जिस्मानी रिश्तों की चाह-47

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 47)

जूजाजी 2016-07-31 Comments

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सम्पादक जूजा

आपी धीरे धीरे मेरे लंड को मुँह में लेने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बार बार उनको उबकाई सी आ जाती थी।

आपी ने तीसरी बार पूरा मुँह में लेने की कोशिश नहीं की और मेरे लंड को अपने मुँह से बाहर निकाल कर उससे ऊपर की तरफ सीधा किया और लंड की जड़ में अपनी ज़ुबान का ऊपरी हिस्सा रख कर पूरे लंड की लंबाई को चाटते हुए नोक तक आईं और एक बार लंड की टोपी पर ज़ुबान फेर कर उससे नीचे की तरफ दबाया और लंड के ऊपरी हिस्से की लंबाई को ऊपर से नीचे जड़ तक चाटा।

फिर इसी तरह आपी ने मेरे लंड को दोनों साइड्स से ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चाटा और फिर लंड को मुँह में ले लिया। लेकिन इस बार आपी ने आधा ही लंड मुँह में डाला और उस पर अपने होंठों की गिरफ्त को टाइट करके अन्दर की तरफ चूसने लगीं।

लंड को इस तरह चूसने से आपी के दोनों गाल पिचक कर अन्दर घुस जाते और उनका चेहरा लाल हो जाता था।

आपी इतनी ताक़त से चूस रही थीं कि मुझे साफ महसूस हुआ कि मेरे लंड के अन्दर से मेरी मलाई का एक क़तरा रगड़ ख़ाता हुआ बाहर की तरफ जा रहा है।
जब वो क़तरा मेरे लंड की नोक से बाहर आया तो मेरे जिस्म और लंड को एक झटका सा लगा।

मैंने झटका लेकर आपी की तरफ देखा.. तो वो मेरे चेहरे पर ही नज़र जमाए हुए थीं और मेरी हालत से लुत्फ़ ले रही थीं।
मुझसे नज़र मिलने पर आपी ने शरारत से आँख मारी और फिर अपने मुँह को मेरे लंड पर आगे-पीछे करने लगीं।

जब आपी मेरे लंड पर अपना मुँह आगे की तरफ लाती थीं.. तो अन्दर से अपने मुँह के जबड़ों की गिरफ्त को ढीला कर देतीं और जब मेरा लंड अपने मुँह से बाहर लातीं तो सिर को तो पीछे की जानिब हटाती थीं.. जिससे लंड बाहर आना शुरू हो जाता था।

लेकिन बाहर लाते वक़्त आपी अपने मुँह के अन्दर वाले हिस्से से लौड़े को ऐसे चूसतीं कि मेरा लंड अन्दर की तरफ खिंचता हुआ बाहर आता था।

पता नहीं मैं आपको यह अंदाज़ समझा पाया हूँ या नहीं.. बहरहाल एक बार फिर गौर से पढ़िएगा तो आपको समझ आ जाएगा।

इस अंदाज़ से कभी फरहान ने भी मेरा लंड ना चूसा था.. बल्कि फरहान क्या मैंने भी कभी ऐसे नहीं चुसवाया था.. जैसे आपी चूस रही थीं।

कुछ देर तक इसी तरह आपी मेरा लंड चूसती रहीं और फिर जब भी आपी लंड को अपने मुँह के अन्दर धकेलतीं.. तो आख़िर में एक झटका मारती थीं.. जिससे मेरा लंड हर बार थोड़ा-थोड़ा ज्यादा अन्दर जाने लगा था।

कुछ ही देर में आपी की कोशिश रंग लाई और उन्होंने जड़ तक मेरा लंड अपने मुँह में लेना शुरू कर दिया।

लेकिन सिर्फ़ एक लम्हें को ही आपी के होंठ मेरे लंड की जड़ तक पहुँच पाते थे और फिर आपी वापस लंड को बाहर निकालना शुरू कर देती थीं।

आपी का हाथ मेरे पेट और लंड के दरमियानी हिस्से पर रखा हुआ था.. जहाँ से मेरे लंड के बाल शुरू होते हैं।

आपी ने इसी तरह मेरा लंड चूसते-चूसते अपना हाथ मेरे लंड के बालों वाली जगह से उठाया और मेरे लंड के नीचे लटकती गोटों को पकड़ लिया और आहिस्ता-आहिस्ता इन बॉल्स को सहलाने लगीं।

आपी का हाथ मेरी बॉल्स पर टच हुआ तो सुरूर की एक और लहर मेरे बदन से उठी और मुझे ऐसा लगा कि शायद मैं अब अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाउंगा, मैंने दोनों हाथों से आपी का चेहरा थामा और अपना लंड उनके मुँह से निकाल लिया और आँखें बंद करके लंबी-लंबी साँसें लेने लगा।

मुझे साफ महसूस हुआ कि मेरे लंड का जूस जो कि बाहर आने लगा था.. वो अब वापस मेरी रगों में जा रहा है।

चंद सेकेंड बाद जब मैंने यह महसूस किया कि अब मैंने अपनी हालत पर कंट्रोल कर लिया है..
तो मैंने आँखें खोलीं और आपी की तरफ देखा।

आपी का चेहरा मेरे हाथों में और उनका मुँह थोड़ा सा खुला हुआ मेरे लंड से तकरीबन 4 इंच दूर था.. मेरे लंड की नोक से एक पतली सी लकीर आपी के निचले होंठ तक गई हुई थी। वो पता नहीं मेरे लंड का जूस (मेरा प्री कम) था या आपी की थूक(सलाइवा) थी.. जो बारीक सी तार की तरह मेरे लंड की नोक से आपी के होंठों तक गई हुई थी।

आपी की नजरें मेरे चेहरे पर ही जमी थीं और शायद उन्होंने इस लकीर को देखा ही नहीं था।

मैंने आपी का चेहरा एक हाथ से मज़बूती से थामा कि वो मुँह हिला ना सकें और दूसरे हाथ की उंगली आपी की आँख के सामने लहराई।

आपी ने कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में मेरी उंगली को देखा और मैं अपनी उंगली नीचे अपने लंड की तरफ ले जाने लगा।

आपी की नजरें मेरी उंगली पर ही जमी थीं और उंगली के साथ-साथ गर्दिश कर रही थीं।

मैंने अपनी उंगली अपने लंड की टोपी पर नोक के पास रखी.. तो उसी वक़्त आपी की नज़र भी मेरी प्री-कम के उस बारीक तार पर पड़ी और मैंने आपी के चेहरे को मज़बूती से थाम लिया कि कहीं आपी पीछे हटने की कोशिश ना करें।

लेकिन मैंने महसूस क्या कि आपी ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की तो मैंने भी गिरफ्त ढीली कर दी और उनकी नजरें मेरे लंड की नोक से उसी तार पर होती हुई उनके अपने होंठों तक गईं।

आपी ने मुस्कुरा कर मेरी आँखों में देखा।
आपी की आँखों में अजीब सी चमक थी.. अजीब सा खुमार था.. जो इस अहसास के लिए था कि यह उनकी ज़िंदगी का पहला लंड था.. जिसको उन्होंने चूसा और उसके ज़ायक़े को महसूस किया और लंड भी उनके अपने सगे भाई का था।

मैंने अपनी उंगली आपी के होंठों पर रखी और अपनी प्री-कम की लकीर को उनके होंठों से लेकर के अपनी उंगली पर ले लिया और उस तार को उंगली पर समेटते हुए अपने लंड की नोक तक आया.. और वहाँ से भी उस तार को तोड़ लिया।

मैंने अपनी उंगली आपी को दिखाई.. आपी ने मेरी उंगली पर लगा मेरे लंड का जूस देखा और नर्मी से मेरा हाथ पकड़ कर अपनी आँखों के क़रीब ले गईं और फिर अचानक ही झपट कर मेरी उंगली अपने मुँह में लेकर उससे चूसने लगीं।

मैं आपी का यह अंदाज़ देख कर दंग रह गया।
आपी ने मेरी पूरी उंगली चूसी और मेरा हाथ छोड़ कर फिर से मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ कर.. अपनी ज़ुबान लंड के सुराख में घुसाने लगीं।

एक बार फिर उन्होंने पूरे लंड को चाटने के बाद लंड मुँह में लिया और तेजी से अपने मुँह में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर बाद मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हो गया.. मैंने कोशिश की कि मैं अपने आप पर कंट्रोल करूँ.. लेकिन जल्द ही मुझे महसूस हुआ कि मैं अबकी बार अपने आपको नहीं रोक पाऊँगा।

मैंने अपनी तमाम रगों को फैलता- सिकुड़ता महसूस किया.. और मैंने चीखती आवाज़ में बा-मुश्किला कहा- आपीयईईईई.. मैं छूटने वाला हून्ंननणन्..

आपी ने मेरी बात सुनते ही लंड को मुँह से निकाला और तेजी से मेरे लंड को अपने हाथ से मसलने लगीं, फिर 3-4 सेकेंड बाद ही मेरे मुँह से एक तेज ‘आअहह’ निकली और मेरे लंड ने फव्वारे की सूरत में अपने जूस की पहली धार छोड़ी.. जो सीधी मेरी बहन के हसीन गुलाबी उभारों पर गिरी।

आपी ने अपना हाथ मेरे लंड से नहीं हटाया और इस धार को देख कर और तेजी से मेरे लंड को रगड़ने लगीं।

दो-दो सेकेंड के वक्फे से मेरे लंड से एक धार निकलती.. और आपी के मम्मों या पेट पर चिपक जाती।
तकरीबन एक मिनट तक मेरा लंड और जिस्म झटके ख़ाता रहा और जूस बहता रहा।

आपी ने मेरे लंड से निकलते इस समुंदर को देखा तो बोलीं- वॉववववव.. आज तो मेरी जान.. मेरा सोहना भाई बहुत ही जोश में है..

यह सच था कि आज से पहले कभी मेरे लंड ने इतना ज्यादा जूस नहीं छोड़ा था और मैं कभी इतना निढाल भी नहीं हुआ था।

आपी ने भी अपना हाथ चलाना अब बंद कर दिया था.. लेकिन बदस्तूर मेरे लंड को थाम रखा था।
मैंने निढाल सी कैफियत में अधखुली आँखों से आपी को देखा.. उनके सीने के उभारों और पेट पर मेरे लंड से निकले जूस ने आड़ी तिरछी लकीरें सी बना डाली थीं।

आपी ने अपने जिस्म पर नज़र डाली और मेरे लंड को छोड़ कर अपनी उंगली से अपने खूबसूरत निप्पल्स पर लगे मेरे लंड के जूस को साफ किया और काफ़ी सारी मिक़दर अपनी उंगली पर उठा कर उंगली अपने मुँह में डाल ली।

मैं आपी को देख तो रहा था.. लेकिन इतना निढाल था कि कुछ बोलना तो दूर की बात है.. आपी की इस हरकत पर हैरत भी ना ज़ाहिर कर सका और खाली-खाली आँखों से आपी को देखता रहा।

आपी ने उंगली को अच्छी तरह चूसा और मुझे आँख मार के अपनी आँखों को गोल-गोल घुमाते हो कहा- उम्म्म यूम्ममय्ययई.. यार सगीर यह तो मज़े की चीज़ है।
वे यह बोल कर हँसने लगीं।

मैंने भी मुस्कुरा कर आपी का साथ दिया।

अचानक ही आपी की हँसी को ब्रेक लग गया और उन्होंने घबराए हुए अंदाज़ में घड़ी को देखा।

ये वाकिया मुसलसल जारी है।
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