मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 4

(Dildo Sex Kahani)

मेरी सहेली ने मुझे अपने जाल में फांस कर मेरे साथ लेस्बियन, डिल्डो सेक्स करना शुरू कर दिया. मुझे भी अब इस खेल में आनन्द आ रहा था. ये तो अभी शुरूआत थी.

हैलो फ्रेंड्स, मैं सारिका कंवल आपको महिलाओं के बीच होने वाले सेक्स क्रियाओं को लेकर एक लेस्बियन सेक्स कहानी सुना रही थी.
पिछले भाग
मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 3
में अब तक आपने पढ़ा था कि कविता ने मुझे अपने जाल में फांस कर मेरे साथ लेस्बियन सेक्स करना शुरू कर दिया था. एक बार चरम सीमा पर पहुंचाने के बाद भी वो गर्म थी.

अब आगे डिल्डो सेक्स कहानी:

कविता एक हाथ की 3 उंगलियां मेरी योनि में घुसा कर तेज़ी से अन्दर बाहर करते हुए मेरी योनि चाटने लगी.

बस इस सब में मेरे ख्याल से आधे सेकेंड से भी कम समय लगा होगा उसे और उसने मुझे हरा दिया.
मैं झटके लेती हुई थर-थर कांपती हुई झड़ने लगी.

मेरी योनि से रस छूटने लगी और मैं अपने चूतड़ झटक-झटक … उठा-उठा कर उसे अपनी योनि से रसपान कराने लगी.
मैं एक हाथ से अपनी एक स्तन खुद दबा रही थी तो दूसरे हाथ से पूरी ताकत से उसके बालों को खींच रही थी.
उस पल मैं भूल गयी थी कि बालों को खींचने से कविता को दर्द भी हो रहा होगा.

अन्तत: मैं धीरे-धीरे शांत होने लगी और बदन भी मेरा ढीला पड़ने लगा.
पर इस बीच कविता ने अपनी हाथों की रफ़्तार उस वक्त तक एक पल के लिए कम नहीं की, जब तक मैं शांत नहीं पड़ गयी.

मेरे चूतड़ों के नीचे बिस्तर गीला हो चुका था और सीने पर मेरे स्तनों का दूध फ़ैल गया था. योनि से लेकर गुदा द्वार तक का हिस्सा चिपचिपा हो चुका था.

फिर कविता ने भी अपनी सांस ली और हाथों में लगा रस मेरे स्तनों में पौंछने लगी.
मेरे दोनों चूचुकों पर मेरा रस मलने के बाद मेरी दोनों रानों के बीच मेरे ऊपर आ गयी और मेरे स्तनों को चूमने लगी.

मुझे बहुत सुकून सा महसूस हो रहा था. मैं एक हाथ से उसके सिर के बालों को सहलाने लगी और दूसरे हाथ से उसकी पीठ को!

उसका जिस्म तो किसी मखमल का तकिया सा था. इतना मुलायम बदन शायद ही किसी औरत का होता होगा.
मैं उसे बड़े प्यार से अपने ऊपर लिटाए हुए ऐसे सहला रही थी मानो वो मेरा कोई प्यार हो या मेरा कोई अपना बच्चा हो.

कविता बड़े प्यार से मेरे स्तनों को चूसती हुई मेरा दूध पीने लगी.
मुझे भी उसे अपने दूध पिलाते हुए एक सुकून सा महसूस हो रहा था.

मैं खुद अब बारी-बारी अपने हाथों से अपने स्तनों को पकड़ उसे दूध पिलाने लगी और टांगों से उसे जकड़ लिया. मैं जिस रिश्ते से भाग रही थी, उसी रिश्ते को मैंने अब स्वीकार कर लिया था.

अभी इस खेल का एक स्तर ही पूरा हुआ था. एक तरह से ये अभी शुरूआत थी.
मेरी इस तरह की स्वीकृति कविता के लिए मेरे शरीर से खेलने का एक अनोखा अवसर था.

मैं अभी सुस्ता ही रही थी.
कविता का मन जब मेरे स्तनों को चूसने के बाद भर गया, तो वो फिर सरकती हुई मेरे होंठों के पास आ गयी और मेरे होंठों को चूमने लगी.

मैं भी परस्पर उसका साथ देने लगी. मैं उसे चूमते हुए उसके चूतड़ों को सहलाने और दबाने लगी.
उसके चूतड़ इतने नर्म और चिकने थे कि क्या बताऊं.
एक तो बड़े-बड़े … ऊपर से एकदम चिकनी त्वचा थी.

मुझे भी अब उन्हें दबाने में आनन्द आ रहा था.

थोड़ी देर यूं ही चुम्बन और आलिंगन करने के बाद मेरा भी मन होने लगा कि कविता के बदन से खेलूं.

इस वजह से मैं जोर लगाते हुए उठने लगी और मैंने कविता को पलट कर नीचे कर दिया.
उसे अपने नीचे लेते ही मैं उसके ऊपर चढ़ गयी.

मेरे लिए सब नया था, पहली बार किसी औरत से मुझे चरम सुख की प्राप्ति हुई थी और अब मैं पहली बार किसी औरत को चरम सुख देने की सोच रही थी.

मैंने उसकी आंखों में देखा, तो वो भी मुझे देख कर मुस्कुरा दी.

फिर हम दोनों होंठों को होंठों से चिपका फिर से चूमने लगे.
कभी वो मेरे होंठों को चूसती, तो कभी मैं उसके होंठों को.
तो कभी कभी होंठों को चिपका कर हम दोनों जुबान से जुबान को टटोलने लगते, तो कभी एक दूसरे के जुबान को चूसने लगते.

वो मेरे स्तनों को सहलाती, दबाती और चूचुकों को छेड़ती … और मैं ऐसे ही उसके स्तनों को मींजने लगती.
कभी वो मेरे चूतड़ों को दबाती या नाखून लगा देती, तो कभी स्तनों का दूध निचोड़ती. हम दोनों की बहुत ही उत्तेजक और गर्म प्रवृत्ति हो गयी थी.

दोनों फिर से इतने गर्म हो गए थे कि एक दूसरे के मुँह से रस पीने लगे. मैं उसके मुँह से सारा रस चूस कर पी जाती, तो वो मेरे मुँह से दोबारा से सारा रस चूस लेती और पी जाती. हमें समझ में ही नहीं आ रहा था कि कैसे दोनों के मुँह में थूक और लार कम नहीं हो रहे थे.

उधर हम जहां ऊपर एक दूसरे के बदन से खेल रहे थे, वहीं नीचे हम एक दूसरे की योनि को आपस में लड़ाने का प्रयास भी कर रहे थे.

विडम्बना यह थी कि दोनों औरतें होने की वजह से योनि से योनि इस स्थिति में रगड़ना मुश्किल था … पर फिर भी वो नीचे से कमर उठा प्रयास करती और मैं ऊपर से अपनी कमर के दबाव से जोर लगाती.

उसका गोरा बदन गुलाबी सा दिखने लगा था और उसके बड़े-बड़े सुडौल स्तनों के चूचुक कड़क हो गए थे.
मैं भी काफी उत्तेजना से भर गयी थी और मुझे ये अब ख्याल नहीं था कि मैं एक औरत के साथ हूं या मर्द के साथ.

मैं अब उसके होंठों को चूमना छोड़ कर उसके गालों, गले और सीने को चूमती हुई उसके स्तनों की ओर बढ़ने लगी.

मैंने पहले बारी-बारी दोनों स्तनों के चूचुकों को चूमा और एक स्तन को हाथ से पकड़ कर दूसरे को दबाती हुई चूसने लगी.

कविता कुछ ही पलों में सिसकारी भरते हुए किसी घायल नगिन की तरह ऐंठन खाने लगी. थोड़ी देर बाद मैंने उसके दूसरे स्तन को चूसना शुरू कर दिया.

इसी तरह बारी-बारी दोनों स्तनों को काफी देर चूसने के बाद मैं उसके पेट और नाभि को चूमने चूसने लगी.
मैं कविता की गहरी नाभि में काफ़ी देर तक अपनी जुबान घुमाती रही और उसकी योनि को पैंटी के ऊपर से सहलाती रही.

उसकी पैंटी बुरी तरह से गीली हो चुकी थी. मैं अब उसकी मोटी-मोटी रानों को चूमने लगी और योनि के किनारे वाले हिस्से को जुबान से चाटने लगी.

इससे कविता की सिसकियां कराह में बदल गईं और वो मेरे सिर के बालों को खींचने लगी.

अब समय आ गया था कि मैं उसकी योनि को चाटूं … सो मैंने उसकी पैंटी उतार दी.
पैंटी उतारते ही उसकी सुन्दर सी योनि मेरे सामने थी.

एकदम मेरी योनि कि तरह ही ऐसी फूली हुई, जैसे कोई पावरोटी हो.
उसकी योनि के दोनों किनारे चिपकी हुई पंखुड़ियां यानि कि उसके भगोष्ठ भूरे रंग के थे. जबकि मेरे भगोष्ठ गहरे रंग के हैं. कविता की भग यानि क्लिटोरिस छोटी … मगर उठी हुई थी. जबकि मेरी उससे थोड़ी बड़ी है.

कविता की योनि इतनी गीली थी कि मेरे सहलाने की वजह से पानी बाहर तक फ़ैल गया था और काफी चिपचिपी दिख रही थी.
योनि में से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी, जो मुझे और बहका रही थी.

मैंने दो उंगलियों से उसकी योनि की फांकों को फ़ैलाया. अन्दर का गुलाबीपन देखते ही मेरा जोश और अधिक बढ़ गया.

कविता की योनि अत्यधिक गीली थी और चिपचिपाहट से ऐसी भरी हुई थी मानो झाग बन गया हो.
मेरे ख्याल से वो भी एक बार झड़ चुकी थी.

मेरा मन लालच से भर गया और मैं उसे चाट लेने को झुकी, पर कविता ने मुझे रोक लिया.
मैंने उससे कारण पूछा, तो उसने उत्तर दिया कि अभी कुछ खेल और बाकी है.

मुझे समझ नहीं आया कि आखिर जब मैं अब हर तरह से उसके लिए तैयार थी, तो उसने मुझे अपनी योनि क्यों नहीं चाटने दी.

उसने थोड़ा उठ कर मुझे चूमा और मेरी योनि पर हाथ फ़ेरती हुई बोली- अभी तो तुमने मजा लिया ही कहां है.
ये कह कर कविता ने मुझे धकेलते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और फिर से मेरी जांघें फ़ैला कर मेरी योनि चूमने लगी.

उसने थूक लगाया और जुबान से मेरी योनि के कनारों से लेकर छेद तक को फ़ैलाने लगी.
मुझे बेहद मस्त लग रहा था.

थोड़ी देर तक कविता ने मेरी योनि चाट कर मुझे और उत्तेजित कर दिया. इसके बाद उसने अपनी वो थैली खोली और उसमें से एक मोटा सा डिल्डो निकाल लिया.
वो मेरे लिए काफ़ी मोटा था. वो ज्यादा नहीं तो भी करीबन 4 इंच गोलाई में मोटा होगा और उसकी लम्बाई भी 7 से 8 इंच की रही होगी.
उस डिल्डो में पीछे से एक तार लगा था, जो कि एक रिमोट से जुड़ा था.

भले ही मैं सम्भोग में बहुत अनुभवी हूँ, पर इतना मोटा लंड अपनी योनि में लेना मेरे लिए असम्भव सा था.

कविता ने मेरी आंखों में डर देख लिया था, इसलिए मुस्कुराते हुए वो बोली- मेरी जान … इतना क्यों डरती हो? अभी कुछ देर में तुम खुद इससे प्यार करने लगोगी.

उसके बाद उसने उसने वो कमर पेटी पहन ली और डिल्डो को उसमें फंसा लिया.

अब कविता किसी मर्द की भांति लिंग लिए हुए लग रही थी. उसने मुझे बालों से पकड़ा और मेरा मुँह उस नकली लिंग के पास ले गयी.
ये उसका इशारा था कि मैं उस लिंग को चूसूं.

मैंने उस लिंग को चूसना शुरू कर दिया.
वो इतना मोटा डिल्डो था कि मेरे मुँह में ही नहीं समा रहा था.

फिर भी उसके सुपारे को मैंने चूस कर गीला किया और ढेर सारी लार और थूक उस पर लगा दी.

उसके बाद जुबान और हाथों से थूक को लिंग की पूरी लम्बाई में फ़ैला दिया.

यह लिंग बहुत कठोर था, मगर बेजान सा … न तो उसमें मर्दों की तरह गर्माहट थी, न नसों में हलचल थी. एकदम ठंडा सा डंडा मात्र था.

काफ़ी देर चूसने के बाद कविता ने मुझे चित लिटा दिया और मेरी मोटी-मोटी रानों को फैला दिया.

फिर उसने थैली में से क्रीम की डिब्बी निकाली. उसमें से ढेर सारी क्रीम मेरी योनि में मल दी और उंगली से योनि के भीतर तक क्रीम लगा दी.
उसने मुझसे कहा कि तुम एक तकिया अपनी गांड के नीचे रख लो.

मैंने वैसा ही किया.

अब कविता अपना हथियार लेकर मेरी योनि पर चढ़ाई करने को तैयार थी.
वो मेरी जांघों के बीच में आ गयी. कविता ने अपनी स्थिति सम्भोग लायक बनाते हुए लिंग को हाथ से पकड़ कर उसे मेरी योनि के छेद दिखाने लगी.
लिंग के सुपारे के स्पर्श से ही मैं समझ गयी कि ये पल बहुत दुख:दायी होगा.

मैंने कविता से कहा- कोई दूसरा डिल्डो ले लो … जो पतला हो. ये बहुत मोटा है.
उसने मेरे होंठों को चूम कर कहा- कुछ नहीं होगा, बल्कि थोड़ी देर में तुम स्वर्ग के मजे लोगी.

इतना कहती हुई वो लिंग को मेरी योनि में धकेलने लगी.
क्रीम, थूक और लार की चिकनाई की वजह से सुपारा तो घुस गया … पर अब भी वो मुझे बहुत मोटा लग रहा था.

डिल्डो के मेरी योनि में घुसते ही मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो ये मेरी योनि को चीर कर दोनों तरफ़ की पंखुड़ियों को फ़ाड़ अलग कर देगा.

मैं दर्द से कराह उठी और हाथों और टांगों की मदद से कविता को और आगे बढ़ने से रोक लिया.

मेरी इस हरकत से कविता का चेहरा क्रोध से भर गया. उसने ऊंचे स्वर में कहा- तुम बिल्कुल मजा नहीं करना चाहती, मुझे जबरदस्ती करने पर मजबूर मत करो.

मैं कुछ देर उसकी आंखों में देखने लगी और अपने हाथ पांव ढीले करने लगी.

मेरे हाथों में ढील पाकर उसने मेरे हाथ अपने पेट से हटा कर मेरे सिर के दोनों तरफ़ कर दिए और मेरी दोनों टांगें और अधिक फ़ैला कर अपना वजन मेरे ऊपर डाल दिया … ताकि अब चाह कर भी मैं अपनी टांगें सिकोड़ न सकूं.
मेरे दोनों हाथों को उसने दबोचा और मेरे होंठों से होंठ चिपका मुझे चूमने लगी.
साथ ही अपने स्तनों को मेरे स्तनों से लड़ाने लगी.

उसके चुम्बन में मैं अपना दर्द भूलने लगी.

फिर जैसे जैसे कविता को मौका मिलता गया, वो अपनी कमर के दबाव से लिंग को योनि के अन्दर धकेलने लगी. हर थोड़ी देर में वो दबाव डालती और मैं दर्द से कराह उठती.
उसी बीच हल्का सा लिंग सरक कर मेरी योनि में और अन्दर चला जाता.

मैं उस दर्द को भूल जाऊं, इसके लिए वो मुझे प्यार करती, मेरे गालों, गले और स्तनों को चूमने लगती.

जब मैं थोड़ा सामान्य महसूस करती, तो वो फिर से धक्का मार देती और लिंग फिर से थोड़ा सा सरक कर मेरी योनि में भीतर चला जाता. थोड़ा-थोड़ा करके लिंग करीब आधा से अधिक घुस चुका था.

मुझे लिंग की लम्बाई से कोई डर नहीं था, पर उसकी मोटाई काफ़ी थी, जिसकी वजह से मुझे ऐसा लग रहा था मानो योनि को किसी ने पूरी ताकत से चीर दिया हो.

एक स्थान पर होने से तो दर्द नहीं होता … मगर जैसे ही योनि में लिंग का रगड़ शुरू होती है, तो दर्द का आभास होने लगता है. क्योंकि योनि की भीतरी कोशिकाएं बहुत नाजुक होती हैं. कई बार तो तीव्र गति से धक्के लगने पर ये कोशिकाएं छिल जाती हैं.
ऊपर से ये असली लंड नहीं था बल्कि रबर का था.

हालांकि योनि में महसूस तो असली लिंग जैसा हो रहा था. मगर ये ठंडा और सख्त था, जिसकी असली लिंग के मुकाबले कोई तुलना नहीं थी.

इस नकली लिंग की खास बात ये थी कि इसमें एक मोटर लगी थी, जो बटन चालू होने से कम्पन पैदा कर रही थी. इस वजह से योनि के अन्दर एक गुदगुदी सी हो रही थी और उत्तेजना भी काफी बढ़ा रही थी.

शायद इसी वजह से मैं दर्द बर्दाश्त करती हुई आधे लिंग को अपनी योनि के भीतर ले चुकी थी.

लिंग की मोटाई से मेरी कराहें कम ही नहीं हो रही थीं क्योंकि कविता निरन्तर दबाव डाल रही थी और उसकी कमर में बंधा नकली लिंग हल्के-हल्के से मेरी योनि को चीरता हुआ भीतर प्रवेश कर रहा था.

कविता ने एक तो मेरे दोनों हाथों को पकड़ रखा था, दूसरे वो अपनी टांगें मोड़ ऐसे मेरी टांगों के बीच बैठी थी कि मैं टांगों से भी उसे रोक नहीं पा रही थी. वो मेरे होंठों को लगातार चूसती हुई मुझे चूम रही थी.

अन्तत: मुझे अपना मुँह अलग कर उससे कहना पड़ा कि जितना लिंग घुसा दिया है अब उससे अधिक अन्दर न घुसाओ. बस अब धक्के मारना शुरू करो.

मेरी बात सुन कर वो मुस्कुराई और बोली- ठीक है.

अब आपकी सारिका कंवल को एक कविता नाम की मदमस्त औरत के साथ डिल्डो सेक्स कहानी का बाकी मजा अगली बार मिलेगा. मुझे मेल करना न भूलें.
[email protected]

डिल्डो सेक्स कहानी का अगला भाग: मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स- 5

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