कॉलेज के पुराने सहपाठी संग संभोग
(Old Friend Sex Kahani)
ओल्ड फ्रेंड सेक्स कहानी में मैं कॉलेज टाइम में एक लड़के को पसंद करती थी. एक दिन वह मुझे मार्किट में मिल गया. हमने फोन नंबर ले लिए. हम बात करने लगे.
यह कहानी सुनें.
मेरा नाम रेनू शर्मा है और मैं जयपुर में रहती हूँ.
मेरी शादी को 8 साल हो चुके हैं.
ये एक सच्ची ओल्ड फ्रेंड सेक्स कहानी है जो अब मेरी ज़िंदगी का सुखद हिस्सा बन गई है.
एक दिन मैं शॉपिंग के लिए बाज़ार गई थी.
वहां मुझे कॉलेज के समय का एक लड़का मिला, उसका नाम मनीष था.
मैं उसे कॉलेज टाइम से ही मन ही मन बहुत पसंद करती थी.
मुझे देखते ही वह मेरे पास आया और बोला- अरे यार रेनू, तुम यहां कैसे?
मैं बोली- मैं अब जॉब करती हूँ और यहां शॉपिंग करने आई थी!
मनीष- कैसी हो? क्या चल रहा है? और तुम्हारे हसबैंड क्या करते हैं? कहां रहते हैं?
उसने एक साथ बहुत सारे सवाल दाग दिए.
मैं मुस्कुरा दी और उसे बताने लगी- मेरे हसबैंड भी जॉब करते हैं … पर वे बाहर रहते हैं. तुम अपनी बीवी के बारे में बताओ!
मनीष कुछ उदास स्वर में बोला- यार, मैं अकेला ही रहता हूँ और जॉब करता हूँ. मेरी बीवी 2 साल पहले कैंसर से मर गई.
यह सब बोलते हुए वह एकदम चुप हो गया.
मुझे ये सुनकर बहुत दुख हुआ. मैंने उसे सांत्वना दी.
उसने कहा- छोड़ो ये बातें … चलो जूस पीते हैं!
मैंने मना किया, लेकिन वह ज़िद करने लगा, तो मैंने ‘हां’ कर दी.
जूस की शॉप पास ही थी.
हम दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने बैठ गए और जूस पीने लगे.
मैं देख रही थी कि जूस पीते हुए वह मुझे ही देख रहा था.
मैं भी बीच-बीच में चुपके से उसे देख लेती.
वह बहुत हैंडसम लग रहा था, एकदम क्लीन शेव था.
फिर हम लोग कॉलेज के दूसरे साथियों के बारे में पूछने-बताने लगे कि कौन कहां पोस्टेड है.
हम दोनों ने खूब बातें कीं.
फिर उसने मेरा नंबर मांगा, तो मैंने दे दिया.
उसने भी मिस कॉल दे दी.
मैंने भी उसका नंबर सेव कर लिया.
वह बोला- तुम अब पहले से बहुत ज़्यादा खूबसूरत हो गई हो!
ये सुनकर मैं अन्दर ही अन्दर खुश हो गई लेकिन कुछ बोली नहीं.
उसको महसूस नहीं होने दिया कि मुझे अच्छा लगा है और वह भी मुझे बहुत पसंद है.
वह अब पहले से बहुत हैंडसम और चिकना हो गया था.
फिर मैं बोली- अभी चलती हूँ मनीष … मैं लेट हो रही हूँ!
उसने ओके कहा और मुझसे पूछा- क्या मैं तुम्हें कहीं ड्रॉप कर सकता हूँ.
लेकिन उसका और मेरा रास्ता एक दूसरे के विपरीत था तो मैंने उसे मना कर दिया.
मैं घर वापिस आते टाइम ऑटो में बैठी-बैठी उसी के बारे में सोच रही थी.
उसके अकेलेपन को महसूस कर रही थी.
अगले कुछ दिन तक उसने कोई मैसेज नहीं किया और ना मैंने उसे टच किया.
फिर एक रात लगभग साढ़े दस बजे उसका मैसेज आया- हाय … क्या कर रही हो?
मैं- कुछ नहीं बस लेटी हुई हूँ.
मनीष- खाना खा लिया क्या?
मैं- हां खा लिया और तुमने … और तुम अभी क्या कर रहे हो?
मनीष- हां मैंने खाना खा लिया. मैं तो तन्हा ही बैठा हूँ. रेनू एक बात बोलूँ?
मैं- हां बोलो न!
मनीष- मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा हूँ.
मैं- अच्छा जी … पर क्या?
जबकि मैं तो खुद उसी के बारे में सोच रही थी.
इतने में ही मेरे पति का फोन आया तो मैंने मनीष से बाय कह दिया और अपने पति से बात करने लगी.
उनसे बात करते-करते काफी रात हो गई थी.
फोन रखने के बाद मैंने मनीष की प्रोफाइल पिक देखने लगी.
वह पहले से बहुत ज़्यादा स्मार्ट लगने लगा था, तो न जाने क्यों उसके बारे में सोच-सोचकर मेरी चूत गीली होने लगी.
मैं अपनी चूत को सहलाने लगी तो मेरी वासना भड़क गई और उसको अपने साथ महसूस कर-करके कामुक सिसकारियों के साथ मैं झड़ गई और सो गई.
अगले दिन से वह रोज़ मुझे कॉल करने लगा और हम दोनों खूब बातें करने लगे.
मुझे उससे बात करने में बहुत मज़ा आने लगा.
धीरे-धीरे हम एक-दूसरे से खुलने लगे.
मैं उसे मन ही मन बहुत चाहने लगी थी.
उसने काफी बार मिलने बुलाया लेकिन मैं कोई ना कोई बहाना बनाकर मना कर देती थी.
करीब 3 महीने के बाद उसने फिर मिलने बुलाया.
इस बार मैंने ‘हां’ कर दी क्योंकि मैंने सोचा कि कहीं ज़्यादा मना करने पर वह मुझसे नाराज़ ना हो जाए.
उस दिन मैं आधा दिन की छुट्टी लेकर उसकी बताई जगह पर पहुंच गई.
वहां से उसने मुझे पिक किया और अपनी कार में आगे की सीट पर बिठा कर मुझे अपने फ्लैट पर ले गया.
जैसे ही मैं उसके फ्लैट में अन्दर घुसी, उसने गेट अन्दर से लॉक कर दिया.
एक हैंडसम लड़के के साथ खुद को बंद कमरे में पाकर शरीर के अन्दर तरंग सी उठने लगी.
उसने मुझे सोफा पर बैठने के लिए बोला और खुद चाय बनाने किचन में गया.
उसके कमरे में टॉयलेट अटैच था और डबल बेड, सोफा भी था.
हम लोग चाय पीने लगे.
मैं उसे छिपी हुई नजरों से देख रही थी और वह भी स्माइल कर रहा था.
हमने थोड़ा हंसी-मज़ाक भी किया और कॉलेज के टाइम की बातें भी याद कीं.
उसकी स्माइल में एक शरारत सी थी.
चाय खत्म करके मैं कप को किचन में रखने जा रही थी.
तभी मुझे मेरे पीछे उसके चलने का अहसास हो रहा था.
ये सोचकर ही मेरी चूत गर्म होने लगी.
तभी उसने पीछे से अपने दोनों हाथों को मेरी कमर पर रख दिया और मुझसे सट गया.
उसका मोटा, लंबा, सख्त लंड मेरी गांड को छू रहा था.
पहली बार एक हैंडसम गैर मर्द पीछे से इतना नज़दीक आया था, वह भी अकेले एक बंद कमरे में.
क्या बताऊं … उस पल वक्त थम सा गया था. मेरी चूचियां टाइट हो गईं और चूत रस टपकाने लगी.
मेरी सांसें तेज़-तेज़ चलने लगीं.
एक बार तो लगा कि मैं मनीष से बिना चुदे ही झड़ जाऊंगी.
मैं ना चाहते हुए भी वहां से हट गई और टॉयलेट में घुस गई.
अन्दर आकर मैंने गहरी सांस ली.
मुझे उसका पकड़ना बहुत अच्छा लगा था.
पर मैंने यह मनीष को अहसास नहीं होने दिया.
फिर टॉयलेट करके मैंने अपनी गीली चूत को पानी से साफ किया.
जैसे ही मैं बाहर निकली, देखा मनीष दरवाज़े पर ही खड़ा था.
मेरे निकलने के बाद वह खुद टॉयलेट में घुस गया.
मैं सोफे पर बैठ गई.
जैसे ही मनीष टॉयलेट से बाहर आया, मैं उसे देखती ही रह गई.
वह सिर्फ चड्डी में ही बाहर आ गया था.
उसके चेस्ट पर बाल नहीं थे और उसका लंड चड्डी को फाड़कर बाहर आने को फड़क रहा था.
उसके लंड का साइज़ देखकर तो मेरी पैंटी फिर से गीली हो गई और मैं ना चाहते हुए भी उसकी चड्डी से नज़र नहीं हटा पा रही थी.
ये देखकर मनीष समझ गया कि मुझे उसका लंड बहुत पसंद आया है.
मैंने मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया.
तभी वह मेरे पास आ गया और उसने तुरंत मुझे अपनी बांहों में उठा लिया.
वह मुझे बेड पर ले गया.
मैं उसे मना करने लगी- मुझे छोड़ो ये क्या कर रहे हो? मुझे ये सब पसंद नहीं है!
लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी और ताबड़तोड़ तरीके से मेरे गालों और होंठों को चूमने लगा.
उसने एक हाथ से खुद मेरी पजामी खींच कर उतार दी.
मैंने पैर सिकोड़ लिए और उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश करने का दिखावा करने लगी.
लेकिन हैंडसम लुक और उसकी चिकनी छाती और लंबा कड़क लंड के आगे मेरी चूत फूलने लगी, चूचियां टाइट हो गईं.
उसने खुद की चड्डी भी उतार दी.
उसका फनफनाता हुआ लंड देखकर तो मैं डर गई.
ऐसा लंड मैंने सिर्फ पॉर्न फिल्म में ही देखा था.
मुझे लगने लग गया था कि असली सील तो आज टूटेगी.
ये सोचकर मैं मन ही मन बहुत खुश हो गई थी.
लेकिन दिखावे के लिए कसमसाकर मैं उसे अपने से दूर करने लगी.
तभी उसने मेरी पैंटी को भी नीचे खींच कर निकाल दिया.
मैंने एक दिन पहले ही अपनी झांटों के बाल साफ किए थे.
मैंने अपने पैरों को जोर से कस कर बंद कर लिया.
वह मेरे कुर्ते को ऊपर से खींच कर निकालने लगा लेकिन वह उतार नहीं पा रहा था.
तो मैंने उसकी मदद करते हुए खुद ही कुर्ते को निकाल दिया और दिखाने के लिए वापिस उसे दूर धकेलने लगी.
इस वक्त वह बिल्कुल नंगा था और मैं सिर्फ ब्रा में थी.
ऐसी चिकनी छाती से चिपक कर और जांघों में पराए मर्द के लंड टच होने से मेरी आहें और सिसकियां बाहर आने को तैयार थीं.
मेरी ब्रा के कप की नोक से दूध जैसा कुछ पदार्थ रिसने लगा था, जिससे ब्रा की दोनों नोकें भी गीली हो गई थीं.
उसके लौड़े की भी झांटें बिल्कुल साफ थीं और मेरी चिकनी चूत भी साफ थी.
ऐसा लग रहा था मानो हम दोनों पहले से चुदाई की तैयारी करके आए हों.
मेरी दाईं तरफ लेट कर वह मेरे बूब्स को अपने मर्दाना हाथों से दबाने लगा.
फिर मेरी चूचियों को चूसने लगा.
उसके हाथों की कसावट से बहुत अच्छा लग रहा था.
मैं मन ही मन उससे चिपक कर सहयोग करना चाहती थी परंतु उसे दूर धकेलने का नाटक करने लगी.
मुझे इस खेल में बहुत आनन्द भी आ रहा था.
उसके जिस्म से चिपकने में एक अलग ही सुख मिल रहा था.
मैं अपनी जांघों के बीच उसके लंड की लंबाई और मोटाई का अहसास कर रही थी.
शायद उसी वजह से मेरी चूचियां रस छोड़ रही थीं.
फिर वह अपनी उंगलियों को मेरे पेट पर लहराते हुए जांघों के बीच ले गया.
मैं ‘आह आह आआअह …’ करके अंगड़ाने लगी.
ना चाहते हुए भी मेरी जांघें अपने आप अलग होने लगीं.
यह देख कर उसने मौका पा लिया और वह मेरी दोनों टांगों के बीच में आ गया.
फिर वह मेरे ऊपर छा गया, जिससे उसका गर्म लंड बार-बार मेरी गर्म फूली हुई चूत को छू रहा था.
मेरे लिए और रुक पाना बहुत मुश्किल हो रहा था.
मैं फिर भी उससे बोली- छोड़ो मुझे … प्लीज ये सब मत करो!
लेकिन सच कहूँ तो मन कह रहा था कि कह दूं कि आज मुझे चोद कर मेरी चुत को फाड़ दो!
तभी मनीष ने अपना लंड का आगे का भाग यानि अपना टमाटर सा मोटा लाल सुपाड़ा मेरी चूत के छेद पर टिकाया और रगड़ने लगा.
उसके लंड की गर्मी से पता चल रहा था कि वह बहुत टाइम से चुदाई का भूखा है और आज मेरी चूत की कड़ी परीक्षा लेगा.
तभी उसने एक झटका मार कर थोड़ा सा लंड अन्दर घुसा दिया.
मेरी तो आवाज़ ही अटक गई और मुँह खुला का खुला रह गया.
इतना बड़ा सख्त लंड घुसने से तो रोज़ चुदाने वाली रंडी भी चीख पड़े.
मुझ जैसी नाजुक कली की खातिर वह भी रुक गया.
यह देख मैं उसकी दीवानी हो गई.
वह अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगा तो अन्दर फंसा हुआ लंड चुत की दीवारों को रगड़ने लगा.
इससे मेरी चुत के अन्दर गाढ़ा-गाढ़ा चिकना सा रिसाव होने लगा और चुत लसलसी होने लगी.
अब जाकर कहीं मुझे सांस आई. मुझे सामान्य देख कर उसने दूसरा झटका मारा तो उसका आधा लंड अन्दर तक घुस गया.
मेरी चीख निकली तो उसने अपने होंठों से मेरा मुँह दबा लिया.
अब लग रहा था जैसे अन्दर का पूरा पुर्जा फट गया हो.
मैं अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर रखकर उसे वापिस दूर धकेलने लगी पर वह चिपका रहा और मेरे होंठों को चूसने लगा.
मुझे उसके कड़क लंड से बहुत दर्द हुआ, लेकिन ये दर्द धीरे-धीरे अच्छा लगने लगा.
फिर उसने एक और झटके के साथ दूसरी बार मेरी चूत की सील तोड़ दी.
खून तो नहीं आया लेकिन सच कहूं तो ऐसा लगा मानो आज पहली बार सील टूटी हो.
उसने सच में मुझे औरत बना दिया था.
उसका लंड ऐसे लग रहा था जैसे कोई रॉड अन्दर डली हुई हो.
उसने लंड को अन्दर ही डाले रखा और बस मेरे होंठों को चूसने लगा.
इधर मैं भी अपनी जांघों को चौड़ा कर उसके मोटे तगड़े लंड को एडजस्ट कर रही थी.
मैं अपनी चुत की गहराई में उसके लौड़े की गर्मी महसूस करने लगी.
मेरी चुत उसके लंड के आगे नतमस्तक होकर गीली होने लगी थी.
लेकिन मैं ना चाहते हुए भी दिखाने के लिए अभी भी कहे जा रही थी ‘इसे बाहर निकालो … मुझे छोड़ो न!’
उसने धीरे-धीरे मेरी गीली चुत को अपने फौलादी लंड से घिसना शुरू कर दिया.
मेरे पूरे शरीर में झनझनाहट सी चलने लगी.
अब मुझसे और मना नहीं हो पा रही थी, तो मैं चुप हो गई.
उसने झटकों की स्पीड और गहराई तक लंड को पेलने का काम दोनों ही तेज कर दिए थे.
मेरी कमर भी उसके लौड़े की ताल पर लचकने लगी थी.
उसको भी समझ में आ गया था कि मैं चुदाई का मजा लेने लगी हूँ.
जल्द ही हम दोनों एक-दूसरे में समा गए.
मनीष का लंड मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था, जिससे मैं असीम आनन्द में खो गई थी.
मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पीठ को कस लिया और खुद ही उसके होंठों को अपने मुँह में भरने लगी.
मैं जोर-जोर से सिसकारियां भरने लगी. मेरी नाक फूल गई.
अब मेरी ‘ना ना … और छोड़ो छोड़ो मुझे …’ की आवाज ‘हां हां … और चोदो … और जोर से चोदो’ में बदल गई.
मैं बोली- मनीष प्लीज आज मुझे औरत बना दो!
ये सुनकर वह और जोश में आ गया.
उसने जोर-जोर से और कस-कसके मुझे चोदना शुरू कर दिया.
आज मेरे मन की सी चुदाई हो रही थी, या समझो रेनू की तमन्ना पूरी हो गई थी.
लगभग 8-10 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मेरी चुत से पानी रिसने लगा और पूरा कमरा ‘आआह आआ आह आआह’ के साथ ‘फच्च् फुच्च्’ की आवाजों से गूंजने लगा.
मेरी हर मदमस्त सिसकारी के साथ उसकी स्पीड बढ़ रही थी.
हम दोनों के चेहरे लाल हो गए थे.
ओल्ड फ्रेंड सेक्स से मैं झड़ने वाली थी.
तभी मैंने करवट बदली और उसके ऊपर आ गई.
मेरी इस अदा से वह बहुत खुश हुआ और उसने मुझे ‘आई लव यू’ बोल दिया.
मैंने भी अपनी गांड उठा कर उसके लंड पर पटकना शुरू कर दिया.
वह अपने दोनों हाथों से मेरे बूब्स को दबा रहा था.
उसका लंड बच्चेदानी के मुँह को रगड़ रहा था जिससे पानी लगातार रिस रहा था.
मैं तो कहती हूं हर औरत को कम से कम एक बार ऐसे घोड़े जैसे लंड से चुदना चाहिए जो बच्चेदानी तक पहुंच जाए.
इसी में है स्वर्ग जैसा सुख …
अब उसने मुझे चिपका लिया और फिर करवट बदल कर मुझे अपने नीचे ले लिया.
उसने मुझे एक प्यारी सी स्माइल दी और मुझसे जौंक की तरह चिपक कर मेरी चुत फाड़ने लगा.
अब मेरी चुत चुद-चुद कर ढीली हो गई थी. उसका पूरा लंड आसानी से सटा-सट अन्दर-बाहर हो रहा था.
मेरी चुत की अकड़ उसके लंड की अकड़ के सामने फीकी पड़ गई और झड़ने ही वाली थी.
तभी मैंने कहा- आह मनीष प्लीज … अब पूरा जोर लगा कर मुझे चोदो और फाड़ दो मेरी चुत … आह रुकना मत बस कुछ मत बोलना … बस फाड़ दो मेरा छेद आज आह.
यह सुनकर वह तो मेरी चुत पर ऐसे टूट पड़ा, जैसे वह अपने लंड को आर-पार ही कर देगा.
मैं उसकी ऐसी दमदार स्पीड में झूमने लगी.
मुझे लगा मेरा शरीर हवा में गोते लगा रहा है.
मेरी मदभरी सिसकारियां चरम पर थीं- आआ आह आआ आहा ओह उफ्फ ब… चोदो मेरे राजा … फाड़ दो अपनी महबूबा को … अब मैं रोज चुदने आऊंगी, घंटों तक चुदूंगी.
मेरी जीभ पर मेरा नियंत्रण नहीं रहा था.
उसका लंड मेरे जिस्म को कंट्रोल कर रहा था.
‘आ आआ ह्हह ऊ ऊऊह आआहह …’
तभी मेरी मलाई झड़ गई.
मुझे झड़ता देख उसने भी अपना गर्म-गर्म वीर्य मेरी चुत में भर दिया.
उसके लौड़े से इतना ज्यादा वीर्य निकला था कि लंड अन्दर होते हुए भी पिचकारियों के साथ बाहर आ रहा था.
हम दोनों की जांघों तक छींटे आ गए … तब जाकर सैलाब शांत हुआ.
हम दोनों एक-दूसरे से काफी देर तक यूं ही चिपके पड़े रहे.
फिर अलग होकर एक-दूसरे को बस देखते रहे.
उसने मेरे होंठों को चूसा, फिर माथे को चूमा और मेरे गालों पर हाथ फिराने लगा.
फिर मैं शर्मा कर उसके सीने से चिपक गई.
इस तरह मुझे मेरे पुराने सहपाठी से चरमसुख प्राप्त हुआ.
इसके बाद हम कई बार मिले.
अब जब भी मैं पति से चुदवाती, तब भी मनीष का लंड इमेजिन करती और आंखें बंद करके सोचती कि मुझे मनीष ही चोद रहा है.
उसकी चुदाई को याद करती हुई ही मैं जल्दी झड़ भी जाती.
दोस्तो, मेरी यह एकदम सच्ची सेक्स कहानी है.
ओल्ड फ्रेंड सेक्स कहानी आपको कैसी लगी … प्लीज जरूर बताएं.
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