मेरा प्यारा देवर-1

(Mera Pyara Devar-1)

हैलो दोस्तो, मैं आपकी प्यारी भाभी कोमल अपनी एक और चुदाई का किसा लेकर आपकी सेवा में हाजिर हूँ, आप मेरी कहानी
मेरी तंग पजामी
और
मेरी बिगड़ी हुई चाल
तो पढ़ ही चुके हैं। दोस्तो वैसे तो मुहल्ले के सभी लड़के और बुड्ढे मुझे चोदने के लिए बेकरार हैं मगर मैं किसी किसी से ही चुदाई करवाती हूँ, जो मुझे बहुत अच्छा लगे और जहाँ पर मेरी चुदाई के बारे में किसी को पता भी ना चले।

दोस्तो, पिछली गर्मियों की बात है जब मेरे पति की मौसी का लड़का विकास हमारे घर आया हुआ था, वो बहुत ही सीधा साधा और भोला सा है, उसकी उम्र करीब 19-20 की होगी, मगर उसका बदन ऐसा कि किसी भी औरत को आकर्षित कर ले, मगर वो ऐसा था कि लड़की को देख कर उनके सामने भी नहीं आता था। मगर मैं उस से चुदने के लिए तड़प रही थी और वो ऐसा बुद्धू था कि उसको मेरी जवानी दिख ही नहीं रही थी, मैं उसको अपनी गाण्ड हिला हिला कर दिखाती रहती मगर वो देख कर भी दूसरी और मुँह फेर लेता। जहाँ तक कि मैं वैसे भी उसके साथ बात करती तो वो शर्म से अपना मुँह छिपा रहा होता। मैं समझ चुकी थी कि यह शर्मीला लड़का कुछ नहीं करेगा, जो करना है मुझे ही करना है।

एक दिन मैं सुबह के वक्त मैं अपनी सास और ससुर को चाय देकर जब उसके कमरे में चाय लेकर गई तो वो सो रहा था मगर उसका बड़ा सा कड़क लौड़ा जाग रहा था, मेरा मतलब कि उसका लौड़ा पजामे के अन्दर खड़ा था और पजामे को टैंट बना रखा था।

मेरा मन उसका लौड़ा देख कर बेहाल हो रहा था कि अचानक उसकी आँख खुल गई, वो अपने लौड़े को देख कर घबरा गया और झट से अपने ऊपर चादर लेकर अपने लौड़े को छुपा लिया। मैं चाय लेकर उसकी चारपाई पर ही बैठ गई और अपनी कमर उसकी टांगों से लगा दी. वो अपनी टाँगें दूर हटाने की कोशिश कर रहा था मगर मैं ऊपर उठ कर उसके पेट से अपनी गाण्ड लगा कर बैठ गई।

उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी और शायद मेरे गरम बदन के छूने से उसका लौड़ा भी बड़ा हो रहा था जिसको वो चादर से छिपा रहा था।
मैंने उसको कहा- विकास उठो और चाय पी लो !

मगर वो उठता कैसे उसके पजामे में तो टैंट बना हुआ था, वो बोला- भाभी, चाय रख दो, मैं पी लूँगा।
मैंने कहा- नहीं, पहले तुम उठो, फिर मैं जाऊँगी।
तो वो अपनी टांगों को जोड़ कर बैठ गया और बोला- लाओ भाभी, चाय दो।
मैंने कहा- नहीं, पहले अपना मुँह धोकर आओ, फिर चाय पीना।

अब तो मानो उसको कोई जवाब नहीं सूझ रहा था, वो बोला- नहीं भाभी, ऐसे ही पी लेता हूँ, तुम चाय दे दो।

मैंने चाय एक तरफ़ रख दी और उसका हाथ पकड़ कर उसको खींचते हुए कहा- नहीं, पहले मुंह धोकर आओ फिर चाय मिलेगी।
वो एक हाथ से अपने लौड़े पर रखी हुई चादर को संभाल रहा था और चारपाई से उठने का नाम नहीं ले रहा था।

मैंने उसको पूछा- विकास, यह चादर में क्या छुपा रहे हो?
तो वो बोला- भाभी कुछ नहीं है।

मगर मैंने उसकी चादर पकड़ कर खींच दी तो वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गया। मुझे उस पर बहुत हंसी आ रही थी। वो काफी देर के बाद बाथरूम से निकला जब उसका लौड़ा बैठ गया।
ऐसे ही एक दिन मैंने अपने कमरे के पंखे की तार डंडे से तोड़ दी और फिर विकास को कहा- तार लगा दो।

वो मेरे कमरे में आया और बोला- भाभी, कोई स्टूल चाहिए जिस पर मैं खड़ा हो सकूँ।
मैंने स्टूल ला कर दिया और विकास उस पर चढ़ गया, तो मैंने नीचे से उसकी टाँगें पकड़ ली, मेरा हाथ लगते ही जैसे उसको करंट लग गया हो, वो झट से नीचे उतर गया।

मैंने पूछा- क्या हुआ देवर जी? नीचे क्यों उतर गये?
तो वो बोला- भाभी जी, आप मुझे मत पकड़ो, मैं ठीक हूँ।

जैसे ही वो फिर से ऊपर चढ़ा, मैंने फिर से उसकी टाँगें पकड़ ली वो फिर से घबरा गया और बोला- भाभी जी, आप छोड़ दो, मुझे मैं ठीक हूँ।
मैंने कहा- नहीं विकास, अगर तुम गिर गये तो…?
वो बोला- नहीं गिरता.. आप स्टूल को पकड़ लीजिये..

मैंने फिर से शरारत भरी हंसी हसंते हुए कहा- अरे स्टूल गिर जाये तो गिर जाये, मैं अपने प्यारे देवर को नहीं गिरने दूंगी…
मेरी हंसी देख कर वो समझ गया कि भाभी मुझे नहीं छोड़ेंगी और वो चुपचाप फिर से तार ठीक करने लगा।

मैं धीरे धीरे उसकी टांगों पर हाथ ऊपर ले जाने लगी जिससे उसकी हालत फिर से पतली होती मुझे दिख रही थी। मैं धीरे धीरे अपने हाथ उसकी जाँघों तक ले आई मगर उसके पसीने गर्मी से कम मेरा हाथ लगने से ज्यादा छुट रहे थे। वो जल्दी से तार ठीक करके बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली- देवर जी, आपने मेरा पंखा तो ठीक कर दिया, अब बोलो मैं आपकी क्या सेवा करूँ?
तो वो बोला- नहीं भाभी, मैं कोई दुकानदार थोड़े ही हूँ जो आपसे पैसे लूँगा।
मैंने कहा- तो मैं कौन से पैसे दे रही हूँ, मैं तो सिर्फ सेवा के बारे में पूछ रही हूँ, जैसे आपको कुछ खिलाऊँ या पिलाऊँ?
वो बोला- नहीं भाभी, अभी मैंने कुछ नहीं पीना !

और बाहर भाग गया।
मैं उसको हर रोज ऐसे ही सताती रहती जिसका कुछ असर भी दिखने लगा क्योंकि उसने चोरी चोरी मुझे देखना शुरू कर दिया, मैं जब भी उसकी ओर अचानक देखती तो वो मेरी गाण्ड या मेरी छाती की तरफ नजरें टिकाये देख रहा होता और मुझे देख कर नजर दूसरी ओर कर लेता। मैं भी जानबूझ कर उसको खाना खिलाते समय अपनी छाती झुक झुक कर दिखाती, कई बार तो बैठे बैठे ही उसकी पैंट में तम्बू बन जाता और मुझसे छिपाने की कोशिश करता।
मैं तो उसका लौड़ा अपनी चूत में घुसवाने के लिए बेक़रार थी, अगर सास-ससुर घर पर ना होते तो अब तक मैंने ही उसका देह शोषण कर दिया होता।

कहानी जारी रहेगी अन्तर्वासना डॉट कॉम पर।
आपकी भाभी कोमल प्रीत
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