पेशाबघर

रंगबाज़ 2014-07-11 Comments

रंगबाज़
आज मैं आप सबको सत्य घटना पर आधारित कहानी सुनाने जा रहा हूँ। बस इसे रोचक बनाने के लिए मैंने इसमें थोड़ा सा मिर्च-मसाला लगा दिया है।
मुझे कुछ दिनों पहले पता चला कि हमारे शहर के मुख्य बस अड्डे के कोने में एक पुरुषों का शौचालय है जहाँ हमेशा समलैंगिक मर्द और लड़के घुसे रहते हैं।
बस, आव देखा न ताव, मैं अपनी बाइक लेकर करके सरकारी बस स्टैण्ड पहुँच गया।
पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने के बाद मैं वो शौचालय ढूँढने लगा।
अपनी जानकारी के मुताबिक घूमते-घूमते मैं बस स्टैण्ड के पिछवाड़े, निर्जन से कोने पर पहुँचा। वहाँ पर यात्रियों के बैठने के लिए कंक्रीट का शेड बना हुआ था, साथ में एक पान की गुमटी थी।
शेड भी खाली पड़ा था, सिर्फ पान की गुमटी के पास तीन चार लोग थे। उस समय साँझ का झुटपुटा हो चुका था। वहाँ रोशनी के सिर्फ दो स्रोत थे- एक गुमटी में लटका सी एफ एल, दूसरी शेड में टिमटिमाती ट्यूबलाइट।
एक आधा लोग शेड पीछे भी घूम टहल रहे थे। मेरी जानकारी मुताबिक मैं सही जगह आया था।
मैं ढूंढते हुए उस शौचालय तक आ गया- बिलकुल शेड के पीछे, न कोइ भीड़ न आवाज़। वो लोग जो शेड के पीछे खड़े थे, मुझे घूरने लगे। मैं समझ गया कि वो भी उसी फ़िराक में थे जिसमे मैं था।
अंदर घुसा तो अँधेरा था, बस बाहर की मद्धिम रोशनी से थोड़ा बहुत सुझाई दे रहा था। मैंने देखा कि मूतने वाले चबूतरे पर कुछ मर्द और लड़के खड़े थे।
अंदर सब-कुछ वैसा ही था जैसा एक सार्वजनिक शौचालय में होता है- हर तरफ़ गन्दगी, पेशाब की तेज़ दुर्गन्ध, जले हुए बीड़ी-सिगरेट के टुकड़े, दीवारों पर पान-तम्बाकू का थूक।
मैं भी मूतने मुद्रा मे खड़ा हो गया, अपनी जींस की ज़िप खोल लौड़ा बाहर निकाल लिया।
मैंने देखा कि वहाँ कोई मूत-वूत नहीं रहा था, सब या तो एक दुसरे का लौड़ा सहला रहे थे या फिर अपना सहला रहे थे।
तभी मैंने देखा कि चबूतरे के छोर पर खड़े दो लड़के एक दूसरे से लिपट गए। शायद मेरे आने से पहले वो आपस में चूमा-चाटी में जुटे हुए थे, मुझे देख कर ठिठक गए।
उन्होंने देखा की मैं भी अपना लण्ड निकाले हिला रहा हूँ, वो आश्वस्त हो गए और अपनी चूमाचाटी में जुट गए।
उनके होंट चूसने की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से आ रही थी। वो एक दूसरे से बेल की तरह लिपटे प्यार करने में मगन थे।
मेरा भी मन किया कि काश मैं भी इसी तरह किसी से लिपट कर चुम्बन करता।
तभी मैंने महसूस किया कि कोई मेरा लौड़ा सहला रहा है, देखा मेरे बगल खड़ा एक अधेड़ उम्र का आदमी मेरे लौड़े से खेल रहा था।
मुझे घिन आई और मैंने अपना लण्ड वापस खींच लिया और चबूतरे से नीचे उतर गया।
मैंने गौर किया कि नीचे भी तीन-चार लड़के खड़े थे, दो बस खड़े ताड़ रहे थे और तीसरा तो अपना लण्ड बाहर निकाले ऐसे खड़ा था मानो अभी किसी को चोद देगा।
मैंने हल्की हल्की रोशनी में देखा में देखा कि उसका लन्ड बहुत बड़ा था, करीब नौ इंच का तो ज़रूर रहा होगा, साथ में मोटा भी बहुत था।
वो मुझे अपने लण्ड को देखता पाकर मेरी तरफ मुड़ गया और अपना लण्ड ऐसे तान दिया जैसे कि वो मेरे लिए ही अपना लौड़ा खोल कर वहाँ खड़ा हो।
वो लगभग बाइस- तेईस साल का रहा होगा, कद काठी और लम्बाई औसत थी, रंग साँवला था।
अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसका लन्ड हाथ में ले लिया। बस इतना करना था कि वो मुझसे लिपट गया और अपने होंट खोल कर मेरी तरफ बढ़ा दिए।
मेरे भी सब्र का बाँध टूट गया गया और अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए।
फिर हम रुके नहीं, एक दूसरे से लिपटे बस एक दूसरे के होंठ चूसने में मगन हो गए। वो मेरे होटों को ऐसे चूस रहा था जैसे कोई रसीला फल चूस रहा हो। वैसे मेरे होंठ भी पतले और मुलायम हैं। मेरा पुराना बायफ्रेन्ड तो चबाने लगता था।
मेरी किस करने की ख़्वाहिश भी पूरी हो गई, मुझे बहुत अच्छा लगता था अगर कोई मुझे बाँहों में भर के देर तक चूमे।
अब उस पेशाबघर में हमारे चुम्बन करने की आवाज़ गूँज रही थी सड़प… सड़प… सड़प !!
वो मेरे होंठ चूसता मेरे ऊपर अपना गदराया लौड़ा रगड़े जा रहा था, उसे होंठ चूसना ढंग से आता था, मुझे तो वो अपने होंठ चूसने का मौका ही नहीं दे रहा था, बस मेरे ऊपर हावी होटों का रस पी रहा था।
मैं अपने होटों का तालमेल उसके होटों से मिलाते हुए उसके लण्ड को टटोलने लगा।
ज्यों ही मैंने उसका लौड़ा अपनी मुट्ठी में लिया अचानक से मेरे कानों में फुसफुसाया- चूसो…!
उसके लहज़े में हवस और बेसब्री टपक रही थी। मुझसे भी अब नहीं रहा जा रहा था, दो हफ्ते हो गए थे, मैंने लौड़ा नहीं चूसा था।
मैंने उसके लण्ड पर ध्यान केन्द्रित किया, वो मुझे कन्धों से दबा कर नीचे बैठाने लगा। मैं हिचकिचाया इतने सारे लोगों को देख कर।
“अरे कुछ नहीं होगा… यहाँ सब चलता है !” उसने समझाया।
तभी मैंने देखा की पहले वाले दो लड़के जो दूसरे कोने में खड़े चूमा-चाटी कर रहे थे, अब चुदाई कर रहे थे, खुले आम।
उनमे से एक दीवार पर पंजे टिकाये झुका हुआ था, उसकी पैंट और जाँघिया नीचे घिसट आये थे, उसका साथी उसकी कमर थामे उस पर पीछे से जुटा हुआ था, बाकी लड़के और मर्द भी आपस जुटे हुए थे- कोई एक दूसरे के लण्ड को सहला रहा था, कोई किसी से लिपटा पड़ा था और कोई किसी का लौड़ा चूस रहा था।
वैसे इन लोगों में एक आध ऐसे भी लोग थे जिन्हे अपनी हवस मिटाने के लिए कोई नहीं मिला था और वो तरसते हुए बस तमाशा देख रहे थे, मसलन वो बुड्ढा जिसने मेरे लंड से छेड़-छाड़ करी थी।
उनकी बेशर्मी और हवस देख कर मेरी भी हिम्मत बनी और मैं उसके सामने पंजों के बल बैठ गया और उसका गदराया लौड़ा मुंह में लिया।
अब मुझे उसके लण्ड का ठीक-ठीक आकर पता चला- साला बहुत तगड़ा था!!
लम्बाई करीब नौ इंच और ज़बरदस्त मोटा, जैसे खीरा, उसका सुपारा भी फूल कर उभर आया था, उसमें मूत और वीर्य की मिली-जुली गंध आ रही थी।
सच बताऊँ तो मुझे यह गंध बहुत अच्छी लगती है, मैं अपने बॉयफ्रेंड को हमेशा लण्ड धोने से इसीलिए मना करता था।
उसका लौड़ा हल्का सा मुड़ कर खड़ा था, साँवला उस पर रंग बहुत जँच रहा था।
उसका सुपारा गुलाबजामुन की तरह रसीला और मीठा लग रहा था और मानो कह रहा हो- मुझे प्यार करो, मुझे अपने मुँह में लेकर चूसो… !
मैंने अब चूसना शुरू कर दिया। मेरे गरम-गरम गीले मुंह स्पर्श पाकर उसके मुँह से आह निकल गई- आह्ह… उफ्फ… ह्ह्ह !!!
बहुत रसीला लौड़ा था साले का… मज़ा आ गया !
मैं तो शर्म हया सब ताक पर रख कर उसका मोटा रसीला लौड़ा चूसने लगा।
आसपास के लोग सब मुझे लौड़ा चूसते हुए देख रहे थे। सच बताऊँ तो अब उनके देखने से शर्म और हिचकिचाहट के बजाये रोमांच की अनुभूति हो रही थी।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं कोई छोटा बच्चा हूँ और आसपास के बच्चों को अपनी बड़ी सी चॉकलेट दिखा-दिखा कर अकेले खा रहा हूँ। पर यह तो लण्ड था, चॉकलेट से लाख गुना कीमती और मज़ेदार।
मैं अब पूरा मस्त होकर दोनों हाथ उसकी जाँघ पर टिकाये, इत्मिनान से चूसने में मशगूल था जैसे कोई गर्मी का थका हरा आदमी छाँव में बैठ कर कुल्फी खाता हो।
उसका लण्ड मेरी थूक में नहा कर बाहर की मद्धिम रोशनी में चमक रहा था।
मेरी जीभ उसके लण्ड का रगड़ रगड़ कर दुलार कर रही थी। बहुत प्यार से मैं उसका लंड चूस रहा था कि मुझे लगा कोई और भी मेरे बगल खड़ा है। देखा कि एक आदमी अपनी ज़िप खोल कर, खड़ा हुआ लौड़ा बाहर निकाले खड़ा था, उसने हल्के से अपना लण्ड मेरे चेहरे पर सहलाया और मुझे चूसने को कहने लगा- मेरा भी चूस दे !
अब मैं और मेरा साथी परेशान हो गए। कोई पीछे से मेरी गाण्ड भी टटोल रहा था, साली फालतू जनता हमें चुसाई नहीं करने दे रही थी।
तभी मेरा साथी बोला- उठ जाओ, बाहर चलते हैं !
मैं खड़ा हो गया, उसने झट से अपना लण्ड अंदर किया, ज़िप बंद की और मुझे पकड़ कर बाहर ले गया।
अब तक पूरा अँधेरा हो चुका था।
“यहाँ पीछे की तरफ बेकार पड़ी बसें खड़ी हैं। बिल्कुल सुनसान अँधेरा… वहीँ चलते हैं।”
मैं उसके पीछे हो लिया। अब मैं भी वहाँ से निकलना चाहता था। मैं नहीं चाहता था की कोई मेरी लण्ड चुसाई में बाधा डाले, खासकर तब जब इतना बड़ा लौड़ा मिला हो चूसने को।
हम दोनों बातें करते जा रहे थे, एक दूसरे का परिचय भी किया- कहाँ के रहने वाले हो?
“ग्वालियर… तुम?” मैंने पूछा।
“मैं इटावा का हूँ। यहाँ अक्सर आते हो?” उसने मुझसे पूछा।
“नहीं, आज पहली बार आया हूँ।”
” अच्छा, यार, तुम्हारे होठ तो बहुत रसीले हैं। मज़ा आ गया चुसवा कर !”
मैं शरमा कर मुस्कुराने लगा।
” यार तुम सुन्दर भी बहुत हो !” वो फिर बोला।
शायद मुझे पटा रहा था, गाण्ड मरवाने के लिए। वैसे अब बाहर आने पर हम रोशनी में एक दूसरे को थोड़ा ढंग से देख सकते थे।
मैंने अब बात पलटी- तुम्हें क्या क्या पसंद है इस सब में?
“मुझे एक तो किस करना बहुत पसंद है, तुम देख ही चुके हो। मुझे लण्ड चुसवाना और अंदर डालना भी पसंद है।”
हम यूँ ही बतियाते हुए उस जगह आ गए जहाँ बेकार पड़ी बसें खड़ी थीं। बिल्कुल अँधेरा था, बस सड़क और बस अड्डे से आती रोशनी से कुछ-कुछ सुझाई दे रहा था।
करीब 15-20 बसें क्षत-विक्षत हालत में खड़ी थीं, शीशों, खिड़कियों पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी।
मैं थोड़ा हिचकिचाया क्यूँकि मुझे ऐसी जगहों पर जाने की आदत नहीं थी और मैंने तो यह भी सुना था कि ऐसी जगहों पर नशेड़ी-भंगेड़ी भी घूमते रहते हैं।
वो मेरी हिचकिचाहट भाँप गया- अरे डरो नहीं… यहाँ कोई नहीं आता !
मेरी हवस मेरे डर पर हावी हो गई। उस लड़के ने एक बस छाँटी और मुझे लेकर उसमें घुस गया।
मैं बस के अन्दर की हालत को देख रहा था- टूटी फूटी स्टीयरिंग, टूटी फूटी सीटें, सीटों के गद्दे उखड़े हुए, हर तरफ धूल की मोटी सी परत, कोनों में जाले लगे हुए।
मैं यह सब देख ही रहा था कि उसने मुझे अपनी ओर खींचा और पहले की तरह मेरे होटों पर अपने होंठ रख दिए।
मैं भी अपने नए प्रेमी से लिपट गया और इत्मिनान से किस करने में जुट गया।
हम दोनों बड़ी देर तक उसी तरह, एक दूसरे से लिपटे हुए, एक दूसरे को सहलाते हुए दूसरे के होटों का रस चूसने में लगे हुए थे।
हमारे किस करने की आवाज़ से वो खचाड़ा बस भर गई थी- स्लर्प… स्लर्प… स्लर्प… !!!
मेरे हाथ उसका लण्ड टटोलते-टटोलते नीचे पहुँच गये। जैसे ही मेरा हाथ उसके लौड़े पर गया, उसने झट से अपनी ज़िप खोल कर अपना लण्ड मुसण्ड बाहर निकाल दिया, किसी रेडियो के एन्टीना की तरह तन कर खड़ा था।
उसने मुझे कंधों से दबा कर नीचे बैठा दिया, मैं उसके लण्ड के सामने पंजों के बल बैठ गया। मेरे बैठते ही उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।
मैं फिर से चूसने में मशगूल हो गया। मैं ऐसे खुश था जैसे किसी बच्चे को बड़ी सी लॉलीपॉप मिल गई हो। मैं स्वाद ले-लेकर कर उसका मोटा गदराया लण्ड चूस रहा था। उसका सुपारा ऐसे फूल गया था जैसे गुलाबजामुन।
मैं लण्ड के हर हिस्से को चूस रहा था, कभी ऊपर से, कभी नीचे से, कभी बगल से ! फिर मैंने उसकी गोलियों को चाटना शुरू कर दिया। जैसे ही मेरी गीली-गीली, गुनगुनी मुलायम जीभ ने उसकी गोलियों को सहलाना शुरू किया, मेरे साथी के मुँह से एक मदमाती सी आह निकल गई- आअह्ह्ह्ह्ह !!!
ऐसे जैसे उसे न जाने कितना आनन्द आ रहा हो।
मैंने अब उसकी जाँघों और गोलियों के जोड़ को चाटना शुरू कर दिया। उसकी मदमाती आहों और सिसकियों का सिलसिला ख़त्म ही नहीं हो रहा था- उफ्फ्फ… आअह्ह…सीईईइ… !!
बहुत मज़ा आ रहा था उसे, उसने अपनी टाँगें फैला कर कमर नीचे कर ली थी जिससे उसकी जांघें और खुल जाएँ और मेरी जीभ उसकी जाँघ के हर कोने तक पहुँच सके।
मैं थोड़ी देर तक उसकी गोलियाँ और जाँघों के जोड़ों पर अपनी जीभ फिराता रहा।
फिर वो बोला- यार अब लण्ड चूसो !
मैं फिर से उसका चूसने लगा। सच बताऊँ तो मुझे गोलियों से ज़्यादा मज़ा लौड़ा चूसने में आता है। लेकिन अब मैं उस तरह बैठे-बैठे थक गया था।
थोड़ी देर तक उसका लण्ड चूसता रहा, फिर खड़ा हो गया।
“क्या हुआ?” उसने पूछा, वो पूरे मूड में था, इस तरह की रुकावट उसे पसन्द नहीं आई।
“यार, ऐसे बैठे-बैठे थक गया हूँ।”
“अच्छा, तो चलो तुम्हारे अंदर डालूँ?” अब वो चोदने के मूड में था।
मैं उसके मेरे अंदर घुसेड़ने के प्रस्ताव से थोड़ा डर गया था, मैंने आज तक इतना बड़ा नहीं लिया था। हालांकि मैं अपने बॉयफ्रेंड से कई बार चुद चुका था लेकिन उसका लण्ड औसत था, इसके अफ़्रीकी छाप लौड़े की तरह नहीं था।
“कण्डोम है?”
“नहीं यार, कण्डोम तो नहीं है।” उसके जवाब से मुझे थोड़ी राहत मिली।
“यार, मैं बिना कण्डोम के बिल्कुल नहीं डलवाता !” मैंने साफ़ इनकार कर दिया।
अब वो मेरी शकल देखने लगा- तो फिर चलो चूसो।
उसने फिर अपना लण्ड मेरे सामने तान दिया और मैं फिर उसका लौड़ा चूसने में मस्त हो गया। ऐसा मोटा-ताज़ा, गदराया, रसीला लण्ड-मुसण्ड किस्मत से ही मिलता है।
“सपड़ … सपड़ … सपड़ … !!!”
वो फिर से मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरने लगा…
मैंने गर्दन घुमा कर उसे एक पल के लिए देखा- आँखें बंद कर मुँह खोले, आनन्द के सागर में डूबता चला जा रहा था।
थोड़ी देर बाद वो चरम सीमा पहुँच गया और झड़ने लगा, उसने मेरा सर ज़ोर से भींचा, और पूरा का पूरा का लण्ड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। उसका सुपारा सीधे मेरे हलक आ लगा। अगले ही पल वो झड़ने लगा, उसका वीर्य मेरे गले में गिरने लगा।
मैं उसका वीर्य नहीं पीना चाहता था और अपना सर छुड़ाने लगा, लेकिन उस हरामी ने मेरा सर पकड़े रखा और अपना पूरा वीर्य मेरे गले में गिरा दिया। वो झड़ते हुए हल्के-हल्के सिसकारियाँ भी ले रहा था- आह्ह्ह… आह्ह्ह… स्सीईईईई… ओह्ह्ह… !!!!
वो झड़ भी गया उसके बाद भी उसी तरह मेरा सर दबोचे, अपना लण्ड घुसेड़े खड़ा रहा, उसकी झाँटे मेरे मुँह में घुसने लगी।
मैंने किसी तरह अपना सर अलग किया, उसका हरामी लौड़ा मेरी थूक में सराबोर उसी तरह तन कर खड़ा था।
मैं उठा और अपने कपड़ों पर से धूल झाड़ने लगा। अब मेरा वहाँ से भागने का मन कर रहा था, मैं जाने के लिए तैयार हुआ, वो उसी तरह अपना लौड़ा निकाले मुझे घूर रहा था।
“क्या हुआ?” मैंने उससे पूछा।
वो मेरे करीब आ गया और मुझसे लिपट गया- यार मज़ा आ गया। क्या चूसते हो… तुम्हारे अंदर डालने का बहुत मन है, तुम्हें चोदता जाऊँ और किस करता जाऊँ !
हम दोनों फिर से चुम्बन करने लगे, उसके चूमने का अंदाज़ बहुत मस्त था, मेरा बस चलता तो उससे यूँ ही लिपटा देर तक उसके होंठ चूसता रहता और अपने होंठ चुसवाता रहता। हम करीब दस मिनट एक दूसरे के होठ चूसता रहे, फिर मेरा फोन बज उठा। मेरा भाई फोन कर रहा था।
अब मैंने वहाँ रुकना ठीक नहीं समझा और जल्दी से भाग निकला।
फोन पर बातें करता, टहलता हुआ मैं उस जगह से दूर पूरी पब्लिक के बीच गया।
जब बात ख़त्म हुई तो मैंने ध्यान दिया और उस लड़के को ढूँढने लगा लेकिन वो न जाने कहाँ विलीन हो गया था।
मुझे अपने आप पर गुस्सा आया, बिना उस पर ध्यान दिए, फोन बातें करता मैं कहाँ चला आया।
मैं फिर से उस शौचालय में गया और फिर उन बेकार पड़ी ज़ंग खाती बसों के बीच, लेकिन वो वहाँ नहीं था, शायद वो वहाँ से जा चुका था।
काश, मैंने उसका मोबाइल नंबर ले लिया होता…
उस दिन के बाद से कई बार मैं उससे मिलने की उम्मीद में उस गन्दी जगह पर गया, पर वो फिर नहीं मिला।
रंगबाज़
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