सेक्स कहानी प्यार में दगाबाजी की-3

(Sex Kahani Pyar Me Dagabaji Ki- Part 3)

रियल सेक्स स्टोरी का पहला भाग : सेक्स कहानी प्यार में दगाबाजी की-1
कहानी का दूसरा भाग : सेक्स कहानी प्यार में दगाबाजी की-2

अब तक की रियल सेक्स स्टोरी में आपको मालूम हुआ था कि आज मेरी गैंग बैंग चुदाई की कहानी का खेल शुरू होने वाला है. हम सभी नाच रहे थे.
अब मजा लीजिएगा.

हमें नाचने में बहुत मजा आ रहा था.. तभी पीछे से राजीव मुझसे सट कर डांस करने लगा.. मुझे कुछ असहज लगा, मैं उससे दूर जाने को बोली, मगर वो नहीं माना तो मैंने महेश से कहा और महेश ने उसको हटा दिया.
उसके बाद कुछ देर ये नाचना चलता रहा और सब थक कर बैठ गए.

फिर डांस के बाद सब बैठ के बियर पीने लगे. मैंने भी पी.. मुझे नशा होने लगा, जिसका फ़ायदा सबने उठाया और मेरे सामने गोलाई में सब बैठ गए.

महेश बोला- दिव्या मुझसे प्यार करती हो?
मैं बोली- हां..
तो उसने बोला- किस मी.
मैंने बोला- सबके सामने?
तो उसने बोला- हां.

मैंने ना नुकुर की, मगर महेश ने प्यार का वास्ता दिया, तो मैंने ओके बोल दिया और हम दोनों सबके सामने किस करने लगे. हमारी किस करीब 7-8 मिनट लगातार चली.. बाकी सब गर्म हो गए तो सबने शर्ट जींस आदि कपड़े उतार दिए. अब वो सब केवल सब गंजी और अंडरवियर में थे. जब हमारी किस टूटी तो मैं उन सबको देख कर चौंक गई. मैंने बोला कि ये सब क्या है?

तो महेश हंसने लगा और उसके साथ सभी हंसने लगे और मैं डर गई.

दिव्या- प्लीज़ महेश, मुझे ऐसा मजाक पसंद नहीं.. बोलो क्या है ये सब?
महेश- अरे दिव्या तुम इतनी टेंशन क्यों ले रही हो.. तुम्हारे बर्थ डे के लिए हमने एक स्पेशल प्रोग्राम बनाया है.. बस ये सब इसी लिए ऐसे अधनंगे बने हैं
दीपक- हां यार दिव्या, तुम तो ऐसे बिहेव कर रही हो.. जैसे हम तुम्हें अभी के अभी मारने वाले हैं
दिव्या- ल्ल..लेकिन ये गेम है क्या.. इससे क्या करना कहते हो तुम?

दीपक- अरे बहुत सिंपल गेम है दिव्या.. ये महेश बोलता है कि दिव्या मुझे हर हाल में पहचान लेती है. मेरे जिस्म का रोम रोम उसकी सांसों में बसा है, तो बस हम सब ऐसे हो गए और महेश भी ऐसे हो जाएगा. फिर तुम्हारी आँखों पे पट्टी बाँध कर टेस्ट लेंगे. देखते हैं कि तुम पहचान पाओगी या नहीं?
दिव्या- लेकिन ये सब तो कपड़े पहन कर भी हो सकता था.
योगेश- नहीं कपड़ों से नहीं.. बात जिस्म को टच करके पहचानने की है.

मुझे उनकी कोई बात समझ नहीं आ रही थी और बहुत अजीब लग रहा था, मगर बर्थ डे के दिन सबको नाराज़ नहीं करना चाहती थी, तो आख़िर मैंने उनकी बात मान ली और उन्होंने मेरी आँख पे पट्टी बाँध दी.

राजीव- हां तो सबसे पहले सब एक एक करके दिव्या को बियर पिलाएंगे.. देखते हैं कि हम सबमें ये महेश को कैसे पहचान पाती है. अगर पास हो गई तो ठीक नहीं दूसरा तरीका आजमाएंगे.
दिव्या- नहीं प्लीज़ मुझे नहीं पीनी.. पहले ही सर चकरा रहा है.
महेश- अरे यार कौन सा ग्लास भर के देने वाले हैं, बस थोड़ी थोड़ी ही देंगे.

अब मैं करती भी क्या.. उनकी बात माननी पड़ी. एक एक करके सब मुझे बियर पिलाते गए, मगर मैं महेश को नहीं पहचान पाई और सब हंसने लगे. उसके बाद उन्होंने कहा- सब लाइन में खड़े हैं तू एक एक से गले मिलो और महेश को पहचानो. मैंने वैसा ही किया.

मैं पहले हाथ से टटोल कर योगेश के पास गई. उसके पास जाते ही वो मुझसे चिपक गया.
मैं थोड़ी घबरा गई और पीछे हट गई और कहा- तुम नहीं हो.

ऐसे ही दोबारा रवि के पास गई, उसने मुझे गले लगाया और मेरी कमर पे हाथ घुमाने लगा, मैंने उसको भी मना किया कि तुम भी नहीं हो.

उसके बाद दीपक के पास गई, वो आराम से मुझसे मिला तो मुझे लगा यही महेश है.. तो मैंने उसको कस के पकड़ लिया.
दिव्या- ये तुम ही हो ना महेश?
दीपक- ग़लत जवाब.. ये मैं हूँ दिव्या तुम्हारा दीपक हा हा हा.. तुम फिर फेल हो गईं.

सब हंसने लगे और मुझे बारी बारी गले लगाया. उस टाइम मुझे नशा चढ़ चुका था और मेरी सोचने समझने की ताक़त कम हो चुकी थी. मुझे मजा सा आने लगा था और नशे में मुझे ग्रुप सेक्स की फ़िल्में याद आने लगी थीं.

रवि- भाई ये गेम भी दिव्या हार गई, अब कुछ नया सोचो.
बीजू- यार सुना है ये दोनों किसिंग मस्त करते हैं तो उससे तो पक्का ये पहचान जाएगी ना.
दिव्या- न..नहीं याइ..ये तुम क्या कह रहे हो.. एमेम महेश इनको समझाओ ना.
महेश- कूल यार ये सब फ्रेंड्स हैं, इन्होंने आज कितनी मेहनत की है. अब बर्थ डे के दिन इनको नाराज़ करोगी क्या? चलो सब किस करो देखना मेरी दिव्या अबकी बार मुझे पक्का पहचान जाएगी.

बियर अपना काम कर चुकी थी शायद उसमें शराब या कुछ ऐसा भी मिलाया गया था, जिससे मेरी वासना बढ़ती जा रही थी और मैं उन सबके हाथों का खिलौना बन कर रह गई थी.

अब बारी बारी वो मेरे होंठों को चूस रहे थे और साथ ही साथ मेरे जिस्म पे हाथ घुमा रहे थे. कोई मेरे मम्मों को दबा देता, तो कोई मेरी गांड को दबा देता. इससे मुझे लगातार वासना की खुमारी चढ़ रही थी.

महेश- अरे बस भाई बस.. बेचारी को बोलने तो दो कौन इसका महेश है. ऐसे एक के बाद एक चिपके रहोगे तो ये कैसे पहचान पाएगी.
दिव्या- न..नहीं प्प..प्लीज़ महेश अब बहुत हो गया. मैं ऐसे कभी नहीं पहचान सकती.

सबके सब मेरी बात पे हँसने लगे तब सुदेश आगे आया और मेरा हाथ पकड़ कर खड़ा हो गया.

सुदेश- यार ऐसे ये नहीं पहचान पाएगी कुछ आसान करो, जिससे ये अपने महेश को पहचान सके.
राजीव- अब ऐसा क्या करें यार.. जो दिव्या को आसान लगे. अब ये बात तो महेश ही बता सकता है कि उसने दिव्या के साथ क्या क्या किया हुआ है और उस तरह हम नहीं कर सकते.
महेश- एक आसान तरीका है, मेरी दिव्या ने एक बार मेरा लंड चूसा था. अब सबके लंड तो एक जैसे होंगे नहीं.. तो ये आसानी से पहचान जाएगी और वैसे भी उस दिन इसको लंड चूसना बहुत पसंद आया था.

उनकी बातें सुन कर मैं गुस्सा हो गई मगर नशे की हालत में ज़्यादा कुछ बोल ना सकी. अभी मैं कुछ सोचती समझती, तब तक वो सब नंगे हो गए थे और गोल घेरा बना कर मुझे घेर लिया. सब अपने अपने लंड मेरे चेहरे पे होंठों पे रगड़ने लगे और बार बार कहने लगे, ‘पहले मेरा लंड चूस.. पहले मेरा लंड चूस..’ अब मेरी आँखों पे पट्टी थी, तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था मुझे कि क्या करूँ.

तभी किसी ने मेरे सर को पकड़ा और मेरे मुँह में अपना लंड धांस दिया और ज़ोर ज़ोर से झटके देने लगा और साथ ही साथ गालियाँ भी देने लगा. तब मुझे पता लगा कि ये सुदेश है, मगर मुझे वे लोग बोलने का मौका कहां दे रहे थे.. सबके सब कुत्तों की तरह मुझे खाने को बेताब हो रहे थे. एक का लंड चूसती, तभी दूसरा उसको हटा देता और अपना लंड घुसा देता.

ऐसे ही आधा घंटा तक सब बारी बारी से मुझसे अपने लंड चुसवाते रहे. सबके लंड मोटे और बड़े थे. जहां तक मुझे याद है सबके 7 और 8″ के ही लंड थे और सब बस मजा ले रहे थे.
खेल का तो नाम ओ निशान मिट गया. मुझे पहचानने का मौका ही नहीं दिया गया. बस एक ने निकाला और दूसरे ने घुसाया.

जब मैं सबके लंड चूस चुकी तो फिर उनकी शैतानी शुरू हो गई और वही घटिया बातें शुरू हो गईं.
राजीव- अरे यार दिव्या कितना आसान था.. तुम इसमें भी नहीं पहचान पाईं अब दीपक तू ही कोई आइडिया लगा यार जिससे ये पहचान सके.. मैं तो अलग अलग इम्तिहान देते देते थक गया हूँ.

वो कमीना राजीव तो ऐसे बोल रहा था जेसे ना जाने कितनी मेहनत करके थक गया हो. हरामी मज़े पूरे ले रहा था बस नाटक ऐसे कर रहा था, जैसे मैं कुछ समझ नहीं रही थी. वैसे भी उनके लंड चूसते चूसते मेरी चूत भी गीली हो गई थी या ऐसा कहना ठीक होगा उन हरामखोरों की हरकतें मुझे उत्तेज़ित कर रही थीं. मेरी चूत अब लंड मांग रही थी.

दीपक- यार महेश ने इसके पूरे जिस्म को रगड़ा था और मज़े से चूसा था. हम भी अगर वैसे करेंगे तो ये जरूर पहचान जाएगी. क्यों महेश क्या बोलते हो तुम?
महेश- अरे मैं क्या बोलूँगा.. आज दिव्या का बर्थ डे है.. तो तुमको जो अच्छा लगे, करो.
योगेश- वैसे महेश तूने कपड़े निकाल के मज़े लिए थे या बिना निकाले.
रवि- अरे यार बिना कपड़ों के कैसे मजा ले सकता है.. नंगी करके ही चाटा होगा साली को.. ओऊ सॉरी दिव्या को.

उनकी बातें मुझे और उत्तेज़ित कर रही थीं, अब मुझसे रहा नहीं गया तो मैं बोल पड़ी- कमीनों जो करना है कर लो और ये पट्टी नहीं चाहिए मुझे.. हटाओ इसको.. बहुत हो गया खेल.. अब जो करना है, खुल कर करो.

उस वक़्त मेरा दिमाग़ मेरे बस में नहीं था. वो तो बस वासना की कैद में था. वो सब भी तो यही चाहते थे. वे मुझे गोदी में उठा कर बिस्तर पे ले गए और भूखे भेड़ियों की तरह मुझपे टूट पड़े. मेरे कपड़े निकाल दिए. मैंने अन्दर रेड ब्रा पेंटी का सैट पहना हुआ था. उस अवस्था में देखकर उनके लंड फड़फड़ाने लगे. मेरे मम्मे भी अब ब्रा से आज़ाद होना चाहते थे. वो ख्वाहिश भी रवि ने पूरी कर दी.. और उधर राजीव ने मेरी पेंटी निकाल फेंकी.

अब मैं जन्मजात नंगी उन सबके सामने पड़ी थी और वो सब मुझ पर एक साथ ऐसे टूटे, जैसे मैं दुनिया की आख़िरी लड़की हूँ.. अब भगवान दुनिया खत्म करने वाला है, तो जितना मजा लेना है ले लो.

योगेश का लंड 7″ से ज़्यादा था. उसने अपने मोटे लंड को मेरे मुँह में धांस दिया और राजीव और रवि मेरे एक एक चूचे पे कब्जा जमा कर लेट गए और मेरे निपल्स को चूसने लगे. साथ ही मेरे कड़क मम्मों को दबा दबा के मजा लेने लगे.

सुदेश और दीपक मेरी दोनों जाँघों को चूस रहे थे, उनका इरादा चूत चूसने का था मगर वहां महेश पहले ही चिपका हुआ था. साले उस बीजू कमीने ने मेरी पीठ को टेढ़ा किया और मेरी गांड के छेद को चाटने में लग गया.

मैं क्या बताऊं 7 समुन्दर, 7 आसमान, 7 वचन, 7 बंधन और पता नहीं क्या क्या 7 हैं.. मगर जिंदगी में आज ये 7 लंड लिखे थे. उनके चाटने और चूसने से मैं पागल हो गई थी. मेरी चूत रिसने लगी थी और बहुत जल्द मैंने रस छोड़ दिया, जिसे सबने मिल बात कर चाट लिया.

दोस्तो, अब ये सब भी बहुत उत्तेज़ित हो गए थे और इनके लंड अब लोहे की तरह सख़्त हो गए थे.

योगेश- वाह दिव्या.. क्या चूत है तेरी क्या स्वाद है तेरे रस का.. मजा आ गया. अब बस तेरी चूत में लंड डालने को दिल कर रहा है और इसको अच्छे से ठोकने का मन कर रहा है जानेमन.
राजीव- हां यार, मैं तो साली की गांड मारूँगा.. देख तो कैसे गद्दे जैसी नर्म है और इसका छेद भी मस्त है.
महेश- अबे सालों लौंडिया पटाई मैंने.. और चूत तुम भोसड़ी के पहले मारोगे.. हटो इसकी चूत को मैं खोलूँगा, फिर बारी बारी सब मार लेना.
दीपक- तेरी बात सही है यार.. मगर तेरे बाद कौन करेगा, उसके बाद कौन… ये लफड़े वाली बात है ना.. तो इसका कोई आइडिया निकाल.

सुदेश- अरे सिंपल है.. यार पेपर पे 1 से 6 तक नंबर लिख लो और सबको मिक्स करके एक एक उठा लो. जिसके हिस्से में जो नंबर आएगा वो इस रंडी को वैसे ही चोदेगा.. क्यों ठीक है ना?
रवि- ये तो बहुत अच्छा आइडिया है.
राजीव- भाई मेरा कोई भी नंबर आए परवाह नहीं… जब तक महेश साली को चोदेगा, मैं तो इसके मुँह में लंड घुसा के रखूँगा… साली लंड चूसती मस्त है.
बीजू- तो मैं कौन सा पीछे रहूँगा.. मैं तो साली के चुचे चूसता रहूँगा.
महेश- अच्छा अच्छा जिसको जो करना है, सब बाद में कर लेना. पहले मुझे इसकी चूत को खोलने तो दो.
सुदेश- भाई रवि तू म्यूज़िक को थोड़ा बढ़ा दे.. अब दिव्या रानी की चीख निकलेगी हा हा हा हा हा हा.

महेश ने अपने लंड को पहले चूत पे रगड़ा, मेरी चूत तो पानी पानी हो रही थी अब उसमें बहुत ज़्यादा खुजली मची हुई थी. मेरे मुँह में लंड था तो मैं कुछ बोल भी नहीं सकती थी.

थोड़ी देर बाद महेश ने लंड को चूत पे सैट किया और जोरदार झटका मारा और आधा लंड मेरी चूत को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया. मेरी सील टूट गई और इतना दर्द हुआ मैं आपको बता नहीं सकती.
मेरी चीख निकली मगर अन्दर ही घुट कर रह गई.

महेश बहुत कमीना था, उसने एक ही झटके में लंड को वापस पीछे किया और पूरा चूत में घुसा दिया. अबकी बार मेरी आँखें चढ़ गईं, मगर उन कमीनों को कोई परवाह नहीं थी, वो तो बस मेरे जिस्म को रौंदे जा रहे थे.

महेश- आ आह.. साली रंडी.. दर्द हो रहा है ना.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… ले पूरा ले.. उस दिन का थप्पड़ भूला नहीं था मैं.. ले आज तो उससे भी ज़्यादा दर्द हो रहा है. अब क्यों नहीं मारती तू.. ले साली..
बीजू- हा हा हा साली रंडी को देखो.. कैसे तड़प रही है.. और तेज चोदो साली को.

लगभग 15 मिनट तक ये वहशी मेरे मज़े लेते रहे और मैं दर्द से तड़पती रही. उसके बाद मुझे थोड़ा मजा आने लगा और मैं भी कमर हिला हिला कर चुदने लगी.

राजीव के लंड ने आग उगल दी, उसका पूरा रस मेरे गले में उतर गया. मैंने पूरा गटक लिया. अब मैंने पूरी तरह खुद को उनके हवाले कर दिया था, वो सब मुझे चूम रहे थे, नोंच रहे थे. मैं बस उन पलों को एंजाय करना चाहती थी. आख़िर मेरी पहली चुदाई थी और ऊपर से बियर का नशा था.

महेश ने मेरी चूत में पानी छोड़ दिया. उसके बाद राजीव का नंबर था, उस कमीने ने मुझे घोड़ी बनाया मेरी गांड में अपनी उंगली से कोई जैली सी लगाई और अभी मैं कुछ समझ पाती कि उसने मेरी गांड में लंड घुसा दिया.

उस टाइम बीजू का लंड मेरे मुँह में था तो मैं चिल्ला ही नहीं पाई.. और राजीव मेरी गांड को चोदता रहा.

उसके झटके देने की स्पीड बढ़ती जा रही थी और मेरी चूत में फिर कम्पन शुरू हो गया था. मगर मैं कैसे उसको बोलती कि मेरी चूत में डालो और मेरी ये इच्छा दीपक ने पूरी कर दी.

दीपक- यार राजीव साली की गांड ही मारना है तो इसको मेरे लंड पर बैठा दे ताकि नीचे से मैं इसकी चूत मार सकूँ और तू पीछे से गांड का मजा लेते रहना.
बीजू- हां सही है.. मेरा पानी भी निकलने वाला है. साली के मुँह में भर दूँगा. चलो जल्दी से पोज़िशन बनाओ ताकि हरामजादी के सारे छेदों में लंड घुस जाएं.

दीपक ने मुझे लंड पे बिठाया और चोदने लगा. पीछे से मेरी गांड में लंड था और मुँह में भी था. अब तो बस ठुकाई चल रही थी.. मैं कितनी बार झड़ी मुझे याद भी नहीं.. और वो सब बारी बारी मुझे चोदते रहे. मेरी हालत खराब हो गई थी. मेरे जिस्म में बिल्कुल भी ताक़त नहीं बची थी. चुदते चुदते मैं बेहोश हो गई मगर वो हवस के पुजारी मेरे बेजान जिस्म से ही अपनी प्यास बुझते रहे और फिर थक हार कर मेरे आजू बाजू नंगे ही सो गए.

सुबह 8 बजे मेरी आँख खुली तो मेरे जिस्म में इतना दर्द था.. क्या बताऊं. मेरा एक एक अंग दर्द से भरा हुआ था और जिस्म पर इतने निशान उन कुत्तों ने बना दिए थे कि देख कर मुझे रोना आ गया. मेरी चूत और गांड पे अभी भी उनका वीर्य लगा हुआ था.

मेरी चूत और गांड इतनी सूज गई थी कि मुझसे हिला भी नहीं जा रहा था. जब मैंने उन सबको देखा तो सब बेसुध सोए पड़े थे. उनके लंड देख कर मुझे घिन आ रही थी, ना जाने कितनी बार उन्होंने मुझे चोदा होगा. मेरा मुँह भी चिपचिपा हो रहा था, कितनी बार उन कुत्तों ने मुझे अपने लंड का पानी पिलाया होगा. आज मुझे समझ आ रहा था कि ये प्यार नहीं, मेरे साथ प्यार में धोखा हुआ था. मगर दूसरे ही पल मैं सोचने लगी कि जो भी हुआ, इन सबने मेरी पहली चुदाई को यादगार बना दिया था. मैं बड़ी मुश्किल से उठी, अपने आपको ठीक किया और वहां से निकल गई.

दोस्तो, ये थी मेरी पहली गैंग बैंग चुदाई की कहानी, जिसमें प्यार के नाम पर मेरे साथ धोखा हुआ था.. उम्मीद है आपको ये पसंद आई होगी. अगर आई है तो प्लीज़ आप मेरी आईडी [email protected] पर मुझे कमेंट्स जरूर करना ताकि आगे भी मुझे लिखने का हौसला मिले. अगर ये रियल सेक्स स्टोरी आप सबको पसंद आएगी, तो अगली बार में एक नई कहानी आपको बताऊंगी क्योंकि उस दिन के बाद मेरे जीवन में और भी बहुत घटनाएं हुई थीं, जो अपनी नई कहानी में मैं आपको बताऊंगी. अभी के लिए विदा.

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