चुदाई एक्सप्रेस- 1
(Xxx Chut Lund Kahani)
Xxx चूत लंड की कहानी एक गाँव के बड़े जमींदार की है. उसकी बीवी चुदाई की बहुत शौकीन थी. लेकिन उसका एक सौतेला देवर भी था जो सारी संपत्ति हड़पना चाहता था.
दोस्तो, मेरी लिखी कहानियों के सफर में आज की कहानी एक अलग विषय को छूती है.
इसीलिए इसका नाम दिया है चुदाई एक्सप्रेस.
सेक्स करने का भी भला कोई कारण होता है.
और अगर मैं कहूं की इस कहानी में सेक्स किसी मकसद के लिए किया जाता है तो मामला रोचक बन जाता है.
Xxx चूत लंड की कहानी का नायक धीरज है.
लेकिन शुरूआत धीरज की माँ और पिता से होती है.
धीरज के पिता ठाकुर जगदेव सिंह की ह,त्या हुई.
धीरज की मां ने धीरज को आगे पढ़ने के लिए उसके ननिहाल हिमाचल भेज दिया.
धीरज की मां सावित्री देवी को गाँव में दुश्मनों के बीचे रहना मजबूरी थी.
दो सौ बीघा की खेती.
वो भी ठाकुर जगदेव के सौतेले भाई ओमी के साथ.
हालांकि ओमी जगदेव से बहुत छोटा पर पूरा शातिर था.
अब जमीन तो सावित्री देवी के नाम आ गयी पर ठाकुर जगदेव का लिखा हुआ एक समझौता था कि ओमी जब तक चाहेगा उनकी पुश्तैनी हवेली में रहेगा और उनकी जमीन की देखभाल करेगा.
इसके एवज में एक सालाना एकमुश्त रकम उसे मिलेगी.
जब जगदेव सिंह की ह,त्या हुई उस समय धीरज मात्र छह साल का था.
उसे तो यही बताया गया कि खेत में सांप ने डस लिया जगदेव सिंह को और फिर मामा उसे अपने साथ हिमाचल ले गए.
सावित्री देवी ही साल में दो तीन बार अपने बेटे से मिलने हिमाचल आ जातीं पर धीरज को वो अपने साथ कभी गाँव नहीं लायीं.
लाती भी किस मुंह से. उन्हें जोर जबरदस्ती से ओमी ने अपनी रखेल बना रखा था.
जगदेव सिंह की ह,त्या यूं तो कभी खुल नहीं पायी, पर सब यही कहते थे कि उनकी हत्या ओमी ने ही कराई थी.
वो तो सावित्री देवी को भी मारना चाहता था पर सावित्री देवी ठकुरानी थीं तो बचा ले गयी अपने को और अपनी वसीयत कर दी कि यदि उन्हें कुछ होता है तो उनकी सारी जायदाद धीरज को मिले और उसके पालन पोषण की जिम्मेदारी धीरज के मामा को मिले.
यहीं नहीं उन्होंने पुलिस कप्तान जो एक महिला थीं, को भी एक अर्जी दे दी की यदि उन पर कोई हमला होता है तो उसका जिम्मेदार ओमी को माना जाए.
पुलिस कप्तान ने ओमी को बुला कर अच्छे से समझा दिया था कि सावित्री देवी को कुछ हो न जाए.
तो बस अब ओमी और तो कुछ नहीं कर सकता था.
उसने सावित्री देवी पर डोरे डालने शुरू कर दिए.
सावत्री देवी एक खूबसूरत और मांसल जिस्म की महिला थीं.
उनकी और ठाकुर जगदेव सिंह की सेक्स लाइफ सबकी जानकारी में थी.
ठाकुर साहब रसिया थे और सावित्री देवी उन्हें कामरस का झक के पान कराती थीं.
खुद सावित्री देवी की कामवासना पूरे उफान पर रहती थी.
अच्छा पहनना और अच्छे से अच्छे जेवरात.
सावित्री देवी हर समय बनठन कर रहती मानों नव ब्याहता हों.
शादी को मात्र आठ साल ही तो हुए थे.
उनकी कोई रात बिना सेक्स के पूरी होती ही नहीं थी.
जगदेव सिंह रात होते होते सभी नौकरों को हवेली से बाहर कर देते क्योंकि चुदाई के समय सावित्री देवी की आहें पूरी हवेली में गूँजतीं.
सावित्री देवी की अपनी तिजोरी रुपयों और जेवरों से ठुंसी रहती और चूत हमेश जगदेव सिंह के लंड से.
असल में चुदाई के जितने रसिया जगदेव थे, उससे ज्यादा सेक्स को आतुर सावित्री देवी रहतीं.
कहने वाले तो ये भी कहते थे की सावित्री देवी का एक ख़ास नौकर था, रज्जू, जो हिजड़ा था.
सावित्री देवी की मालिश उसी के जिम्मे थी.
खुली धूप में तिमंजिली हवेली की छत पर नाममात्र के कपड़ों में सावित्री देवी रज्जू से मालिश करवातीं.
कमरे में मालिश के दौरान तो वो बिना कपड़ों के होतीं.
रज्जू मुंहलगा था उनका. मालिश के दौरान सावित्री देवी की उठी सेक्स की हुड़क रज्जू ही पूरी करता.
उस जमाने में वाईब्रेटर तो होते नहीं थे.
तो बस रज्जू की उंगलियाँ और खीरा गाजर ही सावित्री देवी की उठी आग को शांत करते.
रज्जू के जिम्मे सावित्री देवी की मालिश और जिस्म को चिकना रखने का काम था.
सावित्री देवी की चिकनी चूत को जगदेव सिंह के अलावा रज्जू ने ही छुआ था.
बस एक बार गलती से रज्जू का मुंह नशे की हालत में खुल गया मेहमानों के सामने, उसके बाद रज्जू का क्या हुआ किसी को पता नहीं चला.
जगदेव सिंह के जाते ही ओमी ने एक रात उन पर भी हमला करवा दिया.
सावित्री देवी ने रायफल से फायर खोल दिया और एक बदमाश उनकी गोली से घायल हुआ.
उसे मरा जानकार सारे बदमाश भाग गए.
हालंकि वो उस घायल को अपने साथ ले गए पर इलाके में सावित्री देवी की जीदारी का डंका बज गया.
पर ये सब कुछ समय रहा.
धीरे धीरे उन्होंने ओमी से समझौता कर लिया.
ये तय हो गया कि खेती का सारा हिसाब वो रखेंगी और तयशुदा एकमुश्त रकम को दोगुना ओमी को मिलेगा.
ओमी को रहने के लिए हवेली में जगह थी ही.
वह उम्र में सावित्री देवी के बराबर का ही था, वो शुरू से ही सावित्री देवी को ठकुरानी कहता था.
ओमी कसरती जिस्म का हट्टा कट्टा गोरा जवान था.
कहें तो वो सुंदर था, अपनी मां पर गया था.
आखिर था तो वो जगदेव सिंह के बाप की रखैल की नाजायज औलाद.
बड़े ठाकुर ने रखैल को मरवाकर ओमी को अपने घर में ही पाला.
ओमी की मां का क्या हुआ, कोई नहीं जानता, सिवाय जगदेव सिंह के पिता के.
अब वक्त के साथ सावित्री देवी के भी तेवर ढीले हुए.
पैसा आ रहा था.
ओमी इस मामले में ईमानदार था.
पर हाँ … उसकी नीयत पूरी संपत्ति हड़पने की थी.
उसने सोचा कि अगर सावित्री देवी उससे शादी कर ले तो वह धीरज के नाम की वसीयत कैंसिल करवा लेगा और वक्त मिलने पर सावित्री देवी को निबटा कर पूरी जायदाद का मालिक बन जाएगा.
इन सब बातों के अलावा वो चूंकि खुद भी नाजायज़ जिस्मानी संबंधों की पैदाइश था तो उसका लंड भी अब अपना हक माँगता.
खेत की औरतों की तो वो अक्सर चूत मारता ही रहता.
पर अब उसे एक बंधा हुआ ठिकाना भी तो चाहिए था.
यही हाल सावित्री का भी था.
उसकी चूत की आग अब उंगली और केले से नहीं बुझती थी.
एक रात जब कोठी में केवल एक ही नौकर था तो ओमी ने उसे तो दारु पिला कर टुन्न किया और फिर सावित्री के कमरे में घुस गया.
सावित्री ने हल्ला मचाने की कोशिश की पर ओमी ने उसके कपड़े फाड़ ही डाले.
जब ओमी सावित्री पर सवार हो गया तो उसने अपनी पकड़ ढीली की और सावित्री से बोला- ठकुरानी, मेरा साथ दो. तुम्हारा बदन भी तड़फता है और मेरा भी. मजे लो और मजे दो. किसी को कुछ नहीं मालूम पड़ेगा.
सावित्री देवी ने पहले तो ना नुकुर की … पर लंड की तड़प ने आखिर उसे पिघला ही दिया.
अब सावित्री देवी ने हथियार डाल दिए.
ओमी ने अब सावित्री के बचे खुचे कपड़े उतार फेंके और खुद भी नंगा हो गया.
सावित्री के मम्मे खरबूजे जैसे कर दिए थे जगदेव सिंह ने.
ओमी ने सबसे पहले उन्हें ही लपका.
वह एक एक करके उन्हें बेरहमी से चूसने लगा.
इस उछल कूद में उसका मोटा मांसल लंड सावित्री के हाथ आ गया.
वो उसे मसलने लगी.
सावित्री को याद था कि ठाकुर साहब सबसे पहले उसकी टांगें चौड़ा कर उसकी चूत चूसते थे.
उन दिनों सावित्री अपनी चूत हर समय चिकनी रखती.
पर ओमी के नसीब में चिकनी चूत तो कभी मिली ही नहीं थी.
गाँव की मजदूर औरतें भला चूत चिकनी करती हैं क्या.
सवित्री ने ओमी को दुत्कारते हुए कहा- क्या जंगलियों की तरह कर रहे हो.
वाकई ओमी इस मामले में जंगली ही था.
अब सावित्री ने उसे सेक्स का कायदा सिखाते हुए अपनी टांगें चौड़ायीं और कहा- नीचे आओ और इसे चूसो.
कुल मिलाकर जब चुदास चरमोत्कर्ष पर थी तो ओमी सारे कायदे क़ानून भूल गया और सवित्री की टांगें चौड़ा कर अपना मूसल पेल दिया और तब तक धक्के मारता रहा जब तक सावित्री की चूत से उसकी मलाई बाहर गिरनी शुरू नहीं हो गयी.
अब तो ये रोज का शगल हो गया.
बिना चुदे न तो सावित्री को नींद आती न ओमी का लंड बिना सावित्री की चूत में ढीला हुए, शांत होता.
सावित्री शादी को तैयार नहीं हुई.
ओमी ने खूब फुसला लिया उसे.
पर सावित्री टस से मस न हुई.
ओमी ने अपने जुल्म बढ़ा दिए.
अब वो सावित्री की गांड भी मारता.
सावित्री खूब रोकती उसे पर ओमी न रुकता.
अब तो उसकी निगाह में सावित्री उसकी रखैल थी.
इश्क और मुश्क छिपते नहीं.
धीरे धीरे पूरे गाँव को शक हो गया की ठकुरानी का ओमी से कुछ चक्कर है.
सावित्री ने सारे जुल्म सहकर भी पढ़ी लिखी होने का फायदा उठाते हुए अपना कानूनी काम पक्का कर लिया.
जमीन की वो अकेली मालकिन थी, ओमी सिर्फ उसका मुनीम, जिसे एक बंधी रकम बतौर तनखा के मिलती थी.
पर रात तो बिस्तर पर अब भी सावित्री ओमी के नीचे ही होती.
दोनों आपस में खूब गाली गलौच करते, उनका सेक्स का यही तरीका था.
सावित्री की सेक्स की भूख बढ़ती ही जा रही थी. अब वो ओमी को थका देती.
जब ओमी थक जाता तो वो उसे खूब गाली बकती.
अब ऐसे ही 10-12 साल निकल गए.
सावित्री को कई रोगों ने घेर लिया.
ओमी को उससे अब शारीरिक सुख नहीं मिलता था तो ओमी ने दोबारा खेत की मजदूर औरतों पर हाथ साफ़ करना शुरू कर दिया.
सावित्री सब कुछ जानते हुए कुछ नहीं कर पा रही थी.
उसे इंतज़ार था कि धीरज की पढ़ाई पूरी हो जाए और वो कृषि में इंजीनियरिंग करके गाँव में उन्नत कृषि शुरू कर सके.
धीरज अब शहर में आ गया था इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए.
तीन साल का कोर्स था.
पहली साल तो वो हॉस्टल में रहा, वहां का माहौल और खाना दोनों ही खराब था.
धीरज माहौल से तो बिगड़ गया और लड़कियों से दोस्ती करने लगा, पर खराब खाना उसे नहीं भा रहा था.
उसने शहर में कॉलेज के पास कोई मकान देखना शुरू किया.
कॉलेज के गार्ड ने उसे एक मकान दिखाया.
छोटा सा मकान था.
मकान मालकिन विधवा थीं और अकेली रहती थीं.
उनकी बेटी अपनी मौसी के पास रहकर पढ़ाई कर रही थी.
धीरज को मकान और मकान मालकिन सरिता दोनों अच्छी लगीं.
सरिता ने उसके खाने की समस्या भी दूर कर दी.
सरिता गोरी और भरे शरीर की सुंदर महिला थी.
उसके पति का देहांत अभी दो-तीन साल पहले ही हुआ था.
सरिता किसी निजी हॉस्पिटल में नर्स थीं और फिजिओ थेरपी की अच्छी जानकार थी.
सरिता का उस हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर गुप्ता से गाढ़ा याराना था.
याराना शब्द इसलिए इस्तेमाल किया कि अधेड़ डॉ गुप्ता को एक बार लकवा मार गया.
सरिता की दिन रात की मेहनत और फिजियो थेरेपी से डॉक्टर साहब बिलकुल ठीक हो गए.
इसे दौरान दोनों काफी नजदीक आये.
सरिता ये मानती थी कि अगर कोई बीमार खुद जल्दी ठीक होना चाहे तो उसे इलाज ज्यादा माफिक आता है.
सरिता ने दवाइयों और फिजियो थेरेपी के अलावा डॉक्टर को अपने जिस्मानी आकर्षण से बांधा.
जब डॉक्टर कुछ ठीक हुए, तभी से डॉक्टर साहब उसके मम्मे छूने की कोशिश करते तो वो ब्लाउज खोल के मम्मे उनके मुंह में दे देती और उनका लंड मसलती.
शायद लंड की मालिश ही उनको लकवे के प्रकोप से जल्दी बाहर ला पायी.
इसके बाद तो डॉक्टर साहब और सरिता अक्सर चुदाई करने लगे.
डॉक्टर साहब सरिता को नाईट ड्यूटी के बहाने से अपने घर पर बुला लेते और दोनों बिस्तर गर्म करते.
डॉक्टर साहब को सनक थी कि वे न तो कपड़े खुद पहनते थे न सरिता को पहनने देते थे.
बड़े रंगीन किस्म व्यक्ति थे.
उनसे चुदाई में सरिता को कई फायदे थे.
चूत की आग कुछ तो बुझती, इसके अलावा डॉक्टर साहब सरिता को जेवर और कपड़े देते रहते पैसों के अलावा.
सरिता भी उन्हें सेक्स का वो मजा देती जो शायद जवानी में डॉक्टर साहब को थाईलैंड में मिला होगा.
अधेड़ डॉक्टर साहब का थका हुआ लंड सरिता को उतना मजा तो नहीं दे पाता था जितनी सरिता की चूत मांगती थी.
तो सरिता की चूत की आग बजाये बुझने के और भड़कने लगी.
पर सरिता पर और कोई उपाय नहीं था.
यह Xxx चूत लंड की कहानी 3 भागों में चलेगी.
अब तक की कहानी पर अपनी राय मेल और कमेंट्स में दें.
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Xxx चूत लंड की कहानी का अगला भाग:
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