प्रगति का अतीत- 4

(Pragati Ka Ateet- Part 4)

शगन कुमार 2006-05-24 Comments

This story is part of a series:

किसी न किसी कारणवश मास्टरजी प्रगति से अगले 4-5 दिन नहीं मिल सके। प्रगति कोई न कोई बहाना करके उन्हें टाल रही थी। बाद में मास्टरजी को पता चला कि प्रगति को मासिक धर्म हो गया था।

वे खुश हो गए। कामुकता के तैश में वे यह तो भूल ही गए थे कि उनकी इस हरकत से प्रगति गर्भ धारण कर सकती थी। इस परिणाम के महत्व को सोचकर उनके रोंगटे खड़े हो गए।
वे ऐसी गलती कैसे कर बैठे। अपने आप को भाग्यशाली समझ रहे थे कि वे इतनी बड़ी भूल से होने वाले संकट से बच गए।

उन्होंने तय किया ऐसा जोखिम वे दोबारा नहीं उठाएँगे।

उन्हें पता था कि आम तौर पर लड़की के मासिक धर्म शुरू होने से लगभग दस दिन पहले और लगभग दस दिन बाद तक का समय गर्भ धारण के लिए उपयुक्त नहीं होता। मतलब कि इस दौरान किये गए सम्भोग में लड़की के गर्भवती होने की सम्भावना कम होती है। कुछ लोग इसे सुरक्षित समय समझ कर बिना किसी सावधानी (कंडोम) के सम्भोग करना उचित समझते हैं।

वैसे कई बार उनकी यह लापरवाही उन्हें महंगी पड़ती है और लड़की के गर्भ में अनचाहा बच्चा पनपने लगता है। अगर लड़की अविवाहित है तो उस पर अनेक सामाजिक दबाव पड़ जाते हैं जिससे उसके तन और मन दोनों पर दुष्प्रभाव होता है।

एक गर्भवती के लिए ऐसे दुष्प्रभाव बहुत हानिकारक होते हैं। गर्भ धारण तो एक लड़की तथा उसके परिवार वालों के लिए सबसे ज्यादा खुशी का मौका होना चाहिए न कि समाज से आँखें चुराने का।

मास्टरजी ने भगवान का दुगना शुक्रिया अदा किया। एक तो उन्होंने प्रगति को गर्भवती नहीं बनाया दूसरे उन्हें प्रगति के मासिक धर्म की तारीख पता चल गई जिससे वे उसके साथ सुरक्षित सम्भोग के दिन जान गए।
जिस दिन मासिक धर्म शुरू हुआ था उस दिन से दस दिन बाद तक प्रगति गर्भ से सुरक्षित थी। यानि अगले पांच दिन और।

यह सोच सोच कर मास्टरजी फूले नहीं समा रहे थे कि अगले पांच दिनों में वे प्रगति के साथ निश्चिन्तता के साथ मनमानी कर पाएंगे। आज प्रगति पांच दिनों के बाद आने वाली थी। यह सोचकर उनके मन में लड्डू फूट रहे थे और उनका लंड प्रत्याशित आनंद से फूल रहा था।

वहाँ प्रगति भी मास्टरजी से मिलने के लिए बेक़रार हो रही थी। उसके भोले भाले जवान जिस्म को एक नया नशा चढ़ गया था। जिन अनुभवों का उसके शरीर को अब तक बोध नहीं था वे उसके तन मन में खलबली मचा रहे थे।
अचानक उसे सामान्य मनोरंजन की चीज़ों से कोई लगाव ही नहीं रहा। गुड्डे-गुडियाँ, आँख-मिचोली, ताश, उछल-कूद वगैरह जो अब तक उसे अच्छे लगते थे, मानो नीरस हो गए थे।
उसे अपनी देह में नए नए प्रवाहों की अनुभूति होने लगी थी। उसकी इन्द्रियाँ उसे छेड़ती रहती थीं और उसका मन मास्टरजी के घर में गुज़रे क्षणों को याद करता रहता।

वह अपने आप को शीशे में ज्यादा निहारने लगी थी। उसके हाथ अपने यौवन के प्रमाण-रूपी स्तनों और स्पर्श की प्यासी योनि को सहलाने में लगे रहते।

उसने पिछले 4-5 दिनों में अपनी छोटी बहनों को अच्छे से पटा लिया था। मास्टरजी की मिठाई के आलावा उसने उनके लिए तरह तरह की चीज़ें बना कर दीं और उनको अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ खेल-कूद की आज़ादी दे दी।
बदले में वह उनसे बस इतना चाहती थी कि मास्टरजी के यहाँ उसकी पढ़ाई की बात वे माँ-बापू को न बताएं। उनमें यह षडयंत्र हो गया कि एक दूसरे की शिकायत नहीं करेंगे और माँ-बापू को कुछ नहीं बताएँगे।

प्रगति खुश हो गई। उसकी भोली बहनों को उसकी असली इच्छा पता नहीं थी। होती भी कैसे…? उनके शरीर को किसी ने अभी तक प्रज्वलित जो नहीं किया था। वे अभी बहुत छोटी थीं।

प्रगति को मास्टरजी ने 12 बजे का समय दिया था जिससे वे उसके साथ आराम से 4-5 घंटे बिता सकते थे। आज शनिवार होने के कारण स्कूल की छुट्टी थी।

प्रगति ने जल्दी जल्दी घर का ज़रूरी काम निपटा दिया और दोपहर का खाना भी बना दिया जिससे अंजलि और छुटकी को उसके देर से घर वापस लौटने से कोई समस्या न हो।

11 बजे तक सब काम पूरा करके वह नहाने गई और अच्छी तरह से स्नान किया। फिर तैयार हो कर बालों में चमेली के फूलों की वेणी लगा कर ठीक समय पर अपने गंतव्य स्थान के लिए रवाना हो गई।

उधर मास्टरजी ने पहले की तरह सारी तैयारी कर ली थी। इस बार, ज़मीन के बजाय उन्होंने अपने बिस्तर पर प्रबंध किया था।

वे जानते थे कि पहली पहली बार जब किसी लड़की को घर लाओ तो उसे बेडरूम में नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि ज्यादातर लड़कियाँ वहाँ जाने से कतराती हैं।
शुरू शुरू की मुलाक़ात में लड़की को ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि तुम्हारा इरादा सम्भोग करने का है। यह बात अगर वह जानती भी हो तो भी पहला मिलन बेडरूम के बाहर होना उसके लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर ठीक होता है। वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करती है!!

जब एक बार शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो जाएँ फिर फ़र्क नहीं पड़ता!!

अब तो प्रगति के साथ उनके संबंधों में कोई भेद नहीं रह गया था। अब वे उसे निःसंकोच अपनी शय्या पर ले जा सकते थे। उन्होंने ऐसा ही किया। साथ ही उन्होंने एक कटोरी में शहद डाल कर सिरहाने के पास छुपा दिया। एक छोटा तौलिया और गुनगुने पानी की छोटी बालटी भी पास में रख ली। उनका इरादा प्रगति को एक नई प्रक्रिया सिखाने का था।

प्रगति ठीक समय पर मास्टरजी के घर पहुँच गई और एक पूर्वानुमानित तरीके से चुपचाप पीछे के दरवाज़े से अन्दर प्रवेश कर गई।
लुकी छुपी नज़रों से उसने पहले ही यकीन कर लिया था कि कोई उसे देख न रहा हो। पहले की तरह बाहर का दरवाजा तालाबंद था।

अब वे दोनों कामदेव के अखाड़े में चिंतामुक्त अवस्था में प्रवेश कर चुके थे। दोनों ने एक दूसरे को देख कर एक राहत की सांस ली।
उन्हें डर था कहीं कोई मुश्किल उनके मिलन में बाधा न बन जाए। अब तक सब ठीक था और वे भगवान् का शुक्रिया अदा कर रहे थे।

दोनों ने बिना किसी वार्तालाप के एक दूसरे को आलिंगन में ले लिया और बहुत देर तक आपसी सपर्श का आनंद उठाते रहे।

मास्टरजी ने बिना ढील दिए अपने होटों को प्रगति के होटों पर रख दिया और पिछले पांच दिनों के विरह का हरजाना सा लेने लगे।
एक श्रेष्ठ शिष्या का प्रमाण देते हुए प्रगति भी उनके होटों को अपनी जीभ से खोल कर मास्टरजी के मुँह की जांच परख करने लगी।

प्रगति की इस हरकत ने मास्टरजी की सुप्त इन्द्रियों को जखझोर दिया और उनके शरीर के निम्न हिस्से में रक्तसंचार की वृद्धि होने लगी।
इसके फलस्वरूप उनके लंड में ऊर्जा उत्पन्न हुई और वह वस्त्र-युक्त होने के बावजूद अपने अस्तित्व का प्रमाण प्रगति की जांघों को देने लगा।
प्रगति को मास्टरजी के लंड की यह शरारत अच्छी लगी और उसने स्वतः अपनी जांघें थोड़ी खोल कर उसका स्वागत किया।

मास्टरजी के लंड को प्रगति की जांघों का अभिवादन पसंद आया और उसने रिक्त स्थान में अपनी जगह बना ली। प्रगति को यह और भी अच्छा लगा और उसने मास्टरजी को कसकर जकड़ लिया। कुछ देर ऐसे रहने के बाद दोनों की पकड़ ढीली हुई और वे अलग हो गए।

मास्टरजी ने शांति भंग करते हुए पूछा- कुछ खाओगी? भूख लगी है?’

प्रगति- अभी नहीं। आपको?’

मास्टरजी- मुझे भी अभी नहीं। थोड़ी देर बाद देखेंगे, ठीक है?’

प्रगति- जी, ठीक है!’

‘ चलो फिर यहाँ आ जाओ!’ कहते हुए मास्टरजी प्रगति को बेडरूम में ले गए।

बिस्तर देख कर प्रगति को भी चैन आया। मास्टरजी ने उसके कपड़े उतारने शुरू किये और थोड़ी देर में उसे पूरा निर्वस्त्र करके बिस्तर पर चित्त लिटा दिया। उसका आधा शरीर बिस्तर पर और चूतड़ों से नीचे का भाग नीचे लटका दिया। इस तरह उसकी योनि बिस्तर के किनारे पर थी।

मास्टरजी ने पास रखे छोटे तौलिये को गुनगुने पानी में भिगो कर निचोड़ लिया और प्रगति के स्तन, पेट और नीचे के हिस्से को अच्छे से पोंछने लगे। वैसे तो प्रगति नहा कर आई थी पर मास्टरजी उसके शरीर को न केवल साफ़ कर रहे थे, वे उसकी कामुकता को भी उकसा रहे थे। उन्होंने उसकी योनि के आस पास और उसकी जांघों की सफाई की और फिर तौलिया सुखाने के लिए कुर्सी पर फैला दिया।

मास्टरजी ने अपने कपड़े भी उतार दिए और पूर्ण नग्न अवस्था में प्रगति की टांगों के बीच ज़मीन पर बैठ गए।

उन्हें नीचे बैठता देख कर प्रगति एकदम उठ कर बैठ गई और खुद भी नीचे आने लगी तो मास्टरजी ने उसे वापस वैसे ही लिटा दिया। उसकी टांगें खोल दीं तथा उसको थोड़ा अपनी तरफ खींच लिया जिससे उसकी चूत बिस्तर से अधर हो गई और मास्टरजी के मुँह की पहुँच तक आ गई।
प्रगति एक बार पहले अपनी चूत पर मास्टरजी के मुँह का अनुभव कर चुकी थी और एक बार फिर उस अनुभूति की अपेक्षा से उसका जिस्म उत्तेजित हो गया।
उसने अपनी आँखें मूँद लीं और हाथों से ढक लीं।

मास्टरजी ने अपने शरीर के किसी और हिस्से को प्रगति से नहीं लगने दिया और सीधे अपनी जीभ प्रगति की योनि के बीचोंबीच लगा दी।
प्रगति को मानो 11000 वोल्ट का झटका लगा और हालाँकि वह इसके लिए तैयार थी फिर भी ज़ोर से फुदक गई और अपनी टाँगें ऊपर उठा लीं।

मास्टरजी ने जैसे तैसे प्रगति को नियंत्रण में किया और धीरे धीरे उसकी चूत चाटने लगे। कभी अपनी जीभ उसके योनिद्वार के चारों तरफ घुमाते, कभी दायें बाएँ की हरकत करते तो कभी ऊपर नीचे की। कभी जीभ को नौकीला करके उसकी योनि के नरम होटों पर दबाव डालते तो कभी जीभ फैला कर पूरी योनि के पटलों पर फेरते।

प्रगति को स्वर्ग का साक्षात्कार हो रहा था। उसकी देह में गुदगुदी, सरसराहट, गर्मी, ठंडक और न जाने कितने और अनुभवों का जबरदस्त मिश्रण हिंडोले ले रहा था। उसकी देह अनियंत्रित ढंग से लहरा रही थी।

जैसे एक तितली तेज़ हवा में फूल के साथ लहराते हुए चिपकी रहती है, मास्टरजी की जीभ भी प्रगति की योनि के साथ चिपकी हुई थी और उसके साथ लहरा रही थी।

थोड़ी देर में प्रगति के उन्माद की तीव्रता हल्की हुई और उसका शरीर इन गुलगुले अहसासों का आदि हुआ तो उसका लहराना बंद हुआ और वह सचेत सी लेटी रही। उसकी चूत से पानी झरझर बह रहा था और मास्टरजी के मुँह को ओत-प्रोत कर रहा था।

अब मास्टरजी ने कदम बढ़ाते हुए अगला पैंतरा पकड़ा और अपनी जीभ को नुकीला करते हुए उससे योनि की पंखुडियों को अलग अलग करने लगे।
जीभ के अन्दर प्रवेश से प्रगति में फिर से भूचाल आ गया और वह फिर से बेतहाशा हिलने लगी।
मास्टरजी उसकी हलचल का फ़ायदा उठाते हुए अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर बाहर करने लगे।

यद्यपि जीभ करीब आधा इंच ही अन्दर बाहर हो पा रही थी, प्रगति को संपूर्ण आनंद मिल रहा था।
उसे क्या पता था कि योनि का बाहरी लगभग एक इंच का हिस्सा ही संवेदनशील होता है क्योंकि इस एक इंच के हिस्से में ही सारी धमनियाँ होती हैं जिनमें स्पर्श का अनुभव करने की शक्ति होती है। योनि के भीतर के हिस्से में ये धमनियाँ नहीं होतीं और उन हिस्सों में कोई चेतना नहीं होती।
इसीलिये कहते हैं कि स्त्री को भौतिक सुख देने के लिए बड़े लिंग की ज़रुरत नहीं होती। एक इंच का लिंग ही काफी है। बहुत से मर्द व्यर्थ ही अपने लिंग के माप और आकार को लेकर चिंतित रहते हैं।

माप और आकार से कहीं ज्यादा महत्व उसके उपयोग का होता है। किस तरह एक मर्द अपने लिंग से स्त्री को उत्तेजित करता है और उसको अपना प्यार दर्शाता है।

इस तथ्य का इससे बेहतर क्या प्रमाण हो सकता है कि हर लड़की जीभ से किये गए योनि स्पर्श से पूरी तरह उत्तेजित और तृप्त तथा संतुष्ट हो जाती है। जीभ का आकार और माप तो आम लिंग के मुक़ाबले बहुत छोटा होता है।
बड़े लंड से मर्दों के स्वाभिमान को हवा मिलती हो पर ज़रूरी नहीं कि लड़की को भी ज्यादा सुख मिलता है।

मास्टरजी ने जीभ से प्रगति को चोदना शुरू किया और बीच बीच में जीभ से उसके योनिद्वार के मुकुट पर स्थित मटर की भी परिक्रमा करने लगे। विविधता लाने के लिए वे कभी कभी योनि के बाहर दोनों तरफ की जांघों को चाट लेते थे।

प्रगति के जननांग तरावट से ठंडक महसूस कर रहे थे। उसे बहुत मज़ा आ रहा था और वह अपनी चूत को मास्टरजी के मुख के पास रखने की कोशिश में रहती।

मास्टरजी की जीभ थकने लगी तो वे उठ गए और उन्होंने प्रगति को करवट लेने को कहा। प्रगति झट से अपने पेट पर लेट गई।

एक बार फिर मास्टरजी ने गीले तौलिये से प्रगति की पीठ, चूतड़ और जांघों के पिछले हिस्से को पौंछ कर साफ़ कर लिया। फिर प्रगति को उन्होंने इतना पीछे खींच लिया जिससे उसके घुटने ज़मीन पर टिक गए और पेट से आगे तक का हिस्सा बिस्तर पर रह गया। उसके चूतड़ों की ऊँचाई ठीक करने के लिए उसके पेट के नीचे एक तकिया रख दिया। एक छोटा स्टूल लेकर वे उसके चूतड़ों के पीछे पास आकर बैठ गए। हाथों से उसके चूतड़ों के गाल इस तरह अलग लिए कि उसकी गांड दिखाई देने लगी।

फिर उन्होंने नीचे से उसकी योनि को चाटना शुरू किया और इस बार उनकी जीभ योनि से नीचे होते हुए चूतड़ों की दरार में आने लगी। कुछ समय बाद उनकी जीभ का भ्रमण योनि से लेकर दरार में होता हुआ उसकी गांड के छेद तक होने लगा। प्रगति को ऐसा अनुभव पहले नहीं हुआ था। मास्टरजी की जीभ का स्पर्श उसे मंत्रमुग्ध कर रहा था।

मास्टरजी की जीभ उसके गुप्तांगों में ऐसे फिर रही थी मानो कोई लिफाफे पर गौंद लगा रही हो।
प्रगति का सुखद कराहना शुरू हो गया था।

मास्टरजी की जीभ अब उसकी गांड के छेद पर केन्द्रित हो गई और उसके गोल गोल चक्कर लगाने लगी। एक दो बार उन्होंने जीभ को पैना कर के गांड के अन्दर डालने की कोशिश भी की पर प्रगति ने अपनी गांड को कस कर बंद किया हुआ था।
वह सातवें आसमान पर थी।
उसकी योनि से पानी छूटने लगा था और वह इस कदर उत्तेजित हो गई थी अपने ऊपर काबू पाना मुश्किल हो रहा था। लज्जा और संस्कार उसे बांधे हुए थे वरना वह कबकी मास्टरजी से चोदने के लिए कह देती।

मास्टरजी ने अपनी थकी हुई जीभ को आराम देते हुए अपने आप को प्रगति के तिलमिलाते शरीर से अलग किया और उसके पास आकर लेट गए।
प्रगति एकदम उनके ऊपर आ कर लेट गई और उन पर चुम्मियों के बौछार कर दी। मास्टरजी उसकी गांड तक में जीभ डाल देंगे, प्रगति को बड़ा अचरज था।

वह उनका किस तरह धन्यवाद करे सोच नहीं पा रही थी… पर मास्टरजी को मालूम था!

उन्होंने उसके असमंजस को भांपते हुए उसे अपने पास बैठने का इशारा किया और पूछा- बोलो, कैसा लगा?

प्रगति के पास शब्द नहीं थे फिर भी बोली- मैं स्वर्ग में थी!

मास्टरजी- कोई तकलीफ तो नहीं हुई?

प्रगति- मुझे काहे की तकलीफ होती?

मास्टरजी- अच्छा, तो क्या मुझे भी स्वर्ग का अनुभव करा दोगी?

‘आप जो भी चाहोगे, करूंगी!’ प्रगति ने स्पष्ट किया।

मास्टरजी की बांछें खिल गईं और वे मुस्करा दिए।

अब मास्टरजी के मज़े लूटने की बारी थी। उन्होंने प्रगति को तौलिये और बाल्टी की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह उन्हें वैसे ही पौंछ कर साफ़ करे जैसा उन्होंने उसे किया था। प्रगति फ़ुर्ती से उठी और तौलिया लेकर शुरू होने लगी पर पानी छूकर बोली- मास्टरजी, यह तो ठंडा हो गया!’

मास्टरजी- ओह, लाओ मैं गर्म पानी ले आता हूँ।’

प्रगति- आप रुको, मैं ले आती हूँ!’ कहते हुए वह गुसलखाने में चली गई और वहाँ से गर्म पानी ले आई।

उसको इस तरह अपने घर में नंगी घूमते देख कर मास्टरजी को बहुत अच्छा लगा। उनका मन हो रहा था वह हमेशा उनके साथ रहे और इसी तरह घर में नंगी ही फिरती रहे।

जब वह बालटी लेकर वापस आई और उसने मास्टरजी को उसे एकटक देखते हुए देखा तो उसे अपने नंगेपन का अहसास हुआ और वह यकायक शरमा गई, उसने अपना दुपट्टा अपने ऊपर ले लिया।

मास्टरजी ने उसका दुपट्टा छीनते हुए कहा- तुम तो मुझे स्वर्ग दिखाना चाहती थी फिर उसे छुपा क्यों रही हो? तुम बहुत अच्छी लग रही हो। मुझे देखने दो!!

प्रगति ने दुपट्टा अलग रख दिया और मास्टरजी को स्पंज बाथ देने लगी। मास्टरजी उसे बताते जा रहे थे कि शरीर पर कहाँ कहाँ तौलिया लगाना है और वह एक आज्ञाकारी शिष्या की तरह उनका कहना मान रही थी।

छाती, पेट और जाँघों का साफ़ करने के बाद मास्टरजी ने उसे उनका लंड और उसके आस पास का इलाका पोंछने को कहा। प्रगति को उनका लिंग पकड़ने में संकोच हो रहा था।

मास्टरजी- क्यों क्या हुआ? शर्म आ रही है?
प्रगति- जी!

मास्टरजी- इसमें शर्म की क्या बात है? लो अपने हाथ में लो और इसे भी साफ़ करो।
प्रगति- जी!

प्रगति ने पोले हाथों से जब उनके लंड को अपने हाथों में लिया तो दोनों को एक करंट सा लगा। हाथ में आते ही उनका शिथिलाया हुआ सा लंड घना और ठोस होने लगा।
प्रगति को उसके इस कायाकल्प की उम्मीद नहीं थी और वह अचरज में पड़ गई। उसके हाथों में उनका लंड बड़ा होने लगा और कठोर भी हो गया।

उसने धीरे धीरे, डरते डरते, उनके लिंग को गीले तौलिये से पौंछना शुरू कर दिया। मास्टरजी को उसका यह सहमा हुआ अंदाज़ बहुत अच्छा लग रहा था और साथ ही उसके नरम हाथों का लंड पर स्पर्श बड़ा आनंद दे रहा था।

जब लंड और अन्डकोषों की सफाई हो गई तो उन्होंने प्रगति को तौलिया सुखाने का संकेत दिया और अपने पास बैठने को कहा। जब वह पास बैठ गई तो मास्टरजी बोले- देखो प्रगति, जब एक लड़की को किसी आदमी से सच्चा प्यार होता है तो वह उसके लिए कुछ भी कर सकती है। है ना?

प्रगति- जी हाँ!

मास्टरजी- क्या तुम मुझसे सच्चा प्यार करती हो?
प्रगति- जी हाँ!

मास्टरजी- तो क्या तुम मेरी खुशी के किये कुछ भी करोगी?
प्रगति- जी, बिल्कुल!

मास्टरजी- तो फिर मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसो!

प्रगति को बड़ी हिचकिचाहट हो रही थी। उसे बदन के ये हिस्से गंदे लगते थे क्योंकि इनमें से मल-मूत्र निकलता था। वह धर्म-संकट में फँस गई थी।

एक तरफ उसका असली संकोच और दूसरी तरफ मास्टरजी का उस पर अहसान जो उन्होंने उसकी चूत और गांड चूस कर किया था। अगर वे कर सकते हैं तो उसे भी कर लेना चाहिए। तर्क और बुद्धि का तो यही तकाज़ा था।

उसने मन कड़ा करके अपने मुँह को मास्टरजी के लंड के पास ले आई पर उसे मुँह के अन्दर नहीं ले पाई। जैसे एक शाकाहारी किसी मांस के कौर को मुँह में नहीं ले पाता उसी प्रकार प्रगति भी विवश सी लग रही थी।

मास्टरजी उसकी विपदा को समझ गए और बैठ गए। उनका लंड भी मुरझा गया था। उन्होंने पास में छुपाई हुई शहद की कटोरी निकाली और उसे अपने लिंग के आस पास पेट और जांघों पर लगा लिया।

फिर प्रगति से बोले- शहद सेहत के लिए अच्छा होता है। इसे तो चाट सकती हो ना?’

प्रगति बिना उत्तर दिए झुक कर उनके पेट पर से शहद चाटने लगी। धीरे धीरे उसका मुँह उनके लिंग के करीब आता जा रहा था।
मास्टरजी को यह बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। उसके मुँह से होती गुदगुदी के आलावा उसके बालों की लटें मास्टरजी के पेट पर लोट कर उन्हें गुदगुदा रहीं थीं।
जब प्रगति ने सारा शहद चाट लिया तो उन्होंने इस बार शहद अपने लंड की छड़ पर लगा दिया और प्रगति को देखने लगे।

प्रगति ने उनके लंड की छड़ को चाटना शुरू किया। वह इस कला में अबोध थी और पर उसका निश्चय मास्टरजी को खुश करने का था सो जैसे बन पड़ रहा था अपनी जीभ से कर रही थी।

मास्टरजी को प्रगति की अप्रशिक्षित विधि भी अच्छे लग रही थी क्योंकि उसमें सच्चा प्यार था।
मास्टरजी उसको इशारों से बताते जा रहे थे कि किस तरह लंड की छड़ को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की तरफ चाटा जाता है।

वे अपनी जीभ से अपनी बीच की ऊँगली पर नमूने के तौर पर क्रिया कर रहे थे और प्रगति उन्हें देख देख कर उनके लंड पर वही प्रक्रिया दोहरा रही थी।

आखिर में मास्टरजी ने शहद अपने लंड के सुपारे पर लगा दिया और थोड़ा बहुत छड़ पर भी मल लिया। प्रगति को थोड़ा सुस्ताने का मौका मिला और जब मास्टरजी दोबारा लेटे तो उसने पहली बार उनके लंड के सुपारे को अपने मुँह में लिया।

मास्टरजी को उसके मुँह की गर्माइश बहुत अच्छी लगी और उनका लंड उत्तेजना से और भी फूल गया। प्रगति सुपारे पर लगे शहद को लौलीपॉप की तरह चूस रही थी।

मास्टरजी संवेदना में छटपटाने लगे और उनका लिंग इधर उधर हिलने लगा। प्रगति उसको मुँह में रखने के लिए संघर्ष करने लगी और आखिरकार फतह पा ली। उसने उनके सुपारे को मुँह में ले ही लिया।

अब मास्टरजी ने उसे लंड को मुँह के और अन्दर लेने का संकेत किया। सुपारा बहुत बड़ा था और प्रगति का मुँह छोटा लग रहा था पर प्रगति ने किसी तरह उसे मुँह में ले ही लिया।
मास्टरजी ने अपने मुँह में अपनी ऊँगली डाल कर प्रगति को अगली क्रिया का प्रदर्शन किया। प्रगति उनके दर्शाए तरीके से उनके लंड को मुँह के अन्दर बाहर करने लगी।

कुछ देर में जैसे उसका मुँह उनके लंड के लायक खुल गया और वह लगभग पूरा लंड अन्दर-बाहर करने लगी। बस एक-डेढ़ इंच ही बाहर रह रहा था। मास्टरजी को अत्याधिक आनंद आ रहा था और वे कुछ कुछ आवाजें निकालने लगे थे।

प्रगति सांस लेने के लिए थोड़ा रुकी तो मास्टरजी उठ कर खड़े हो गए और प्रगति को अपने सामने घुटनों पर बैठने का आदेश दे दिया।
अब उन्होंने प्रगति के मुख में लंड प्रवेश करते हुए उसके मुख को चोदने लगे। उन्होंने प्रगति का सर उसकी चोटी से पकड़ लिया और सम्भोग समान धक्के लगाने लगे।
जब उनका लंड ज्यादा अन्दर चला जाता तो प्रगति का गला घुटने लगता और उसकी खांसी सी उठ जाती। मास्टरजी थोड़ा रुक कर फिर शुरू हो जाते।
वे उसके मुँह और गले की धारण क्षमता बढ़ाना चाहते थे जिससे उनका पूरा लंड अन्दर जा सके। पर शायद यह संभव नहीं हो पा रहा था। कुछ तो प्रगति को अभ्यास नहीं था और कुछ उसे गला घुटने का डर भी था।

मास्टरजी ने आखिर प्रगति को बिस्तर पर सीधा (पीठ के बल) लेटने को कहा और उसके सिर को बिस्तर के किनारे से नीचे को लटका दिया। सिर के अलावा उसका पूरा शरीर बिस्तर पर था और उसका सिर पीछे की तरफ हो कर गर्दन से नीचे लटक रहा था।
उन्होंने कुछ तकियों का सहारा लेकर उसके सिर की ऊँचाई को ठीक किया जिससे उसका मुँह उनके लंड के बराबर ऊपर हो गया।

अब मास्टरजी ने उसे निर्देश देने शुरू किये- प्रगति, अपना मुँह पूरा खोलो!
प्रगति ने मुँह खोल लिया।
‘और खोलो!’

प्रगति ने जितना हो सकता था और खोल लिया।
‘अब अपनी जीभ बाहर निकालो!’

प्रगति ने जीभ बाहर निकाल ली और दुर्गा माँ का सा रूप धारण कर लिया!!

‘अब ऐसे ही रहना। मैं लंड अन्दर डालूँगा। घबराना नहीं!’

यह कहते हुए मास्टरजी लंड उसके मुँह में डालने लगे। प्रगति की जीभ अचानक उसके मुँह में अन्दर चली गई।

मास्टरजी- प्रगति, जीभ बाहर रखने की कोशिश करो। मेरे लंड को जीभ बाहर रखते हुए ही मुँह में लेना है, समझ गई?’

‘जी मास्टरजी!’

एक बार फिर कोशिश की पर प्रगति की ज़ुबान एकाएक अन्दर चली जाती थी। पर वह खुद ही बोली- मास्टरजी, ठहरिये!’
और फिर एक लम्बी सांस लेने के बाद और अपने सिर को तकिये पर ठीक से रखने के बाद बोली- चलो, इस बार देखते हैं क्या होता है!’ और अपना मुँह चौड़ा खोल कर जीभ बाहर खींच कर तैयार हो गई।

मास्टरजी ने अपना लंड फिर से उसके मुँह में डालने का प्रयत्न किया। इस बार लंड अन्दर चला गया और जीभ बाहर ही रही।
जीभ के बाहर रहने से प्रगति के मुँह में लंड के लिए जगह बन गई और लगभग पूरा लंड अन्दर चला गया।

मास्टरजी ने प्रगति के शरीर को थपथपा कर शाबाशी दी और पूछा- कैसा लग रहा है?

प्रगति कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी। उसकी मानो बोलती बंद थी!!! अपने हाथ का अंगूठा ऊपर उठा कर ‘ओ के’ का संकेत दे दिया।
मास्टरजी ने धीरे धीरे उसके मुँह को चोदना शुरू किया। अब प्रगति का मुँह उसकी योनि का स्थान ले चुका था और योनि के सामान गीला और चिकना भी लग रहा था।
पर जहाँ योनि सिर्फ एक गुफा रूपी छेद होती है, मुँह में खोलने-बंद करना की क्षमता व जीभ और दांत भी होते हैं जिनका अगर उपयुक्त इस्तेमाल किया जाए तो वह योनि से कहीं ज्यादा आनंद प्रदान कर सकता है।

जैसे जैसे प्रगति के मुँह को लंड के प्रवास का अभ्यास होता गया, वह घबराहट छोड़ कर सहज और निश्चिंत हो गया। उसका मुँह सरलता से लंड के व्यापक रूप को धारण करने लगा।

मास्टरजी को जब ऐसा लगा कि प्रगति अब सहजता महसूस कर रही है, उन्होंने अपने वारों की लम्बाई बढ़ानी शुरू की। वे पूरा का पूरा लंड अन्दर बाहर करना चाहते थे।

प्रगति को उनके लंड को पूरा ग्रहण करने में दिक्कत हो रही थी। कभी कभी उसका गला घुटने सा लगता और उसको उबकाई सी आ जाती। पर वह मास्टरजी की खुशी की खातिर अपनी विकलता को नज़रंदाज़ करते हुए उनका साथ दे रही थी।

मास्टरजी लगातार बढ़ते हुए वार कर रहे थे और उनका लंड धीरे धीरे और ज्यादा अन्दर जाता जा रहा था। आखिर एक वार ऐसा आया जब उनका संपूर्ण लंड प्रगति के मुँह से होता हुआ गले में उतर गया।
प्रगति का शरीर प्रतिक्रिया में लंड को उगलने लगा पर प्रगति ने पूरा बाहर नहीं निकलने दिया। उसने इशारे से मास्टरजी को चालू रहने को कहा। मास्टरजी ने सावधानी से फिर चोदना शुरू किया।

अब तो प्रगति का मुख शायद लंड का आदि हो गया था। प्रगति को गला घुटने या उबकाई की कठिनाई भी दूर हो गई। कहते हैं मानव शरीर किसी भी अवस्था का आदि बनाया जा सकता है। कुछ लोग बर्फीले इलाके में निर्वस्त्र रह लेते हैं; कुछ लोग ग्लास खा पाते हैं, कुछ लोग आग के अंगारों पर नंगे पांव चल लेते हैं। शरीर को जैसे ढालो, ढल जाता है।
प्रगति का मुख और गला भी शायद उस ककड़ी-नुमा लंड के आकार में ढल गए थे। मास्टरजी का लंड बिना हिचक के पूरा अन्दर बाहर हो रहा था और थोड़ी थोड़ी देर में वे उसको प्रगति के गले तक में उतार के कुछ देर के लिए रुक जाते थे।

मास्टरजी प्रगति के धैर्य, सहनशक्ति और सहयोग की मन ही मन दाद दे रहे थे। उनकी खुशी परमोत्कर्ष पर पहुँचने वाली थी। उन्होंने अपने झटकों की गति बढ़ाई और जैसे ही उनके अन्दर का ज्वारभाटा विस्फोट करके बाहर आने को हुआ उन्होंने एक गहरा धक्का अन्दर को लगाया और अपने लंड को मूठ तक प्रगति के मुँह में गाड़ दिया।
फिर उनके बहुत देर से नियंत्रित लावे का द्वार फूट कर खुल गया और न जाने कितनी पिचकारियाँ प्रगति के कंठ में छूट गईं।

मास्टरजी हाँफ रहे थे और प्रगति एक नन्हे मुन्ने बच्चे की तरह मुँह से मास्टरजी का दूध उगल रही थी। मास्टरजी ने कुछ देर रुक कर अपना लंड बाहर निकाल लिया।

प्रगति उसी अवस्था में लेटी रही और उनके वीर्य को निगल गई। मास्टरजी ने अपने लथपथ लिंग को प्रगति के मुँह के ऊपर लटकाते हुए कहा- यह हमारे प्यार और परिश्रम का फल है। इसे व्यर्थ न जाने दो।’
उनके लिंग को प्रगति ने मुँह में लेकर चूस और चाट कर साफ़ कर दिया।

फिर दोनों उठ गए। मास्टरजी ने प्रगति को गले से लगा लिया और बहुत देर तक उसके साथ चिपटे रहे। फिर उसे गुसलखाने की तरफ ले जाते हुए बोले- आज तुमने मुझे बहुत खुश किया। तुम कमाल की लड़की हो!

‘आपने भी तो मेरे लिए कितना कुछ किया!’ प्रगति ने शरमाते हुए जवाब दिया।

‘पर तुमने जो किया वह ज्यादा मुश्किल था!’ मास्टरजी ने स्वीकार किया।
प्रगति खुश हो गई।

घड़ी में एक बज रहा था अभी उनके पास काफी समय शेष था।

वे दोनों नहाने के लिए चले गए।

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