क्रान्ति सलूजा

चूत शृंगार-8

मेरी चूत लगातार झड़ती रही। फिर भैया ने तूफान की तरह लगातार धक्के मार-मार कर चोदा और वो मेरी चूत में झड़ गया। सारी रात वो मेरे मम्मों से चिपका रहा।

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चूत शृंगार-7

“ठीक ! पर मुझे चोदना जरूर। मैं खाना खाने नहीं आ रही, सिर्फ चुदने आ रही हूँ।” “फ़िक्र ना कर ठोक-ठोक कर चोदूँगा, तेरी चूत फाड़ कर रख दूँगा।”

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चूत शृंगार-6

चूत में उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी। मेरी साँसें भी और मेरे मम्मों के फुलाव भी। अब दिल कर रहा था चूत झड़े तो शान्ति हो, पर चूत थी कि झड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी।

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चूत शृंगार-5

बड़ा लड़का कुछ देर मेरे मम्मों को घूरता रहा। मैंने कहा- ऐसे क्या देख रहा है? पहले कोई मेमसाब नहीं देखी क्या? काम करेगा या मम्मे देखता रहेगा?

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चूत शृंगार-4

काफी बना कर मैं भाई के पास गई और काफी मेज पर रख दी। वो सोफे पर बैठा था और मैं उसके सामने खड़ी थी जिससे मेरी चूत का उभार ठीक उसके मुँह के सामने था।

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चूत शृंगार-3

ओह तो मेरे ही कान बज रहे थे। जब उसने अपना नाम चंदू बताया तो मुझे ‘चोदू’ सुनाई दिया। चुदने के लिए तरस गई थी, शायद इसीलिए मुझे चोदू सुनाई दिया।

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चूत शृंगार-2

भैया बोले- मैंने तेरी चूची सिर्फ एक बार देखी है और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि तेरी चूची दुनिया की सबसे सुंदर चूची है। यहाँ चूची दिखाना गैरकानूनी नहीं होता तो मैं तुझे मना भी नहीं करता।

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चूत शृंगार-1

चूत में ऊँगली डाल कर सिसकारियाँ भरने लगी, “भैया चोद ले मुझे, मार ले मेरी !” और उसी को याद कर-कर के रात को अपने जिस्म की आग को ठंडा किया।

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