हर चूत पर लिखा है किसी लंड का नाम- 1

(First Night With Husband)

फर्स्ट नाईट विद हसबैंड स्टोरी में एक पर्दानशीं लड़की का निकाह एक पढ़ाकू किस्म के लड़के से हो गया जिसे सेक्स में रूचि कम थी. उनकी सुहागरात कैसी बीती?

दोस्तो, आज की कहानी एक पढ़े लिखे आधुनिक ख्यालों के विधर्मी परिवार की है.

हाजी मंजूर जो एक इंटर कॉलेज में गणित के टीचर थे.
उनकी बीबी आयरा बेगम भी एक मुस्लिम गर्ल्स स्कूल में प्रिंसिपल थीं.

आयरा बेगम अपनी जवानी के दौर से ही बहुत खूबसूरत महिला थीं और मंजूर और उनका निकाह प्रेम विवाह था जिसे घर वालों ने मंजूरी दे दी थी.
अब मंजूरी कैसे न देते, आयरा पेट से जो हो गयी थीं.

इनके दो बेटियाँ थीं उल्फ़त और फायज़ा.
उल्फ़त दो साल बड़ी थी फायज़ा से.

उल्फ़त बिलकुल मां पर गयी थी, बेहद खूबसूरत और चंचल.

फायज़ा थी तो खूबसूरत पर उल्फ़त के मुकाबले नहीं.

उल्फ़त के तीखे नैन नक्श और चुलबुला स्वभाव उसे सबसे अलग रखता.

बेटियाँ होने के बावजूद हाजी मंजूर की आशिकी कम न हुई थी.
बिना आयरा बेगम की चुदाई किये वो रात ढलने नहीं देते थे.

स्कूल और ट्यूशन के बाद सारा समय आयरा बेगम के लहंगे के अंदर.
बेटियाँ बड़ी हो चली थीं तो खूब हंसती.

पर हाजी ज़ी और आयरा बेगम का आपसी लगाव ज्यों का त्यों ही रहा.
बस बेटियाँ बड़ी होने पर हाजी ज़ी ने उनका कमरा ऊपर कर दिया और खुद अपना बेडरूम नीचे रखा.
वो रात को ऊपर जाने वाले जीने की किवाड़ बंद करना नहीं भूलते थे.

असल में सेक्स की भूख मंजूर भाई से ज्यादा आयरा बेगम को थी.
चुदाई का जूनून सा था उन्हें… कामसूत्र की पूरी जानकारी.
बेड पर वो बताती थीं कि आज उन्हें कैसे चुदना है.
कमरे से बाहर आती उनकी सीत्कारें गवाह होतीं उनके उन्मुक्त सेक्स की.

मंजूर भाई तो उनकी अदाओं के दीवाने थे.
कपड़ों और जेवरों से लादे रखते वो अपनी मलिका को.

आयरा बेगम हर रात बनाव शृंगार में अपना वक़्त लगाती थीं.
वो बेड पर बिना सजे संवरे कभी नहीं गयीं.

उल्फ़त अब 24 की हो गयी थी. जवानी भरपूर जोर मार रही थी उस पर.
भरा हुआ मस्त बदन, भारी मांसल मम्मे और बिलकुल गुलाबी रंग.

पढ़ने में उल्फ़त अच्छी थी और ग्रेजुएशन तक फर्स्ट ही आयी.
पर उनकी ख़ूबसूरती से हाजी मंजूर डरे हुए थे तो उनको बी एड प्राइवेट करा कर अम्मी के स्कूल में ही उन्हीं की जगह प्रिंसिपल रखवा दिया.

उल्फ़त के निकाह की बात चलने लगी घर में.
इन में तो घर में ही शादी हो जाती हैं.

उल्फ़त हाजी मंजूर के चचेरे भाई के लड़के मोहसिन को पसंद करती थी.
मोहसिन उससे भी मोहब्बत का इज़हार कर चुका था.
दोनों की आँखों ही आँखों में मुहब्बत परवान चढ़ रही थी.

मोहसिन घर आता-जाता रहता था तो किसी न किसी बहाने वो उल्फ़त से टकरा ही जाता.
अब मोबाइल के जमाने में मोबाइल मोहब्बत का रंग जमाने का काम करता ही है.

मोहसिन ने जिम जाकर अपनी बॉडी गजब की बना रखी थी … डोले शोले.
कसरती जिस्म और लंबा कद.
कुल मिला कर पढ़ा लिखा बेहद सलीकेदार असली पठान था मोहसिन और ऊपर से गोरा रंग और हंसमुख या कहिये आशिक मिजाज.

उल्फ़त लट्टू थी उस पर.

दोनों की मोहब्बत फोन पर चलती रही.

एक दो बार किसी कोने में दोनों के होठ भी मिल चुके थे पर किसी को भी उनकी इस परवान चढ़ती मुहब्बत का इल्म नहीं था.

एक रात तो उनकी इस मोहब्बत का अंजाम आता आता रह गया.

हुआ यूं कि घर पर कोई छोटी सी दावत थी.
उल्फ़त खूब बनी संवरी थी.

आयरा बेगम ने उसे आवाज देकर ऊपर वाले फ्लैट से कुछ सामान लाने को कहा और अनजाने में ही उन्होंने मोहसिन को उसकी मदद करने को कह दिया.

अब क्या था … दोनों ऊपर भाग छूटे.
ऊपर फ्लैट में पहुंच कर पहले तो सामान लिया फिर मोहसिन ने उल्फ़त की ओर बाहें फैला दीं.
उल्फ़त दौड़ कर उसके आगोश में आ गयी.
दोनों के होठ मिल गये.

उल्फ़त का बदन थर थर काँप रहा था.
उसके हाथों में पसीना आ गया था.

यह पहला मौक़ा था जब वो किसी मर्द के इतने करीब इतनी देर से थी.

मोहसिन की बलिष्ठ बाहों ने उसे अपने से चिपटा रखा था.
उल्फ़त के मांसल मम्मे मोहसिन की छाती से दब रहे थे.

मोहसिन ने बिना कुछ आगे पीछे सोचे उल्फ़त के मम्मे मसलते हुए फिर उसकी सलवार में हाथ डाल दिया.
उल्फ़त बहुत कसमसाई और अपने को छुड़ाने की कोशिश की.

पर मोहसिन का दिलोदिमाग काबू में नहीं था.

इतने में ही नीचे से आयरा बेगम की जीना चढ़ने की आवाज आई.
उल्फ़त ने अपने को छुड़ाया और सामान लेकर नीचे भागी.

अपनी खराब हुई लिपस्टिक आयरा बेगम से छिपाती उल्फ़त नीचे पहुंची और अपने कमरे में पहुँच कर किवाड़ बंद कर लिया.
उसकी साँसें जोर जोर से चल रही थीं.

मोहसिन का हाथ उसकी जन्नत के दरवाजे को छू नहीं पाया था पर उल्फ़त की चूत पानी बहा रही थी.
उल्फ़त ने टॉवेल से अपने को पौंछा और ठंडा पानी पीकर बाहर पहुंची.

मोहसिन अपनी बुलेट मोटरसाइकिल से उसके घर के दिन में कई चक्कर मारता, खासतौर से उसके स्कूल जाने और लौटने के वक़्त.
आयरा बेगम को इतना अंदाज़ तो था कि उल्फ़त मोहसिन को पसंद करती है पर चूँकि मोहसिन अभी काम पर लगा नहीं था तो उन्होंने भी इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा.

पर हाँ इतना तो था कि अब जब उल्फ़त के रिश्ते की बातें घर में हो रही थीं तो भी उनकी इस बेनाम मोहब्बत के बारे में हाजी मंजूर से कहने की हिम्मत न तो उल्फ़त में थी, न आयरा बेगम में.

आयरा बेगम का अब सारा दिन घर पर ही गुजरता.
वो थोड़े बहुत ट्यूशन ले लेतीं.

ऊपर वाले के फज़ल से पैसे की इफरात थी.
तीन मंजिला मकान बनवा लिया था हाजी जी ने.
नीचे परिवार रहता था, ऊपर की दोनों मंजिलें पूरे अच्छे फ्लैट की तरह बनवाकर और फर्निशड करवाकर बेटियों के लिए रख लिए थे.
उनकी यही सोच थी कि लड़कियां शादी के बाद उन्हीं के साथ रहें.

हाज़ी मंजूर के पास ट्यूशन की भरमार रहती.
उन्हीं में से एक लड़का इकबाल उल्फ़त से एकतरफा दिल लगा बैठा.
पतला दुबला और लंबा साधारण कद काठी का इकबाल पढ़ने में बहुत तेज था.
इंजीनियरिंग की तैयारी में लग गया और अपनी मेहनत के बल पर पहले एटेम्पट में ही सब क्लियर करता हुआ इंजीनियर बन भी गया.

पढ़ाई के मामले में फायज़ा कुछ अलग ही थी.
वो बहुत तेज और कुछ बनना चाहती थी.

उल्फ़त की तो पढ़ाई रुक गयी थी पर फायज़ा की पढ़ाई चलती रही.
फायज़ा कम बोलती, अपने काम से काम रखती.
उसका लक्ष्य जिन्दगी में कोई बड़ा मुकाम हासिल करना था.

फायज़ा भी उल्फ़त से कम सुंदर नहीं थी.
पर उसे बनने सँवारने का शौक नहीं था.
दिन रात किताबों में घुसी रहने से उसे चश्मा भी लग गया था.

इकबाल को इंजीनियरिंग करते ही सरकारी नौकरी मिल गयी तो उसके माँ-बाप हाजी के पास रिश्ता लेकर आये.
हाजी ज़ी का लड़का देखाभाला था.

उन्हें मालूम था कि बहुत ऊपर जाएगा तो उन्होंने हाँ कर दी.
पर अपनी शर्त लड़के वालों को बता दी.

इकबाल के मां बाप तेज थे.
उन्होंने आपस में सलाह की कि इकबाल को तो नौकरी बाहर ही करनी है तो वो न तो उनके साथ रहेगा न हाजी ज़ी के साथ.
तो क्यों मुफ्त में मिल रहे मकान को ठुकराया जाए.

उन्होंने हाँ कह दी.
उल्फ़त ने दबी जुबान विरोध भी किया पर चूँकि मोहसिन के पास अभी कोई मुकम्मिल काम नहीं था तो बेरोजगार कहकर हाजी मंजूर ने उसकी बात अनसुनी कर दी.
उल्फ़त अपनी मम्मी के गले लग कर खूब रोई पर आयरा बेगम भी मजबूर थीं.

फायज़ा भी अपने जीजू इकबाल भाई से छेड़खानी करती रहती.
उन दोनों की खूब पटती क्योंकि दोनों को पढ़ाई का शौक था.
तो उनकी बातें किताबी ज्यादा होतीं.

खैर इकबाल और उल्फ़त का निकाह हो गया.

हाजी जी ने बीच की मंजिल को पूरा सजवाया.
इकबाल और उल्फ़त का बेड रूम उनकी सुहागरात के लिए निखालिस गुलाब के फूलों से सजवाया.
ये चाहत उल्फ़त की थी.

उल्फ़त बिल्कुल हूर की परी लग रही थी.
इकबाल ने मुंह दिखाई में उल्फ़त को हीरे की अंगूठी दी.

उल्फ़त बेसब्र थी अपने शौहर की बाहों में समाने को.
उसने सहेलियों से फर्स्ट नाईट विद हसबैंड के बारे में सुन सुनकर और सोशल मीडिया की मदद से सुहागरात के अनेकों सपने बुन रखे थे.

इकबाल ने उल्फ़त से कपड़े बदलने को कहा. उल्फ़त चाहती थी कि आज इकबाल उसके कपड़े उतारे.
उसने ऐसा ही सोचा था.

खैर उल्फ़त उठी और अपनी अलमारी से सुहागरात के लिए स्पेशल खरीदी एक झीनी सी नाईटी निकाल कर पहनी.
इकबाल भी कपड़े बदल चुका था.

इकबाल ने उल्फ़त को अपने आलिंगन में जकड़ लिया और चुम्बनों की बरसात कर दी.
उल्फ़त भी इकबाल से सूखी बेल की तरह लिपट गयी.

उल्फ़त के सपनों में पहला सेक्स भी शामिल था, पर इकबाल ने उसे समझाया की सेक्स अभी नहीं, पहले हम एक दूसरे को जान लें, फिर सेक्स.

हालंकि उल्फ़त ने कहा- हम तो एक दूसरे को पांच छह सालों से जानते ही हैं.
पर इकबाल के चुम्बनों ने उसका मुंह बंद कर दिया.

उसके मांसल मम्मे और नुकीले तीर जैसे निप्पल झीनी नाईटी से झाँक रहे थे.
इकबाल ने उन्हें प्यार से सहलाया तो उल्फ़त सिहर गयी.
उसने अपने गुलाबी होंठ इकबाल के होंठों पर जड़ दिए.
दो जिस्म एक होने को मचल रहे थे.

उल्फ़त का हाथ इकबाल के लंड पर चला गया.
पर उल्फ़त को वहां कोई ख़ास उत्तेजना नजर नहीं आई.
उल्फ़त ने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया.

दोनों ऐसे ही एक दूसरे के आगोश में समाये सो गए.

इकबाल की जिद पर अगले दिन ही दोनों कश्मीर की हसीन वादियों में हनीमून के लिए निकल गए.
शाम की फ्लाइट से थके हरे होटल पहुंछे.

उल्फ़त जिद कर रही थी कि बाहर घूमने चलते हैं.
कपड़े बदल दोनों घूमने निकल लिए और नवविवाहितों की तरह आपस में चुहलबाजी करते हुए डल लेक की कश्ती में एक दूसरे से चिपटे घूमते रहे.

उल्फ़त की चूत कुलबुला रही थी.
तो उसने इकबाल को जल्दी होटल वापिस चलने की जिद की.
दोनों फटाफट खाना खाकर होटल आ गये.

रूम में आकर उल्फ़त ने इकबाल से कपड़े बदलने को कहा.
खुद उसने अपनी कल वाली नाईटी ही निकाली और हल्का सा मेकअप करके और अपने को इत्र से महका कर बेड पर आ गयी.

इकबाल ने भी कपड़े बदल लिए थे.
उसने एक साटन का कुर्ता और लुंगी पहनी.

उल्फ़त चाहती थी कि उसका शौहर उसे गोदी में उठा कर बेड पर लाये.
पर पतले दुबले इकबाल के लिए यह रिस्क लेना संभव नहीं था.

खैर इकबाल ने उल्फ़त को आलिंगन में लेते हुए अपने बराबर बैठाया.
दोनों की चूमाचाटी तो चल ही रही थी … इकबाल ने अपने हाथ उसकी झीनी सी नाईटी के अंदर डाल कर उसके आमों को सहलाया तो उल्फ़त ने भी बड़ी बेबाकी से अपना हाथ उसकी लुंगी में डाल दिया.

आज तो इकबाल मियाँ का लंड तोप की तरह तना हुआ था.
उल्फ़त के अरमान मचल गए.
उसका मन किया कि वो लंड को चूम ले, मुंह में ले ले.

पर उसने सब्र किया कि कहीं इकबाल उसे गलत न समझ बैठे.
इकबाल ने उसके मम्मों को जाली से आज़ाद किया तो उल्फ़त ने बेड के बराबर स्विच से लाइट बंद कर दी.
अब कमरे में केवल एक नाईट लैंप था.

उल्फ़त ने अंगडाई लेते हुए अपनी नाममात्र की नाईटी को उतार फेंका और दूसरे हाथ से इकबाल की लुंगी खोल दी.

कुर्ता तो इकबाल पहले ही उतार चुके थे.
अब दो जिस्म कपड़ों के बंधन से आज़ाद होकर मछलियों की तरह मचलते हुए एक दूसरे से लिपट गए.

इकबाल तो इतनी मदमस्त जवानी को पाकर निहाल हो गया था और उल्फ़त को अपने पहले मिलन के सपनों को साकार करने का मौक़ा मिला था.

दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे.

इकबाल के हाथ में बार बार उल्फ़त के दूध जैसे गोरे मम्मे आ रहे थे.
वो उसकी निप्पल को भी चूम रहा था और उल्फ़त तो उसके लंड को ही मसल रही थी.

उल्फ़त की चूत में चीटियाँ चल रही थीं.
उसे महसूस हो रहा था कि उसकी चूत से गर्म पानी सा कुछ निकल रहा है.
उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इकबाल से कहे कि उसकी चूत को अब लंड चाहिए.

जब इकबाल ने पहल नहीं की तो उल्फ़त ने ही उसका तना हुआ लंड अपनी चूत के मुहाने पर रख दिया और कसमसाती हुई इकबाल से बोली- कुछ कीजिये … मेरा तो दम निकला जा रहा है.

पोर्न तो इकबाल ने भी देखी होंगी. वो अब घुटनों पर बैठ गया और उसने उल्फ़त की टांगें चौड़ा कर उसके ऊपर आकर अपना लंड पेल दिया उल्फ़त की कुंवारी चूत में.
पहला मिलन था दोनों का.
उल्फ़त चीखी.

हालाँकि इकबाल का लंड बहुत ज्यादा मोटा नहीं था पर पहली बार थी उल्फ़त की.
उसकी चूत में ऐसा लगा कि किसी ने गर्म सरिया घुसेड़ दिया हो.

घबरा कर इकबाल ने बाहर निकालना चाहा पर उल्फ़त उसे लिपट गयी.
कुछ सेकंड के इंतज़ार के बाद अब इकबाल ने उल्फ़त की चुदाई शुरू कर दी.

उल्फ़त उसका भरपूर साथ दे रही थी.
लंड ज्यादा मोटा न होने से उल्फ़त को तकलीफ ज्यादा नहीं हुई.

इकबाल लम्बी पाली नहीं खेल पाया और जल्दी ही उल्फ़त की चूत में खलास हो गया.
उल्फ़त के अरमान धरे के धरे रह गए.
वो तड़प रही थी.

पर पहली रात में क्या कहती अपने शौहर से?
बस दबी जुबान से इतना ही बोली- अरे बड़ी जल्दी निकाल दिया आपने?

इकबाल भड़क गया और दो टूक जवाब दिया- और क्या तुम सोचती थी कि रात भर यही करता रहूंगा?

इकबाल कपड़े पहन कर मुंह पलट कर सो गया.
उल्फ़त के गोरे गोरे गालों पर मोती लुढ़क आये.
कुछ देर कसमसा कर वो भी सो गयी.

कहानी 6 भागों में चलेगी.
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लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दिया जा रहा है.

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