राधा और गौरी-1

मस्तराम 2008-02-26 Comments

राधा के पति की मृत्यु हुए करीब एक साल हो चुका था, उनका छोटा सा परिवार था, उनके कोई बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने एक 10 वर्ष की एक लड़की गोद ले ली थी, उसका नाम गौरी था. वो भी अब जवानी की दहलीज पर थी अब. गौरी बड़ी मासूम सी, भोली सी लड़की थी.

मैं राधा का सारा कार्य किया करता था. मैंने दौड़ धूप करके राधा की विधवा-पैंशन लगवा दी थी. मुझे नहीं मालूम था कि राधा कब मुझसे प्यार करने लगी थी. मैं तो उसे बस उसे आदर की नजर से ही देखा करता था.

एक बार अनहोनी घटना घट गई! जी हाँ! मेरे लिए तो वो अनहोनी ही थी.

मैं राधा को सब्जी मण्डी से सब्जी दिलवा कर लौट रहा था तो एक अच्छे रेस्तराँ में उसने मुझे रोक दिया कि मैं उसके लिए इतना काम करता हूँ, बस एक कॉफ़ी पिला कर मुझे जाने देगी.

मैंने कुछ नहीं कहा और उस रेस्तराँ में चले आये. रेस्तराँ खाली था, पर फिर भी वो मुझे एक केबिन में ले गई. मुझे कॉफ़ी पसन्द नहीं थी तो मैंने ठण्डा मंगवा लिया. राधा ने भी मुझे देख कर ठण्डा मंगवा लिया था.

मुझे आज उसकी नजर पहली बार कुछ बदली-बदली सी नजर आई. उसकी आँखों में आज नशा सा था, मादकता सी थी. मेज के नीचे से उसका पांव मुझे बार बार स्पर्श कर रहा था. मेरा कोई विरोध ना देख कर उसने अपनी चप्पल उतार कर नंगे पैर को मेरे पांव पर रख दिया.

मैं हड़बड़ा सा गया, मुझे कुछ समझ में नहीं आया. उसके पैर की नाजुक अंगुलिया मेरे पैर को सहलाने सी लगी थी. मुझे अब समझ में आने लगा था कि वो मुझे यहाँ क्यों लाई है. उसके इस अप्रत्याशित हमले से मैं एक बार तो स्तब्ध सा रह गया था. मेरे शरीर पर चींटियाँ सी रेंगने लगी थी. मुझे सहज बनाने के लिए राधा मुझसे यहाँ-वहाँ की बातें करने लगी. पर जैसे मेरे कान सुन्न से हो गए थे. मेरे हाथ-पैर जड़वत से हो गए थे.

राधा की हरकतें बढ़ती ही जा रही थी. उसका एक पैर मेरी दोनों जांघों के बीच आ गया था. उसका हाथ मेरे हाथ की तरफ़ बढ़ रहा था. तभी मैं जैसे नीन्द से जागा. मैंने अपना खाली गिलास एक तरफ़ रखा और खड़ा हो गया. राधा के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तैर रही थी. मेरी चुप्पी को वो शायद मेरी सहमति समझ रही थी.

मुझे उसकी इस हरकत पर हैरानी जरूर हुई थी. पर घर पहुँच कर तो उसने हद ही कर दी. घर में मैं अपनी मोटर साईकल से सब्जी उतार कर अन्दर रखने गया तो वो मेरे पीछे पीछे चली आई और मेरी पीठ से चिपक गई.

“प्रकाश, देखो बुरा ना मानना, मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ.” उसकी स्पष्टवादिता ने मेरे दिल को धड़का कर रख दिया.
“तुम मेरे मित्र की विधवा हो, ऐसा मत कहो!” मैंने थोड़ा परेशानी से कहा.
“बस एक बार प्रकाश, मुझे प्यार कर लो, देखो, ना मत कहना!” उसकी गुहार और मन की कशमकश को मैं समझने की कोशिश कर रहा था. उसे अब ढलती जवानी के दौर में किसी पुरुष की आवश्यकता आन पड़ी थी.

मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था, वो मेरी कमर में हाथ डाल कर मेरे सामने आ गई. उसकी आँखों में बस प्यार था, लाल डोरे खिंचे हुए थे. उसने अपनी आँखें बन्द कर ली थी और अपना चेहरा ऊपर उठा लिया था. उसके खुले हुए होंठ जैसे मेरे होंठों का इन्तज़ार कर रहे थे.

मन से वशीभूत हो कर जाने मैं कैसे उस पर झुक गया…. और उसका अधरपान करने लग गया.
उसका हाथ नीचे मेरी पैन्ट में मेरे लण्ड को टटोलने लग गया. पर आशा के विपरीत वो तो और सिकुड़ कर डर के मारे छोटा सा हो गया था. मेरे हाथ-पैर कांपने लगे थे. उसकी उभरी जवानी जैसे मेरे सीने में छेद कर देना चाहती थी.

तभी जाने कहाँ से गौरी आ गई और ताली बजा कर हंसने लगी- तो मम्मी, आपने मैदान मार ही लिया?”
राधा एक दम से शरमा गई और छिटक कर अलग हो गई.
“चल जा ना यहाँ से… बड़ी बेशर्म हो गई है!”

“क्या मम्मी, मैं आपको कहाँ कुछ कह रही हूँ, मैं तो जा रही हूँ… अंकल लगे रहो!” उसने मुस्करा मुझे आंख मार दी. मैं भी असंमजस की स्थिति से असहज सा हो गया था. एक बार तो मुझे लगा था कि गौरी अब बवाल मचा देगी और मुझे अपमान सहन करके जाना पड़ेगा. पर इस तरह की घटना से मैं तो और ही घबरा गया था. ये उल्टी गंगा भला कैसे बहे जा रही थी?

उसके जाते ही राधा फिर से मुझसे लिपट गई. पर मेरी हिम्मत उसे बाहों में लेने कि अब भी नहीं हो रही थी.

“देखो ऑफ़िस के बाद जरूर आना, मैं इन्तज़ार करूंगी!” राधा ने अपनी विशिष्ठ शैली से इतरा कर कहा.
“अंकल, मैं भी इन्तज़ार करूँगी!” गौरी ने झांक कर कहा. राधा मेरा हाथ पकड़े बाहर तक आई. गौरी राधा से लिपट गई.
“आखिर प्रकाश अंकल को आपने पटा ही लिया, मस्त अंकल है ना!” गौरी ने शरारत भरी हंसी से कहा.
“अरे चुप, प्रकाश क्या सोचेगा!” राधा उसकी इस शरारत से झेंप सी गई थी.
“आप दोनों तो बहुत ही मस्त हैं, मैं शाम को जरूर आऊँगा.” मुझे हंसी आ गई थी.

वो क्या कहती है इससे मुझे भला क्या फ़रक पड़ता था. पटना तो राधा ही को था ना. मुझे अब सब कुछ जैसे आईने की तरफ़ साफ़ होता जा रहा था. राधा मुझसे चुदना चाहती थी. दिन भर ऑफ़िस में मेरे दिल में खलबली मची रही कि यह सब क्या हो रहा है. क्या सच में राधा मुझे चाहती है?

मेरी पत्नी का स्वर्गवास हुए पांच साल हो चुके थे, क्या यह नई जिन्दगी की शुरूआत है? फिर गौरी ऐसे क्यों कह रही थी? कही वो भी तो मुझसे… मैंने अपने सर को झटक दिया. वो भरी पूरी जवानी में विधवा नारी और कहाँ मैं पैतालीस साल का अधेड़ इन्सान… राधा जैसी सुन्दर विधवा को तो को तो कई इस उम्र के साथी मिल जायेगे…

शाम को मैं ऑफ़िस से चार बजे ही निकल गया और सीधे राधा के यहाँ पहुंच गया.
“अंकल आप? आप तो पांच बजे आने वाले थे ना!” गौरी ने दरवाजा खोलते हुए कहा.
“बस, मन नहीं लगा सो जल्दी चला आया.” अपनी कमजोरी को मैंने नहीं छिपाया.

“आईए, अन्दर आईए, अब बताईए मेरी मम्मी कैसी लगी?” उसकी तिरछी नजर मुझसे सही नहीं गई. मुझे शरम सी आ गई पर गौरी को कोई फ़र्क नहीं था.
“वो तो बहुत अच्छी है.” मैंने झिझकते हुए कहा.
“और मैं?” उसने अपना सीना उभार कर अपनी पहाड़ जैसी चूचियाँ दिखाई.

“तुम तो प्यारी सी हो!” उसके उभार देख कर एक बार तो मेरा मन ललचा गया गौरी एक दम से सोफ़े में से उठ कर मेरी गोदी में बैठ गई. आह! इतनी जवानी से लदी लड़की, मेरी गोदी में! मेरे शरीर में बिजलियाँ दौड़ गई. उसके कोमल चूतड़ मेरी जांघों पर नर्म-नर्म से लग रहे थे. बहुत सालों के बाद मुझे अपने अन्दर जवानी की आग सुलगती हुई सी महसूस हुई.

“मुझे प्यार करो अंकल… जल्दी करो ना, वर्ना मम्मी आ जायेगी.” गौरी बहुत बेशर्मी पर उतर आई थी. मैंने जोश में भर कर उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उनका रस पीने लगा. उसने अपनी आंखें बन्द कर ली. जाने कैसे मेरे हाथ उसके उभारों पर चले गये, उसके सीने के मस्त उभार मेरी हथेलियों में दब गये.

गौरी कराह उठी… सच में उसकी मांसल छातियाँ गजब की थी. एक कम उम्र की लड़की, जिस पर जवानी नई नई आई हो, उसकी बहार के क्या कहने.

“अंकल आप बहुत अच्छे हैं!” गौरी अनन्दित होती हुई कसमसाती हुई बोली.
“गौरी, तू तो अपनी मां से भी मस्त है.” मेरे मुख से अनायास ही निकल पड़ा.
“अंकल, नीचे से आपका वो चुभ रहा है.” मैं जानबूझ कर लण्ड को उसकी चूत पर गड़ा रहा था.
“पूरा चुभा दूँ, मजा आ जायेगा!” मैंने अपना लण्ड और घुसाते हुए कहा.
“सच अंकल, जरा निकाल कर तो दिखाओ, कैसा है?” उसने आह भरते हुए कहा.
“क्या लण्ड?…” मैंने भी शरम अब छोड़ दी थी.
“धत्त!” मेरी भाषा से वो शरमा गई.
“चल परे हट, यह देख!”

मैंने गौरी को एक तरफ़ हटा कर अपना लण्ड पैंट में से निकाल लिया. उस दिन तो डर के मारे सिकुड़ गया था पर आज नरम नरम चूतड़ो का स्पर्श पा कर, चूत की खुशबू पा कर कैसा फ़ड़फ़ड़ाने लग गया था. बहुत समय बाद प्यासा लण्ड पैंट से बाहर आकर झूमने लगा था.

“दैया री, इतना मोटा… मम्मी तो बहुत खुश हो जायेगी, देखना! और ये काली काली झांटें!” गौरी लण्ड को सहलाकर बोल उठी.
“इतना मोटा… क्या तुमने पहले इतना मोटा नहीं देखा है?” मुझे शक हुआ कि इसे कैसे पता कि लण्ड के और भी आकार के होते हैं.
“कहाँ अंकल, वो पहले मम्मी के दो दोस्त थे ना, उनके तो ना तो मोटे थे और ना ही लम्बे!” वो अपना अनुभव बताने लगी.
“ओह…हो… भई वाह… कितनों से चुदी हो…?” मैंने उसकी तारीफ़ की.

“मैं तो पांच छः लड़कों से चुदी हूँ, और मम्मी तो पापा के समय में कईयों से चुदी हैं.” गौरी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.

“क्यों पापा कुछ नहीं कहते थे क्या?” मैंने उससे शंकित सा होकर पूछा.
“नहीं, वो तो कुछ नहीं कर पाते थे ना, आपको तो पता है, कम उम्र में ही डायबिटीज से पापा की दोनों किडनियाँ खराब हो गई थी.”

“फिर तुम…”
“मुझे तो पापा ने गोद लिया था, उस समय मैं दस साल की थी, पर मैंने मम्मी का पूरा साथ दिया है. इसमें मेरा भी फ़ायदा था.”
“क्या फ़ायदा था भला…?”

“मेरी भी चुदाई की इच्छा पूरी हो जाती थी, अब मम्मी को चुदते देख, मेरी चूत में आग नहीं लगेगी क्या?” उसने भोलेपन से कहा.

तभी बाहर खटपट की आवाज सुन कर गौरी मेरी गोदी से उतर कर भाग गई. मुझे सब कुछ मालूम हो चुका था. अब शरम जैसी कोई बात नहीं थी.

“आपकी बाइक देख कर मैं समझ गई थी कि आप आ गए हैं!” राधा मुस्करा कर बाजार का सामान एक तरफ़ रख कर मेरे पास सोफ़े पर आ कर बैठ गई. मेरे मन में तो शैतान बस गया था. मैंने उसे तुरन्त अपने पास खींच लिया और उसकी चूचियाँ दबा दी. वो खिलखिला कर हंसने लगी.

“अरे हटो तो… ये क्या कर रहे हो?” उसने अपने हाथों को इधर उधर नचाया. फिर वो छटपटा कर मछली की भांति मुझसे फ़िसल कर एक तरफ़ हो गई. मैंने उस झपटते हुए उसे अपनी बाहों में उठा लिया. वो मेरी बाहों में हंसते हुए मुझसे छूटने की भरकस कोशिश करने लगी. गौरी कमरे में से बाहर आकर हमें देखने लगी.

“अंकल छोड़ना मत, खाट पर ले जा कर दबा लो मम्मी को!” उसके अपने खास अन्दाज में कहा.
“अरे गौरी, अंकल से कह ना कि छोड़ दे मुझे!” राधा के स्वर में इन्कार से अधिक इककार था.

“हाँ अंकल चोद दो मम्मी को!” गौरी ने मुझे राधा के ही अन्दाज में कहा.
“अरे चोद नहीं, छोड़ दे रे राम!” कह कर राधा मुझसे लिपट गई.

मैंने राधा को बिस्तर पर जबरदस्ती लेटा दिया और उसकी साड़ी खींच कर उतार दी. उस स्वयं भी साड़ी उतरवाने में सहायता की. राधा वासना में भरी हुई बिस्तर पर नागिन की तरह लोटती रही, बल खाती रही. मैंने उसे दबा कर उसके ब्लाऊज के बटन चट चट करके खोल दिये. दूसरे ही क्षण उसकी ब्रा मेरे हाथों में थी. उसके सुन्दर सुडौल उभार मेरी मन को वासना से भर रहे थे. तभी गौरी ने राधा का पेटीकोट नीचे खींच दिया.

“अंकल, मम्मी की फ़ुद्दी देखो, जल्दी!” राधा की रस भरी चूत को देख कर गौरी बोल उठी.
“ऐ गौरी, तू अब जा ना यहाँ से…” राधा ने गौरी से विनती की.

“बिल्कुल नहीं… अंकल मम्मी की फ़ुद्दी में लण्ड घुसा दो ना!” गौरी बेशर्म हो कर मम्मी की चुदाई देखना चाहती थी. मैंने झट से अपनी पैन्ट और चड्डी उतार दी और राधा को अपने नीचे दबा लिया. कुछ ही क्षणों में मेरा कड़क लण्ड उसकी चूत की धार पर कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहा था. गौरी ने मेरी सहायता कर दी. मेरा लण्ड पकड़ कर उसने राधा की गीली फ़ुद्दी पर जमा दिया.

“अंकल, अब मारो जोर से…” गौरी गौर से मेरे लण्ड को राधा की चूत में घुसा कर देखने लगी.
“उईईई मां… मर गई…” लण्ड के घुसते ही राधा की चीख निकल पड़ी.

“कुछ नहीं अंकल, चोद डालो, मम्मी तो बस यूं ही शोर मचाती है.”
कहानी का दूसरा और अन्तिम भाग : राधा और गौरी-2

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