तीसरी कसम-9

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प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना

मैं जैसे ही बेड पर बैठा पलक फिर से मेरी गोद में आकर बैठ गई और फिर उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी। मैंने एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।

“जीजू, तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे?”

“नहीं मेरी खूबसूरत परी… मैं तुम्हें कैसे भूल पाऊँगा….?”

क्या पता कोई और मिक्की या सिमरन तुम्हें मिल जाए और मुझे….?” कहते कहते पलक की आँखें भर आई।

“मेरी पलक… अब मेरे इस जीवन में कोई और सिमरन नहीं आएगी..!”

“सच्ची ? खाओ मेरी कसम ?”

“हाँ मेरी परी, मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ।”

“नहीं 3 वार सम खाओ !” (नहीं 3 बार कसम खाओ)

“ओह.. तुम तो मुझे मुसलमान ही बना कर छोड़ोगी?”

“छट गधेड़ा..?” हँसते हुए पलक ने मेरे होंटों को मुँह में भर कर जोर से काट खाया।

रात के 2 बज गए थे, मैं होटल लौट आया।

आज मैंने दिन में बहुत सी योजनाएँ बनाई थी। सच कहूँ तो मुझे तो ऐसा लगने लगा था कि जैसे मेरी सिमरन वापस लौट आई है। काश यह संभव हो पाता कि मैं अपनी इस नन्ही परी को अपने आगोश में लिए ही बाकी की सारी जिन्दगी बिता दूँ। पर मैंने आपको बताया था ना कि मेरी किस्मत इतनी सिकंदर नहीं है।

लगभग 3 बजे सुधा (मधुर की भाभी-नंदोईजी नहीं लन्दोइजी वाली) का फ़ोन आया कि मधुर सीढ़ियों से गिर गई है और उसकी कमर में गहरी चोट आई है। मुझे जल्दी से जल्दी जयपुर पहुँचाना होगा।

हे लिंग महादेव ! तू भी मेरी कैसी कैसी परीक्षा लेता है। जयपुर जाने वाली ट्रेन का समय 5:30 का था। पहले तो मैंने सोचा कि अपने जयपुर जाने की बात पलक को अभी ना बताऊँ वहाँ जाकर उसे फ़ोन कर दूँगा पर बाद में मुझे लगा ऐसा करना ठीक नहीं होगा। पलक तो मुझे लुटेरा और छलिया ही समझेगी। मैंने उसे अपने जयपुर जाने की बात फ़ोन पर बता दी। मेरे जाने की बात सुनकर वो रोने लगी। मैं उसके मन की व्यथा अच्छी तरह समझ सकता था।

किसी तरह टिकट का इंतजाम करके मैं लगभग भागते हुए 5:15 बजे स्टेशन पहुंचा। पलक प्लेटफॉर्म पर खड़ी थी। मुझे देखते ही वो दौड़ कर मेरी ओर आ गई और मेरी बाहों में लिपट गई।

“मैं कहती थी ना मुझे कोई नहीं चाहता? तुम भी मुझे छोड़ कर जा रहे हो ! मैं अगर मर भी गई तो किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है !”

“मेरी परी ऐसा मत बोलो ! मैं तुम्हें छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ पर मेरी मजबूरी है। अगर मधुर हॉस्पिटल में ना होती तो मैं कभी तुम्हें ऐसे छोड़ कर नहीं जाता।”

“प्रेम तमे पाछा तो आवशो ने ? हूँ तमारा वगर हवे नहीं जीवी शकू ?” (प्रेम तुम वापस आओगे ना? मैं तुम्हारे बिना अब नहीं जी सकूँगी।)

“हाँ पलक मेरी प्रियतमा … मेरी सिमरन मेरा विश्वास करो, मैं अपनी इस परी के लिए जरुर आऊँगा …!”

“शु तमे मने तमारी साथै न लाई जाई शको? हवे हूँ ऐ नरक माँ नथी रहेवा मांगती” (क्या तुम मुझे अपने साथ नहीं ले चल सकते? मैं अब उस नरक में नहीं रहना चाहती।)

“ओह…. पलक मैं आ जाऊँगा मेरी परी ! तुम क्यों चिंता करती हो ?”

“पाक्कू आवशो ने ? खाओ मारा सम?” (पक्का आओगे ना? खाओ मेरी कसम।)

“ओह … पलक … अच्छा भई तुम्हारी कसम, मैं जल्दी ही वापस तुम्हारे पास आ जाऊँगा।”

“जीजू ! शु सचे माँ देवदूत होय छे ?” (जीजू क्या सच में देवदूत होता है?)

“हाँ जरूर होता है पर केवल तुम जैसी परी के ही सपनों में आता है !”

“प्रेम आज अगर मैं तुमसे कुछ मांगूँ तो मना तो नहीं करोगे ना?”

“पलक तुम मेरी जान भी मांगो तो वो भी तुम्हें दे दूंगा मेरी परी !”

पता नहीं पलक क्या मांगने वाली थी।

“मने ऐ…ऐ.. लाल रुमाल जोवे छे जे.. जे…” (मुझे वो… वो … लाल रुमाल चाहिए जो..जो)

“ओह …” मेरे कांपते होंठों से बस यही निकला।

मेरी परी यह तुमने क्या मांग लिया? अगर तुम मेरी जान भी मांगती तो मैं मना नहीं करता। खैर मैंने अपनी जेब से उस लाल रुमाल को (जो मुझे सिमरन ने दिया था) निकाल कर उसे एक बार चूमा और फिर पलक को दे दिया।

“इसे संभाल कर रखना !”

“आने तो हु मारी पासे कोई खजाना नि जेम दिल थी लगावी ने राखीश ?” (इसे तो मैं अपने पास किसी अनमोल खजाने की तरह अपने ह्रदय से लगा कर रखूँगी।)

पलक ने उसे अपनी मुट्ठी में इस प्रकार बंद कर लिया जैसे कोई बच्चा अपनी मनचाही चीज के खो जाने या छिन जाने के भय से छुपा लेता है। गाड़ी का सिग्नल हो गया था। हालांकि यह सार्वजनिक जगह

पर यह अभद्रता थी पर मैंने पलक के गालों पर एक चुम्बन ले ही लिया और फिर बिना उसकी ओर देखे डिब्बे में चढ़ गया।

मेरी भी आँखें छलछला उठी। पर मेरे पास तो अब वो रुमाल भी नहीं था जिनसे मैं अपने आंसू पोंछ सकता।

खिड़की से मैंने देखा था पलक उस रुमाल से अपनी आँखों को ढके अभी भी वहीं खड़ी थी।

दोस्तों ! जिन्दगी बड़ी बेरहम होती है।

मेरी दिक्कत यह है कि ना तो मैं पलक को अपना सकता हूँ और ना ही मधुर को छोड़ सकता हूँ अब आप मुझे बताएं ऐसी हालत में मैं क्या करूँ?

पलक ने मुझे अपनी कसम दी थी और मैंने उस से दुबारा मिलने का वादा भी किया था पर मैं वो वादा नहीं निभा पाया। लगता है मैं तो बस इतने दिनों मृग मरीचिका में फंसा था और हर कमसिन और नटखट लड़की में सिमरन को ही खोज रहा था।

मैंने अपने जीवन में दो ही कसमें खाई थी, अब मैं यह तीसरी कसम खाता हूँ आज के बाद किसी नादान, नटखट, चुलबुली, अबोध, परी जैसी मासूम लड़की से प्रेम नहीं करूँगा और ना ही कोई कहानी लिखूंगा।

किसी के मिलन से बढ़कर उसकी जुदाई अधिक कष्टकारक होती है। मेरी पलक तुम्हारी यादें तो मुझे नस्तर की तरह हमेशा चुभती ही रहेंगी। मेरी सिमरन तुम्हारे प्रेम में बुझी मेरी यह आत्मा तो मृत्यु पर्यंत तुम्हारी याद में रोती और तड़फती रहेगी :

मैंने अपने जीवन में दो ही कसमें खाई थी अब मैं यह तीसरी कसम खाता हूँ आज के बाद किसी नादान, नटखट, चुलबुली, अबोध, परी जैसी मासूम लड़की से प्रेम नहीं करूँगा और ना ही कोई कहानी लिखूँगा।

किसी के मिलन से बढ़कर उसकी जुदाई अधिक कष्टकारक होती है। मेरी पलक तुम्हारी यादें तो मुझे नस्तर की तरह हमेशा चुभती ही रहेंगी। मेरी सिमरन ! तुम्हारे प्रेम में बुझी मेरी यह आत्मा तो मृत्यु पर्यंत तुम्हारी याद में रोती और तड़फती रहेगी :

जिन्दगी टूट कर बिखर गई तेरी राहों में

मैं कैसे चल सकता था तेरा साया बनकर

अलविदा मेरे प्यारे पाठको …….

तीसरा चुम्बन (मिक्की/सिमरन) से लेकर तीसरी कसम (दूसरी सिमरन) तक का प्रेम गुरु की कहानियों का यह दौर यहीं ख़त्म होता है। अगर अगला जन्म हुआ तो हम फिर मिलेंगे… और फिर दुनिया की कोई ताकत मेरी सिमरन को मुझ से जुदा नहीं कर सकेगी ….

प्रेम गुरु एको अस्ति ना भूतो ना भविष्यति।

आपका और अपनी सिमरन का

प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम

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