यह कैसा संगम-3

(Yah Kaisa Sangam-3)

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नेहा वर्मा

राधा और प्रिया के मन की मुराद पूरी हो रही थी।

सुन्दर और राधा की शादी हो रही थी। पर प्रिया ने सुन्दर से वादा लिया कि शादी की पहली सुहागरात वो उसके साथ ही मनायेगा। फिर वो राधा को चोदेगा। राधा ने माँ की बात सुनी तो उसने खुशी खुशी प्रिया का मन रखने के लिये माँ को हाँ कह दी थी। सुन्दर को भला इससे क्या फ़र्क पड़ता। राधा और उसकी माँ तो सुन्दर से कई बार चुद चुकी थी… इससे किसी को मतलब नहीं था कि वो सुहागरात को माँ को चोदे या राधा को।

सुहागरात जा चुकी थी। अलग अलग कमरे में दोनों मस्ती से चुदी थी। दोनों ने सुहागरात जम कर मनाई थी। हां, सुन्दर की हालत इस चुदाई में जरूर पतली हो गई थी। सुबह तो उसे बहुत कमजोरी आ चुकी थी।

सुन्दर का चयन एयरफ़ोर्स में हो चुका था। उसे ट्रेनिंग में जाना था। सुन्दर फ़ौजी की ड्रेस में बहुत जंचता था। वो कुछ महीने की ट्रेनिंग के लिये चला गया था। माँ और राधा दोनों उदास हो गई थी। अब बस गोपाल ही उनका एक दोस्त रह गया था। गोपाल एक सुन्दर, दुबला पतला पर शान्त रहने वाला मृदु भाषी इन्सान था। अपनी इच्छाओं को वो दबा कर रखता था। वो भी पेशे से अब डॉक्टर बन चुका था।

प्रिया कब तक अपने पर संयम रख पाती। उसने अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिये राधा से बात की। गोपाल तो राधा का दोस्त तो था ही। वो तो उसे बचपन से ही मन ही मन चाहती थी, पर सुन्दर की चाहत और मधुर चुदाई ने उसका मन मोह लिया था। राधा भी इन दिनों गोपाल से अधिक मिलने लगी थी। कारण कि उसे सुन्दर की कमी बहुत अखरती थी। उसे काफ़ी दिन हो चुके थे कोई लण्ड खाये। वो अपने आप ही गोपाल की तरफ़ आकर्षित होने लगी थी। गोपाल भी कभी कभी उसके अंगों का स्पर्श जानबूझ के कर लेता था तो राधा उसे कुछ नहीं कहती थी, बल्कि मुस्करा कर उसे उत्साहित ही करती थी। गोपाल भी इससे खुश हो जाया करता था। माँ की बात ने ऐसे माहौल में आग में घी का असर किया। प्रिया ने अपना रास्ता खोलने के लिये पहले राधा को चुदने के लिये कहा। राधा के मन में गोपाल से चुदने के लिये एक मधुर सी टीस उठने लगी।

अब राधा का मन भी मीठी मीठी अंगड़ाइयों से तड़प उठा था। तन चुदने को बेताब हो चुका था। राधा ने माँ के कहने पर गोपाल को घर पर बुला लिया। गोपाल को देखते ही राधा की चूत में मीठी सी खुजली उठने लगी थी।

राधा की माँ शाम को ही अपनी माँ के घर के चली गई। घर पर बस गोपाल और राधा ही थे। राधा ने बताया कि माँ तो नानी के घर चली गई है, मुझे अकेले में डर लग रहा था तो आपको बुला लिया।

अच्छा किया, मुझे भी आज कोई काम नहीं था, बस तुम्हें ही याद कर रहा था।

अच्छा, क्या क्या याद कर रहे थे? जैसे… बताओ ना।

बस, तुम सुन्दर के साथ क्या क्या कर रही होगी? कितना खुश होगी। आखिर मेरा यार है, तुम्हें सुखी तो रखेगा ही।

और तुम मेरे लिये क्या क्या कर सकते हो? तुम भी मेरे प्यारे प्यारे दोस्त हो। तुम मुझे सुन्दर जितना खुश रख सकते हो ना।

अरे यह कोई पूछने कहने की बात है क्या? जैसा जिगरी मेरा सुन्दर है वैसे तुम भी तो मेरी जिगरी हो, तुम्हें तो खुश रखना तो मेरा पहला काम है।

सच तो मुझे खुश करो फिर, आज यहीं रुक जाओ… मुझे खुश कर दो।

यह बात हुई ना… हम रात भर साथ रहेंगे… देखो कितना मजा आयेगा।

सुनो, तुम मेरे बिस्तर पर मेरे साथ ही सोना और अपने दिल की बात बताना, फिर मैं भी बताऊंगी।

तो राधा आज मैं तुम्हें अपने मन की बात बता ही दूंगा।

रात का सरूर चढ़ने लगा था। वातावरण ठण्डा होने लगा था। राधा ने अपना ढीला ढाला पाजामा और एक ढीला सा टॉप पहन लिया था। उसने गोपाल को जान करके एक छोटा सा तौलिया दे दिया था जो छोटा होने के कारण बार बार खुल जाता था। गोपाल भी उस छोटे से तौलिये में खुश था। क्योंकि उसे उसने इस तरह से बांधा था कि उसका लम्बा लण्ड राधा को नीचे से लटकता हुआ नजर आ जाये।

बस यही लपेट कर सो जाना।

गोपाल मुस्कराया- इसमें से तो मेरा सारा नजारा दिख जायेगा !

तो क्या हुआ? कोई ओर थोड़े ही देख रहा है ! और मुझसे क्या शरमाना? मैं तो तुम्हारी दोस्त हूँ ना !!!

गोपाल तो अकेले में भी कभी नंगे बदन तौलिया लपेट कर नहीं सोया था और फिर राधा के साथ… खैर गोपाल को इस बात से बहुत सिरहन सी हो रही थी। राधा तो अपने गद्देदार बिस्तर पर उछल कर लेट गई और अपने टांगें पसार ली।

उफ़्फ़्फ़ ! राधा तो बला की सेक्सी लग रही थी। कैसे अपने आप को कन्ट्रोल करूँ?

उसका तौलिया भी इतना छोटा था कि बार बार खुल खुल जाता था। उसे तौलिया को एक हाथ से थामना पड़ जाता था। उसे बार बार अपना लण्ड छुपाना पड़ता था।

जैसे तैसे गोपाल राधा की बगल में लेट गया।

अच्छा गोपाल, पहले तुम बताओ अपने दिल की क्या क्या बताना चाहते थे।

मैं बताऊँ पहले… तो सुनो…

मैं तो बचपन से ही तुम्हें बहुत चाहता था पर सुन्दर हमेशा बीच में टांग अड़ा देता था। मुझे तो वो कुछ कहने ही नहीं देता था।

राधा उसके समीप आती हुई बोली- सच गोपाल, तुम सच कह रहे हो। मैं भी तुम्हें बचपन से ही चाहती थी, तुम तो मुझे बहुत प्यारे से लगते थे।

‘राधा, मन करता था कि मैं तुम्हें अपनी बाहों में ले लूँ, तुम्हें अपने दिल की सारी बाते कह दूँ।’

‘तो अब कह दो ना गोपाल… हम दोनों बिस्तर पर साथ साथ हैं !’

राधा की सांसें तेज हो उठी।

‘तुम बुरा मान जाओगी। फिर ये सुन्दर की दोस्ती के साथ ठीक नहीं होगा।’

‘ओह्ह्ह गोपाल ! सुन्दर अपनी जगह है, तुम अपनी जगह, बुरा कैसा मानना… सच बोलो ना, मुझे प्यार करते हो ना?’

‘हाँ राधा, बहुत प्यार करता हूँ !!!’

‘ऊंहू ! ऐसे नहीं, प्यार करके बताओ ना… मैं कोई और नहीं… तुम्हारी ही तो राधा हूँ।’

गोपाल और राधा एक दूसरे के समीप आ गये और एक दूसरे को एकटक देखने लगे। फिर धीरे से दोनों के अधर आपस में चिपक गये। गोपाल का तौलिया अपने आप एक झटके से खुल गया और बिस्तर पर गिर गया।

इस बात से बेखबर गोपाल अब नंगा ही लेटा था। पर राधा की तो योजना सफ़ल हो गई थी। उसके मन का मीत उसकी बाहों में था। उसके दोनों प्रिय मित्र अब उसके शरीर से भी से भी जुड़ने वाले थे, अपनी मित्रता को और पक्के रंग में रंगने के लिये।

‘गोपाल, तुम्हारा ये लण्ड तो बड़ा बेताब लग रहा है?’

‘बचपन से तुम्हें चोदने की इच्छा जो मन में थी, इसलिये फ़ड़फ़ड़ा रहा है।’

राधा ने गोपाल का लण्ड टटोलते हुये कहा- अरे ये तो बहुत लम्बा है ! हाँ मोटाई तो ठीक है, पर सुन्दर से कम है… कितना लम्बा है?

‘अधिक नहीं, सिर्फ़ नौ इंच लम्बा है।… तो कहिये, क्या हाजिर करूँ? आपका उद्घाटन आगे से करूँ या पीछे से?’

‘ओह मेरे गोपाल, मुझे एक नया अनुभव दो, मेरी गाण्ड चोद दो, बड़ी तड़प रही है… सच मजा आ जायेगा इतना लम्बा लण्ड गाण्ड में लेकर !!!’

‘सच राधा, तुम्हारी गाण्ड देख कर तो लण्ड तड़प ही जाता है, पहले तुम्हारी गाण्ड मार कर इसकी तड़प तो मिटा दूँ !’

‘ओह ! गोपाल, कुंवारी गाण्ड है, अभी तक इसे सुन्दर ने भी नहीं चोदा है, प्लीज जरा ध्यान से चोदना !!’

राधा ने सफ़ाई से झूठ बोल दिया। सुन्दर तो उसकी गाण्ड का दीवाना था। वो चूत मारने से अधिक तो उसकी गाण्ड पेलता था।

‘तुम मेरी जान हो, प्यार से चोदूँगा मेरी जान।’

‘जरा ठहरो ! जरा बेड के सिरहाने से वो क्रीम ले लो, उसे काम में लाना… पहली बार चोद रहे हो, तो चोट नहीं लगेगी। गोपाल यह सुन कर खुश हो गया कि आज राधा की कुँवारी गाण्ड चोदेगा।’

राधा ने बड़ी बेशर्मी से अपना गाऊन उतार दिया और नंगी हो गई। गोपाल के नंगे शरीर को देख कर उसके चुदने की इच्छा जोर पकड़ती चली गई। राधा बिस्तर पर घोड़ी बन गई और पीछे की ओर उसने अपनी गाण्ड उभार दी।

गोपाल को उसकी गाण्ड का खिला हुआ फ़ूल साफ़ खुला हुआ सा नजर आ रहा था। उसने अपनी एक अंगुली क्रीम में डाली और निकाल कर धीरे से उसके फ़ूल को दबा दिया। उसकी अंगुली गाण्ड के छिद्र में घुस गई। उसने अपनी अंगुली घुमा कर क्रीम को ठीक से लगाया। राधा भी गुदगुदी के मारे आह भरने लगी। गोपाल ने इसी तरह दो तीन बार ढेर सारी क्रीम उसकी गाण्ड में अन्दर बाहर ठीक से मल दी। फिर उसने अपने लण्ड को भी क्रीम से भर दिया।

‘राधा ! तैयार हो गाण्ड चुदाने के लिये?’

‘उफ़्फ़ ! जल्दी घुसेड़ो ना अपना लण्ड, जल्दी करो ना… । पूछो मत !’

गोपाल ने अपना लण्ड उसकी दोनों चूतड़ों को हाथों से चीरते हुये पूरा ही खोल दिया और और उसे थपथपाते हुये उसके खूबसूरत से छेद पर अपना लौड़ा रख दिया।

‘चल घुसा दे ना राम ! ऐसे क्यू तड़पा रहा है?’

गोपाल ने अपने लण्ड पर थोड़ा सा जोर डाला और सुपाड़ा बिना किसी तकलीफ़ के गाण्ड के अन्दर सरक गया।

‘उफ़ ! मजा गया गोपाल, कैसा मोटा सा लग रहा है !’

गोपाल ने हल्का सा जोर लगा कर लण्ड और अन्दर सरकाया। बड़ी सहूलियत से वो भीतर समाता चला गया। गोपाल ने इस बार और जोर लगा कर लण्ड दबा दिया।

राधा जानकर के चीख पड़ी… जैसे उसे बहुत दर्द हुआ हो। राधा की गाण्ड तो पहले ही लण्ड से खेली खाई हुई थी। उसे भला गाण्ड चुदाई में क्या तकलीफ़ हो सकती थी। वो तो बस गोपाल को रिझाने के लिये चीखने लगी थी।

गोपाल की उत्तेजना तेज होती जा रही थी। राधा को भी असीम आनन्द आने लगा था। गोपाल राधा के बोबे भींच कर अब जल्दी जल्दी लण्ड चला रहा था। चिकनाई होने की वजह से उसका लण्ड सटासट चोद रहा था। कुछ देर तक तो राधा चीखती रही। पर आखिर नाटक कब तक करती। उसके मुख से अपने आप ही आनन्द भरी जोरदार सिसकारियाँ निकलने लगी।

‘चोद दे राजा… जरा मचक के चोद दे। हाय… जल्दी जल्दी चोद ना… मार डाला रे… मेरे जानू… चोद रे… ।’

‘तू तो मक्खन जैसी है रे… गाण्ड तो मलाई जैसी है, कैसी गपागप चुद रही है।’

इसी तेजी ने गोपाल को मार डाला, उसका दम निकलने वाला था। उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और फिर उसे दबा डाला। ओह्ह्ह्ह… तेज पिचकारी निकल पड़ी। पहली पिचकारी उछल कर राधा के बालों को गीली करती चली गई। दूसरी पिचकारी में राधा की पीठ नहा गई। फिर क्रमशः पिचकारियों का जोर कम होता चला गया और सारा वीर्य राधा की कोमल गाण्ड के चिकने गोलों पर गिरता चला गया।

गोपाल ने तौलिए से राधा के बाल साफ़ किये और फिर धीरे धीरे उसकी पीठ व गाण्ड के गोलों को साफ़ कर दिया। राधा की चूत अभी भी फ़ड़क रही थी। उसने गोपाल को अपने ऊपर लेटा दिया और उसे प्यार करने लगी।

राधा की माँ जाने कब वहाँ आ गई थी। वास्तव में उसे अपनी माँ के यहां जाना ही नहीं था। वो तो गोपाल की चुदाई के लिये तड़प रही थी। यदि राधा उससे चुदवाने में सफ़ल हो जाती तो आगे उसका रास्ता भी साफ़ ही था। वो तो जाने कबसे यह सब देख रही थी और अपनी चूत को मसले जा रही थी। वो उत्तेजना में डूबी जा रही थी। अब उसे भी गोपाल का लण्ड चाहिये था चुदने के लिये।

कुछ ही देर में गोपाल का लण्ड फिर से तैयार था। पर राधा ने उसे चिपकाये रखा। उसे तो लण्ड अपनी चूत में चाहिये था ना कि गाण्ड में। उसका तन्नाया हुआ लण्ड राधा की चूत के आस पास दबाव डालने लगा। राधा ने गोपाल को अपने से जोर से चिपका लिया और उसे चूमने लगी। अचानक राधा के मुख से चीख निकल गई। गोपाल का लण्ड राधा की चूत में घुस गया था। राधा ने अब धीरे से अपनी टांगें ऊपर कर ली थी। चूत का द्वार और खुल गया… लण्ड फ़च की आवाज करता हुआ भीतर जड़ तक उतर गया।

राधा ने जैसे चैन की सांस ली। उसे चूत के पैंदे में दबाव सा लगा। उसका लण्ड लम्बा जो था। एक तेज गुदगुदी हुई।तभी गोपाल ने उसे धक्के मारना शुरू कर दिया। राधा ने भी साथ दिया और अपने चूतड़ों को उछाल उछाल कर लण्ड खाने लगी।

राधा की माँ इस दृश्य को देख कर वहीं बैठ गई और अपनी चूत में अंगुली फ़ंसा दी। फिर जोर जोर से उसे चलाने लगी।

राधा तो मस्ती से चुदे जा रही थी। एक लय में चूत और लण्ड चल रहे थे। राधा को मन के मीत की चुदाई मिल गई थी। गोपाल भी अपनी मनपसन्द लड़की की चुदाई करके आनन्दित हो रहा था। जाने कब तक उनका यह दौर चलता रहा।

राधा की माँ हस्तमैथुन करके अपने आप को झाड़ चुकी थी। वो धीरे से उठी और अपना गाऊन नीचे किया, फिर अपने कमरे की ओर बढ़ चली।

कहानी जारी रहेगी।
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