कुंवारी भोली–10

शगन कुमार 2011-07-04 Comments

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शगन कुमार

मुझे भोंपू के मुरझाये और तन्नाये… दोनों दशा के लंड अच्छे लगने लगे थे। मुरझाये पर दुलार आता था और तन्नाये से तन-मन में हूक सी उठती थी। मुरझाये लिंग में जान डालने का मज़ा आता था तो तन्नाये लंड की जान निकालने का मौक़ा मिलता था। मुझे उसके मर्दाने दूध का स्वाद भी अच्छा लगने लगा था।

भोंपू ने मुझसे एक ग्लास पानी लाने को कहा और उसने अपने पर्स से एक गोली निकालकर खा ली।

“तुम बीमार हो?” मैंने पूछा।

“नहीं तो… क्यों?”

“तुमने अभी गोली ली ना?”

“अरे… ये गोली बीमारी के लिए नहीं है… ताक़त के लिए है।”

“ताक़त के लिए? मतलब?” मैंने सवाल किया।

“तू नहीं समझेगी… अरे मर्द को ताक़त की ज़रूरत होती है।”

“किस लिए?” मैंने नादानी से पूछा। मुझे उसका मतलब वाकई समझ में नहीं आया था।

“अरे भोली ! तुमने देखा ना… मेरा पप्पू पानी छोड़कर कैसे मुरझा जाता है…”

“हाँ देखा है… तो?”

“अब इस लल्लू से थोड़े ही कुछ कर सकता हूँ…”

“अच्छा… अब मैं समझी… तो भोंपू जी अपने लल्लू को कड़क करने की दवा ले रहे थे।”

“बस थोड़ी देर में देखना… मैं तुम्हारी क्या हालत करता हूँ…” उसने आँख मिचकाते हुए मेरा अंदेशा दूर किया।

“बाप रे… क्या करने वाले हो?” मेरे मन में आशा और आशंका दोनों एक साथ उजागर हुईं।

“कुछ ऐसा करूँगा जिससे हम दोनों को मज़ा भी आये और मुझे आखिरी मौके पर बाहर ना निकालना पड़े…”

“तो क्यों निकालते हो?” मैं जानना चाहती थी वह अपना रस बाहर क्यों छोड़ता था… मेरे पेट पर।

“तू तो निरी पगली है… सच में तेरा नाम भोली ठीक ही रखा है…”

“मतलब?”

“मतलब यह… कि अगर मैं अपना पानी तेरे अंदर छोड़ दूँगा तो तू पेट से हो सकती है… तुझे बच्चा हो सकता है !” उसने समझाते हुए कहा।

“सच? पर तुमने तो दो बार अंदर छोड़ा है?” मैंने डरते हुए कहा।

“कहाँ छोड़ा? हर बार बाहर निकाल लेता हूँ… सारा मज़ा खराब हो जाता है !”

“क्यों? कल मुँह में छोड़ा था… और अभी भी तो छोड़ा था… भूल गए?” मैंने उस पर लांछन लगाते हुए कहा।

“ओफ्फोह… मुन्नी में पानी छोड़ने से बच्चा हो सकता है… मुंह में या और कहीं छोड़ने से कुछ नहीं होता !”

“या और कहीं मतलब?”

“मतलब मुंह और मुन्नी के अलावा एक और जगह है जहाँ मेरा पप्पू जा सकता है…” उसने खुश होते हुए कहा।

मैंने देखा उसकी आँखों में चमक आ गई थी।

“कहाँ?”

“पहले हाँ करो तुम मुझे करने दोगी?” उसने शर्त रखी।

“बताओ तो सही !” मैं जानना चाहती थी… हालांकि मुझे थोड़ा आभास हो रहा था कि उसके मन में क्या है… फिर भी उसके मुँह से सुनना चाहती थी।

“देखो… पहले यह बताओ… तुम्हें मेरे साथ मज़े आ रहे हैं या नहीं?”

मैंने हामी में सिर हिलाया।

“तुम आगे भी करना चाहती हो या इसे यहीं बंद कर दें?”

मैंने सिर हिलाया तो उसने कहा- बोल कर बताओ।

“जैसा तुम चाहो !” मैंने गोल-मटोल जवाब दिया।

“भई… मैं तो करना चाहता हूँ… मुझे तो बहुत मज़ा आएगा… पर अगर तुम नहीं चाहती तो मैं ज़बरदस्ती नहीं करूँगा… तुम बोलो…” उसने गेंद मेरे पाले में डाल दी।

“ठीक है !”

“मतलब… तुम भी करना चाहती हो?” उसने स्पष्टीकरण करते हुए पूछा।

मैंने सिर हिलाकर हामी भर दी।

“ठीक है… तुम नादान हो इसलिए तुम्हें समझा रहा हूँ… मैं नहीं चाहता हमारे इस प्यार के कारण तुम्हें कोई मुश्किलों का सामना करना पड़े…” उसने मेरे कन्धों पर अपने हाथ आत्मविश्वास से रखते हुए बताना शुरू किया।

“मेरा मतलब… तुम्हें बच्चा नहीं ठहरना चाहिए… ठीक है ना?”

मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया।

“इसका मतलब मुझे पानी तुम्हारी मुन्नी में नहीं छोड़ना चाहिए, इसीलिए मैं बाहर छोड़ रहा था .. समझी?”

मैंने फिर सिर हिलाया।

“पर अंदर पानी छोड़ने में जो मुझे मज़ा आता है वह बाहर छोड़ने में नहीं आता… मेरा और मेरे पप्पू का सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है ”

मैं उसके साथ सहमत थी। मुझे भी अच्छा नहीं लगा था जब उसने ऐन मौके पर अचानक लंड बाहर निकाल लिया था… मेरे मज़े की लय भी टूट गई थी। मैंने मूक आँखों से सहमति जताई।

“वैसे मैं कंडोम भी पहन सकता हूँ… पर उसमें भी मुझे मज़ा नहीं आता… मुझे तो नंगा स्पर्श ही अच्छा लगता है !” उसने खुद ही विकल्प बताया।

“कंडोम?”

“कंडोम नहीं पता?” मैं दिखाता हूँ…” भोंपू ने अपने पर्स से एक कंडोम निकाला और मुझे दिखाया। जब मुझे समझ नहीं आया तो उसने उसे खोल कर अपने अंगूठे पर चढ़ाते हुए बोला, “इसको लंड पर चढ़ाते हैं तो पानी बाहर नहीं आता… पर मुझे यह अच्छा नहीं लगता।”

“फिर?” मैंने उससे उपाय पूछा।

“मैं कह रहा था ना कि तुम्हारी मुन्नी और मुँह के अलावा एक और छेद है… वहाँ पानी छोड़ने से कोई डर नहीं… पूरे मज़े के साथ मैं तुम्हें चोद सकता हूँ और पानी भी अंदर ही छोड़ सकता हूँ…” कहते हुए उसकी बाछें खिल रहीं थीं।

“कहाँ?… वहां?” मैंने डरते डरते पूछा।

“हाँ !” वह मेरे “वहां” का मतलब समझते हुए बोला।

“छी…”

“फिर वही बात… जब वहाँ जीभ लगा सकते हैं तो फिर काहे की छी?” उसने तर्क किया।

“बहुत दर्द होगा !” मैंने अपना सही डर बयान किया।

“दर्द तो होगा… पर इतना नहीं… मज़ा भी ज़्यादा आएगा !” उसने अपना पक्ष रखा।

“मज़ा तो तुम्हें आएगा !” मैंने शिकायत सी की।

“नहीं… नहीं… मज़ा हम दोनों को ज़्यादा आएगा… तुम देखना !”

मैं कुछ नहीं बोली। डर लग रहा था पर उसकी उम्मीदों पर पानी भी नहीं फेरना चाहती थी। उसकी आँखें मुझसे राज़ी होने की मिन्नतें कर रहीं थीं। उसने मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिए और मेरे जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।

जब मैं कुछ नहीं बोली तो उसने दिलासा देते हुए कहा, “अच्छा… ऐसा करते हैं… तुम एक बार आजमा कर देखो… अगर तुमको अच्छा नहीं लगे या दर्द बर्दाश्त ना हो तो मैं वहीं रुक जाऊँगा… ठीक है?”

मैं अपना मन बनाने ही वाली थी कि “मुझ पर भरोसा नहीं है? मेरे लिए इतना नहीं कर सकती?” वह गिड़गिड़ाने लगा।

“भरोसा है… इसलिए सिर्फ तुम्हारे लिए एक बार कोशिश करूंगी !” मैंने अपना निर्णय सुनाया।

वह खिल उठा और मुझे खुशी में उठाकर गोल गोल घुमाने लगा। मुझे उसकी इस खुशी में खुशी मिल रही थी।

“ठीक है… अभी आजमा लेते हैं… तुम कमरे में चलो… मैं आता हूँ !” उसने मुझे नीचे उतारते हुए कहा और रसोई में चला गया। मैंने देखा वह एक कटोरी में तेल और बेलन लेकर आ गया।

“यह किस लिए?” मैंने बेलन की ओर इशारा करके पूछा।

“जिससे अगर मैं तुम्हें दर्द दूँ तो तुम मुझे पीट सको !” उसने हँसते हुए कहा और मुझे बिस्तर पर गिरा दिया।

एक कुर्सी पास खींचकर उसने तेल की कटोरी और बेलन वहाँ रख दिए।

वह मुझ पर लेट गया और मुझे प्यार करने लगा। मेरे पूरे शरीर पर पुच्चियाँ करते हुए हाथ-पैर चला रहा था। वह मुझे ऐसे प्यार कर रहा था कि मुझे लगा वह भूल गया है उसे क्या करना है। मैं आने वाले अनजान दर्द की आशंका और भय को भूल गई और उसके हाथों और मुँह के जादू से प्रभावित होने लगी। उसने धीरे धीरे मुझे लालायित किया और खुद भी उत्तेजित हो गया।

जब मेरी योनि गीली होने लगी तो उसने अपनी उंगली उसके अंदर डालकर कुछ देर मेरी उँगल-चुदाई की… साथ ही साथ मेरे योनि-रस को मेरी गांड पर भी लगाने लगा। अब उसने मेरे नीचे तकिया रख कर मेरी गांड ऊपर कर दी और उसमें उंगली करने लगा… धीरे धीरे। वह ऊँगली अंदर डालने का प्रयास कर रहा था पर मेरा छेद कसकर बंद हो जाता था। वह ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता था पर उंगली अंदर करने के लिए आतुर भी था।

आखिरकार, वह मुझे कुतिया आसन में लाया और अपनी उंगली का सिरा मेरे छेद पर रखकर मुझसे कहा…

“देखो, ऐसे काम नहीं बन रहा… तुम्हें मदद करनी होगी…”

मैंने पीछे मुड़ कर उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

“जब मैं उंगली अंदर डालने का दबाव लगाऊं तुम उसी समय अपनी गांड ढीली करना…”

“कैसे?”

“जैसे पाखाना जाते वक्त ज़ोर लगते हैं… वैसे !” उसने मेरे रोमांटिक मूड को नष्ट करते हुए कहा।

मुझे ठीक से समझ नहीं आया… मैंने उसकी ओर नासमझी की नज़र डाली तो वह मेरे बगल में उसी आसन में आ गया जैसे मैं थी और बोला…

“तुम अपनी उंगली मेरे छेद पर रखो…”

मैं बैठ गई और अपनी उंगली उसके छेद पर रख दी।

“अब अंदर डालने की कोशिश करो…” उसने आदेश दिया।

मैंने उंगली अंदर डालने का प्रयास किया पर उसका छेद कसा हुआ था।

“उंगली पर तेल लगाओ और फिर कोशिश करो…” उसने समझाया।

उसने जैसे कहा था मैंने किया पर फिर भी उंगली अंदर नहीं जा रही थी।

“मुश्किल है ना?”

“हाँ ” मैंने सहमति जतायी।

“क्योंकि मैंने अपनी गांड कसकर रखी हुई है… जैसे तुमने रखी हुई थी… अब मैं उस समय ढीला करूँगा जब तुम उंगली अंदर डालने के लिए दबाव डालोगी… ठीक है?”

“ठीक है…”

“ओके… अब दबाव डालो…” उसने कहा और जैसे ही मैंने उंगली का दबाव बनाया उसने नीचे की ओर गांड से ज़ोर लगाया और मेरी उंगली का सिरा आसानी से अंदर चला गया।

“देखा?” उसने पूछा।

“हाँ !”

“अब मैं गांड ढीली और तंग करूँगा… तुम अपनी ऊँगली पर महसूस करना… ठीक?”

“ठीक ..” और उसने गांड ढीली और तंग करनी शुरू की। ऐसा लग रहा था मानो वह मेरी उंगली के सिरे को गांड से पकड़ और छोड़ रहा था।

“अच्छा, अब जब मैं छेद ढीला करूँ तुम ऊँगली और अंदर धकेल देना… ठीक है?”

“ठीक है…”

उसने जब ढील दी तो मैंने उंगली को अंदर धक्का दिया और देखा कि उंगली किसी तंग बाधा को पार करके अंदर चली गई। मुझे अचरज हुआ कि इतनी आसानी से कैसे चली गई… पहले तो जा ही नहीं रही थी… ऊँगली करीब तीन-चौथाई अंदर चली गई थी।

“इस बार ऊँगली पूरी अंदर कर देना…” उसने कहा…

और जैसे ही मैंने महसूस किया उसने ढील दी है मैंने उंगली पूरी अंदर कर दी।

“अब तो समझी तुम्हें क्या करना है?” उसने पूछा। मैंने स्वीकृति दर्शाई।

“ऐसा तुम कर पाओगी?” उसने मुझे ललकारा।

“और नहीं तो क्या !” कहते हुए मैंने उंगली बाहर निकाली और झट से कुतिया आसन इख्तियार कर लिया। भोंपू मेरी तत्परता से खुश हुआ… उसने प्यार से मेरे चूतड़ पर एक चपत जड़ दी और अपनी उंगली और मेरी गांड पर तेल लगाने लगा।

मैंने चुपचाप अपने छेद को 3-4 बार ढीला करने का अभ्यास कर लिया।

“याद रखना… हम एक समय में छेद को एक-आध सेकंड के लिए ही ढीला कर सकते हैं… फिर वह अपने आप कस जायेगा… तुम करके देख लो…”

वह सच ही कह रहा था… मैं कितनी भी देर ज़ोर लगाऊं…छेद थोड़ी देर को ही ढीला होता फिर अपने आप तंग हो जाता। मुझे अपनी गांड की यह सीमित क्षमता समझ में आ गई।

“देखा?”

“हाँ !”

कहानी जारी रहेगी।

यहाँ तक की कहानी कैसी लगी?

शगन

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