मेरी रसीली जवानी

(Meri Rasili Jawani)

कहानी श्री विनोद शर्मा, ग्वालियर पर आधारित है, अपनी ये खूबसूरत आप बीती अपने ही शब्दों में उन्होंने भेजी थी, कहानी के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है…

मेरी नई नौकरी थी और मेरा पहला पद स्थापन था. मुझे जोइन किये हुए तीन दिन हो चुके थे. मेरे ही पद का एक और साथी ऑफ़िस में अपनी पत्नी के साथ रुका हुआ था. मेरी पहचान के कारण मुझे वहाँ मकान मिल गया. मकान बड़ा था सो मैंने अपने साथी राजेश और उसकी पत्नी को एक हिस्सा दे दिया. हमने चौथे दिन ही मकान में शिफ़्ट कर लिया था. राजेश की पत्नी का नाम सोना था. वह आरम्भ से ही मुझे अच्छी लगने लगी थी. उसका व्यवहार मुझसे बहुत अच्छा था. मैं उसे दीदी कहता था और वो मुझे भैया कहती थी.

पर मेरे मन में तो पाप था, मेरी नजरें तो हमेशा उसके अंगों को निहारती रहती थी, शायद अन्दर तक देखने की कोशिश करती थी. धीरे धीरे वो भी मेरी नजरें भांप गई थी. इसलिये वो भी मुझे मौका देती थी कि मैं उससे छेड़खानी करूँ. वो अब मेरी उपस्थिति में भी पेटीकोट के नीचे पेंटी नहीं पहनती थी. ब्रा को भी तिलांजलि दे रखी थी.

उसके भरे हुए पुष्ट उरोज अब अधिक लचीले नजर आते थे. चूतड़ों की लचक भी मन को सुहाती थी. उसके चूतड़ों की दरार और उसके भरे हुए और कसे हुए कूल्हे का भी नक्शा बडा खूबसूरत नजर आता था. राजेश की अनुपस्थिति में हम खूब बातें करते थे. अपने ब्लाऊज को भी आगे झुका कर अपने स्तन के उभार दर्शाती थी. कभी कभी बात अश्लीलता की तरफ़ भी आ जाती थी. पर इसके आगे वो शरमा जाती थी और उसे पसीना भी आ जाता था. मुझे लगा कि अगर सोनू को थोड़ा और उकसाया जाये तो वो खुल सकती है, शायद चुदने को भी राजी हो जाये.

उसका शरमाना मुझे बहुत उत्तेजित कर देता था. लगता था कि उसके शरमाते ही मैं उसके बोबे दबा डालूँ और वो शरमाते हुए हाय राम कह उठे. पर यह मेरा भ्रम ही था कि ऐसा होगा.

आज शाम की गाड़ी से राजेश लखनऊ जा रहा था. मुझे मौका मिला कि मैं सोनू को बहका कर उसे थोड़ा और खोलूँ ताकि हमारे सम्बन्धों में और मधुरता आ जाये. शाम को सोनू हमेशा की तरह कुछ काजू वगैरह लेकर मेरे साथ छत पर टहलने लगी. जब बात कुछ अश्लीलता पर आ गई तो मैंने अंधेरे में तीर छोड़ा कि शायद लग जाये.

‘सोनू, अच्छा राजेश रात को कितनी बार करता है… एक बार या अधिक…?’
‘वो जब मूड में आता है तो दो बार, नहीं तो एक बार!’ बड़े भोलेपन से उसने कहा.
‘क्या तुम रोज़ एंजोय करते हो…?’
‘अरे कहाँ विनोद… सप्ताह में एक बार या फिर दो सप्ताह में…’
‘इच्छा तो रोज होती होगी ना…’
‘बहुत होती है… हाय राम… तुम भी ना…’ अचानक वो शर्म से लाल हो उठी.
‘अरे ये तो नचुरल है, मर्द और औरत का तो मेल है… फिर तुम क्या करती हो?’
‘अरे चुप रहो ना!’ वो शरमाती जा रही थी.
‘मैं बताऊँ… हाथ से कर लेती हो… बोलो ना?’

उसने मेरी ओर शरमा कर देखा और धीरे से सिर हाँ में हिला दिया. धीरे धीरे वो खुल रही थी.
‘शरमाओ मत… मुझसे कहो दीदी… तुम्हारा भैया है ना… एकदम कुंवारा…!’
मैंने सोनू का हाथ धीरे से पकड़ लिया. वो थरथरा उठी. उसकी नजरें मेरी ओर उठी और उसने मेरे कंधे पर सर टिका दिया.
‘भैया, मुझे कुछ हो रहा है… ये तुम किस बारे में कह रहे हो…?’ उसकी आवाज में वासना का पुट आता जा रहा था.
‘सच कहू दीदी, मैं कुंवारा हूँ… आपको देख कर मेरे मन में भी कुछ कुछ होता है!’ मैंने फिर अंधेरे में तीर मारा.
‘हाय भैया… होता तो मुझे भी है…!’

मैं धीरे से सरक कर उसके पीछे आ गया और अपनी कमर उसके चूतड़ों से सटा दी. मेरा उठता हुआ लण्ड उसके चूतड़ों की दरार में सेट हो गया और उसके पेटिकोट के ऊपर से ही चूतड़ों के बीच में रगड़ मारने लगा. वह थोड़ा सा कसमसाई… उसे लण्ड का स्पर्श होने लगा था.
‘दीदी आप कितनी अच्छी हैं… लगता है कि बस आपको…’ मैंने लण्ड उसकी गाण्ड में और दबा दिया.
‘बस…!’ और हाथों से अपना चेहरा ढक लिया और लहराती हुई भाग गई.

लोहा गरम था, मैं मौका नहीं चूकना चाहता था. मैं भी सोनू के पीछे तुरन्त लपका और नीचे उसके कमरे में आ गया. वो बिस्तर पर लेटी गहरी सांसें भर रही थी. उसके वक्ष धौंकनी की तरह चल रहे थे. मुझे वहाँ देख कर शरमा गई- भैया… अब देखो ना… मेरे सिर में दर्द होने लगा है… जरा दबा दो…’

मेरा लण्ड जोर मारने लगा था. मैंने सोचा सर सहलाते हुए उसकी चूचियाँ दबोच लूंगा. तब तो वो मान ही जायेगी.

‘अभी लो दीदी… प्यार से दबा दूंगा तो सर दर्द भाग जायेगा.’ मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उसके कोमल सर पर हाथ रख कर सहलाने लगा. बीच बीच में मैं उसके चिकने गाल भी सहला देता था. उसने अपनी आंखें बंद कर ली थी. मैंने उसके होंठों की तरफ़ अपने होंठ बढ़ा दिये. जैसे ही मेरे होंठों ने उसके होंठ छुए, उसकी बड़ी-बड़ी आंखें खुल गई और वो शरमा कर दूसरी तरफ़ देखने लगी.

‘हाय… हट जाओ अब… बस दर्द नहीं है अब…’
‘यहाँ नहीं तो इधर सीने में तो है…!’
मैंने अब सीधे ही उसके सीने पर हाथ रख दिये… और उसकी चूचियाँ दबा दी. उसके मुख से हाय निकल पड़ी. उसने मेरे हाथ को हटाने की कोशिश की, पर हटाया नहीं.
‘दीदी… प्लीज, बुरा मत मानना… मुझे करने दो!’
‘आह विनोद… यह क्या कर रहे हो… मुझे तुम दीदी कहते हो…?’
‘प्लीज़ दीदी… ये तो बाहर वालों के लिये है… आप मेरी दीदी तो नहीं हो ना.’ मैंने उसके अधखुले ब्लाऊज में हाथ अन्दर घुसा कर दोनों कबूतरों को कब्जे में लिया.

उसने कोई विरोध नहीं किया और मेरे हाथों के ऊपर अपना हाथ रख कर और दबा लिया.
‘ओह्ह्ह्… मैं मर जाऊँगी विनोद…!’ वो तड़प उठी और सिमटने लगी. मैंने उसे जबरदस्ती सीधा किया और उसके होंठो पर अपने होंठ दबा दिये. वो निश्चल सी पड़ी रही. मैं धीरे से उसके ऊपर चढ़ गया. मेरा लण्ड पजामे में से ही उसकी चूत में घुसने की कोशिश कर रहा था. मैंने अपना पजामे का नाड़ा ढीला कर लिया और नीचे सरका लिया. मेरा लण्ड बाहर आ गया. मैंने उसके पेटिकोट का नाड़ा भी खींच लिया और उसे नीचे सरकाने लगा. सोनू ने हाथ से उसे नाकाम रोकने की कोशिश की- भैया… ये मत करो… मुझे शरम आ रही है… मुझे बेवफ़ा मत बनाओ!’ सोनू ने ना में हाँ करते हुए कहा.
‘सोनू, शरम मत करो अब… तुम बेवफ़ा नहीं हो… अपनी प्यास बुझाने से बेवफ़ा नहीं हो जाते!’
‘ना रे… मत करो ना…!’

पर मैंने उसका पेटीकोट नीचे सरका ही दिया और लण्ड से चूत टकरा ही गई. लण्ड का स्पर्श जैसे ही चूत ने पाया उसमें उबाल आ गया. सोनू की चूत गीली हो चुकी थी. लण्ड चिकनी चूत के आस पास फ़िसलता हुआ ठिकाने पर पहुंच गया. चूत के दोनों पट खुल गये और चूत ने लण्ड का चुम्बन लेते हुए स्वागत किया. सोनू तड़प उठी और शरमाते हुए अपनी चूत का पूरा जोर लण्ड पर लगा दिया. चूत ने लण्ड को अपने में समेट लिया और अन्दर निगलते हुए जड़ तक बैठा लिया.

‘आह भैया… आखिर नहीं माने ना… अपने मन की कर ली… हाय… उह्ह्ह्ह!’ सोनू ने मुस्करा कर मुझे जकड़ लिया.
‘दीदी सच कहो… आप को अच्छा नहीं लगा क्या…?’
‘भैया… अब चुप रहो ना… ‘ फिर धीरे से शरमाते हुए बोली…’चोद दो ना मुझे…हाय रे!’
‘आप गाली भी… हाय मर जाऊँ… देख तो अब मैं तेरी चूत को कैसी चोदता हूँ!’
‘ऊईईई… विनोद… चोद दे मेरे भैया… मेरी प्यास बुझा दे…’ उतावली सी होती हुई वो बोली.
‘मेरा लण्ड भी तो प्यासा है कब से… प्यारी सी सोनू मिली है, प्यारी सी चूत के साथ…आह्ह्हऽऽऽ!’
‘मैया री… लगा… और जोर से… हाय चोद डाल ना…मेरी चूची मरोड़ दे आह्ह्ह!’

मैं उससे लिपट पड़ा और कस लिया लण्ड तेजी से फ़चा फ़च चलने लगा. मेरा रोम रोम जल उठा. मेरी नसों में जोश भर गया. लण्ड फ़डफ़डा उठा. चूत का रस मेरे लण्ड को गीला करके उसे चिकना बना रहा था. उसका दाना मेरे लण्ड से धक्के मारते समय रगड़ खा रहा था. मैंने अपना लण्ड निकाल कर कई बार उसके दाने पर रखा और हल्के हल्के रगड़ाई की. वो वासना में पागल हुई जा रही थी. उसकी आँखें गुलाबी हो उठी थी.

‘मेरे राजा… मुझे रोज चोदा करो… हाय रे…मुझे अपनी रानी बना लो… मेरे भैया रे…’
उसकी कसक भरी आवाज मुझे उतावला कर रही थी.
‘भैया… माँ रे… चोद डाल… जोर से… हाय मैं गई… लगा तगड़ा झटका… ईईईई… अह्ह्ह्ह..’
‘अभी मत होना… सोनू… मैं भी आया… अरे हाय… ओह्ह्ह्ह’

हम दोनों के ही जिस्म तड़प उठे और जोर से खींच कर एक दूसरे को कस लिया. चूत और लण्ड ने साथ साथ जोर लगाया. लण्ड पूरा चूत में गड़ चुका था और आह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह वीर्य छूट पडा… सोनू ने अपनी चूत जोर से पटकने लगी और उसका भी यौवन रस निकल पडा. हम आहें भरते रहे और झड़ते रहे. मेरा सारा वीर्य निकल चुका था. पर सोनू की चूत अब भी लपलपा रही थी और अन्दर लहरें चल रही थी. कुछ ही देर में दोनों निश्चल से शान्त पड़े थे.
‘अब उठो भी… आज उपवास थोड़े ही है… चलो कुछ खा लो!’
हम दोनों उठे और कपड़े पहन लिये. हम दोनों ने खाना खाया और सुस्ताने लगे.

फिर अचानक ही सोनू बोली- विनोद… तुम्हारा लण्ड मस्त है… एक बार और मजा दोगे?’
‘जी हाँ, सोनू कहो तो , कल ही लो…’
‘कल नहीं , अभी… सुनो, बुरा तो नहीं मानोगे ना… मैं कुछ कहूँ?’
‘दीदी, आप तो मेरी जान हो… कहो ना!’
‘मुझे गाण्ड मरवाने का बहुत शौक है… प्लीज!’
‘क्या बात है दीदी… गाण्ड और आपकी… सच में मजा आ जायेगा!’
‘मुझे गाण्ड मराने की लत पड़ गई है, आपको, देखना, भैया बहुत मजा आयेगा…’ मुझे दीदी ने प्रलोभन देते हुए कहा. पर मुझे तो एक मौका और मिल रहा था, मैं इस मौके को हाथ से क्यों जाने देता भला.
‘दीदी, तो एक बार फिर अपने कपड़े उतार दो.’ मैंने अपने कपड़े उतारते हुए कहा. कुछ ही पलों हम दोनों एक दूसरे से बिना शरमाये नंगे खड़े थे. सोनू ने पास में पड़ी क्रीम मुझे दी.
‘इसे अपने लण्ड और मेरी गाण्ड में लगा दो… फिर लण्ड घुसेड़ कर मजे में खो जाओ.’ सोनू इतरा कर बोली और हंस दी.

मैंने अपने लौड़े पर क्रीम लगाई और कहा- सोना, घोड़ी बन जाओ… क्रीम लगा दूँ!’ सोनू मुस्करा कर झुक गई.
उसने अपनी गोरी और चमकदार गाण्ड मेरी तरफ़ घोड़ी बन कर उभार दी. मैंने उसके चूतड़ों की फ़ांक चीर कर उसके गुलाबी छेद को देखा और क्रीम भर दी.
‘विनोद, देखो…बोबे दबा कर चोदना… तुम्हें खूब मजा आयेगा!’ सोनू ने वासना भरी आवाज में कहा.

मेरा लण्ड तो गाण्ड देख कर ही तन्नाने लगा था. मैंने लण्ड का सुपारा खोला और उसके छेद में लगा दिया. उसने अपनी गाण्ड उभार कर जोर लगाया और मैंने भी छेद में लण्ड दबा दिया… फ़च से गाण्ड में सुपारा घुस गया. मेरा लण्ड मिठास से भर उठा. उसकी गाण्ड सच में नरम और कोमल थी. लगा कि लण्ड जैसे चूत में उतर गया हो. मैं जोर लगा कर लण्ड को चिकनी गाण्ड में घुसेड़ने लगा. लण्ड बड़ी नरमाई से अन्दर तक उतर गया. ना उसे दर्द हुआ ना मुझे हुआ.
‘आह, भैया… ये बात हुई ना…अब लग जा धन्धे पर… लगा धक्के जोरदार…!’
‘मस्त हो दीदी… क्या चुदाती हो और क्या ही गाण्ड मराती हो…!’
‘चल लगा लौड़ा… चोद दे अब इसे मस्ती से…और हो जा निहाल…’

उसकी चिकनी गाण्ड में मेरा लण्ड अन्दर बाहर होने लगा. उसकी चूचियाँ मेरे हाथों में कस गई और मसली जाने लगी. सारे बदन में मीठी मीठी सी कसक उठने लगी. मैंने हाथ चूत में सहलाते हुए उसका दाना मलना चालू कर दिया. सोनू भी कसमसाने लगी. लण्ड उसकी गाण्ड को भचक भचक करके चोदने लगा.
‘हाय रे सोनू… तेरी तो मां की… साली… क्या चीज़ है तू…’
‘हाय रे मस्ती चढ़ी ना… चोद जोर से…’
‘आह्ह्ह भेन की चूत… मेरा लौड़ा मस्त हो गया है रे तेरी गाण्ड में!’
‘मेरे राजा… तू खूब मस्त हो कर मुझे और गाली दे… मजे ले ले रे…’
‘सोनू साली कुतिया… तेरी मां को चोद डालूँ… हाय रे दीदी… तेरी गाण्ड की मां की चूत… कहा थी रे साली अब तक… तेरा भोसड़ा रोज़ चोदता रे…’
‘मेरे विनोद… मादरचोद मस्त हो गया है रे तू तो…मार दे साली गाण्ड को…’
‘अरे साली हरामी, तेरी तो… मैं तो गया… हाय रे… निकला मेरा माल… सोनू रे… मेरी तो चुद गई रे… साला लौड़ा गया काम से… एह्ह्ह्ह ये निकला… मां की भोसड़ी…हाय ऽऽऽ ‘

और लण्ड के गाण्ड से बाहर निकलते ही फ़ुहार निकल पडी. मैंने हाथ से लण्ड थाम लिया और मुठ मारते हुए बाकी का वीर्य भी निकालने लगा. पूरा वीर्य निकाल कर अब मैंने सोनू के दाने तरफ़ ध्यान दिया और उसे मसलने लगा. वो तड़प उठी और अपनी चूत को झटके देने लगी. दाना मसलते ही उसके यौवन में उबाल आने लगा. चूचियाँ फ़डक उठी, चूत कसने लगी, चूत से मस्ती का पानी चूने लगा.

‘हाय रे मेरे राजा… मेरा तो निकाला रे… मैं तो गई… आह्ह्ह्ह्ह्ह’ और सोनू की चूत ने पानी छोड़ दिया. मैंने दाने से हाथ हटा दिया और चूत को दबा कर सहलाने लगा. उसकी चूत हल्के हल्के अन्दर बाहर सिकुड़ रही थी और झड़ती जा रही थी.

कुछ ही देर में हम दोनों सामान्य हो चुके थे… और एक दूसरे को प्यार भरी नजरों से देख रहे थे… हम दो बार झड़ चुके थे…पर तरोताजा थे… थोड़ी देर के बाद हमने कपड़े पहने और फिर मैं अपने कमरे में आ गया. बिस्तर पर लेटते मुझे नींद ने आ घेरा…और गहरी नींद में सो गया. जाने कब रात को मेरे शरीर के ऊपर नंगा बदन लिये सोनू फिर चढ़ गई. दोनों के जिस्म एक बार फिर से एक होने लगे… कमरे में हलचल होने लगी… सिसकारियाँ गूंजने लगी…एक दूसरे में फिर से डूबने लगे…
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