सावन जो आग लगाए-2

(Sawan Jo Aag Lagaye- Part 2)

urmaina 2006-02-12 Comments

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प्रेम गुरु की कलम से….

“ओह … मीनू … सच कहता हूँ मैं इन तीन दिनों से तुम्हारे बारे में सोच सोच कर पागल सा हो गया हूँ। लगता है मैं सचमुच ही तुम्हें पर … प्रेम … ओह … चाहने लगा हूँ। पर ये सामाजिक बंधन भी हम जैसो की जान ही लेने के लिए बने है !” भैया की आवाज कांप रही थी।

“भैया क्या आपने कभी सोचा कि मैं आपके बारे में क्या सोचती हूँ ?”

“क… क्या मतलब ?” अब उनके चौंकने की बारी थी।

“हाँ भैया मैं भी आपसे प्रेम करने लगी हूँ !” मैंने अपनी नजरें झुका ली।

“ओह… मेरी मीनू मेरी मैना मेरी जान” और भैया मुझ से लिपट ही गए। उन्होंने मुझे अपने बाहों में भर लिया और मेरे होंठों पर एक चुम्बन ले लिया। आह … वो प्यार का पहला चुम्बन मुझे अन्दर तक रोमांच से भिगो गया। मेरा तन मन सब कुछ तो उसी एक छुवन की लज्जत से सराबोर हो गया। मैंने भी अपने जलते होंठ उनके होंठों पर रख दिए।

मुझे नहीं पता कितनी देर हम लोग इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे। हम तो जैसे अपनी सुधबुध ही खो बैठे थे। मैं तो उनसे ऐसे लिपटी थी जैसे कोई लता किसी पेड़ से। बाहर जोर की बिजली कड़की तब हमें होश आया। भैया ने झट से उठ कर कमरे का दरवाजा बंद किया और फिर वापस आकर मुझे अपने आगोश में भर लिया।

“मीनू कहीं हम गलत तो नहीं कर रहे ?”

“ओह … भैया अब कुछ मत सोचो। इस रात और इन हसीन लम्हों को यादगार बना लो। छोड़ो इन पुरानी दकियानूसी बातों को !”

और फिर ……………….

उन्होंने मुझे कस कर अपनी बाहों में भर लिया और मेरी लुंगी को खींचने लगे। मैंने कहा “नहीं पहले लाइट बंद करो !”

उन्होंने झट से लाइट बंद कर दी और मुझे अपनी बाहों में भर लिया। खिड़की से हलकी रोशनी आ रही थी। अब उन्होंने अपने और मेरे कपड़े निकाल फेंके। अब हम दोनों ही एक दम नंगे थे। मेरी मुनिया तो कब की पानी छोड़ छोड़ कर पीहू पीहू कर रही थी। मैंने शर्म के मारे अपने दोनों हाथ अपनी मुनिया के ऊपर रख लिए।

“मीनू मेरी जान ! अब शर्म छोड़ो ! मुझे अपनी इस प्यारी मुनिया को प्रेम करने दो !”

प्रेम ने मेरे हाथ परे कर दिए। मैं चित्त लेटी थी। मेरी जांघें आपस में कसी हुई थी। एक अनजाने डर और रोमांच से मैं तो लबालब भरी हुई थी। उन्होंने अपना एक हाथ धीरे से मेरी पिक्की की केशर क्यारी पर फिराया। और फिर अपने जलते हुए होंठ मेरी मुनिया के होंठो पर जैसे ही रखे मेरी एक हलकी सी किलकारी निकल गई। फिर अपनी जीभ से मेरी मुनिया की गुलाबी पंखुडियों को चूम लिया और फिर उसे चाटना शुरू कर दिया तो मेरी बंद जांघें अपने आप खुलने लगी।

फिर उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरी पिक्की की दोनों फांकों को चौड़ा किया। शहद की कुप्पी जैसी लाल गुलाबी रंगत वाली प्रेम रस में सराबोर हुई अनछुई पिक्की हलकी ‘पुट’ की आवाज के साथ खुल गई। उन्होंने अपनी जीभ से उसे चाटना शुरू कर दिया। मेरे मुंह से सहसा निकल पड़ा “उई ……. माँ …….” अरे अभी तो उन्होंने दो तीन बार ही जीभ फिराई थी मेरी पिक्की तो निहाल ही हो गई और अपने प्रेम रस की 4-5 बूंदें उन्हें समर्पित कर दी। वो तो मस्त होकर उसे चाट ही गए। मैं सीत्कार पर सीत्कार करने ली। मेरे पैर अपने आप ऊपर उठ गए और मैंने उनकी गर्दन के चारों और लपेट लिया। वो कभी मेरे नितम्बों को सहलाते कभी मेरे गोल मटोल उरोजों को दबाते। मैं तो सातवें आसमान पर थी।

“ओह… प्रेम बस करो ! मुझे कुछ होता जा रहा है।”

मेरा शरीर अकड़ने लगा और साँसे तेज होने लगी। मुझे लगा जैसे कहीं मैं अनजाने खुमार और उन्माद में डूब रही हूँ। मैंने उनके सिर के बालों को जोर से पकड़ लिया और अपनी पिक्की की और दबा दिया। और उसके साथ ही मेरी किलकारी निकल गई और मेरी पिक्की ने गरम गरम प्रेम रस की जैसे बौछार ही चालू कर दी। आह … इतना मजा तो कभी हस्तमैथुन करके भी नहीं आया था। शमा सच कह रही थी इस लज्जत (स्वाद) से अब तक मैं तो अनजान ही थी। प्रेम पूरा का पूरा रस चटखारे लेकर पी गया।

“ओह मेरी मैना ! मेरी जान ! मजा ही आ गया ” प्रेम ने उठते हुए कहा। मेरा शरीर अब भी रोमांच से काँप रहा था। वो मेरे ऊपर आ गए। और मेरे होंठों को चूसने लगे। उनके होंठों पर लगे मेरे प्रेम रस का नमकीन और कुछ खट्टा सा स्वाद मुझे भी मिल ही गया। वो कभी मेरे गालों को कभी मेरे होंठो को कभी गले को कभी उरोजों को चूमते ही जा रहे थे। फिर उन्होंने अपना मुंह मेरे अमृत कलशों (उरोजों) पर लगा दिया और उनकी चने के जितनी बड़ी निप्पल्स को चूसना चालू कर दिया। कभी वो एक उरोज को पूरा मुंह में भर लेते और चूसते और कभी दूसरे को। मेरी तो सीत्कार ही निकलती जा रही थी।

अचानक मेरा हाथ उनके ‘उस’ से टकराया। ओह… मुझे शर्म आ रही है उसका नाम लेते हुए। आप समझ रहे हैं ना। लगभग 7” लम्बा और 1 ½ “ मोटा उनका पप्पू तो अकड़ कर जैसे लोहे की रॉड ही बना था। उसका रंग सांवला सा था। वो तो ऐसे खड़ा था जैसे किसी बन्दूक की मोटी सी नाली हो और बस घोड़ा दबाने का इंतज़ार कर रहा हो. और सुपाड़ा तो जैसे कोई लाल टमाटर ही हो । मैंने आज पहली बार किसी का “वो” इतने नजदीक से देखा था। मैंने प्यार से उसे छुआ तो वो तो फुफ्कारे ही मारने लगा। मैंने धीरे धीरे प्यार से उसे सहलाना शुरू कर दिया तो उसने भी ठुमके लगाने चालू कर दिए। मैंने जब सुपाड़े पर अंगुली फिराई तो मुझे कुछ लेसदार सा चिपचिपा सा महसूस हुआ। शमा बताती है ये प्री कम होता है। कुछ नमकीन सा होता है और इसका स्वाद बहुत ही मजेदार होता है। मेरा जी तो कर रहा था कि उसे मुंह में ले लूं पर शर्म के मारे मैं उसे मुंह में नहीं ले पाई।

“मीनू मेरी जान क्या तुम तैयार हो ?” उन्होंने मेरे होंठ चूमते हुए पूछा।

“किसके लिये ?”

“ओह ये भी बताना पड़ेगा क्या ?”

“हाँ बताये बिना तो मैं कैसे समझूंगी ?”

“अब चुदाई करनी है मेरी मैना !” उन्होंने मेरी नाक पकड़ते हुए मेरे होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।

“ओह… भैया आप बहुत गन्दा बोलते हो ?”

“अब चुदाई को तो चुदाई ही कहा जाएगा और क्या बोलूँ ?”

“नहीं …ये गन्दा शब्द है हम इसे प्रेम मिलन कहेंगे ‘वो’ नहीं ?”

“वो क्या ?”

“ओह भैया आप फिर… नहीं मुझे शर्म आती है” मैंने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांप लिया।

अब वो कहाँ रुकने वाले थे। उन्होंने मुझे जोर से अपनी बाहों में भर कर मेरे होंठ चूम लिए। और फिर एक हाथ बढा कर उन्होंने बेड की साइड ड्रावर से वैसलीन की डब्बी निकाली और एक अंगुली में क्रीम भर कर मेरी पिक्की के होंठो पर और छेद में लगा दी। मैं तो सिहर ही उठी रोमांच से। उन्होंने धीरे धीरे अपनी अंगुलियों से मेरी पिक्की की फांकों को मसलना शुरू कर दिया। फिर एक अंगुली मेरे रति-द्वार के छोटे से छेद में डाल दी। “ऊईई …. माँ.. आ ….” मुझे गुदगुदी सी हो रही थी। उन्होंने अब अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। मैं तो जैसे मदहोश ही हो गई। मेरे मुंह से तो बस आह … ओईई … ही निकलते जा रहा था। फिर उन्होंने अपने पप्पू को भी क्रीम से तर कर लिया और उसे मेरी पिक्की के मुंह पर रख दिया। वो तो बेचारी कब की तरस रही थी। उन्होंने कोई जल्दी नहीं की। मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी ये इतनी देर क्यों कर रहे हैं। शमा तो कहती है की गुल तो एक ही झटके में अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार देता है।

प्रेम ने एक हाथ मेरी कमर के नीचे लगा लिया और एक हाथ मेरी गर्दन के नीचे। उसने मेरे होंठ अपने होंठों में भर लिए। मेरी मुनिया तो कब की पीहू पीहू कर रही थी। उन्होंने एक जोर का सांस लिया और धीरे से एक धक्का लगाया। मेरी प्यारी मुनिया को चीरता हुए उनका पप्पू 3 इंच तक मेरी पिक्की में घुस गया और उसके साथ ही मेरी घुटी घुटी चीख निकल गई। मुझे लगा जैसे किसी ने लोहे की गरम सलाख मेरी पिक्की में ठोक दी हो। मुझे ऐसे लगा जैसे मेरी पिक्की की चमड़ी किसी ने चाकू से चीर दी है। मैं कसमसाने लगी। और जैसे ही मेरे होंठ उनके मुंह से छूटते मेरी हलकी सी चींख निकल गई। “ओह भैया…. मैं मर गई ……. म… म… मम्मी !”

“बस बस मेरी मैना अब दर्द ख़त्म ! बस थोड़ा सा बर्दाश्त कर लो ! अब आगे मजा ही मजा है !”

“नहीं भैया बाहर निकाल लो प्लीज … मैं मर जाउंगी बहुत दर्द हो रहा है !”

“बस एक मिनट की बात है। प्लीज चुप करो। बस अब दर्द ख़त्म ! ”

हम लोग कोई 3-4 मिनट ऐसे ही एक दूजे की बाहों में लिपटे पड़े रहे और फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। मेरा दर्द कम होता चला गया। आह ….. अब तो बस मजा ही मजा था। प्रेम धीरे धीरे धक्का लगाने लगे पर पूरा अन्दर नहीं किया।

मैंने कहा, “अब मत तरसाओ ! पूरा डाल दो !”

“क्या डाल दूँ ?”

“ओह भैया आप तो मुझे बेशर्म ही कर के छोडोगे। नहीं मैं इसका नाम नहीं ले सकती !”

“प्लीज बोलो ना ?” उन्होंने मेरा चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया और मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा।

“ये तो मेरा प्यारा मिट्ठू है बस अब तो आप खुश हैं ना ?” कहते हुए मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं।

मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था और साँसें बेकाबू होती जा रही थी। मेरा तो रोम रोम ही पुलकित हो गया था। मैं तो जैसे मस्ती के सागर में ही डूबी थी।

अचानक उन्होंने मुझे जोर से अपनी बाहों में भींच लिया। मैंने भी अपने नितम्ब उछालने शुरू कर दिए। पर मुझे क्या पता था अभी तो असली काम बाकी था। प्रेम एक मिनट के लिए रुका और फिर बोला “देखो मेरी जान थोड़ा सा दर्द और सहन करना होगा !”

“ओह प्रेम अब कुछ मत पूछो अब डाल दो पूरा अन्दर ! अब दर्द की चिंता मत करो ! तुम्हारे लिए मैं सब सहन कर लूंगी !”

फिर उन्होंने मुझे कसकर अपनी बाहों में भर लिया और एक जोर का धक्का लगाया। उनका 7” लम्बा पप्पू मेरी मुनिया की झिल्ली को रोंदता हुआ अन्दर समा गया। मेरे मुंह से जोर की चीख और आँखों से आंसू दोनों एक साथ निकल पड़े। प्रेम तो पक्के गुरु थे। इस से पहले कि मेरी चीख हवा में गूंजे, उन्होंने मेरा मुंह अपने हाथ से ढक दिया और मैं तो बस गूं गूं करती ही रह गई। बाहर बहुत जोर से बिजली कड़की लेकिन मुझे लगा कि मुझे जितने जोर का झटका लगा है वो उस बिजली से कम नहीं था। मुझे लगा मेरी पिक्की से गरम गरम सा कुछ निकल रहा है। मुझे तो बाद में पता चला वो तो मेरी पिक्की की सील टूटने से निकला खून था जो पूरी बेडशीट को ही भिगो गया। मैंने उनकी पीठ पर अपने नाखून गड़ा दिए जिससे उनका हल्का सा खून निकल आया। पर इस खून और दर्द की किसे परवाह थी।

कोई 4-5 मिनट हम इसी तरह शांत पड़े रहे। फिर जब उनका ‘वो’ (अरे यार पप्पू) अन्दर एडजस्ट हो गया तो मेरी पिक्की ने भी रोना धोना बंद करके प्रेम रस बहाना चालू कर दिया। मेरी पिक्की अब संकोचन करने लगी थी। उनका पप्पू भी अन्दर मस्त हुआ ठुमके लगाने लगा। अब प्रेम ने धीरे धीरे धक्के लगाने चालू कर दिए। मैं भी अपने नितम्ब उठा उठा कर उनका साथ देने लगी। पता नहीं कितनी देर वो अपने पप्पू को अन्दर बाहर करते रहे। समय की परवाह किसे थी। मैं तो बस यही चाह रही थी हमारे प्रेम के ये सुनहरे पल कभी ख़तम ही न हों। मेरे मुंह से आह… ओईई …. या.. आ.. आ.. की आवाजें निकालने लगी थी और मेरी पिक्की से फच फच की आवाजें आनी शुरू हो गई थी। मेरा शरीर एक बार फिर अकड़ने लगा और इस से पहले की मैं कुछ समझती या करती मेरी पिक्की ने पानी छोड़ दिया।

प्रेम धक्के लगता जा रहा था। मैंने अपने पैरों को ऊपर उठा कर प्रेम की कमर से कैंची की तरह जकड़ लिया। अब वो धक्के नहीं लगा पा रहे थे। वो कुछ देर ऐसे ही मेरे ऊपर पड़े रहे। मैं तो प्रेम रस में डूबी रोमांच के सागर में गोते लगा रही थी। फिर मैंने धीरे धीरे अपने पैर नीचे कर लिए। हमें कोई 15 मिनट तो जरूर हो गए होंगे। प्रेम ने फिर जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। उनके मुंह से अजीब सी गुरर्र.. गु….र…र्र की आवाज निकलने लगी थी। मेरी पिक्की से भी अब फच .. फच .. की आवाजें आनी शुरू हो गई थी। इस मधुर संगीत को सुनकर मैं तो तृप्त ही होती जा रही थी। इस अनोखे स्वाद से अब तक तो मैं अनजान ही थी। इसके बदले में अगर स्वर्ग भी मिले तो मैं ना जाऊं।

“मेरी मैना अब मैं भी जाने वाला हूँ !” उनके धक्को की रफ़्तार अचानक तेज हो गई।

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उन्हें जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया। और इसके साथ ही उनके पप्पू ने एक… दो.. तीन.. चार… न जाने कितनी पिचकारियाँ छोड़ दी। मेरी पिक्की तो उनके गरम और गाढ़े वीर्य से लबालब भर गई। मेरी पिक्की भला क्यों पीछे रहती उसने भी एक बार फिर काम रस छोड़ दिया।

बाहर बारिश अब बंद हो गई थी। मैं शर्ट और लुंगी पहन कर नीचे भाग आई।

प्रेम तो मुझे मीनल से मैना बना कर चले गए पर मैं आज भी उन लम्हों को याद करके रोमांच से भर जाती हूँ। लेकिन बाद में मेरे दिल में एक हूक सी उठती है और मेरी आँखों से आंसू छलक पड़ते हैं। आप शायद इन बातों को नहीं समझेंगी। प्रेम की याद में मैं कितना रोती और तड़फती हूँ आप क्या जाने। वो तो बस सावन में आग लगा कर चला गया। काश कोई मेरे इन आंसुओं की कीमत समझे और इस आने वाले सावन में मेरे भीगे बदन को अपने सीने से लगा ले।

क्या आप मेरे लिए “आमीन” (भगवान् करे ऐसा ही हो) नहीं बोलेंगे ? मेरी आपबीती आपको कैसी लगी मुझे और प्रेम को मेल करेंगे ना ???

आपकी मैना : [email protected] ; [email protected]

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