बहन के जिस्म का पहला स्पर्श-3

(Bahan Ke Jism Ka Pehla Sparsh- Part 3)

This story is part of a series:

कहानी के पिछले भाग में मैंने आपको बताया था कि मैं दीदी की चूत चुदाई के नजदीक पहुंच कर चूक गया. बीच में ही मां का फोन आ गया. उसने दीदी को नीचे आने के लिए कहा.

फिर दीदी ने मुझे अपनी गीली पैंटी दे दी और मैं सीधा जेन्ट्स के बाथरूम में आ गया. दीदी की गीली पैंटी को जेब से निकाल कर मैंने सूंघ लिया.

मेरा लौड़ा खड़ा हो गया और मैं मुठ मारने लगा. फिर कुछ सोचकर मैंने लंड को वापस अंदर कर लिया. मैंने मन बना लिया कि मैं घर तक पहुंचने का वेट नहीं कर सकता. दीदी की चूत की चुदाई यहीं पर करनी है मुझे.

मार्केट में जाकर मैं कॉन्डम ले आया और सही मौके का इंतजार करने लगा.

प्रीति के शब्द:
कुछ घंटों में शादी खत्म हो गयी। सब मेहमान चले गये. घर के लोग भी अपने अपने कमरे में जाने लगे।
मामाजी मामी को चोदने के लिए कमरे में ले गए. उसी कमरे में सुहागरात मनाने के लिए जहां पर कुछ देर पहले मैंने अपने भाई के साथ अधूरी सुहागरात मनाई थी.

मैं सोने की कोशिश कर रही थी लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। आज दोपहर का दृश्य मेरे तन बदन में आग लगाए हुए था। उसका लंड मैंने पहली बार देखा था. मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी. मेरी चूत में पसीना आ रहा था उसके लंड के बारे में सोचकर.

मां से मैंने कहा- मैं बाहर घूमने के लिए जा रही हूं. मेरे सिर में दर्द सा है.
मां बोली- जल्दी आना, रात बहुत हो गयी है.
मैं कमरे से निकल गयी. सब लोग अपने कमरों में जाकर सो गये थे.

मेरे कदम खुद ही जेन्ट्स के रूम की ओर बढ़ रहे थे. सोच रही थी कि अगर भाई को बुलाऊंगी तो वो सोचेगा कि मेरी बहन चुदने के लिए कितनी उतावली हो रही है.

रूम तक पहुंचने से पहले ही मुझे किसी ने हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. मुझे दीवार से लगा कर मेरे होंठों को उसने अपने होंठों से चूसना शुरू कर दिया. स्पर्श से ही मुझे पता लग गया कि वो मेरा भाई ही है.

उसकी पकड़ से मेरे लिये छूटना नामुमकिन था. मगर मैं तो खुद ही नहीं छूटना चाह रही थी. मैं उसके आगोश में खो सी गयी.
वो बोला- दीदी एक बार करने दो प्लीज.
मैंने कहा- पागल है क्या, किसी ने देख लिया तो.

वो बोला- कोई नहीं देखेगा. देखो, अब तो मेरे पास कॉन्डम भी हैं.
उसने कॉन्डम का पैकेट दिखाते हुए कहा.
मैंने कहा- घर जाकर कर लेना.
वो बोला- नहीं, मुझसे रुका नहीं जायेगा. एक बार प्लीज … दीदी … करने दो प्लीज!
उसकी जिद के आगे मैं हार गयी.

फिर हम लोग आगे चलने लगे. वो मेरे पीछे पीछे आ रहा था. हम लोग ऐसे चल रहे थे जैसे किसी को हमारे ऊपर शक न हो.

विशाल के शब्दों में:
अपनी गांड को मटकाते हुए दीदी स्टोर रूम की ओर बढ़ रही थी. मुझे स्कूल के दिन याद आ गये जब मैं दीदी की मस्त गांड को देख कर मुठ मार कर अपने लंड को शांत किया करता था. आज मेरी तमन्ना पूरी होने वाली थी.

प्रीति के शब्द:
स्टोर रूम में पहुंच कर हमने भीतर से दरवाजे को बंद कर लिया. अंदर कुछ पुराना सामान पड़ा हुआ था. यह जगह काफी सेफ लग रही थी और किसी के आने का डर नहीं था. मेरी इजाजत के बिना ही विशाल ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठों को चूसने लगा.

उसने मेरी टीशर्ट को मेरे कंधे से हटा दिया और मेरे कंधे के नग्न भाग को चूमने लगा. मैं सिहर गयी. फिर उसने मुझे घुमा लिया और मेरी टीशर्ट को ऊपर उठा कर मेरी नंगी पीठ पर चुम्बन जड़ दिया.

फिर उसने मेरी टीशर्ट को उतार दिया. मैं अपनी नंगी चूचियों को छिपाने लगी. मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया था. वो मेरी नंगी पीठ को चूमने लगा. मेरी आंखें बंद होने लगीं.

कमर के नीचे मैंने लॉन्ग स्कर्ट पहनी हुई थी. स्कर्ट के ऊपर से ही वो मेरे चूतड़ों को दबाने लगा. फिर वो नीचे बैठ गया. मेरे चूतड़ों पर उसने अपने गर्म होंठ रख दिये.

मेरे मखमली चूतड़ों पर अपने दांत गड़ा कर वो उनको चूमने लगा. मैं तो उन्माद से भर गयी जैसे. ऐसा लग रहा था कि जैसे वो उनको खाना चाहता है.

अचानक से ही उसने मेरी गांड पर अपना चेहरा मलना शुरू कर दिया. मैंने नीचे से पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी. मुझे उसकी नाक अपनी गांड के छेद पर लगती हुई महसूस हो रही थी.

मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा और मैंने अपनी चूचियों को छोड़ कर पास की अलमारी को पकड़ कर खुद को संभाला. इस बात से अन्जान वो मेरी गांड में ही मुंह को घुसेड़े जा रहा था.

विशाल ने मुझे मेरी कमर से पकड़ लिया था इसलिए उसकी पकड़ से छूट पाना काफी मुश्किल था. उसका जोश देख कर लग रहा था कि आज मैं बुरी तरह से चुदने वाली हूं.

काफी देर तक वो मेरी गांड से खेलता रहा. उसने मुझे कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया.
मैं हाथों से अपनी चूचियों को छिपा रही थी. मुझे अपने सगे भाई के सामने नंगी होने में शर्म आ रही थी. उसने मेरे होंठों पर होंठों को रख दिया और मेरे होंठों का रसपान करने लगा. मैं भी उसका साथ देने लगी.

कुछ देर में वो अलग हुआ। उसने मेरी चूचियों से मेरे हाथ हटा लिये। मैं अब निर्विरोध उसे अपने जिस्म से खेलने दे रही थी। मेरे नंगे चूचे उसके सामने थे। उसने मेरे दायें चूचे को मुंह में भर लिया।

जब उसने मेरे चूचे पर मुंह रखा तो मैं एक उन्माद से भर गयी. बहुत ही सुखद अहसास था वो. मैं बाकी लड़कियों से कहूंगी कि कभी अपने भाई से कभी अपनी चूचियों को चुसवा कर देखना, वो अहसास ही निराला होता है. फिर विशाल यहां वहां देखने लगा. वो कुछ जल्दी में लग रहा था.

विशाल के शब्दों में:

दीदी के हॉट जिस्म से खेलने का मेरा बड़ा मन था। बचपन से इस जिस्म को निहारते हुए बड़ा हुआ था मैं। कितनी ही बार दीदी के सेक्सी जिस्म को सोच कर मुठ मार चुका था। थोड़ी सी देर में मन कहां भरने वाला था। मैं चाहता था कि जल्दी से दीदी की चुदाई कर दूँ. मुझे डर था कहीं वो अपना मन न बदल लें।

प्रीति:
अलमारी पर रखे पुराने गद्दे को उसने नीचे उतारा। उसे जमीन पर बिछा दिया और मुझे गद्दे पर आने का इशारा किया। मैं पीठ के बल लेट गयी। वो मेरे ऊपर आ गया।

गद्दे पर आते ही वो मेरे ऊपर टूट पड़ा. मेरी चूचियों गर्दन और पेट को जोर से चूमने लगा. मैं सिहर गयी और मेरी वासना सातवें आसमान पर पहुंच गयी थी। मैं लगातार ज़ोर ज़ोर से सिसकारियां ले रही थी। पूरे कमरे में मेरी ही सिसकरियां गूंज रही थीं।

मेरी चूचियां चूस कर वो मेरे नग्न पेट की तरफ बढ़ा। मेरी कमर पर चूमते चाटते हुये उसने मेरी स्कर्ट भी मेरे तन से अलग कर दी। अब मैं भाई के सामने बिल्कुल नग्न थी। मैं वासना में खोई हुयी थी।

अब तो मेरी मुनिया भी उसके सामने नंगी हो चुकी थी। उसने मेरे दायें पैर के अंगूठे को मुँह में भर लिया। मेरे पैरों पर चूमते हुए जांघों के बीच आ गया। उसने मेरी मुनिया पर जीभ से चाटा. मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया. उसको मेरी हालत देख कर काफी मजा आ रहा था.

वो मेरी चूत चाटने लगा। मैं मदमस्त हो उठी। कुछ देर में फिर वो अलग हुआ। मेरी वासना चरम पराकाष्ठा पर थी. मुझे वर्तमान में आने में समय लगा। आंखें खोल कर जब मैंने देखा तो अगले ही मिनट वो सिर्फ चड्डी में था, जिसमें उसका तना हुआ वज्र लण्ड साफ दिखाई दे रहा था। वो मुस्कराते हुये अपनी चड्डी के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था.

उसने मेरी ललचाई नजरों को झेंपते हुये मुझे अपना लौड़ा ऑफर किया चाटने के लिये। मैंने साफ मना कर दिया। इस पर उसने अपनी चड्डी भी निकाल फेंकी। 8 इंच का मूसल लंड फुफकारता हुआ बाहर निकल आया. वो तोप की तरह टाइट था।

वैसे तो मुझे लंड चूसना पसंद नहीं था लेकिन उसके मदमस्त लन्ड को देख मेरे मुँह में पानी आ गया। हालांकि उसने दोबारा नहीं पूछा। वो झुका और उसने अपने नीचे गिरी लोअर से कंडोम का पैकेट निकाल लिया. पैकेट को मुंह से फाड़ कर लौड़े पर लगाने लगा।

उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया। इतना भयंकर लन्ड देख मेरी गांड तो फटने लगी थी लेकिन पीछे हटने की हालत में मैं भी नहीं थी। मेरी कमर के नीचे विशाल ने तकिया डाल दिया ताकि मेरी चूत थोड़ी उठ जाए. वो थूक लगा कर मेरी चूत पर मलने लगा। मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी।

डर के मारे मैं बोली- भाई, थोड़ा आराम से … करना।
वो मेरी ओर देख कर शैतानी मुस्कान से हँसने लगा. फिर अपने लंड के टोपे को मेरी चूत पर मसलने लगा. मैं फिर से मचल उठी. तेज तेज सिसकारियां लेने लगी.

उसने लंड को मेरी चूत के छेद पर सेट कर दिया और अंदर पेलने लगा. मेरे मुंह से चीख निकल गयी. मैं चिल्लाई तो उसने मेरे मुंह पर हाथ रख लिया और मेरी चीख को अंदर ही दबा लिया. वो मेरे होंठों को चूमने लगा और चूचियों को मसलने लगा.

दोस्तो, मेरी चूत नयी तो नहीं थी. मैं दो दो लंड से चुद चुकी थी. मगर भाई का लंड उन दोनों लंड पर बहुत भारी था. विशाल ने दबाव बनाया और उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को चीरते हुए अंदर तक चला गया.

दर्द के मारे मेरी आंखों से आंसू आ गये. वो लगातार मुझे चूमे-चाटे जा रहा था।
मैं सामान्य हुई।
उसने धक्के लगाना शुरू किया। हल्के हल्के धक्के लगाता रहा।
कुछ देर में मेरी चूत ने उसके लन्ड को एडजस्ट कर लिया. उसने धक्के तेज कर दिये.

अब मैं भी मस्ती से सिसकारियां ले रही थी। मेरी और उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं।

मैं उसके भार से नीचे दबी थी। इसी आसन में वो मुझे करीब 10 मिनट तक चोदता रहा। साथ ही साथ वो मेरी चूचियां मसलता तो कभी चूसता और चाट लेता. कभी मेरे होंठों को चूसता तो कभी मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन कर देता. उसके ऐसा करने से मैं कुछ ज्यादा ही गर्म हो गयी थी.

फिर उसने आसन चेंज किया. मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से उसने लन्ड पेल दिया और घोड़ी वाले आसन में चुदाई करने लगा। मेरी कमर पकड़ कर धक्के लगाते हुए उसका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा रहा था जिसके कारण फच-फच की आवाज हो रही थी. लगता उसका लन्ड पूरा मेरी चुत में घुसता जिससे फच फच की आवाज होती।

‘आह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… इस्स… ह्म्म्म… यस. फक मी… याह्ह’ करके मैं और वो दोनों कामुक आवाजें निकाल रहे थे.
फिर वो नीचे आ गया और मुझे अपने लौड़े पर बिठा लिया और नीचे से धक्के लगाने लगा।

विशाल- ये काफी मस्त आसान था। मैं दीदी की कमर से पकड़ कर बैलेंस बनाये हुए था. वो खुद ही उछल कर मेरे लंड को अंदर ले रही थी. दीदी का खुला बदन मेरी आंखों के सामने था। हर एक धक्के के साथ उनकी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थीं। दीदी के हाथ उसके बालों में थे। उनकी चिकनी काखें मेरे सामने थीं। दीदी का वो चुदक्कड़ और कामुक रूप सच में देखने लायक था.

प्रीति- भाई काफी उत्तेजित था। उसके धक्के अपने पूरे जोर पर थे। मैं भी अब अपने चरम सुख के करीब पहुंच गयी थी। वो मुझे अपनी बांहों में जकड़े हुए धक्के लगा रहा था। उसकी पकड़ मुझ पर मजबूत होती जा रही थी। मेरा बदन अकड़ने लगा.

मैं कांपते हुए झड़ने लगी और उसे कसकर अपने बांहों में जकड़ने लगी। कुछ देर में वो भी झड़ गया। निढाल होकर विशाल मेरे ऊपर गिर गया। हाँफते हुए वो मेरे होंठों को चूमने लगा। फिर मेरे बगल में लेट गया।

कुछ देर तो हम यूं ही पड़े हुए हाँफते रहे. 30 मिनट तक जबरदस्त चुदाई हुई थी। चढ़ाई करके मैं उसके विशालकाय शरीर पर लेटी हुई उससे पूछने लगी- अच्छा सच बता कि तू स्कूल में मेरे पीछे क्यों बैठा करता था.

वो बोला- मुझे आपके बदन की खुशबू बहुत पसंद थी। आप नई नई जवान हुई थी. आपकी कांखों से आती मादक खुशबू मुझे पागल बनाती थी। आप के बदन की खुशबू लेने के लिए मैं आपके पीछे बैठता था।
“छीईई …”
“इसमें छी क्या दीदी, आपकी गर्म जवानी थी ही ऐसी!”
“और क्या क्या किया है तूने मेरे पीठ पीछे?”

“आपके चूचे आपकी उम्र की लड़कियों से काफी बड़े थे। स्कूली ड्रेस में आपके तने हुए चूचों को देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता था।”
“अच्छा जी!” मैंने कहा.

“हाँ, स्कर्ट में आपकी मटकती गांड देखकर जी करता था कि काट खाऊँ मैं आपके मस्त चूतड़ों को!”

“बदमाश … अपनी बहन के चूचे और गांड देखता था तू!” मैंने उसके सीने पर प्यार से मुक्का मारते हुए कहा.
“आपको हमारा किराये का घर याद है जब हम छोटे थे?”
“हाँ याद है.”

“उसमें एक ही बाथरूम हुआ करता था.”
“हाँ सही कहा.”
“आपके नहाने के बाद मैं अक्सर बाथरूम में जाता था, आपकी गर्म पैंटी सूंघता था और मुठ मारता था. आपके कॉलेज में जाने पर तो कभी कभी मुझे आपकी गीली पैंटी मिल जाती थी जिसे मैं सूँघता और चाटता था. आपकी चूत की खुशबू बहुत मादक लगती थी. मेरे लौड़े का बुरा हाल हो जाता था.”

“हे भगवान, तू तो नंगी देखता तो चोद ही डालता मुझे!”
उसकी बातों से मैं फिर से गर्म हो रही थी.

“नहीं दीदी, नंगी तो मैंने कई बार देखा तुम्हें, मैं अक्सर आपको कपड़े बदलते हुये, बाथरूम में नहाते हुए छुप कर देखता था। लेकिन पहल करने की हिम्मत न हुई।”

अब मैं समझी कि मेरी नंगी फोटोज देख कर भी उसने प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी। नंगी तो वो मुझे बचपन से देखता आ रहा है.

“तो अब तो कर लिया न!”
“अब तो रोज करूँगा दीदी!”
“अच्छा जी?”
“हाँ, मेरी डार्लिंग दीदी!”

“अच्छा सुन, ये बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए, किसी को पता चला तो बड़ी बदनामी होगी.”
“उस सब की टेंशन आप मुझ पर छोड़ दो दीदी, सबके सामने हम भाई बहन की तरह ही रहेंगे.”
“ओके”
“बोलो, रोज चुदोगी न मुझसे?”
“हम्म बाबा ठीक है.”
“नहीं, मुँह से बोलो.”

“ओके बाबा रोज चुदूँगी अपने छोटे भाई से, अब सो जा मुझे भी सोने दे.”
“दीदी एक बार और करने दो न … मैं आपसे बातें करके गर्म हो चुका हूँ.” विशाल ने मेरे बोबे दबाते हुए बोला.

“अभी तो किया था?”
“क्या करूँ दीदी, आप इतनी सेक्सी हॉट हो कि आप को देख कर हमेशा मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है.” वो लगातार मेरे बोबे दबाते हुए मुझे सूँघते हुए चूमता-चाटता जा रहा था।

मैं भी थोड़ा गर्म हो गयी थी उसकी बचपन की कहानियां सुनकर- भाई, गर्म तो मैं भी हूं लेकिन मेरी चूत चुदने के हालात में नहीं है.
उसने जो चुदाई की थी उससे मेरी चूत पाव रोटी बन गयी थी और काफी दर्द कर रही थी.

मैंने कहा- तू कहे तो मैं हाथ से शांत कर दूं तेरे लंड को?
वो तो मेरी गांड मारने की फिराक में था लेकिन मैंने साफ मना कर दिया। कुछ देर की बहस के बाद में वो मान गया।

फिर मैं उसके पैरों के पास आई। उसका मूसल लन्ड फुंफकार रहा था। मैंने उसे हाथों से पकड़ लिया. वो काफी मोटा और लम्बा था। उसका लंड मेरी मुट्ठी में पूरा आ भी नहीं रहा था. मुझे यकीन नहीं हुआ कि मैं कुछ देर पहले ही इस लंड से चुद चुकी हूं.

मैंने हाथ ऊपर नीचे करना शुरू किया। उसका लन्ड खम्भे की तरह खड़ा था और गर्म भी था। भाई को भी मस्ती छाने लगी जो उसके चेहरे पर साफ दिख सकती थी। उसका मस्त लौड़ा देख मेरे मुंह में पानी आ रहा था। मैंने न चाहते हुए भी उसके टोपे पर जीभ से फेर दिया। हल्का नमकीन स्वाद था उसके लंड का.

जीभ से सुपारे को चाटते हुए उसका टोपा मैंने मुँह में भर लिया। उसका टोपा काफी बड़ा था, मुश्किल से मुंह में आ पा रहा था। मैं उसके टोपे को मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ में नीचे ही नीचे उसके लन्ड को मुठिया भी रही थी। अब मुझे भी मस्ती छा रही थी. मैंने उसका लण्ड अंदर लेना शुरू किया।

विशाल:
दीदी रंडियों की तरह मेरा लौड़ा चूस रही थी। उन्होंने लौड़े को गले तक उतार रखा था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वो लंड को पहली बार चूस रही है।

वो मेरा लंड अपने गले तक उतार रही थी. जब उसकी सांस फूल जाती तो फिर से बाहर निकाल लेती. फिर मेरे लौड़े पर जीभ फिराने लगती. बीच बीच में दीदी मेरे अंडकोष भी चाट रही थी.

प्रीति:
मुझे अब मजा आ रहा था। उसका प्रीकम का स्वाद मैं अपनी जीभ पर महसूस कर सकती थी। भाई अहहह … इस्स … की कामुक आवाजें निकाल रहा था।

15 मिनट से मैं उसका लौड़ा चूस रही थी लेकिन साला झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरा मुँह दर्द करने लगा तो वो मेरा सिर पकड़ कर मेरा मुख चोदन करने लगा।
5 मिनट के मुख चोदन में भी वो नहीं झड़ा तो मैंने हार मान कर उसे चुदाई की इजाजत दे दी।

मैं उसके लन्ड पर सवार हो गई। वो धक्के लगाने लगा। उसने मुझे अपने से चिपका रखा था। मेरा भाई मेरे होंठ चूसते हुए धक्के लगा रहा था। मैं भी उसका लन्ड चूस कर गर्म हो चुकी थी और मस्ती में चुद रही थी।

अगले 20 मिनट मुझे अलग अलग आसनों में चोदने के बाद वो मेरी चूत में ही झड़ गया। मैं जीवन में पहली बार एक ही दिन में तीसरी बार झड़ी थी। उसका जोश काबिले तारीफ था। लेकिन लौड़ा बड़ा ही बेदर्द था. इसका अहसास तो मुझे सुबह ही होने वाला था।

मैं थक गई थी। कब आंख लग गयी पता ही नहीं चला। सुबह उठी तो मैंने पाया कि हम दोनों नंगे ही चिपक कर सो रहे थे। मैंने मोबाइल देखा तो दिन के 10 बज रहे थे। मैंने भाई को उठाया और खुद भी कपड़े पहने।

कल की चुदाई के बाद जो हाल था उसके कारण मैं लँगड़ा कर चल रही थी। भाई ने मुझे सहारा देकर कमरे तक पहुंचाया। उसने बर्फ से मेरी चूत की सिकाई की। तब जाकर मैं थोड़ा चलने के काबिल हुई।

आते समय भी वो जुगाड़ लगाकर मेरे साथ अकेले हो लिया। रास्ते में उसने एक बार फिर मुझे चोद दिया ये कहते हुए कि फिर “आपकी रसीली चूत पता नहीं कब नसीब हो”

इसके बाद तो वो जब मन करता वो मेरी चुदाई करता। मुझे भी जब मन करता उससे चुदने लगी. वैसे ऐसा कभी नहीं होता कि मेरा मन न हो चुदाई के लिए. मैं हमेशा तैयार रहती हूँ।

ज्यादातर हम घर के बाहर ही चुदाई करते थे. कभी होटल में, कभी किसी दोस्त के यहाँ। घर में पापा मम्मी होते थे तो यहां तो मुश्किल था।
लेकिन धीरे धीरे उसकी हिम्मत और बढ़ने लगी. अब मौका पाकर वो घर में भी शुरू हो जाता था। विशाल के रूप में मुझे अपनी प्यासी चूत का परमानेंट इलाज मिल गया था.

विशाल के शब्द:
दोस्तो, ये थी हम भाई-बहन की चुदाई की शुरूआत की कहानी। इसके बाद भी और बहुत कुछ हुआ. उसे मैं किसी और कहानी में लिखूंगा। यह कहानी आपको कैसी लगी, मुझे अपनी प्रतिक्रयाएं जरूर बतायें.
नीचे दी गयी मेल आईडी पर भी आप मैसेज कर सकते हैं.
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top