अवनी मौसी-1

प्रेषिका : निशा भागवत

अवनी मौसी अभी कोई पैंतीस वर्ष की होगी। उसने प्यार में धोखा खाने के बाद शादी नहीं की थी। उसके प्रेमी राजेश ने उसे अपने प्यार के जाल में फ़ंसाने के बाद अवनी को दो साल तक जी भर कर चोदा था, गाण्ड तो भी उसने अवनी की खूब मारी थी। तब वो 22 साल की थी। तब उसे पता चला था कि राजेश तो शादीशुदा है और उसके एक लड़की भी थी। उसकी गुजरात में बदली हो जाने के बाद वो इधर कभी नहीं आया था। पर अवनी ने बच्चा ना पैदा हो जाये उसका पूरा ध्यान रखा था, बस यही सावधानी उसे बदनामी से बचा गई थी। पर इन दो सालों में उसे चुदाई का अच्छा अनुभव हो गया था। वो कितनी ही अदाओं से चुदाना सीख गई थी। मर्दों से बिना चुदाई कराये उन्हें झड़ा देने कला भी वो बखूबी सीख गई थी। चुदने बहुत से आसन उसने अवधि के दौरान वो सीख गई थी।

पर ऐसा नहीं था कि धोखा खाने के उसे लड़कों से या मर्द जात से विरक्ति हो गई थी। कुछ दिनों तक वो विचलित जरूर रही थी पर जल्दी ही उसने फिर से चुदाने का कार्यक्रम लगातार कर दिया था। हाँ, इन दिनों अब वो अपनी बड़ी बहन के घर आ गई थी रहने के लिये। उसकी बहन गीता उससे कोई दस बारह साल बड़ी थी। उसका एक लड़का अक्षय कुमार भी था जिसे घर में सभी मुन्ना कह कर बुलाते थे और अभी उसने कॉलेज में दाखिला लिया ही था। वो भी भरपूर जवानी के आलम में था वो। कुछ कुछ शरमीला स्वभाव का था वो। घर में जवान औरत के नाम पर बस अवनी मौसी ही थी जिसे वो छुप छुप कर कभी कपड़े बदलते हुये देखता था, तो कभी स्नान के समय एक नजर भर देख लेता था, फिर उसे अपने सपने में लाकर उसके नाम के मुठ मारा करता था। उसका मन करता था कि वो अवनी मौसी को खूब चोदे। फिर जब उसका वीर्य स्खलन हो जाता था तो वो फिर से सामान्य हो जाता था।

अवनी बहुत महीनों से किसी मर्द के साथ सोई नहीं थी सो उसमें काम भावना बहुत ही बलवती होती जा रही थी। वो रात को वो तो एक बार मुन्ना के नाम की अंगुली अवश्य ही किया करती थी। पर आपसी शर्म के कारण वो दोनों खुल भी नहीं पाते थे। अक्षय अवनी मौसी के इरादे बहुत कुछ समझ चुका था और इसी तरह अवनी भी मुन्ना की नजरें पहचानने लगी थी। पर बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे। कौन आरम्भ करे, कैसे करे, किसमें इतनी हिम्मत थी। अगर बात ना बनती तो फिर … मौसी का रिश्ता था … जीवन भर की शर्मिन्दगी उठानी पड़ती … ।

होनी को तो होना ही था बात अपने आप ही बनती चली गई।

एक दिन मुन्ना के नाना जी का फ़ोन आया कि उनके पैर की हड्डी टूट गई है और वो बहुत तकलीफ़ में हैं सो उन्होने जल्द से जल्द अवनी को बुलाया था। अक्षय ने कम्प्यूटर पर रिजर्वेशन देखा तो पाया कि वेटिंग लिस्ट सौ से अधिक की थी। फिर उसे मजबूरन बसों सहारा लेना पड़ा। एक रात का सफ़र था सो स्लीपर में कोशिश की तो जगह मिल गई। अक्षय ने दो अलग अलग स्लीपर बुक करा लिया। उसने अवनी मौसी को बता दिया था कि दोनों स्लीपर अलग अलग मिल गये हैं। अवनी को गुस्सा तो बहुत आया और कोफ़्त भी बहुत हुई, कितना मूर्ख है ये मुन्ना … साला डबल स्लीपर में करा लेता तो उसका क्या जाता। शायद बात बन ही जाती… ।

रात साढ़े दस बजे की बस थी। दोनों भोजन करके टूसीटर से बस स्टेशन पहुँच गये। ठीक समय पर पर बस चलने को थी। तभी एक लड़की और फिर एक लड़का बस में चढ़ गये। उसके पीछे पीछे बस कण्डक्टर भी चढ़ गया और गाड़ी को चलने को इशारा किया।

सामने की डबल स्लीपर खाली था, शायद उसके पेसेन्जर नहीं आये थे।उसने वो दोनों स्लीपर उन्हें दे दिये। पर लड़की ने मना कर दिया कि वो किसी अन्जान लड़के के साथ स्लीपर नहीं लेगी।

तभी कण्डक्टर ने अवनी मौसी से कहा- बहन जी, वो साथ वाले स्लीपर में आपका बेटा है ना …?

‘जी हां, वो मेरा बेटा ही है, क्यों क्या हुआ?’

‘आप दोनों उस डबल स्लीपर पर आ जाईये, तो मैं इन दोनों को आपका स्लीपर दे दूँ, ये दोनों डबल स्लीपर में साथ नहीं जायेंगे…’

‘ठीक बात तो है … कैसे जायेंगे भला … चलो उस पर हम आ जाते हैं … ऐ मुन्ना, ठीक है ना?’

‘जैसा आप चाहें मौसी …’

वे दोनों ही आगे वाले वाले डबल स्लीपर पर आ गये। वो दोनों सिंगल स्लीपर उन दोनों को दे दिये। अक्षय तो मौसी को एक ही डबल स्लीपर में साथ पाकर रोमांचित हो उठा। दुबली पतली सी मौसी सलवार कुर्ते में भली सी लग रही थी। अवनी भी मन ही मन मुन्ना के साथ सोने में रोमांच का अनुभव करने लगी थी। गाड़ी चल दी थी और अपने मुख्य कार्यालय के सामने आकर खड़ी हो गई थी। लेटे लेटे दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा। अवनी तो मुस्करा दी, पर मुन्ना शर्मा सा गया। वो कुछ नर्वस सा भी हो गया था।

‘मुन्ना, तुम्हारे पास वो गोली है ना सर दर्द की … अच्छा रहने दे … तुम ही मेरा सर दबा देना’

‘जी मौसी …’

तभी बस चल दी।

‘वो काला शीशा खींच कर बन्द कर दे !’

‘जी … ‘ मुन्ना ने केबिन का काला शीशा बन्द कर दिया।

‘वो परदा भी खींच दे … कितनी रोशनी आ रही है।’

मुन्ना ने परदा भी खींच दिया।

‘चल अब मेरा सर थोड़ा सा दबा दे।’ कहकर अवनी ने दूसरी तरफ़ करवट ले ली।

मुन्ना सरक कर लगभग अवनी की पीठ से सट सा गया। उसने अपना हाथ बढ़ा कर सर पर रख दिया और हौले हौले सर को सहलाने और दबाने लगा। मामूली से स्त्री सम्पर्क से उसके शरीर की नसों में गर्मी सी आने लगी। उसका हाथ धीरे धीरे अवनी के बालों को भी सहलाने लगा। फिर अनजाने में उसके गालों को भी सहलाने लगे। अवनी को भी मर्द संसर्ग से उत्तेजना सी होने लगी। उसने अपना शरीर अक्षय के शरीर से चिपका सा लिया। अक्षय को अवनी मौसी के गोल गोल चूतड़ उसके कूल्हों से स्पर्श करने लगे।

कौन किसे समझाता भला … और अक्षय का लण्ड, वो तो ना चाहते हुये भी सख्त होने लगा था। मुन्ना से रहा नहीं गया तो उसने भी थोड़ा सा हिल कर अपने आप को उसकी गाण्ड पर फ़िट कर लिया। उसका सख्त लण्ड अवनी मौसी की गाण्ड से घर्षण कर आग पैदा करने लगा। अवनी को उसके कड़क लण्ड की चुभन लगने लगी थी। वो बिना हिले इस आनन्द को एक सपने की तरह भोग रही थी। अवनी ने धीरे से अपना सर घुमा कर मुन्ना को देखा। अक्षय ने भी अपनी आँखें उसकी आँखों से मिला दी। दोनों की नजरें प्यार से नहा गई। अक्षय का चेहरा अवनी के चेहरे निकट आता जा रहा था। दोनों की आँखें बन्द होने लगी थी। फिर धीरे से होंठ से होंठ का स्पर्श हो गया।

पर तभी एक मामूली झटके से गाड़ी रुक गई। दोनों के होंठ जोर से भिंच से गये। फिर वो दोनों अलग हो गये। अक्षय का लण्ड अभी भी अवनी की गाण्ड में उसके पायजामे सहित उसकी गाण्ड के छेद से चिपका हुआ था। यदि अवनी का पजामा बीच में नहीं होता तो इस बस के झटके से लण्ड गाण्ड के छेद के भीतर घुस चुका होता।

अवनी धीरे से हंस पड़ी… अक्षय भी शरमा गया। वो धीरे से अवनी से अलग हो गया।

‘ग़ाड़ी क्यों रुक गई…’ अवनी ने पूछा।

‘पता नहीं …’

झांक कर बाहर देखा तो चार पांच आदमी गाड़ी के पीछे कुछ कर रहे थे। अक्षय उठा और बोला- मौसी अभी आया…

कह कर वो केबिन से बाहर उतर गया। फिर आकर बोला ‘टायर बदल रहे हैं … दस-पन्द्रह मिनट तो लगेंगे।’

‘मुझे तो सू सू आ रही है।’

‘आ जाओ मौसी …’

अवनी केबिन से नीचे उतर आई और बस से बाहर आ गई। बाहर बरसात जैसा मौसम हो रहा था। ठण्डी बयार चल रही थी।

‘चल ना मेरे साथ …’ अक्षय अवनी के साथ साथ अंधेरे में आगे बढ़ गया। वहाँ अवनी ने अपना कुर्ता ऊपर किया और पायजामा नीचे सरका कर सू सू करने को बैठ गई। अक्षय के तो दिल के तार झनझना से गये। गोल सुन्दर चूतड़ मस्त दरार … अक्षय का दिल चीर गई।

अवनी ने अन्दर चड्डी नहीं पहन रखी थी। उसने पेशाब करने बाद अपना पायजामा ऊपर खींच लिया।

‘तू भी पेशाब कर ले…’

अक्षय ने भी अपनी पैंट की जिप खोली और लण्ड बाहर निकाल लिया। उसके लण्ड में अभी भी सख्ती थी सो उसे पेशाब निकल नहीं रहा था। पर कुछ क्षण बाद उसने पेशाब कर लिया। अवनी वहीं खड़ी हुई थोड़े से प्रकाश में ही उसका लण्ड देखती रही। पर जब पेशाब करके अक्षय ने अपना लण्ड हिला कर पेशाब की बून्दें झटकाई तो अवनी का दिल मचल उठा।

दोनों फिर से बस में आ गये और अपने स्लीपर में चढ़ गये। अवनी ने गहरी आँखों से उसे देखा और लेटे हुये ही उसने कहा- मुन्ना, कितना मजा आया था ना?

अक्षय शरमा गया। उसने अपने नजरें नीची कर ली।

अवनी ने अपनी आँखें मटका कर कहा- ये देखो, मुझे यहाँ लग गई थी।

अवनी ने अक्षय का हाथ अपने होंठो पर छुआ कर कहा, फिर अपना चेहरा उसके निकट ले आई- यहां एक बार … बस एक बार … छू लो..

अवनी की सांसें तेज होने लगी थी। अक्षय का दिल भी तेज गति से धड़कने लगा था- मौसी … आप … कुछ कहेंगी तो नहीं?

‘ओह मुन्ना … चलो ना …’

अक्षय की शरमा-शरमी को दरकिनार करते हुये अवनी ने अपने होंठ उसने उसके होंठों से चिपका दिये। तभी बस का एक मामूली झटका लगा। उसके होंठों पर उसके दांतों से फिर लग गई।

बस चल दी थी। ‘उई मां … ये बस भी ना …’

पर तब तक अक्षय ने अवनी के दोनों कबूतरों को अपने हथेलियों में थाम लिया था। फिर अक्षय जैसा अपने सपने में मुठ मारते हुये सोचता करता था… उसकी छातियों को उसने उसी तरह सहलाते हुये मसलना आरम्भ कर दिया। अक्षय का लण्ड बहुत ही सख्त हो गया था। तभी अवनी ने भी अपना आपा खोते हुये अपना हाथ नीचे ले जाते हुये उसके लण्ड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया।

‘ओह, मौसी … मुझे पर तो जैसे पागलपन सवार हो रहा है।’

‘मुन्ना, अपनी पैंट तो उतार दे … तुम्हारा लण्ड… उफ़्फ़ तौबा … मेरे हाथ में दे दे।’

‘मौसी, खुद ही उतार कर ले लो ना …।’

अवनी ने अक्षय की पैंट को खोला और चड्डी के भीतर हाथ घुसा दिया। फिर अक्षय का कड़क लण्ड उसके मजबूत हाथों में था। अक्षय तड़प सा उठा। अवनी उसके मुख में अपनी जीभ घुसाते हुये उसके मुँह को गुदगुदाने लगी। अक्षय भी उसकी चूचियों को घुमा घुमा कर दबाने लगा।

अवनी की चूत में आग भड़कने लगी। वो जोर जोर से अक्षय का कड़कता लण्ड तोड़ने मरोड़ने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

‘मुन्ना, पैंट उतार … जल्दी कर।’

मुन्ना ने अपनी पैंट और फिर चड्डी उतारते हुये समय नहीं लगाया। अवनी ने भी अपना पायजामा उतार दिया।

‘उफ़्फ़, जल्दी कर … अपना मुँह नीचे कर ले … हाय रे … जल्दी कर ना’

अक्षय जल्दी से नीचे घूम गया। अवनी ने उसे करवट पर लेटा कर उसका सधा हुआ कड़ा लण्ड अपने मुख के हवाले कर लिया।

‘मुन्ना, तू भी मेरी चूत को चूस ले … हाय मम्मी … जल्दी कर ना’

अक्षय को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। वो तो बस सपने में ही ये सब किया करता था। अवनी ने अपनी टांग उठाई और अपनी चूत खोल दी।

अक्षय ने उसकी खुशबूदार चूत की दरार में अपना मुख टिका दिया और उसे अपने स्टाइल से उसका रस चूसने लगा। उसने अपने सपनों में, अपने विचारों में जिस तरह से वो चूत को चूसना चाह रहा था उसने वैसा ही किया। उसके दाने को चूस चूस कर उसने अवनी को बेहाल कर दिया। अपनी दो दो अंगुलियाँ उसकी चूत में डाल कर उसमें खूब घर्षण किया। अवनी ने तो अपने ख्यालों में भी इतना आनन्द नहीं उठाया होगा। तभी अवनी तड़प उठी और उसने अपनी चूत जोर से भींच ली, उसका काम रस … उसके यौवन का पानी चूत से उबल पड़ा। वो झड़ने लगी।

एक क्षण को तो वो अपने आप को झड़ने के सुख में भिगोती रही, फिर अवनी ने भी अक्षय को अपनी कुशलता का परिचय दे दिया। उसके लण्ड के रिंग को सख्ती से चूसते हुये, उसके डण्डे पर मुठ मारते हुये उसने अक्षय को भी धराशई कर दिया। उसके लण्ड से वीर्य की धार तेजी से अवनी के मुख में समाती चली गई। अवनी ने सारा वीर्य जोर जोर से चूस चूस कर पूरा निगल लिया और फिर उसे बिल्कुल साफ़ करके उसे छोड़ दिया।

झड़ने के बाद दोनों फिर से सीधे हो कर लेट गये।

‘मुन्ना जी, कर ली अपने मन की … मजा आया?’

‘मौसी, मेरा तो पूरा दम निकाल दिया आपने … सच में बहुत मजा आया।’

कुछ देर तो वो दोनों बतियाते रहे, फिर बस एक जगह रुक गई। समय देखा तो रात के ठीक बारह बज रहे थे।

‘बस यहां आधे घण्टे रुकेगी, चाय, पानी पेशाब नाश्ता खाना … के लिये आ जाओ।’

बाहर होटल वाला अपनी बुलंद आवाज में पुकार रहा था।

‘चलो, क्या पियोगे ठण्डा, चाय … दूध कुछ?’

‘हां मौसी, चलो। पहले चाय पियेंगे … फिर दूध भी … आप पिलायेंगी?’

‘चाय होटल में और दूध बस में …! चलें?’ अवनी ने अक्षय को तिरछी नजर से देखते हुये कहा।

अक्षय कुछ समझा, कुछ नहीं समझा … दोनों केबिन से उतर पड़े।

दोनों ने एक बार फिर पेशाब किया, फिर चाय और पकोड़े खाये।

कहानी अगले भाग में समाप्त होगी।

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