गणित का ट्यूशन-1

रवीश सिंह 2014-07-05 Comments

दोस्तो, हम सबकी चहेती अन्तर्वासना डॉट कॉम पर आप मेरी कहानियाँ पढ़ते और सराहते आये हैं उसके लिये आभार।
वैसे तो मैं अपनी एक कहानी लिख रहा था मगर एक पाठिका (और ऑनलाइन मित्र) रेखा के जीवन की घटना ने मुझे कई बार सोचने पर मजबूर किया। रेखा की कहानी उसी की जुबानी रख रहा हूँ।

मेरा नाम रेखा कोहली है और दिल्ली द्वारका-2 की रहने वाली हूँ।
बात उन दिनों की है जब मैं 12th में थी, यानी 18 साल की कमसिन उम्र।
मेरे पापा सरकारी नौकरी में हैं, ट्रांसफर पर हम पंजाब से दिल्ली आये।

मेरी माँ परिवार को सँभालने वाली एक कुशल गृहिणी है। सरकारी नौकरी में होने की वजह से मुझे केंद्रीय विद्यालय में दाखिला मिल गया। वैसे दिल्ली आने का एक कारण और भी था, मेरी बड़ी बहन विमला की शादी फरीदाबाद में ही हुई थी वह अपने पति सुनील के साथ फरीदाबाद में ही रहती थी।

कहते हैं अठरा में खतरा, यानि मैं उम्र के उस पड़ाव पर थी जहाँ दिमाग से ज्यादा दिल फैसले लेता है, साथ ही मेरे शरीर में भी सही जगह उभार आ गये।

अपने मुँह अपनी तारीफ़ क्या करूँ पर मैं दिखने में सुन्दर हूँ। दिल्ली की हवा और यहाँ के लौण्डों की चीरती आँखों ने मुझे इतराने की और आईना निहारने की वजह दे दी।
नहाते हुए जब नंगे बदन पर ठंडा पानी घिरता तो मम्मे और कड़क हो जाते, साफ़ करने के लिए योनि रगड़ती तो हाथ हटता ही नहीं था।
5-7 मिनट का स्नान अब 30-35 मिनट तक चलता।

अपने ही हाथों से अपने चूचे मसलती और सोचती कब मेरे भी विमला जैसे बड़े होंगे। वैसे विमला और मेरे बीच बहन का रिश्ता कम सखी का ज्यादा था।
अक्सर विमला के घर आने पर हम पूर्ण नग्न हो अपने अंगों की तुलना करती, विमला अपनी फ़ुद्दी साफ़ रखने लगी थी।

‘सुनील को साफ़ ही पसंद है !’ विमला ने बताया- मुखमैथुन में बाल नहीं आते मुँह में !
‘हाय, जीजू इसको मुँह में लेते हैं? और तुम उनका? छी गन्दी !’ मैंने मुँह बनाया।
‘एक बार तू भी लेगी ना फिर तुझे भी अच्छा लगेगा।’ विमला ने अपने मुँह में उंगली ली और मेरी चूत पर रगड़ दी।
‘विमला, मुझे देखना है?’
‘क्या?’
‘मर्द का?’
‘मर्द का क्या, रेखा?’
‘मर्द का लिंग !’
‘बस जूठी, इंटरनेट पर वीडियो नहीं देखे?’
‘नहीं… असली में देखना है…’ मैंने कहा।
‘रेखा, यह सब मज़ा तो बहुत देता है पर एक गलत कदम और सज़ा हम लड़कियों को ही भुगतनी पड़ती है।’ विमला ने आगाह करते हुए समझाया।

विमला की बातों का असर तो रहा पर जवानी की लहरें भी थी, अश्लील साहित्य, मर्दों की नग्न तस्वीरों, इंटरनेट वीडियो के साथ अक्सर मैं निर्वस्त्र सोती थी, पतली चादर का अपने निप्पलों पर कामुक एहसास मुझे उत्तेजित करता था।
फिर एक बार मैंने वो हरकत की जिसका ज़िक्र विमला से भी नहीं किया, लम्बे समय तक।

बात उस रात की है जब सुनील जीजू और विमला हमारे घर पर ही सोये थे, मैं जल्दी सोने के बहाने गई और उस कमरे में छिप गई जहाँ विमला और सुनील सोने वाले थे।
थोड़ी देर में दोनों अन्दर आए और आते ही विमला ने अपनी साड़ी निकाल दी, अपने ब्लाउज के आधे बटन खोल दिए।
सुनील जीजू उसे थोड़ी देर निहारते रहे फिर उसे पीछे से जकड़ लिया और गर्दन पर चूमने लगे और विमला के चूचों का मर्दन करने लगे।

विमला को मज़ा आ रहा था पर नकली कश्मकश करने लगी।
सुनील ने उसे बाँहों से पकड़ कर घुमाया और दोनों चुम्बन रत हो गए। चूमते हुए पलंग पर गिर पड़े पर चुम्बन नहीं टूटा।
मेरे कमसिन निप्पल कड़क हो उठने लगे मानो मेरा टी-शर्ट ही फाड़ देंगे।
मुझे टी-शर्ट की कहाँ पड़ी थी, मुझ पर जवानी का खुमार था।

थोड़ी देर में विमला उठी तो आभास हुआ सिर्फ चुम्बन ही नहीं हो रहा था, विमला का ब्लाउज खुल चुका था और ब्रा को नीचे कर मम्मे भी मसल दिए गए।
‘राजा, दूध पी लो, मैं लाइट बंद कर देती हूँ।’ विमला ने प्यार से सुनील जीजू को कहा।
वो उठे और दूध के गिलास के लिए बढ़े तो जिस चीज़ के दर्शन के लिए आई थी, वो हो गया। बिस्तर पर सिर्फ विमला के मम्मे ही नहीं मसले गए, सुनील जीजू की लुंगी खोल विमला भी उनके लिंग को तैयार कर चुकी थी।

जैसे ही वो उठे, लुंगी गिर गई और उनका तना हुआ लिंग छत की ओर इशारा करने लगा।
मेरा हाथ अनायास ही मेरी चूत पर चला गया और मैं चूत रगड़ने लगी।
विमला ने लाइट छोटी कर दी और अपने बचे हुए कपड़े भी निकाल दिए।
नीली नाईट लाइट में नंगी बिस्तर पे लेटी मेरी बहन संगेमरमर में तराशी काम की देवी लग रही थी।

सुनील जीजू भी पूर्ण निर्वस्त्र हो विमला के ऊपर चढ़ गए और मेरी बहन सिसकारियाँ भर कर उनका स्वागत कर रही थी, उसके हाथ और पैर जीजू के शरीर को ऐसे जकड़े हुए थे मानो दोनों एक जिस्म हो।
उनकी संभोग क्रीड़ा ने मुझे स्खलित कर दिया।

उस दृश्य ने मुझे वो रात ही नहीं कई रात जगाए रखा और मेरी कई कच्छियाँ गीली हुई।
12वीं की गणित कठिन है और पढ़ाई में अच्छी होने के बावजूद मुझे गाइड की जरूरत थी।
‘पापा, मैथ्स में प्रॉब्लम हो रही है। ट्यूशन लेनी पड़ेगी !’ मैंने खाना खाते समय कहा।

मुझे पापा की स्थिति मालूम थी, विमला की शादी के लिए लिया कर्ज़, गाँव में दादी को पैसे भेजना और ऊपर से दिल्ली की महंगाई। पर मुझे वाकयी गणित में समस्या हो रही थी।
‘कोई टीचर देखता हूँ।’ कह कर पिताजी सोच में पड़ गए।

दो दिन के बाद, दफ्तर से आकर पिताजी ने बताया- दफ्तर में मेरे सीनियर राकेश जी हैं, उनका मैथ्स अच्छा है, वो पास की गली में ही रहते, वो तुम्हें पढ़ा देंगे।
राकेश अंकल अपनी उम्र से जवान लगते थे, उनकी बीवी का देहांत हो गया था, वे अपनी विधवा मौसी के साथ रहते थे।
रेखा के साथ राकेश अंकल के यहाँ क्या हुआ? यह अगले अंक में। अपनी प्रतिक्रिया आप मुझे ravishsingh365@ gmail.com या रेखा को kohli.9rekha404@ gmail.com पे बता सकते है।

गणित का ट्यूशन-2

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