मिल-बाँट कर..-3

प्रेषक : सुशील कुमार शर्मा

और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।”

“हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है….” दुल्हन यह सुन कर हक्की-बक्की रह गई।

उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ गया। उसने पूछा,”क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?”

सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।

“कौन हो तुम…? तुम अन्दर कैसे आये ? ” दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।

ठन्डे बोला,”भाभी जी, मैं हूँ ठन्डे राम, आपका छोटा देवर, जिसने अभी कुछ देर पहले ही आपका कौमार्य भंग किया है। मैं ही हूँ वह पापी जिसने अपनी सीता जैसी भाभी का छल से सतीत्व भंग कर डाला। अब आप जो भी सजा देंगी मुझे मंजूर होगी। लेकिन इससे पहले आप को मेरी एक बात सुननी होगी..। हुकुम करें तो सुनाऊं ?”

तब ठन्डे ने बड़े ही ठन्डे मन से कहना शुरू किया,”भाभी, हम दोनों भाई दो जिस्म एक जान हैं। आज तक हमें कोई भी अलग नहीं कर पाया। हम अगर कोई चीज खाते भी हैं तो मिल-बाँट कर। हमने आज तक कोई भी काम अकेले नहीं किया। फिर यह सुहागरात वाली रात हमें अलग कैसे कर सकती थी। इसी लिए हम दोनों ने एक योजना बनाई, जिसके तहत मैं तो आपकी ले चुका, खूब जी भर के मज़े जब ले लिये तो मैंने आपको आपके असली हक़दार को सौंप दिया। अगर इसे आप बुरा समझतीं हैं तो मैं सजा पाने को तैयार हूँ। मगर एक बात अच्छी तरह से समझ लेना कि जो भी सजा आप मुझे देंगी उसमें मेरा भाई यानि आपके पतिदेव भी बराबर के हिस्सेदार होंगे।”

ठन्डे के मुँह से सारी बातें सुनकर दुल्हन सिसकने लगी और अपने भाग्य को कोसने लगी। उसने रोते-बिलखते अपने सामने खड़े दोनों व्यक्तियों से पूछा,”अब तुम दोनों ही फैसला करो कि मैं किसकी दुल्हन हूँ? तुम्हारी या फिर तुम्हारी?”

झंडे बोला अगर फैसला मुझ पर छोड़ती हो तो मैं यही कहूँगा कि तुम भले ही मेरी ब्याहता बीवी हो लेकिन यह हम दोनों के बीच की बात रहेगी कि तुम हम दोनों भाइयों की ही बन कर रहोगी। जितना अधिकार तुम पर मेरा है इतना ही अधिकार तुम पर मेरे छोटे भाई ठन्डे का भी रहेगा…”

दुल्हन सुबकते हुए बोली,”और जो बच्चे होंगें, वो किसके कहलायेंगे?”

“वो हम दोनों के बच्चे होंगे। हम दोनों भाई उनको एक सा प्यार देंगें, जमीन जायदाद में बराबर का हिस्सा होगा।”

“और जो तुम्हारे छोटे भाई ठन्डे की बीवी होगी? उसका क्या रहेगा, क्या तुम दोनों भाई उसे भी आधा-आधा बाँट लोगे..?”

झंडे ने एक पल को सोचा और फिर बोला,”हाँ, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?…वह भी सुहागरात वाली रात को इसी तरह से मिल-बाँट कर खाई जायेगी..क्यों भाई ठन्डे, सच कह रहा हूँ न?”

“भैया, आप बिलकुल सही कह रहे हैं। हम दोनों भाइयों के बीच अब तक तो ऐसा ही होता आया है।” ठन्डे ने जबाब दिया।

दुल्हन बोली,”अगर तुम में से कोई एक मर गया तो मैं अपने माथे का सिन्दूर पौंछूंगी या नहीं….?”

दुल्हन के इस प्रश्न पर दोनों भाइयों ने एक पल को सोचा फिर दोनों एक साथ बोले,”तुम्हें सिन्दूर पोंछने की नौबत नहीं आएगी। हम ऐसे ही नहीं मरने वाले। और अगर मरे भी तो एक साथ मरेंगे। एक साथ जियेंगे।”

दुल्हन को अभी भी सब्र नहीं हो पा रहा था, वह बोली,”इस समस्या का फैसला चाचा-चाची से करवाउंगी…” दुल्हन की बात पर दोनों भाई जोरों से हंसने लगे और काफी देर देर तक हँसते रहे, फिर बोले,”ठीक है, हमें तुम्हारी बात मंजूर है। अब रात भर यूँ ही जागती रहोगी या सोओगी भी?”

झंडे ने दुल्हन की ओर देखते हुए कहा। अगर तुम्हें भैया की बात समझ में आती हो तो हम दोनों भाई अभी भी तुम्हारी सेवा में हाजिर हैं। क्यों न तीनों एक दूसरे की बांहों में सिमटकर सो जाएँ..। बोलो मेरी भाभी जान, क्या कहती हो?”

दुल्हन ने एक निगाह दोनों के नंगे शरीर पर डाली। उसे उन दोनों में जरा सा भी तो अंतर नजर नहीं आ रहा था। बिलकुल एक शक्ल-सूरत, एक सा बदन, यहाँ तक लिंग भी दोनों का एक ही आकार का नज़र आ रहा था। दुल्हन बिना कुछ बोले ही उन दोनों के बीच में आकर लेट गई। अर्थात दुल्हन ने दोनों को ही अपना पति मान लिया था।

झंडे बोला ” भई ठन्डे! …”

“हाँ भाई, झंडे, बोलो क्या करना है अब। ये तो तुम्हारी बात मान कर हमारे बीच में आ सोई है।”

“झंडे बोला,”इसका मतबल है कि कुड़ी मान गई है। अरे ठन्डे, कहीं तू वाकई ठंडा तो नहीं पड़ गया?”

“नहीं भैया, मेरा तो अभी भी तना खड़ा है। करना क्या है, बस आप हुकुम करो।”

“अरे बेशर्म, अपनी भाभी की तड़पन कुछ कम कर दे। बेचारी सुलग रही है बुरी तरह से…”

“अभी लो भैया,” ठन्डे उठा और दुल्हन पर आ चढ़ा।

दुल्हन भी गर्मा गई और फिर तीनों ने सेक्स का खेल रात भर खेला। कभी ठन्डे का लिंग दुल्हन की योनि को फाड़ता तो कभी झंडे का लिंग, जैसे कि दोनों में एक होड़ सी लग गई। दुल्हन अपनी दोनों जांघें फैलाए रात भर उनके लोहे जैसे लिंगों का मज़ा लेती रही। तीनों लोग बिल्कुल निर्वसन हुए रात भर एक-दूजे से चिपटे पड़े रहे।

सुबह चाची जी ने आकर उन्हें उठाया। दुल्हन जब हड़बड़ाकर उठी तो वह बिल्कुल नंगी दोनों भाइयों के बीच लेटी पड़ी थी। उसने लपक कर पास पड़ी चादर खींच ली और अपने आप को ढकने का प्रयास करने लगी।

चाची मुस्कुराई, बोली,”अभी नई-नई है न, इसी लिए शरमा रही है। बहू, हमसे कोई शर्म करने की जरूरत नहीं है । मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, मेरे दोनों बेटे आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर खाते रहे हैं। जब मैं इस घर में आई थी, ये दस-दस साल के थे। मेरे ये दोनों जिठोत जुड़वां पैदा हुए थे। कुछ समय बाद ही इनकी माँ मर गई। मेरे जेठ ने इन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था। मेरी शादी से कुछ माह पहले ही मेरे जेठ भी चल बसे। मरते समय उन्होंने इन दोनों भाइयों का हाथ तुम्हारे चाचा जी के हाथ में देकर यह वचन माँगा था कि कितनी ही मुसीबत आ जाए पर इन पर आंच न आने देना। तुम्हारे चाचा जी आज भी अपने भाई को दिए गए वचन की लाज निभा रहे हैं। मेरे जेठ जी ने इन दोनों भाइयों से भी एक वचन माँगा था कि ये दोनों भाई हर चीज को मिल-बाँट कर खाएं। पिता को दिए गए इसी वचन की खातिर ये दोनों भाई आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर ही खाते रहे हैं और आज रात को भी दोनों भाइयों ने तुम्हें मिल-बाँट कर ही खाया।”

चाची ने सोते हुए अपने दोनों बेटों की बलैयाँ अपने सिर-मत्थे लेते हुए उन्हें झकझोर कर उठाया। दोनों भाई उठ खड़े हुए और अपने-अपने कपड़े पहनने लगे।

दुल्हन ने आश्चर्य से पूछा,”चाची जी, ये लोग आपसे शरमाते नहीं। इतने बड़े होकर भी आपके सामने यूँ ही नंगे पड़े रहते हैं। जबकि आप की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं है। आप ज्यादा से ज्यादा इनसे दस वर्ष बड़ी होंगी…”

“नहीं, मैं इनसे सिर्फ छः साल बड़ी हूँ। क्योंकि जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी तब मेरी उम्र सोलह वर्ष की थी। और मेरे ये दोनों बेटे सिर्फ दस वर्ष के थे। मेरे घर में कदम रखते ही तुम्हारे चाचा ने मुझे अपनी कसम देकर कहा,”देखो जी, एक बात गाँठ में बाँध लो। मेरे ये दोनों भतीजे आज से तुम पर मेरी अमानत के रूप में रहेंगे। ये लोग कितनी भी शरारत करें, कितना भी तुम्हें परेशान करें, पर इनकी शिकायत मुझसे कभी ना करना। तुम जिस तरह से इन्हें सजा देना चाहो देना। मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा। तब से आज तक मैंने कभी भी तुम्हारे चाचा जी से इनकी शिकायत नहीं की। इनकी हर अच्छी बुरी बात को मैं उनसे छिपाती पर अपने ढंग से इन्हें सजा देती….”

चाची जी कहते-कहते कुछ रुक गईं।

“चाची जी, आगे कहिये न? आप रुक क्यों गईं?” दुल्हन ने पूछा।

चाची बोलीं,”तुम्हारे चाचा की चौथी पत्नी हूँ मैं। जब मेरी उनसे शादी हुई तो तुम्हारे चाचा पचास साल के थे और मैं सिर्फ सोलह साल की। मेरे माँ-बाप बहुत गरीब थे। अत: अच्छा खाता-पीता घर देख कर मेरे माँ-बाप ने एक पचास वर्ष के बूढ़े से मेरी शादी कर दी। तुम्हारे चाचा जी सुहागरात वाली रात को ही शराब पीकर घर लौटे तो दो अन्य आदमी भी उनके साथ थे जो मुझसे बोले, “भाभी जी नमस्ते! कैसी हैं आप..”

“ठीक हूँ..” इस संक्षिप्त से उत्तर से शायद वो लोग खुश नहीं हुए।

खैर, उस समय तो वो दोनों इन्हें घर छोड़ कर चले गए पर आते-जाते मुझ पर बुरी निगाहें डालते रहे। जब भी मौका मिलता कहते, “आह! तेरी चढ़ती जवानी और बूढ़े का साथ…छीई..छी..छी..। भगवान् भी कितना निर्दयी है। कैसा जुल्म किया है बेचारी पर। हाय री किस्मत…बूढा क्या कर पाता होगा बेचारी के साथ…अरे हमारे पास आजा रानी खुश कर देंगे तुझे मेरी जान !”

कहते कहते चाची जी सुबकने लगीं। फिर कुछ साहस बटोर कर बोलीं,”बहु, तुझसे आज मैं कुछ भी नहीं छिपाउंगी, इधर तुम्हारे चाचा जी की हालत और भी ज्यादा बदतर होती जा रही थी। सुहागरात वाली रात को आये और आते ही पलंग पर लुढ़क गए। रात के तीन बजे के करीब इनकी आँख खुली तो मेरे पास आकर लेट गए। थोड़ी देर तक मेरे वक्ष से खेलते रहे। अपने हाथ से मेरे निचले हिस्से को टटोलते रहे, मेरी जांघें सहलाते रहे, मेरी उसमें भी उंगली करते रहे और अंत में मुझे खूब गर्म करके एक ओर को लुढ़क गए। यह सिलसिला अब रोज-रोज चलने लगा। आते और मुझे नंगा करके घंटों कभी मेरी छातियों से खेलते, कभी मेरे योनि में उंगली डाल कर मुझे काफी गर्म कर देते और फिर मुझे तड़पता छोड़ कर सो जाते। क्योंकि मेरी योनि को सहलाते ही वे अपने कपड़ों में ही झड़ जाते थे। अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे

ख्याल आते-जाते रहते। सोचती थी कि जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ। पर यह करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन में आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।”

अगले भाग में समाप्त।

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