चुदक्कड़ आंटी से चुदाई-ट्रेनिंग

(Chudakkad Aunty Se Chudai Training)

दोस्तो नमस्कार, मैं आपका दोस्त डा. दलबीर आपके सामने फिर से हाजिर हूँ।
आप लोगों ने मेरी पिछली कहानियों को काफ़ी सराहा, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

बहुत सारे मेल भी आए और बहुत सारे लोगों का आग्रह था कि मैं उन लोगों को भाभी या माला का फ़ोन नंबर या मेल आई-डी दे दूँ। इससे पहले भी कई सारे लेखकों ने यह बात लिखी है आज मैं भी लिख रहा हूँ कि व्यावहारिक तौर पर ना तो ऐसा करना चाहिए और ना ही कोई लेखक ऐसा कर सकता है, क्योंकि अगर मेरे या किसी भी लेखक के सम्बन्ध किसी स्त्री से हैं, तो इसका मतलब यह नहीं हो सकता है कि वो हर किसी के साथ अपने सम्बन्ध बना लेगी।
अगर कोई औरत किसी को अपना शरीर सौंपती है तो उस पर पूरा भरोसा करके कि वो आदमी उसे बदनाम नहीं होने देगा।
अगर कोई भी व्यक्ति अपनी किसी मित्र महिला का नम्बर किसी दूसरे को देता है तो यह विश्वासघात कहलाएगा।
तो मित्रो, आप सबसे हाथ जोड़ कर विनती है कि इस प्रकार की मेल न करें।

तो अब आते हैं आज की कहानी पर।

मेरी पिछली कहानियाँ पढ़ने के बाद मुझे शिव नाम के एक लड़के की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई, जो कि मैंने स्वीकार कर ली।

उसके और मेरे बीच में चैट होने लगी। तब उसने मुझे अपनी कहानी बताई जो कि मैं उसी के शब्दों में पेश कर रहा हूँ।

मेरा नाम शिव है, अभी मैं दिल्ली में रहता हूँ, वैसे मैं आगरा का रहने वाला हूँ।

मेरी उम्र अब 24 साल है और मेरा कद 5 फुट 7 इंच है। मेरा रंग साफ़ है नैन-नक्श तीखे हैं और शरीर न बहुत पतला और न ही मोटा यानि कि औसत शरीर का मालिक हूँ, पर व्यक्तित्व आकर्षक है।

मेरा लण्ड काफी मोटा है और क़रीब साढ़े छह इंच लम्बा है।

यह तब की बात है, जब मैं आगरा में रहता था, 18 साल का था और 12वीं में पढ़ता था।

मेरे घर के पास ही एक आंटी रहती थीं, जिनकी उम्र करीब 37-38 साल थी, जो चेहरे से तो ज्यादा सुंदर नहीं थीं पर उनका फिगर इतना अच्छा था कि एक बार देखने के बाद एकदम से कोई भी उनसे नज़र नहीं हटा सकता था।

उनका कद काफी लम्बा था, छाती पर एकदम कसे हुए काफ़ी विशाल उनके चूचे और काफी पतली कमर, शायद 28 या 29 इंच की रही होगी और नीचे भारी भरकम कूल्हे यानि चूतड़।

वो एकदम एटम-बम्ब लगती थीं। मेरी नज़र जब भी उन पर पड़ती तो मुझे कुछ अजीब सा होने लगता था और मैं उन्हें देखने का कोई भी मौका नहीं गंवाता था।

हालांकि मैं काफी कोशिश करता कि मेरा ध्यान उनकी तरफ न जाए, मगर मन था कि मानता ही नहीं था।

अपना ध्यान उनकी तरफ से हटाने के लिए मैं कई बार ब्लू-फ़िल्में देखता था।

एक बार मोहल्ले में किसी की शादी की एल्बम में से उनकी तस्वीर निकाल लाया था।

इसके बाद जब भी मेरा मन करता, तो मैं उनकी तस्वीर देख कर मुठ मार लिया करता था।

इससे मन तो नहीं भरता था, पर हाँ.. थोड़ी तसल्ली ज़रूर मिल जाती थी।

कई महीने ऐसे ही गुज़र गए। अचानक एक दोस्त ने बताया कि ये आंटी दिन में एक दुकान पर सिगरेट पीने जाती हैं।

अगले ही दिन मैं उनकी ताक में रहा और जैसे ही वो आंटी सिगरेट पीने के लिए निकलीं तो मैं भी पीछा करता हुआ, उनके पीछे उसी दुकान पर पहुँच गया और दुकान पर पहुँच कर जैसे ही उन्होंने सिगरेट लेकर जलाई तो उनको अनदेखा कर के मैंने भी दुकानदार से सिगरेट ले ली और जला ली।

तब अचानक उनको देखने का नाटक करते हुए मैंने सिगरेट पीछे को करके छुपा ली, पर आंटी के हाथ में भी सिगरेट थी और वो मुझे देख कर सिगरेट फेंक भी नहीं पाईं, तो आंटी अपनी झेंप मिटाते हुए बोलीं- जब पीते ही हो तो साथ में पी लिया करो न, लेकिन कालोनी में किसी को मत बताना इस बारे में!

उनकी यह बात सुन कर मैं थोड़ा सहज हो गया और उनके सामने ही सिगरेट पीने लगा गया।

कुछ मिनट बाद बाद बात शुरू करते हुए आंटी बोलीं- अरे, शिव बेटा.. मुझे कम्प्यूटर भी सीखना है, तुम सिखा दोगे क्या?
मेरे लिए तो बड़ी खुशी की बात थी, मैंने तुरंत कहा- मैंने कहा कि आप कल से मेरे घर आ जाया करो।
तब आंटी बोलीं- मेरे घर पर नया कम्प्यूटर आया है, तुम मेरे घर आ कर क्यों नहीं सिखा देते।
यह सुनते ही मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगे और मैंने उन्हें तुरंत ‘हाँ’ कह दिया।

दो-तीन दिन बाद मैं एक दिन जब उनके बच्चे स्कूल गए हुए थे।
उनके घर गया और बोला- आँटी आओ.. आज मैं आपको कम्प्यूटर चलाना सिखा दूँ।
आँटी बोलीं- कम्प्यूटर चलाना तो आता है पर इसमें कुछ सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना सिखा दो!
तो मैं बोला- ठीक है आँटी।

मैं अपने साथ ही कुछ डीवीडी ले गया था, उनमें 2 सीडी ब्लू-फिल्म की भी थीं, जो मैं गलती से ले गया था और मुझे नहीं पता था कि इनमें कोई ऐसी डीवीडी या सीडी है।

आंटी की सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने की बात सुनकर मुझे लगा कि मुझे ज़्यादा टाइम लगेगा तो मैंने आंटी से बोला- आंटी आप इसमें से देखिए आपको कौन-कौन से सॉफ़्टवेयर चाहिए मैं मां को बोलकर आता हूँ कि मुझे थोड़ा टाइम लग जाएगा।

थोड़ी ही देर में मैं घर पर बोल कर जब वापस आया तो क्या देखता हूँ कि आंटी के कंप्यूटर पर ब्लू-फिल्म चल रही थी और आंटी लंबी-लंबी साँसें लेते हुए अपनी सलवार में हाथ डाल कर सहला रही हैं और उन्हें मेरे आने का बिल्कुल भी पता नहीं चला।

मैं उनके पीछे ही खड़ा हो कर देखने लगा।

लगभग डेढ़-दो मिनट तक ये देख कर मैं पीछे से उनके बिल्कुल पास पहुँच कर बोला- आंटी, आप यह क्या कर रही हैं?

मेरी आवाज़ सुनकर वो चौंक गईं और बोलीं- शिव प्लीज़.. यह बात किसी को बताना मत!

तो मैंने कहा- आंटी आप चिंता मत करो.. मैं किसी से नहीं कहूँगा, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं, क्या मैं आपको एक चुम्बन कर सकता हूँ और क्या आपकी जगह मैं आपके नीचे सहला दूँ?

तो आंटी मस्त निगाहों से मुझे देखते हुए बोलीं- लो कर लो.. पर यह बात किसी को बताना मत.!

आंटी के इतना बोलते ही मैं एकदम बेसब्रों की तरह आंटी पर टूट पड़ा और उनके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पूरे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।

इसके साथ ही मैंने अपना एक हाथ उनकी सलवार मे डाल दिया और उनकी चूत पर ले गया और सहलाने लगा।

उनकी चूत एकदम गर्म सी लग रही थी और काफ़ी गीली सी भी हो रही थी और जैसे ही मैंने अपनी ऊँगलियाँ उनकी चूत पर फेरीं, तो उनके मुँह से एकदम से सिसकारी सी निकल गई- सस्स्स्स्स् स्स्स्स्स् स्ईईईई आआहह!’

और आंटी का शरीर एकदम इस तरह से काँपने लगा, जैसे किसी को बुखार चढ़ रहा हो और आंटी के सारे हाथों के रोंगटे खड़े हो गए।

मैं क्योंकि आंटी के पीछे खड़ा था तो मुझे परेशानी हो रही थी और मैंने आंटी के होंठ छोड़े और सोफे पर आकर उनके साथ बैठ गया और फिर से उनके होठों की तरफ अपना मुँह कर लिया।

जैसे ही मेरा चेहरा उनके चेहरे के पास पहुँचा, उन्होंने इस बार पहल करते हुए मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगीं।

उन्होंने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मुझे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया और उनके मुँह से ‘उउउन्ह.. ऊउउन्ह’ की आवाज़ें आने लगीं।

मेरा एक हाथ उनकी कमर से लिपटा था और दूसरा उनकी सलवार में घुसा हुआ उनकी चूत को सहला रहा था।

करीब 15 या 20 मिनट तक चूसने-चुसाने का खेल चलता रहा। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं एक झटके से खड़ा हो गया और खड़ा हो कर आंटी की गर्दन के नीचे एक हाथ लगाया और दूसरा उनके घुटनों के नीचे डाला और आंटी को उठा लिया।

हालाँकि आंटी का वजन भी काफी था और वो भरी भरकम थीं, पर अब जब मैंने उन्हें उठा लिया था तो अब छोड़ने से बेइज़्ज़ती वाली बात थी।

आंटी ने भी अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन में डाल कर मुझे पकड़ लिया और मैं उन्हें ऐसे ही उठा कर उनके बैडरूम में ले गया और जाकर बैड पर एकदम से उन्हें झटके से लिटा दिया।

उनको वहाँ पर लिटाते ही मैं भी उनके साथ ही लेट गया और मैंने अपना एक हाथ उनके कमीज में डाल दिया और दूसरा उनकी सलवार में डाल कर उनकी चूत को सहलाने लगा, जिस पर बहुत ही कम और छोटे-छोटे बाल थे, जैसे कि एक-दो दिन पहले ही झांटें काटी हों। उनके बाल कुछ कड़े से थे और उन पर हाथ फेरते हुए ऐसे लग रहा था जैसे किसी गंजे की चाँद पर हाथ फेरने से एहसास होता है।

मुझे बहुत ही अच्छा लगा रहा था और आंटी के मुँह से लगातार सिसकारियाँ और आअह्ह्ह उउह्ह… उउउह्ह्ह्ह… की आवाज़ें आ रही थीं।

अब आंटी ने अपने दोनों हाथ बढ़ाए और मेरी टी-शर्ट को ऊपर को खिसकाना शुरू कर दिया।

उनके ऐसा करते ही मैं फटाफट उठा और अपनी टी-शर्ट बिल्कुल ही उतार दी और आंटी की कमीज भी उतार दी।

अब आंटी के बड़े-बड़े चूचे सफेद ब्रा में कैसे हुए बड़े ही मस्त लग रहे थे।
मुझ से सब्र नहीं हो पा रहा था और मैंने ऐसे ही उनकी ब्रा को ऊपर की तरफ़ खींचा तो आंटी भी उठकर बैठ गईं और अपनी ब्रा को भी उतार डाला।

अब हम दोनों ऊपर से बिल्कुल नंगे थे और आंटी के मम्मे.. अय..हय.. क्या बताऊँ! एकदम गोरे और उन पर एक रुपए के सिक्के जितना बड़ा गोल हल्के भूरे रंग का घेरा और उसी रंग के एकदम टाइट.. छोटे अंगूर के साइज के निप्पल… एकदम से कड़े.. बहुत ही अच्छे लग रहे थे।

मैंने आंटी के मम्मों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया और आंटी की सलवार का नाड़ा भी खोल दिया।

मैंने अपना हाथ पूरे ज़ोर से उनकी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया।

अब आंटी की सिसकारियाँ ऊँची चीखों में बदल चुकी थीं ‘हायएए एएएएएए ओ गॉड हाय.. मर गई आआ आह्ह्ह ह्ह्ह!’

आंटी ने अपने चूतड़ ऊपर को उठा दिए और मैं भी समझ गया कि अब सलवार उतारनी है।
आंटी बड़ी बुरी तरह से मचल रही थीं। मैंने भी देर न लगाते हुए तुरंत उनकी सलवार उतार दी और अपनी पैन्ट और अंडरवियर भी एक साथ ही उतार दिए।

आंटी ने नीले रंग की पेंटी पहनी हुई थी, जो कि अब ज़्यादा देर तक उनके शरीर पर रहने वाली नहीं थी और वो भी चूत वाली जगह से थोड़ी सी गीली हो चुकी थी।

अब मैंने देर न करते हुए आंटी की पेंटी भी उतार डाली और अब हम सिर्फ एक मर्द और औरत थे, न वो आंटी थी और न ही मैं उनके पड़ोस में रहने वाला बच्चा!

मैंने आंटी से पूछा- अब कैसे करना है.. मैंने तो इससे पहले कभी नहीं किया है।
तो आंटी बोलीं- मेरे पूरे बदन पर चुम्बन करो मेरी जान.!

और मैंने धीरे-धीरे आंटी के मम्मे छोड़ कर उनकी गर्दन, कंधे, बगलों के अंदर की तरफ, पसलियों पर और पेट पर चूमना शुरू कर दिया बल्कि चूसना भी शुरू कर दिया।

आंटी की बेचैनी देखने लायक थी। अचानक आंटी ने मुझे धक्का देकर नीचे गिरा लिया और मेरे ऊपर आकर मुझे भी पूरे शरीर पर चूमना और चूसना शुरू कर दिया।

मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि वक्त यहीं पर रुक जाए और ये क्रियाएँ कभी ख़त्म न हों।

मुझे बड़े जोर का झटका लगा, जब आंटी ने मेरा पेट चूमते-चूमते अचानक मेरा लन्ड पकड़ लिया और अपने मुँह में भर कर चूसने लगीं।

अब सिसकारी निकालने की बारी मेरी थी और मेरी उत्तेजना की कोई सीमा ही नहीं थी।

मैं बोला- आंटी मेरा काम तो ऐसे ही हो जाएगा!

तब आंटी ने मेरा लण्ड अपने मुँह से निकाल दिया और मुझे ऊपर आने को बोला।

मैं जैसे ही उनके ऊपर आया, उन्होंने मेरा लण्ड अपने हाथ से पकड़ कर अपनी चूत पर रखा।

जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि मेरा लन्ड करीब साढ़े छह इंच लम्बा है, पर मोटा ज़रा ज़्यादा है।

मैंने जैसे ही उनकी चूत में धक्का मारा तो मेरा लण्ड करीब आधे के आसपास उनकी चूत में घुस गया और मुझे ऐसा लगा जैसी किसी गरम चीज़ में मेरा लण्ड फंस गया हो।
उधर आंटी के मुँह से आवाज़ आई- आआ आआअह्ह्ह माँ, मैं मर गई!’
और वो कुतिया की तरह रिरयाई- शिव ज़रा धीरे मेरी चूत में दर्द हो रहा है!’

यह बात सुन कर मुझे बहुत हैरानगी हुई कि ये शादीशुदा चुदक्कड़ है, फिर भी दर्द?

मेरे पूछने पर वो बोली- तुझे तो पता है कि तेरे अंकल को ‘यूएस’ गए हुए दो साल हो गए हैं और मैं दो साल से बिल्कुल प्यासी हूँ।

मैंने इसके बाद उनके मम्मे चूसने शुरू कर दिए और आंटी का भी दर्द का एहसास कुछ काम हो गया।

थोड़ी देर तक तो मैं धीरे-धीरे आगे-पीछे होता रहा, पर ये तो सभी जानते हैं कि चूत में लण्ड घुसाने के बाद सब्र किससे होता है, तो मैंने भी जोश में भर कर पूरे ज़ोर का धक्का मार कर अपना पूरा लण्ड उनकी चूत में ठूँस दिया।

आंटी की माँ चुद गई, वो ऐसे छटपटाई जैसे उनकी चूत में रामपुरी चाकू घुसेड़ दिया हो।

वो एकदम से फ़ड़फ़ड़ाई- अबे मार डाला… हरामी!’

पर अब मैंने उनकी सुनी अनसुनी कर दी और पूरे ज़ोर से धक्के लगाने लगा।

करीब 3-4 मिनट तक तो उनके चेहरे पर दर्द के भाव दिखते रहे, पर धीरे-धीरे उनकी आँखें मुंदने लगीं और नीचे से कमर भी हिलने लगी तो मैं समझ गया कि अब आंटी को दर्द नहीं हो रहा बल्कि मजा आ रहा है, तो मैंने भी पूरा जोर लगा कर धक्के मारने शुरू कर दिए।

यह कुछ इस तरह का मजा था कि मेरी आँखें भी अपने आप ही बंद होने लगीं और मजा इतना आ रहा था कि मेरे पास बयान करने के लिए शब्द ही नहीं हैं।

लगभग दस मिनट की चुदाई के बाद आंटी का शरीर अकड़ने लगा और उन्होंने मुझे बहुत कस के भींच लिया और फिर करीब डेढ़-दो मिनट तक ऐसे ही रहने के बाद उनका शरीर ढीला पड़ने लगा।

वो बोली- अरे मैं तो गई… मेरी जान… मेरा तो हो गया!

इधर मेरा भी होने ही वाला था, तो मैं बोला- आंटी बस मेरा भी होने वाला है!

और ये बोलते-बोलते ही मेरे लण्ड ने एकदम से प्रेशर के साथ अपना माल आंटी को चूत में ही छोड़ दिया। झड़ने के बाद मैं एकदम से निढाल सा हो कर आंटी के सीने पर ही लेट गया और शायद सो सा गया।

करीब 10 मिनट तक ऐसे ही रहने के बाद मैं थोड़ा सा होश में आया तो देखा की लण्ड तो सिकुड़ कर बाहर निकला आया था और आंटी अभी भी आँखें मूँदे पड़ी थीं और सोती हुई बहुत ही प्यारी लगा रही थीं।

हम दोनों का माल चूत में से निकल कर आंटी की गांड पर से होकर गिर रहा था।

मैंने देखा तो 12:25 हो रहे थे और एक बजे उनके बच्चे स्कूल से आ जाते थे।

मैंने आंटी को हिला कर उठाया और बोला- आंटी आपके बच्चों का स्कूल से आने का टाइम हो गया है।

मेरे ऐसा बोलते ही आंटी चिहुंक कर उठ गईं और बाथरूम में गईं और मुझे भी अंदर बुला लिया और बड़े प्यार से मेरा लण्ड साफ़ किया और अपनी चूत भी धोई और फटाफट अपने कपड़े पहने और मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए।

आंटी बोलीं- तुम बहुत अच्छे बच्चे हो.. मेरी जान.. आज शाम को भी आना।

उसके बाद मैंने बहुत बार आंटी की चूत ली और कई बार तो वो बीमारी का बहाना कर के मेरी मम्मी से बोल कर मुझे रात अपने घर पर सुलाती थीं। तब हम दोनों बड़े मज़े लेते रहे।

यह सिलसिला करीब 3 साल तक चला। फिर मैं आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गया।

पर अब भी जब आगरा जाता हूँ तो मौका देख कर आंटी को चोद लेता हूँ।

मेरे ग्रेजुएट होने तक आंटी मेरे और मेरी खुराक का बहुत ध्यान रखती थीं।

इसके बाद और भी कई लड़कियों और भाभियों की ली और आंटी की दी हुई ट्रेनिंग मेरे बहुत काम आई।

वो सारी कहानियाँ फिर कभी मौका मिलने पर आप लोगों के साथ शेयर करूँगा।

आप लोगों की अमूल्य राय की प्रतीक्षा रहेगी, क्योंकि पाठकों की राय से लेखक को प्रेरणा भी मिलती है और वह अपनी कृतियों को और सुधारने की कोशिश भी करता रहता है।
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