काशीरा-लैला -4
“वाह.. भतीजे के लाड़ दुलार चल रहे हैं, उसे मलाई खिलाई जा रही है, चलो अच्छा हुआ, मैं भी कहूँ कि ये कहाँ का न्याय
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“वाह.. भतीजे के लाड़ दुलार चल रहे हैं, उसे मलाई खिलाई जा रही है, चलो अच्छा हुआ, मैं भी कहूँ कि ये कहाँ का न्याय
चचाजी कमर उचका रहे थे, मेरे मुँह में लंड पेलने की कोशिश कर रहे थे ‘अरे चूसने दे बहू, बहुत अच्छा चूसता है ये छोकरा.. सीख जायेगा जल्दी… क्या साले बदमाश हरामी हो तुम दोनों.. आज तुम दोनों को चोद दूंगा.. साले हरामियो.. बिस्तर पर पास पास लिटा कर आज दोनों को चोदूँगा !’
चाची नंगी थीं, नंगी ही मेरा इंतजार कर रही थीं। मैं हाथ चाची के बदन पर फ़ेरने लगा। एकदम चिकना मखमली गद्दी जैसा बदन था चाची का। चाची ने टटोल कर मेरा लंड पकड़ लिया
‘दुआ से काम नहीं चलेगा चचाजी। इमरान को माल चाहिये माल चाची के बदन का !’ काशीरा चचाजी के लंड को मुठियाते हुए बोली ‘और आप जल्दी करो, इस मुस्टंडे को फ़िर से जगाओ, आज की रात उसे सोने नहीं मिलेगा, इस बार घंटे भर नहीं चोदा तो तलाक दे दूंगी !
मैं शालू जैन फ़िलहाल 25 साल की लड़की हूँ, जब होस्टल में रह कर पढ़ती थी तब 18 साल की थी। बात उस दिन की
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