छैल छबीली-2

(Chhail Chhabili- Part 2)

मस्तराम 2010-09-18 Comments

कहानी का पिछ्ला भाग : छैल छबीली-1
उसके पति शाम को मेरे से मिले, फिर स्नान आदि से निवृत हो कर दारू पीने बैठ गये. लगभग ग्यारह बज रहे थे. मैं अपनी मात्र एक चड्डी में सोने की तैयारी कर रहा था. तभी दोनों मियाँ बीवी के झगड़े की आवाजें आने लगी. मियाँ बीवी के झगड़े तो एक साधारण सी बात थी सो मैंने बत्ती बंद की और लेट गया.

अचानक मेरे कमरे की बत्ती जल गई. मैं हड़बड़ा गया… मैं तो मात्र एक छोटी सी चड्डी में लेटा हुआ था.
‘चलो, आज थन्ने एक बात बताऊँ?’ उसके गाल तमतमा रहे थे.
‘अरे मुझे कपड़े तो पहनने दो…’
‘कपड़ा री ऐसी की तैसी… अटै कूण देखवा वास्ते आ रियो है?’

उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींच के ले चली. अपना कमरा धड़ाक से खोला,
‘यो देख, कई! देख्या कि नाहीं… यो हरामी नागो फ़ुगो दारू पी ने पड़यो है.’
‘अरे ये क्या… चलो बाहर चलो…!’
‘अरे आ तो सरी… ये देख… लाण्डो तो देख, भड़वा का उठे ही को नी… भेन चोद!’

उसने उसके पास जाकर उसका ढीला ढाला लण्ड रबड़ की तरह पकड़ कर हिला दिया. फिर उसने उसकी पीठ पर दो तीन घूंसे मारे दिये.
‘साला… हरामी… हीजड़ा…!’
‘बस गाली मत दे… चल आ जा…!’
‘यो हराम जादो, मेरे हागे सोई ही ना सके… बड़ा मरद बने है!’

वो धीरे से सुबक उठी और मेरे पैरों के नजदीक रोती हुई बैठ गई. मुझे पता था कि इसके दिल की भड़ास निकल जायेगी तो यह शांत हो जायेगी. मैं उसे खींचते हुये बाहर ले आया. उसके मचलने पर मैंने उसे अपनी बाहों में उठा लिया और बैठक में ले आया. उसने मेरी गले में अपनी बाहें डाल दी और लिपट सी गई.

वो बहुत गुस्से में थी… अपने आपे में नहीं थी. उसने अपना कमीज उतार फ़ेंका.
‘ये देख छैला, मेरी चूचियाँ देख… कैसी नवी नवेली हैं!’

आह! अचानक इस हमले के लिये मैं तैयार नहीं था. उसकी चूचियाँ गोल कटोरी जैसे सीधे तनी हुई… जिनमें झुकाव जरा भी नहीं था, मेरे मन को बींध गई, मेरी सांस फ़ूल सी गई.
‘और ये देख, साली इस चूत को… किसके किस्मत होगी मेरी ये चूत… प्यासी की प्यासी… रस भरी… वो भड़वा… भेन चोद… मेरा मरद नहीं चोदेगा तो और कूण फ़ोड़ेगा इन्ने…?’
मेरा दिल जैसे मेरे उछल कर मेरे गले में आ गया. यह क्या हो रहा है मेरे ईश्वर!

फिर अचानक वो जैसे चुप सी हो गई.
‘हाय, मैंने ये क्या कर दिया…’ जैसे होश में आई हो.
‘नहीं, कोई बात नहीं… मन की आग थी… निकल गई!’

उसने नजर नीची करके कहा- अभी जाना नहीं, मैं चाय बना कर लाती हूँ… मेरे पास कुछ देर बैठना…’
वो चाय बनाने चली गई. मेरी नजरें जैसे ही नीचे गई मैं शरमा गया. मेरा लण्ड जाने कबसे खड़ा हुआ था. मैंने उसे नीचे दबाने की कोशिश की.
‘यो तो यूँ ही रहेगो… जतरा नीचे दबाओगे उतना ऊँचो आवेगो!’ उसकी खिलखिलाहट कमरे में तैर गई.

फिर वो चाय बनाने चली गई. चाय बना कर वो जल्दी ही ले आई. उसने चाय मेरे हाथ में पकड़ा दी. लण्ड स्वतन्त्र हो कर मेरी चड्डी को फ़ाड़ने के लिये जोर लगाने लगा. वो मेरे लण्ड की हालत देख कर खिलखिला उठी.
‘अरे वो… ओह क्या करूँ?’
‘कुछ नहीं, मरद का लण्ड है, वो तो जोर मारेगा ही…’
मैं बुरी तरह उसकी बातों से झेंप गया.

‘ये देख, मैं भी मर्दानी हूँ… ये मेरा सीना देख… और नीचे मेरी ये…’ उसने चादर उतारते हुये कहा.
मैंने उसके मुख पर हाथ रख दिया. चाय पीकर वो मेरे और करीब आ गई.

‘छैलू, मुझे एक बार बस, मर्दों वाला आनन्द दे दो…’ उसने कातर शब्द मेरे दिल को चीर गये. मुझ पर हमले पर हमले हो रहे थे. भला कैसे सहता ये सब… यह तो चुदाई की बात करने लगी थी.
‘पर आपका पति…?’

‘बस… उस भड़वे ने सूया ही रेवण दो…’ फिर जैसे चेहरे से तनाव हट गया. कुछ ही पलों में वो मुस्करा रही थी. मुझे उसने धक्का देकर बिस्तर पर चित गिरा दिया और मेरी चड्डी खींच कर उतारने लगी.
‘छैला, बस ये मस्त मुस्टण्डा मन्ने एक दाण… बस एक बार…’

मैं कुछ कहता उसके पहले वो उछल कर मेरे ऊपर चढ़ गई. उसने मेरा मोटा लण्ड पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी.
‘हाय, म्हारी बाई रे… यो तो मन्ने मस्त मारी देगो रे… ‘ उसे मसल कर उसने मेरे लण्ड की खूबसूरती को निहारा और अपनी चूत की दरार पर घिसने लगी. मेरे जवान तन में वासना सुलग उठी. मेरे जिस्म में ताकत सी भरने लगी. लण्ड बेहद कठोर हो गया.

वो लण्ड को अपनी चूत खोल कर उसमें घुसाने लगी. धीरे से लण्ड चूत के मुख में अन्दर चला आया. मुझे एक बहुत ही मीठा सा अहसास हुआ. उसके मुख से भी एक वासना भरी आह निकल गई. उसने लण्ड को और घुसा डाला. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने नीचे से चूत में लण्ड जोर से उछाल दिया. लण्ड पूरी गहराई में चूत को चीरता हुआ घुस गया.

छबीली के मुख से एक जोर की चीख निकल गई, साथ ही मैं भी तड़प सा गया. मेरे लण्ड में एक तीखी जलन हुई. मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिये. मैंने दुबारा जोश में एक धक्का और दे दिया.
इस बार वो फिर चीखी. मुझे भी जोर की जलन हुई.
‘ओह यह क्या बला है?’
‘अब नहीं… छैला… बस करो!’

उसने अपनी चूत ऊपर उठाई तो खून के कतरे टपकने लगे. मेरा लण्ड उसने बाहर निकाल लिया.
‘अरे ये तो सुपारे के साथ की चाम फ़ट गई है… देखो खून निकल रहा है.’ वो लण्ड को निहारते हुये बोली.
‘और छबीली, तेरी चूत में से ये खून…?’
‘वो तो पहली बार चुदी लगाई है ना…जाणे झिल्ली फ़ट गई है.’
‘तो क्या इतने महीनों तक…?’
‘म्हारी जलन यूँ ही तो नहीं थी ना… मन्ने तो हाथ जोड़ ने बस यो ही तो मांगा था.’

‘मेरी छबीली, आह्ह… ‘ मैंने उसे फिर से दबा लिया और उस पर चढ़ बैठा. घायल लण्ड को मैंने जोश में एक बार छबीली की खातिर मैंने उसकी चूत में उतार दिया. वो एक बार फिर बिलख उठी. मुझे भी जलन हुई. पर दोनों ने उसे स्वीकार किया और सारे दर्द को झेल लिया. कुछ ही देर के बाद बस सुख ही सुख ही था.

पहली बार की चुदाई में दो अनाड़ी साथ थे. हमें जिस तरह से जिस पोज में आनन्द आया, चुदाई करने लगे. मस्ती भरी सिसकारियाँ रात भर गूंजती रही. जैसे ये छैल और छबीली की सुहागरात थी. हम रुक रुक कर सुबह तक चुदाई करते रहे. जवान जिस्म थे, थकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. सुबह के चार बजने को थे.

मेरी तो चुदाई करते करते जान ही निकल गई थी. वो चुद कर जाने कब सो गई थी. मैंने उसकी साफ़ सफ़ाई करके कपड़े पहना दिये थे. धीरे से बैठक से निकल कर अपने कमरे में आ गया था. मैंने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और कटे वृक्ष की तरह से बिस्तर पर गिर पड़ा.

मुझे जाने कब गहरी नींद आ गई. जब आँख खुली तो दिन के बारह बज रहे थे. उठने को मन नहीं कर रहा था. लण्ड पर सूजन आ गई थी. मैंने दरवाजा खोला और फिर से सो गया. दोपहर को चार बजे नींद खुली तो मैं दैनिक क्रिया से निपट कर नहा धोकर बैठक में आ गया. वहाँ कुर्सी पर बैठ कर रात के बारे में सोचने लगा. लगा कि जैसे ये सब सपना था.

तभी छबीली चाय लेकर आ गई. वो भी बहुत धीरे चल रही थी. तबियत से रात को चुद गई थी ना. फिर उसकी चूत की सील भी तो टूटी थी. वो अपनी टांगें चौड़ी करके चल रही थी.

हमने एक दूसरे को देखा और जोर से ठहाके लगा कर हंस पड़े.
‘दोनों की हालत ही एक जैसी है…’ छबीली भी अपना मुख छिपा कर हंसने लगी.
‘हाय राम जी, कांई मस्त मजो आ गयो राते…’ उसने अपनी चूत पर हाथ फ़ेरते हुये कहा.
‘तो छबीली… अब चार पांच दिन आराम करो… दोनों के दरवाजे तो खुल गये है, फिर जोरदार चुदाई करेंगे.’
‘चलो अब भोजन कर लो… म्हारे तो यो देखो, कैसी सूजन आ गई है, बट एन्जॉयड वेरी मच!’
‘अरे तुम तो अन्ग्रेजी जानती हो?’
‘माय डियर आय एम ए पोस्ट ग्रेजुएट इन बोटेनी!’ वो इतरा कर बोली.
‘ओये होये सदके जावां, म्हारी समझ में तो तू तो निरी अनपढ़ छोरी है.’
‘अब तुम लग रहे हो वैसे ही वैसे जैसे देहात के!’

‘ये देख म्हारी हालत भी थारे जैसी ही लागे… ये लण्ड तो देख!’ मेरा सूजन से भरा लण्ड और भी मोटा हो गया था. उसने तिरछी निगाह से देखा और मुख दबा कर हंस पड़ी.
‘यो म्हारो भोदो भी देख, कई हाल है… देख तो सरी…’ उसने अपना पेटीकोट ऊँचा कर लिया. पूरी में ललाई आ गई थी, सूजन सी लगती थी. मैंने धीरे से नीचे बैठ कर उसे चूम लिया और पेटिकोट नीचे कर दिया.

चार पांच दिन तक हम दोनों बस अंगों से ही खेलते रहे. जब हम बहुत उत्तेजित हो जाते थे तो मेरा लण्ड कोमलता से सहला कर मेरा वीर्यपात करवा देती थी. मैं भी उसके दाने को सहला कर, हिला कर उसका पानी निकाल देता था. मुझे लगता था वो मुझसे प्यार करने लगी है. मेरा मन भी छबीली के बिना नहीं लगता था.

मैं सोच रहा था कि छबीली का पति यूँ तो करोड़पति था पर एक असफ़ल पति था. पत्नी के साथ सुहागरात भी नहीं मना पाया था. उसे डॉक्टरी इलाज की आवश्यकता थी या शायद वो नपुंसक ही था. पर यह बात उसके पति से कौन पूछे? बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे?
तो फिर वो ठीक कैसे होगा?

फिर मैं रात का छबीली को चोदने की योजना बनाने लग गया था. आज मैं भी स्वस्थ था और छैबीली भी तरोताजा नजर आ रही थी. बार हम एक दूसरे को इशारे कर कर के खुश हो रहे थे… रात होने का इन्तजार कर रहे थे.

रात को फिर वही छबीली की गालियों की आवाज आई… उसका पति निढाल पड़ा था… और खर्राटे ले रहा था. धुत्त हो चुका था. मैं कमरे में छबीली का इन्तजार कर रहा था…
प्रेम सिह सिसोदिया

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