एक दिल चार राहें- 29

(Desi Gand Xxx Story)

प्रेम गुरु 2020-08-10 Comments

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देसी गांड सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि मैं अपने ऑफिस की लड़की की गांड मार रहा था. उसने पहले कभी गांड नहीं मरवायी थी तो वो डर रही थी. आप भी लड़की की गांड चुदाई का मजा लें.

नताशा ने अपने आप को ढीला छोड़ दिया।
मैंने अपना एक हाथ उसकी बांह और गले के नीच से डालकर उसके उरोजों को पकड़ लिया और उसके कानों की लोब को अपने मुंह में भर लिया। मेरा आधा सुपारा उसकी गांड में फंसा हुआ था और अबकी बार मैंने अपने लंड के दबाव के साथ एक हल्का सा धक्का लगाया तो मेरा पूरा सुपारा अन्दर चला गया.

और उसके साथ ही नताशा ने अपनी मुट्ठियाँ भींच की। उसका शरीर हिचकोले से खाने लगा और उसके मुंह से एक घुटी घुटी सी चीख पूरे कमर में गूँज उठी।

“आआआईई ईईईईई …”

अब आगे की देसी गांड सेक्स स्टोरी:

“आह मेरी जान …” कहते हुए मैंने उसके गालों को चूमना शुरू कर दिया। नताशा थोड़ी कसमसाई तो जरूर पर मेरी गिरफ्त इतनी मजबूत थी कि उसका मेरे नीचे से निकल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।
“ओह … प्रेम! बहुत दर्द हो रहा है … प्लीज बाहर निकालो … आह … ऊईई …”
“बस जान अब दर्द नहीं मजा आयेगा तुम बस रिलेक्स हो जाओ … हिलो मत!”
“प्लीज … प्रेम!”

मैंने उसकी बातों पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी और उसके गालों को चूमना चालू रखा। थोड़ी देर में उसने हाय तौबा करना और कसमसाना बंद कर दिया। मैं चुपचाप उसके ऊपर पड़ा रहा। मेरा लंड तो उस संकरी गुफा में विराजमान होकर निहाल ही हो गया था।

नताशा ने अपना सर तकिये से लगा दिया था और आँखें बंद किये लम्बी लम्बी साँसें लेने लगी थी। मुझे लग रहा था जैसे मेरे लंड को किसी ने अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया हो। नताशा ने अपनी गांड का संकोचन किया तो मेरा सुपारा और भी अधिक फूल सा गया था और अब तो वह अपने यात्रा निर्विघ्न सम्पूर्ण करके ही बाहर आने की कोशिश करेगा।

“प्रेम! प्लीज बाहर निकालो … आह … बहुत दर्द हो रहा है ऐसा लगता है जैसे मेरी आह … पोट्टी … आह … प्लीज …” नताशा बोलती जा रही थी पर मुझे लगता है दर्द इतना भी असहनीय नहीं था कि मुझे अपना लंड बाहर निकालना पड़े।

“जान मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे आज मैंने अपने जीवन का सबसे अनमोल अनुभव प्राप्त कर लिया है। तुम्हारे इस समर्पण के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। बस तुम अपने आप को थोड़ी देर के लिए रिलेक्स कर लो … कुछ नहीं होगा बस थोड़ी सी चुनमुनाहट सी होगी और उसके बाद तो तुम्हें भी बहुत ही अच्छा लगने लगेगा।” कहते हुए मैंने उसके गालों पर आये आंसुओं को चूम लिया।

बेचारी नताशा के लिए मेरे इस परफेक्ट शब्द जाल से निकल पाना अब भला कैसे संभव था. वह चुपचाप मेरे लंड को अपनी गांड में फंसाए लेटे रही। उसने मेरे लंड को अपनी गांड से बाहर निकालने के लिए बाहर की ओर प्रेशर बनाया तो उसके गांड का छल्ला थोड़ा ढीला हो गया और मेरा लंड उस फिसलन में सरक कर उसकी गांड में जड़ तक अन्दर समा गया।

नताशा का शरीर दर्द के मारे थोड़ा अकड़ा तो जरूर पर अब मुझे लगा कि मेरा लंड पूरी तरह अन्दर एडजस्ट (समायोजित) हो गया है तो मैंने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठाते हुए अपने लंड को एक इंच बाहर निकाला और फिर से दबाव बनाकर अन्दर डाल दिया।

इस बार मेरे लंड को पूरा अन्दर जाने में कोई रुकावट नहीं हुई। नताशा ने इस बार कोई ज्यादा हाय तौबा नहीं की अलबता अब वह कुछ शांत सी होकर लम्बी साँसें लेने लगी थी।

अब मैंने अपना एक हाथ नीचे करके उसकी बुर के दाने और उसपर पहनी रिंग को अपनी अँगुलियों से दबाना और मसलना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके उरोजों की घुंडियों को मसलना जारी रखा। मैंने उसके गालों कानों और गर्दन पर भी चुम्बनों की झड़ी सी लगा दी थी। अब तो नताशा आह … उंह … करती सीत्कारें लेने लगी थी।

“मेरी जान … मेरी प्रियतमा … अब ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा है ना?” मैंने फुसफुसाते हुए उसके कानों में कहा और उसके कानों की लोब को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा।
“आह … प्रेम! थोड़ा दर्द तो हो रहा है … क्या पूरा अन्दर चला गया है?”
“हां मेरी जान!”

नताशा ने अपना एक हाथ पीछे करके अपने नितम्बों के बीच फंसे मेरे लंड को टटोलने की कोशिश की पर उसका हाथ अपनी गांड तक नहीं पहुंच पाया।

“आह … मुझे मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई मूसल मेरे पेट के रास्ते नाभि तक आ गया है।”

“जान … मैं किस प्रकार तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ मुझे समझ ही नहीं आ रहा? तुम कितनी समर्पिता प्रियतमा (महबूबा) हो इसका अंदाजा मुझे आज हो पाया है। मैं तो तुम्हारे इस समर्पण को ताउम्र याद करके रोमांचित होता रहूंगा।”

आज तो मैं पूरा प्रेमगुरु बन गया था और अपने शब्दकोष से सारे गूढ़ शब्द नताशा की तारीफ़ में कह देना चाहता था।

बेचारी नताशा तो बस मीठी आहें ही भरती रह गई।

अब मैंने अपने लंड को धीरे-धीरे उसकी गांड में आगे-पीछे करना शुरू कर दिया था। मुझे लगता है उसकी गांड अब मेरे लंड की अभ्यस्त हो गई है और उसे कोई ज्यादा दर्द नहीं हो रहा है। हाँ कुछ चुनमुनाहट जरूर हो रही होगी और इस चुनमुनाह में उसे भी मज़ा आने लगा होगा तभी तो वह अब सीत्कारें करने लगी थी।

“नताशा आज मैंने तुम्हें पूर्ण रूप से पा लिया है.” कहते हुए मैंने उसके गालों को चूमना शुरू कर दिया।
“प्रेम! एक बात बोलूँ?”
“हाँ जान?”
“तुम्हारा नाम प्रेम नहीं या तो कामदेव होना चाहिए या फिर प्रेमगुरु!”
“कैसे?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“किसी स्त्री को कैसे अपने वश में किया जाता है तुम बहुत अच्छे से जानते हो?”
“अरे नहीं … ऐसा कुछ नहीं है?”

“अब देखो ना तुमने अपने शब्द जाल में मुझे फंसाकर मुझे इस काम के लिए भी आखिर मना ही लिया.”
“जान तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं तुम्हें पूर्ण रूप से पा लेने के लिए अपने आप को रोक नहीं पाया.”
“तभी तो मैं कहती हूँ तुम पूरे प्रेमगुरु नहीं महागुरु हो.”

“अच्छा एक बात बताओ?”
“हम्म?”
“क्या तुम्हें अब अच्छा नहीं लग रहा?”
“दर्द तो नहीं हो रहा पर चुनमुनाहट सी जरूर हो रही है। और … और इस चुनमुनाहट से सारे शरीर में एक नया रोमांच और सनसनी सी हो रही है।”

“जान यही तो सहचर्य का आनंद है … जब दोनों को इस क्रिया में समान आनंद आये तभी उसे सम्भोग कहा जा सकता है। मैं तो यह सोच कर ही अभिभूत हुआ जा रहा हूँ कि मैंने आज अपने प्रियतमा को पूर्ण रूप से पा लिया है।”
“हाँ प्रेम! मैंने भी आज महसूस किया है कि मैं आज पूर्ण समर्पिता स्त्री बन गई हूँ.”

प्रिय पाठको और पाठिकाओ!
अब तो नताशा नामक मुजसम्मा भी अपने आप को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से तैयार कर चुकी थी तो अब अपने लंड को उसकी गांड में अन्दर बाहर करते समय मेरा यह डर भी ख़त्म हो गया था कि वह इस क्रिया को आगे जारी रखने के लिए कहीं मना ना कर दे।

अब मैंने हल्के धक्कों के साथ अपने लंड को उसकी गांड में अन्दर बाहर करना चालू आकर दिया था। मैं अब अपने हाथों और कोहनियों के बल होकर उसपर लेटा हुआ धक्के लगा रहा था।

हमें गांडबाज़ी करते हुए कोई 8-10 मिनट तो जरूर हो गए थे। मुझे लगा अगर अब नताशा को डॉगी स्टाइल में करके गांड मारी जाए तो हमारा आनंद दुगुना हो जाएगा। पर मुझे थोड़ा संशय था शायद नताशा इसके लिए अभी राजी नहीं होगी।

“प्रेम मैं थोड़ी ऊपर हो जाऊं क्या?”
“क्या मतलब?”
“अरे मेरी तो कमर ही दुखने सी लगी है मैं अपने पैर और घुटने मोड़कर डॉगी स्टाइल में हो जाती हूँ.”
“ओह … हाँ मेरी जान!” मेरी तो जैसे बांछें ही खिल गई।

अब मैंने उसकी कमर अपने दोनों हाथों से पकड़ ली और अपने घुटनों को मोड़ते हुए नताशा को सहारा देते हुए थोड़ा ऊपर उठाया। इस दौरान मैंने ध्यान रखा लंड गांड से बाहर ना फिसल जाए। और थोड़ी कोशिश के बाद वह डॉगी स्टाइल में हो गई और उसने अपने पेट के नीचे रखा तकिया सामने रख कर उस पर अपना सर टिका दिया।

अब तो उसकी गांड के कपाट पूरे खुल गए थे। हे भगवान! उसकी गांड का लाल रंग का छल्ला तो बहुत ही खूबसूरत लगने लगा था। नताशा ने अपना एक हाथ पीछे करके अपने छल्ले पर अंगुलियाँ फिराई और मेरे लंड को भी टटोलने की कोशिश की।

उसकी नाज़ुक अँगुलियों का स्पर्श पाकर लंड तो फिर से ठुमके लगाने लगा था। उसकी गांड का लाल रंग का छल्ला तो किसी छोटे बच्चे के हाथ की कलाई में पहनी चूड़ी जैसा लगाने लगा था। मेरा लंड जैसे ही थोड़ा बाहर आता छल्ला भी थोड़ा सा बाहर आ जाता तो उसका लाल रंग नज़र आने लगता और जब लंड अन्दर जाता तो छल्ले की चमड़ी भी अन्दर चली जाती और नताशा चुनमुनाहट के कारण सीत्कार भरने लगती।

मैंने अब उसकी कमर कसकर पकड़ ली और हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने थोड़ी सी क्रीम अपने लंड पर और लगा ली इससे लंड आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। अब तो नताशा का दर्द भी ख़त्म हो गया था और वह मेरे धक्कों के साथ सीत्कारें करती जा रही थी।

दोस्तो! आप सोच रहे होंगे मैं धक्के जोर से क्यों नहीं लगा रहा।
इसका एक कारण था।

एक तो नताशा का शायद यह पहला अनुभव था और पहली बार में मैं उसके साथ इतनी बेदर्दी से पेश नहीं आना चाहता था। क्योंकि मुझे तो अगले 5-7 दिनों में उसकी गांड का कई बार अलग अलग आसनों में और भी मज़ा लेना था। इसलिए अभी शुरुआत में इतना उतावलापन और कठोरता नहीं दिखाना चाहता था।

एक बार नताशा को मज़ा आने लगे उसके बाद तो वह खुद मेरे लंड पर बैठकर अपनी गांड मरवाने में भी कोई शर्म या झिझक महसूस नहीं करेगी।

अब मैंने ध्यान से उसके नितम्बों को देखा। उसके दायें कूल्हे (नितम्ब) कर एक तिल था। याल्ला … ऐसी स्त्रियाँ तो बहुत ही कामुक होती हैं और सेक्स में पूर्ण सहयोग के साथ हर क्रिया में आनंद लेने की कोशिश करती हैं।

मैंने उसके नितम्बों पर थप्पड़ लगाने शुरू आकर दिए। अब तो नताशा का रोमांच अपने शिखर पर पहुँच गया था। वह जोर से सीत्कारें कर ने लगी थी।

अपने एक हाथ से मैंने उसके उरोजों की घुन्डियाँ और दूसरे हाथ से उसके नथनिया को मसलना चालू कर दिया। बेचारी नताशा अपने आप को कब तक रोक पाती नताशा ने एक जोर की किलकारी मारी और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया और मेरी अंगुलियाँ किसी खुशबूदार चिकने रस से सराबोर हो गई।

मैं कुछ पलों के लिए रुक गया। अब मुझे भी लगाने लगा था मेरा लंड उसकी गांड की तपिश को ज्यादा देर तक नहीं झेल पाएगा।

मैंने उसके नितम्बों पर फिर से हल्के थप्पड़ लगाने शुरू कर दिए और चूत के दाने को मसलने लगा।
नताशा आँखें बंद किये अब भी आह … ऊंह करती जा रही थी। और फिर मेरे लंड ने अपनी पिचकारियाँ उसकी गांड में छोड़नी शुरू कर दी। नताशा तो आऐईई ईईईईइ करती ही रह गई।

उसने पहले तो अपनी गांड के छल्ले का थोड़ा सा संकोचन करने की कोशिश की फिर बाद में बाहर की ओर प्रेशर बनाकर मेरे लंड को बाहर धकलने की कोशिश की। उसकी गांड तो जैसे मेरे वीर्य से ओवरफ्लो ही होने लगी थी। अंतिम 5-4 धक्कों में तो मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह अन्दर बाहर होने लगा था।

मैंने उसके नितम्बों पर थपकी सी लगाते हुए उसे अपने पैर पीछे पसार देने का इशारा किया।

नताशा ने अपने पैर मेरे कहे मुताबिक़ पीछे कर दिए और अब मैं फिर से उसके ऊपर पसर सा गया। और उसके उरोजों को दबाता रहा और गालों को चूमता रहा।

थोड़ी देर बाद मेरा लंड सिकुड़ गया और फिर फिसल कर एक पुच्च की आवाज के साथ उसकी गांड से फिसलकर बाहर आ गया।

नताशा की गांड से मेरा वीर्य अब थोड़ा बाहर आने लगा था। नताशा अब थोड़ा कसमसाने सी लगी थी और अपने नितम्बों को हिलाने लगी थी।
“क्या हुआ जानेमन?”
“ओह … प्रेम! मुझे गुदगुदी सी हो रही है कितना पानी निकाला है तुमने?”
“हाँ जान यह सब तुम्हारी गांड की खूबसूरती का कमाल है मेर लंड तो इसे भोगकर निहाल ही हो गया है।”
“आईई ईईईईईईइ” नताशा फिर कसमसाने लगी थी।

अब मैं उसके ऊपर से हट गया तो नताशा उठकर बैठ गई और पास रखे तौलिये को अपनी गांड के नीचे लगा लिया। उसकी गांड से झरझर करता रस बाहर आने लगा। नताशा आँखें बंद किये उसे बाहर निकलती रही।

मुझे हैरानी हो रही थी. इससे पहले भी मेरा दो बार वीर्यपात हो चुका था. तो इस बार गांड में इतना वीर्य कैसे निकला होगा?
पर मुझे इसमें ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं थी।

“ओह … प्रेम! मुझे बाथरूम तक ले चलो … प्लीज … मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा. आज तो तुमने मेरे सारे कस-बल निकाल कर जैसे मेरी हड्डियों का कचूमर ही निकाल दिया है। मैं तो अब 2-4 दिन ठीक से चल फिर भी नहीं पाउंगी।”

“अरे मेरी जान, अभी तो हमें 3-4 राउंड और खेलने हैं. तुम तो अभी से हार मान बैठी?” कहते हुए मैंने नताशा को अपनी गोद में उठा लिया और हम दोनों बाथरूम में आ गए।

नताशा ने अपनी बुर और गांड को अच्छे से धोया और फिर तौलिये से पौंछ कर साफ़ किया। मैंने भी अपने लंड को साबुन से धोया और फिर हम दोनों एक दूसरे की बांहों में लिपटे बेड पर आ गए।

मैंने पास में रखी बोरोलीन क्रीम ली और अपनी अँगुलियों पर लगाकर नताशा की गांड के छल्ले पर लगा दी। उसकी गांड का छल्ला तो सूज कर मोटा और लाल सा हो गया था। थोड़ी क्रीम मैंने अपने लंड पर भी लगा ली।

“प्रेम!”
“हम्म?”
“तुमने तो आज मेरी कुंवारी गांड के साथ भी सुहागरात ही मना ली।“
“हाँ मेरी जान … आज तुमने मेरी बरसों की प्यास और तमन्ना को पूरा किया है.”

“पर मुझे तुमसे एक शिकायत है.”
“क … क्या?” मुझे लगा नताशा अब इतनी बेरहमी से गांड मारने का उलाहना और शिकायत करने वाली है।
“तुमने आज अपनी प्रियतमा के साथ सुहागरात तो मना ली. पर उसे कोई गिफ्ट तो दिया ही नहीं?”
“ओह … हाँ.. वो दरअसल …” भेनचोद यह जबान भी ऐन मौके पर धोखा दे जाती है। मुझे तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि उसे क्या जवाब दूं।

“वो दरअसल मैं सोच रहा था कल हम दोनों साथ में मार्किट चलेंगे और फिर तुम अपनी पसंद की जो मन में आये गिफ्ट ले लेना मैं दिलवा दूंगा.” मैंने अपना गला खंखारते हुए कहा।
“ऐसे थोड़े ही होता है?”
“क्या मतलब?”
“अच्छा चलो मैं एक गिफ्ट मांगती हूँ पर पहले तुम प्रोमिज (वादा) करो मना नहीं करोगे?”

अब मैं सोच रहा था पता नहीं नताशा क्या चाहती है? कहीं यह मुझसे शादी के लिए तो दबाव नहीं बनाना चाहती?

“क्या सोचने लगे?”
“ओह … हाँ … ना कुछ नहीं … तुम बोलो मैं उसे जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगा.” मैंने प्रोमिज तो कर दिया पर मेरा दिल भी धड़क रहा था। कुछ भी कहो मैं अपनी गृहस्थी (परिवार)की कुर्बानी नताशा के लिए नहीं सकता।

नताशा मेरे पास सरक आई और मेरे होंठों को चूमते हुए बोली- प्रेम! तुम कभी मुझे छोड़कर तो नहीं जाओगे ना?

लग गए लौड़े!
हे भगवान्! यह कैसी अग्नि परीक्षा में मुझे डाल रहे हो?

“प्रेम! मैं … बस तुम्हारा साथ चाहती हूँ। तुम्हारा इस ट्रेनिंग के बाद प्रमोशन भी होने वाला है और किसी दूसरी जगह ट्रान्सफर भी हो जाएगा। मैं चाहती हूँ तुम किसी तरह मेरा भी ट्रान्सफर अपने साथ ही करवा दो. इतना तो तुम करवा ही सकते हो? बोलो?”
“ओह?” मेरे मुंह से निकला। मैं तो पता नहीं क्या क्या सोचता जा रहा था।

“क्या सोचने लगे?”
“ओह.. हाँ … कोई बात नहीं … मैं जरूर कोशिश करूंगा तुम बेफिक्र रहो।”
“थैंक यू मेरे प्रेम!” कहते हुए नताशा ने एक बार फिर से मेरे गले में अपनी बाहें डालकर मेरे होंठों को चूम लिया।

और फिर उस रात मैंने 2 बार नताशा की चूत का बैंड बजाया और और एक बार उसकी फिर से गांड भी मारी। हालांकि वह तो गांड के लिए मना करती रही पर मैं आज कहाँ मानने वाला था। सुबह तड़के पता नहीं कब हमारी आँख लग गई।

सुबह कोई 8 बजे हम दोनों जागे। नताशा की तो उठने की भी हिम्मत नहीं बची थी। मैंने रसोई में जाकर चाय बनाई और फिर कोई 9 बजे मैं होटल पहुंचा।

नताशा ने आज शाम को आने का वादा तो जरूर किया पर उसकी हालत देखकर मुझे तो नहीं लगता वह आज शाम को होटल आ सकेगी।
कोई बात नहीं हम कल का इंतज़ार जरूर करेंगे।

और फिर अगले 5-7 दिनों में उसे 84 आसनों की ट्रेनिंग भी देनी है क्योंकि पूरे कामशास्त्र का ज्ञान बिना अनुभव प्राप्त ही नहीं किया जा सकता है।

देसी गांड सेक्स स्टोरी यहाँ समाप्त होती है.

कई बार मैं सोचता हूँ मैं किस प्रकार के लिजलिजे संबंधों में फंस सा गया हूँ। मुझे लगता है मैं सिमरन और मिक्की की याद में किसी मृगमरीचिका में भटक रहा हूँ। उम्र के इस पड़ाव पर क्या मुझे अब इन सब चीजों को तिलांजलि दे देनी चाहिए? आप मुझे अपनी राय से जरूर वाकिफ (अवगत) जरूर करवाएं।

अथ श्री एक: हृदयं चत्वार पथ कथा इति!! (एक दिल चार राहें कथानक समाप्त)

प्रिय पाठको और पाठिकाओ!
आप सभी ने प्रेम गुरु द्वारा रचित इस लम्बे कथानक को धैर्य के साथ पढ़ा उसके लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार। हालांकि एक दिल चार राहें नामक यह कथानक समाप्त हो गया है पर मुझे लगता है कुछ प्रश्न अभी भी अनुत्तरित रह गए हैं. मेरे मन में तो अनेकों प्रश्न हैं जिनका उत्तर जानने के लिए मैं भी आपकी तरह अति उत्सुक हूँ।

जैसे-

प्रेम और नताशा का यह प्रेम प्रसंग उस रात के बाद कितने दिन और चला?
क्या छुट्टियों के बाद नताशा वापस भरतपुर लौट गई?

क्या प्रेम का ट्रेनिंग के बाद कहीं दूसरी जगह ट्रान्सफर हुआ?
क्या नताशा का ट्रान्सफर प्रेम के साथ हो पाया?

क्या प्रेम मधुर और गौरी से मिलने मुंबई गया? अगर हाँ तो क्या गौरी के साथ फिर से सहचर्य (सेक्स) हो पाया?
क्या गौरी ने प्रेम के बच्चे को जन्म दिया? यदि हाँ तो बच्चे के जन्म के बाद गौरी का क्या हुआ?

मधुर ने तो यह बताया था कि वह प्रेगनेंट है तो उसका क्या हुआ?
एक बार मधुर ने गौरी से कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो तुम मेरे इस लड्डू (प्रेम) का ख्याल रखना। ऐसा मधुर ने क्यों कहा था?

क्या लैला और सुहाना के साथ फिर से प्रेम मिलन हो पाया?
बेचारी उस भूली बिसरी कमसिन सानिया मिर्ज़ा का क्या हुआ?

दोस्तो! क्या आपके मन में भी ऐसे ही कुछ प्रश्न जरूर होंगे। अगर आपके पास इन यक्ष प्रश्नों के कोई संभावित उत्तर हों तो मुझे मेल अवश्य करिएगा।

इसी आशा के साथ विदा।
आपकी स्लिम सीमा (प्रेमगुरु की कहानियों की एक प्रशंसिका)
[email protected]

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