बिरजू सिंह राजपूत

अनाड़ी को मिली कुंवारी

वो लगातार आँखें बन्द करके ‘उम्ह… उम्ह’ कर रही थी। मेरा हाथ सरकता हुआ उसकी सलवार के अन्दर होता हुआ उसकी चड्डी में मुख्य गुफ़ा को तलाशने लगा। क्या चिकनी थी… उसकी चूत..!

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