चचेरे भाई को गे बनने से रोका- 3

(Hot Sis Good Sex Kahani)

हॉट सिस गुड सेक्स कहानी में मेरे भाई को लंड चुसवाने में बहुत मजा आया. मैं भी गर्म हो गई थी. मेरी चूत लंड मांग रही थी. मैंने अपने भाई को मेरी चूत में लंड पेलने को कहा.

कहानी के दूसरे भाग
चचेरे भाई के सामने नंगी हो गयी
में आपने पढ़ा कि अपने चचेरे भाई को गे बनने से रोकने के लिए मैंने उसे अपना नंगा बदन दिखाकर लड़कियों की तरफ आकर्षित किया. उसके बाद मैंने उसका लंड भी चूस लिया था.

यह Xxx Hindi Voice कहानी सुनें.

अब आगे हॉट सिस गुड सेक्स कहानी:

इसके बाद अमर भी मेरे बगल में आकर चिपककर बैठ गया।

मैंने कहा, “हाँ भाई, अब कैसा लग रहा है?”
उसने कहा, “दीदी, अब तो सब कुछ फ़ीका दिख रहा है आपके आगे! और आपको कैसा लग रहा है?”

मेरे मुँह से निकल गया, “होंडा सिटी दिख रही है!”
उसने कहा, “मतलब?”

मैंने हकलाते हुए कहा, “अरे, वो कुछ नहीं! तुम्हारी गाड़ी कितने का एवरेज देती है?”

उसने कहा, “अरे दीदी, गाड़ी का छोड़ो! मेरा एवरेज देखना! ज़रा मेरे गेयर को हिलाओ तो सही, गाड़ी स्टार्ट करो!”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा जी, अभी लो, अमर बेबी!”

मैंने उसका लंड पकड़ लिया।
फिर उसकी गालों को चूमते हुए ऊपर-नीचे हिलाने लगी।
जिससे वो थोड़ा-थोड़ा सख्त होने लगा।

अमर भी मेरी तरफ़ मुँह कर लिया।
हम किस करने लगे।
मैं उसका लंड अपने कोमल हाथ से सहला रही थी।
जिससे उसमें तनाव आता जा रहा था।

इसके बाद उसके हाथ मेरी ब्रा के ऊपर थे।
वो उन्हें मसलने लगा।
मुझे भी अब बहुत मज़ा आने लगा।
मैं “स्सी…” करने लगी।

जब किस रुकी, तो उसने कहा, “दीदी, दोबारा चूसो ना! बहुत मज़ा आता है!”
मैंने कहा, “बिल्कुल मेरी जान! चल, खड़े हो जा!”

वो वहीं बेड के बगल में खड़ा हो गया।
मैं घुटनों के बल उसके लंड के पास आ गई।

मैंने उसकी तरफ़ देखा और देखते हुए ही उसका लंड मुँह में ले गई।
वो खड़ा हो चुका था।

मैंने अंदर-बाहर चूसना शुरू कर दिया।

वो अपनी कमर पर हाथ रखे खड़ा, अपना लंड चुसवाते हुए, “आह… आह… स्सी… दीदी… आह… आइ लव यू दीदी… स्सी…” कर रहा था।

मैं “गप्प… गप्प…” उसका लंड चूस रही थी।
लगभग 3 मिनट मैंने उसका लंड चूसा।
फिर मैं खड़ी हो गई उसके सामने।

उसकी हाइट मुझसे थोड़ी कम थी।
मैंने झुककर उसे होंठों पर किस किया।

मैंने कहा, “और कुछ, सरकार?”
वो बोला, “बिल्कुल दीदी!”

मैंने कहा, “तो आगे शुरू करें?”

उसने कहा, “पर मैंने कभी करा नहीं है, दीदी!”
मैंने कहा, “तो मैं सिखा दूँगी, मेरी जान!”

फिर मैंने एक-एक करके अपने बचे हुए कपड़े भी उसके आगे उतार दिए।
बिल्कुल नंगी हो गई।

अब कमरे में हम दोनों बिल्कुल नंगे थे।
एक-दूसरे को देख रहे थे।

वो बोला, “दीदी, क्या मैं आपके बूब्स को छू सकता हूँ?”

मैं हँसते हुए बोली, “साले, पूरी नंगी हो गई तेरे सामने, अब भी इजाज़त माँग रहा! ले, छू और दबा!”
इतना कहकर मैंने उसके हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रखे और दबा दिए।

मैंने ज़ोर से, “स्सी…” कहा, आँखें बंद करते हुए!

फिर तो वो भोंपू की तरह मेरे दोनों स्तनों को बारी-बारी दबाते हुए मसलने लगा।
फिर मेरी छाती पर आकर एक को अपने मुँह में ले लिया।
ज़ोर से चूसने लगा।

मैंने भी अपने हाथों से उसका मुँह अपने बूब्स में धँसा दिया।
“स्सी… सी… सी…” करते हुए उत्तेजित होने लगी।
मेरी धड़कनें भी बढ़ चुकी थीं।

फिर मैंने उसके हाथ को अपनी चूत पर ले गई।
मैंने कहा, “यहाँ रगड़ते रहो, अमर मेरी जान!”

अब वो ऊपर मेरे निप्पल चूस रहा था।
नीचे मेरी चूत को रगड़ रहा था।
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
मेरी चूत भी बिल्कुल गीली हो चुकी थी।

जब उसका चूस-चूसकर मन भर गया, तब वो अलग हुआ।

वो बोला, “दीदी, अब क्या करना है?”
मैंने कहा, “अब तुझे अपनी बहन चोदनी है, वो भी अभी!”

मैं हँसने लगी।
वो भी मुस्कुराने लगा, वो बोला, “जो हुकुम, सुहानी दीदी!”

फिर मैं टाँगें खोलकर उसके सामने बेड पर लेट गई।
मैं बोली, “मेरे ऊपर आओ, अमर!”

अमर मेरे ऊपर आकर झुक गया।

मैंने कहा, “अब मेरी चूत में डालो, अंदर, धीरे-धीरे!”

पर उसका पहली बार था, तो उसे रास्ता नहीं मिल रहा था।

मैंने कहा, “रुक, एक मिनट!”

मैंने उसका लंड अपने हाथ से पकड़कर अपनी चूत पर रखा और मैंने कहा, “हम्म… अब अंदर धकेलो, धीरे-धीरे!”

उसका लंड इतना बड़ा नहीं था, तो ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई।
लंड धीरे-धीरे अंदर सरकने लगा।

अमर ‘स्सी… स्सी…’ करने लगा।
इधर मैं भी, “आह… आह… स्सी… स्सी…” करते हुए उसका लंड अंदर ले रही थी।

आखिर में उसने पूरा लंड मेरे अंदर उतार दिया था।
वो रुक गया था।

मैंने कहा, “अब धीरे-धीरे आधे से ज़्यादा बाहर निकालो और फिर से डालो! फिर निकालो, फिर डालो!”

उसने कहा, “ठीक है, दीदी!”

उसने धीरे-धीरे वैसे ही करना शुरू कर दिया।
अब तो धीरे-धीरे उसने चोदना शुरू कर दिया था।
मेरी भी हल्की-हल्की, “स्सी… स्सी… आह… आह…” की सिसकारी निकल रही थी।

वो भी, “हम्म… हम्म…” करते हुए अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था।
फिर मैंने उसको अपनी छाती से सटा लिया।

मैंने कहा, “आह… अहह… आह… ज़ोर-ज़ोर से… मेरी जान… तेज़-तेज़ चोदो मुझे… आह…”

फिर अमर ने तेज़-तेज़ धक्के मारने शुरू कर दिए।
वह “आह… आह… दीदी… आह… दी… दी…” करने लगा।

बेड भी हमारी चुदाई से चर्र-चर्र करते हुए हिलने लगा।
हमारी पट्ट-पट्ट चुदाई पूरी स्पीड में चालू थी।
हम “उम्मह… उम्मह…” करते हुए साँस भर रहे थे।

लगभग 5 मिनट की चुदाई के बाद हम थक गए।

उसका सिर मेरी छाती पर था।
हम दोनों ऐसे ही हाँफ रहे थे।

चिपके-चिपके ही हम सुस्ताने लगे।

2 मिनट सुस्ताकर मैंने उसके गाल पर हल्का-सा चाँटा मारते हुए कहा, “हो गया आराम, तो आगे चालू करें!”
उसने कहा, “हाँ दीदी, बिल्कुल!”

फिर वो उठ गया।
मैं ड्रेसिंग टेबल पर आ गई, ऐसे ही अपने आप को देखने।
अमर भी पीछे-पीछे आ गया।

वो बोला, “दीदी, यहीं झुक जाओ!”

मैंने ड्रेसिंग टेबल पर आगे हाथ रखकर झुक गई।
चूत उसके आगे परोस दी, पीछे से।

मैंने कहा, “अमर, अब मेरे कंधों पर हाथ रखो और पीछे से चोदना शुरू करो!”

उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा और एकदम से घुसा दिया।
मेरी ज़ोर की ‘स्सी…’ निकल गई।

फिर उसने आगे-पीछे पट्ट-पट्ट धक्के मारने शुरू कर दिए।
मैंने शीशे के सामने ही आगे-पीछे हिलती हुई चुदवा रही थी।

वो ‘आह… आह… आह… दीदी… आह… मेरी जान…’ कर रहा था।
मैं भी ‘आह… स्सी… सी… स्स… अमर… बेबी… आइ लव यू…’ कर रही थी।

हम दोनों सामने शीशे में अपनी चुदाई का दृश्य देख रहे थे।
मेरा मुँह हल्का-सा खुला हुआ था, “स्सी-सी…” की आवाज़ें आ रही थीं।

मेरे खुले बाल झूलते हुए हिल रहे थे।
बूब्स भी थरथर काँपते हुए हिल रहे थे, उसके झटकों से।

5-7 मिनट की चुदाई में हम थक भी चुके थे।
मज़ा भी बहुत आ रहा था।

मैंने कहा, “वाह मेरी जान, कितना बढ़िया चोदता है तू! कहाँ गाँडू बनने जा रहा था! देख, चूत में कितना मज़ा है!”
उसने कहा, “सही कहा दीदी! बहुत मज़ा है एक हसीना की चूत मारने में! आह… ये लो… आह… चुद… मेरी जान…”

फिर वो बोला, “बहुत मज़ा आ रहा है, दीदी! ऐसा लग रहा है, मेरा लंड फटने को हो रहा है!”

मैं समझ गई, ये झड़ने वाला है।

मैंने बोला, “कुछ भी हो जाए, रुकना मत जब तक मैं ना कहूँ!”

हम दोनों पूरी जान से चुदाई कर रहे थे।
मैं भी झड़ने की कगार पर थी।

फिर मैंने ज़ोर की, “आह…” करी।
मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
मुझे बहुत मज़ा आया।

इधर अमर भी ‘आह… आह… दीदी… आह… दीदी… दीदी… मैं… गया… आ… आ… आह…’ करते हुए रुक-रुककर अंदर झड़ने लगा।
आखिरी बूंद तक अंदर गिराकर अलग हो गया।

वह वहीं फ़र्श पर बैठ गया।
ज़ोर-ज़ोर से हाँफने लगा।

मैं भी झड़ चुकी थी।
बगल में बेड पर सीधी होकर लेट गई।

इधर अमर भी उठकर मेरे ऊपर आकर लेट गया।
हम दोनों हाँफते हुए सुस्ताने लगे।

मैंने कहा, “मज़ा आया, मेरी जान?”

उसने कहा, “दीदी, आपने बहुत अच्छा है! इतना मज़ा शायद दुनिया में कोई नहीं दे सकता था!”

मैं भी हँसने लगी।
हम आँखें बंद करके आराम करने लगे।

इसी बीच हम दोनों की आँख लग गई, ऐसे ही।

करीब आधे घंटे बाद निशा की फुसफुसाने की आवाज़ से मेरी नींद टूटी।
मैंने देखा, वो गेट के पास खड़ी थी, साइड से झुककर!

मैंने धीरे से अमर को साइड में लिटाया।
वो सो ही रहा था।
मैं ऐसे ही गेट के पास आई।

निशा बोली, “हो गया काम?”
मैंने कहा, “कमरे की हालत देखकर नहीं लग रहा?”

मैंने अपनी चूत में से अमर का वीर्य उंगली पर लेकर उसको दिखाया।
मैंने कहा, “ले, बना दिया तेरे भाई को मर्द!”

हॉट सिस गुड सेक्स की बात सुनकर वो मुस्कुराते हुए खुश हो गई।
वो बोली, “थैंक यू यार! चल, अब जल्दी से सामान समेटो, शाम हो रही है! मम्मी-पापा आने वाले होंगे!”

मैंने कहा, “ओह हाँ!”

मैं कमरे में आ गई।
मैंने अमर को उठाकर कहा, “अमर, शाम हो गई है! उठो, चाचा-चाची आने वाले होंगे!”

अमर भी थोड़ा हड़बड़ाते-से उठा, “अरे हाँ!”

हम दोनों ने 5 मिनट में ही कमरा बिल्कुल सेट कर दिया।
मैंने भी अपने कपड़े उतारे और घर के कपड़े बदल लिए।

थोड़ी देर में निशा भी एक्टिंग करते हुए आ गई, जैसे कुछ पता ही ना हो।

वो बोली, “कितनी तेज़ आवाज़ में गाने सुनते हो! पार्टी कर रहे थे क्या? नींद ख़राब हो रही थी मेरी!”

इसी बीच अमर वहाँ से चला गया।

मैंने निशा से कहा, “ले मेरी जान! अब तेरे भाई को औरत के जिस्म के सुख का पता लग गया है! अब वो नहीं बनेगा गे! अपना वादा याद है ना?”

उसने कहा, “बिल्कुल मेरी जान! बस यूँ समझ, होंडा सिटी तेरी!”

फिर मैं अगले दिन अपना सामान लेकर अपने कमरे पर आ गई।
अगले दिन से ऑफिस जाने लगी।
अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में व्यस्त हो गई।
बस यूँ समझिए, दोस्तो, कि 1 हफ़्ते तक टाइम नहीं मिला ज़्यादा।

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हॉट सिस गुड सेक्स कहानी का अगला भाग: चचेरे भाई को गे बनने से रोका- 4

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