कभी इंजिनियर साहब ने तुम्हें इसके लिए नहीं कहा?”
“अरे उस गांडू की बात छोड़ो … वो तो मेरी चूत को ही नहीं संभाल पाता. तो उसके लिए उसमें इतना दम कहाँ है? ओह … प्रेम! उसका नाम लेकर मेरा मूड अब खराब मत करो.” उसने झुंझलाते हुए से कहा।

“ओह … सॉरी जान … अगर तुम पेट के बल होकर लेट जाओ तो बड़ी आसानी होगी.”
“वो … वो … मुझे डर लग रहा है ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”
“तुम दर्द की बिल्कुल चिंता मत करो बस जैसा मैं कहूं करती जाओ और अपने आपको रिलेक्स कर लो.”
“क्रीम जरूर लगा लेना प्लीज …”
“हाँ तुम घबराओ नहीं मेरी जान!”

अब मैंने बेड के पास बनी साइड टेबल से क्रीम की ट्यूब ली और नताशा को पेट के बल लेटाकर उसे अपनी जाँघों को खोल देने का इशारा किया।

जब वह मेरे कहे मुताबिक़ हो गई तो मैंने उसे अपने नितम्बों को अपने हाथों से थोड़ा चौड़ा करने को कहा।

अब नताशा ने अपने दोनों हाथ पीछे करके अपने नितम्बों का खूबसूरत खजाना मेरे लिए खोल दिया और धड़कते दिल से आने वाले पलों का इंतज़ार करने लगी।
मेरा लंड तो कुंवारी गांड की खुशबू पाकर उछलने ही लगा था।

मैंने धीरे-धीरे उसकी गांड के छेद पर क्रीम लगानी शुरू कर दी। पहले तो उसकी गांड के छेद पर हल्का मसाज किया और फिर अपनी अंगुली के एक ने पोर पर खूब क्रीम लगाकर हल्के से अपनी अंगुली को उसकी गांड में अन्दर करने की कोशिश की।
उसकी गांड का छेद बहुत ही कसा हुआ सा लग रहा था. शायद भय मिश्रित रोमांच के कारण वह नार्मल नहीं हो पा रही थी.

पर मैं अभी कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था।
मैंने एक बार फिर से उसे रिलेक्स हो जाने को कहा तो उसने अपना शरीर ढीला सा छोड़ दिया और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी।

अब मुझे लगा कि उसकी गांड का कसाव कुछ ढीला पड़ने लगा है तो मैंने अपनी अंगुली का पोर (आगे का हिस्सा) उसकी गांड में डालने की कोशिश की।
3-4 बार धीरे धीरे अन्दर-बाहर करने की कोशिश करने के बाद मेरे अंगुली उसकी गांड के अभेद्य दुर्ग को भेदने में कामयाब हो गई।

अब तो मेरी अंगुली आराम से अन्दर-बाहर होने लगी थी। मैंने अपनी अंगुली पर फिर से थोड़ी क्रीम लगाई और उसे अन्दर-बाहर करना चालू रखा।
मैंने ध्यान रखा शुरू में केवल एक इंच तक अंगुली को अन्दर बाहर करूँ, बाद में तो वह पूरी अंगुली ही नहीं मेरे लंड को भी बिना किसी रुकावट के अन्दर घोंट लेगी।

जब मेरी अंगुली पूरी अन्दर-बाहर होने लगी तो नताशा के मुंह से हल्की सीत्कार निकलने लगी। मुझे लगा उसे भी अब इस क्रिया में दर्द के अहसास के बजाय मज़ा आने लगा है। अब मैंने एक हाथ से उसके नितम्बों पर थप्पड़ लगाया और फिर उसपर एक चुम्बन ले लिया।

नताशा तो किसी घोड़ी की तरह हिनहिनाने ही लगी थी कि सवार अब घुड़सवारी करने में देरी क्यों कर रहा है। नताशा की मीठी सीत्कारें पूरे कमरे में गूंजने लगी थी।
और मुझे भी लगने लगा था अब उसके गांड का किला फ़तेह करने का माकूल वक़्त आ चुका है।

हे लिंग देव! तेरी जय हो।

अब मैंने अपने लंड पर भी खूब सारी क्रीम लगा ली। मेरा लंड तो पहले से ही झटके से खाने लगा था और सुपारा फूल कर इतना मोटा हो चला था कि मुझे तो डर सा लगाने लगा इतना मोटा सुपारा इस नाजुक सी गांड में कैसे जा पायेगा।

पर यह वक़्त किन्तु परंतु पर ध्यान देने का नहीं था। मैंने एक बार फिर से नताशा की गांड पर मसाज सी की और अपनी अंगुली उसके छेद में अन्दर बाहर की।
और फिर उसके नितम्बों पर 2-3 थप्पड़ फिर से लगाए और उनको अपनी जीभ से चाटने लगा।
नताशा तो रोमांच के मारे किलकारियां ही भरने लगी थी।

अब मैंने उसे अपने नितम्ब थोड़े ऊपर करने को कहा और एक तकिया उसके पेट के नीचे लगा दिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब और भी ऊपर होकर खुल गए। अब तो उसकी गांड का गुलाबी छेद भी नज़र आने लगा था।

मैंने एक हाथ की अँगुलियों और अंगूठे से उसके नितम्बों को थोड़ा और चौड़ा किया और अपना लंड उसके छेद पर लगा दिया।

नताशा के सारे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ने लगी। मैं सोच रहा था कि इसकी कमर को कसकर पकड़ ली जाए और फिर अपने लंड का दबाव बनाया जाए।
पर मुझे डर था ऐसा करने से मेरा लंड रास्ता भटक सकता है क्यों कि उसकी गांड का छेद बहुत संकरा था और नताशा भी अभी नार्मल नहीं हुई थी।

“नताशा डिअर?”
“हम्म?”
“तुम अपने आप को बिल्कुल ढीला छोड़ दो … मेरा विश्वास रखो तुम्हें ज़रा भी दर्द नहीं होगा।”
“आह …” कहते हुए उसने अपने नितम्बों का एक बार संकोचन किया और फिर अपने आप को ढीला छोड़ दिया।

अब मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ में मैंने अपने लंड को पकड़ कर उसकी गांड के छेद पर दबाव बनाया। यह जरूरी भी था मुझे लगता था अगर मैंने अपने लंड को छोड़ दिया तो यह फिसल जाएगा और गांड में नहीं जा सकेगा।

पहले प्रयास में लंड थोड़ा सा मुड़ा और फिसलने सा लगा था पर मैंने ज्यादा जोर नहीं लगाया। धीरे-धीरे अपने लंड को उसके छेद पर दबाता रहा।
ऐसा मैंने 4-5 बार किया तो नताशा की गांड का छल्ला (अनल रिंग) अब थोड़ा नरम पड़कर खुलने सा लगा था और मेरे लंड के सुपारे का अग्रभाग अब थोड़ा सा अन्दर भी जाने लगा था।
इस समय मैं कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहा था।

अब मैंने 2-3 बार फिर से वैसे ही दबाव बनाना चालू रखा। अब तो मेरा आधा सुपारा अन्दर जाने लगा था। उसकी गांड का छल्ला अब तो रास्ता देने के मूड में लगाने लगा था। जैसे ही सुपारा थोड़ा अन्दर सरकता, नताशा हल्की सी आह भारती और उसका शरीर फिर से थोड़ा अकड़ने लगता।

“नताशा मेरी जान … आह … तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं मेरी रानी … आज मैं तुम्हें मुकम्मल (पूर्णरूप) से पा लेना चाहता हूँ। प्लीज अपने आप को रिलेक्स कर लो … आह!”

अब नताशा ने अपने आप को ढीला छोड़ दिया।

मैंने अपना एक हाथ उसकी बांह और गले के नीच से डालकर उसके उरोजों को पकड़ लिया और उसके कानों की लोब को अपने मुंह में भर लिया। मेरा आधा सुपारा उसकी गांड में फंसा हुआ था और अबकी बार मैंने अपने लंड के दबाव के साथ एक हल्का सा धक्का लगाया तो मेरा पूरा सुपारा अन्दर चला गया.

और उसके साथ ही नताशा ने अपनी मुट्ठियाँ भींच की। उसका शरीर हिचकोले से खाने लगा और उसके मुंह से एक घुटी घुटी सी चीख पूरे कमर में गूँज उठी।

“आआआईई ईईईईई …”

गांड सेक्स की कहानी में आपको मजा आ रहा है या नहीं?
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गांड सेक्स की कहानी जारी रहेगी.

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