पर पुरुष समर्पण-1

(Par Purush Samarpan-1)

मधुरेखा 2013-03-26 Comments

This story is part of a series:

पर-पुरुष सम्मोहन से आगे:

उस दिन वो तो चला गया पर मेरे मन में अपने लिये एक चाह जगा गया।

मैंने अपने मित्र को सारा घटनाक्रम बताया और आगे के लिए सलाह मांगी।

उन्होंने मुझे 2-4 दिन चुप बैठने को कहा।

अगले दिन उसका गुड मॉर्निंग का मैसेज आया।

मैंने कोई उत्तर नहीं दिया। हर सुबह उसका मैसेज आता पर मैंने कभी उत्तर नहीं दिया।

फ़िर एक दिन उसका फ़ोन आया, कहने लगा- मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।

मैंने कहा- कहो! पर पहले यह बताओ कि उस दिन तुमने मुझे क्या दवाई दी थी, मुझे गहरी नींद आ गई थी, रात नौ बजे तक सोती रही थी।

उसने कहा- वो तो सिर्फ़ क्रोसिन थी, नींद की दवाई नहीं थी।

फ़िर मैंने कहा- तुम कुछ कहना चाह रहे थे?

वो बोला- नहीं कुछ नहीं, फ़िर कभी!

मैंने कहा- कोई खास बात!

कहने लगा- हाँ, खास बात है, मुझे आपसे माफ़ी मांगनी है।

मैंने कहा- क्यों? तुमने क्या किया?

वो कहने लगा- मुझसे गलती हो गई थी, आपको पता नहीं लगा?

‘नहीं तो!’

उसका गला भर आया, उसने यह कह कर फ़ोन बन्द कर दिया- बाद में बात करूंगा।

यह सारी बात मैंने अपने मित्र को बताई तो उन्होंने मुझसे पूछा- अब तुम क्या चाहती हो?

‘सिर्फ़ एक बार मैं उसके साथ!!!’

‘तुमने सोच लिया? तुम अपने पति को दगा दोगी?’

‘हाँ, सोच लिया! वो मुझे दगा देते हैं, पिछले आठ दस महीनों में एक बार भी मेरे साथ कुछ नहीं किया, अक्सर घर से बाहर रहते हैं, खूब कमाते हैं और नई नई लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाते हैं तो मैं क्या करूँ? मेरी भी तो कुछ इच्छाएँ हैं, मेरा बदन भी तो जलता है कामवासना से!’

मेरे मित्र ने मुझे कई बार सोचने को कहा और मेरी ही जिद पर मुझे आगे क्या करना है वो समझाया।

मैंने अगले दिन शचित को फ़ोन किया- तुम कुछ कहना चाह रहे थे ना? अब कहो!

लेकिन उसके मुख से बोल निकल ही नहीं रहे थे।

तो मैंने अपने मित्र की सलाह अनुसार उसे कहा- किसी दिन शाम को तुम मेरे घर आ जाओ, इत्मीनान से बात करेंगे।

वो मान गया, मैंने उसे शनिवार शाम आठ बजे आने को कहा।

सारी योजना मेरे मित्र ने मुझे पहले ही समझा दी थी। उसी के अनुसार मैंने सारी तैयारी की, अगले दिन ब्यूटी पार्लर गई, सब कुछ करवाया, फ़ेशियल, मसाज, पैडिक्योर, मैनिक्योर, वैक्सिंग आदि सब!

बाजार से आइसक्रीम, रसगुल्ले और खाने पीने का काफ़ी सामान ले आई।

शनिवार शाम को मैंने खाना बना लिया फ़िर, साड़ी पहन कर खूब अच्छे से तैयार हुई।

कोई पौने आठ बजे शचित का मैसेज आया- मैं आ रहा हूँ।

मैंने जवाब दिया- ओके!

पांच मिनट बाद ही वो आ गया। मैंने उसे बैठाया, कहा- मैं कॉफ़ी बना कर लाती हूँ, उस दिन तुम ऐसे ही चले गए थे।

शचित बोला- उस दिन के लिए ही तो माफ़ी मांगने आया हूँ। आप बैठिए, कॉफ़ी रहने दीजिए।

लेकिन मैं पहले कॉफ़ी बना कर लाई, फ़िर बोली- लो कॉफ़ी पियो और बोलो क्या बात है?

उसने कॉफ़ी का मग पकड़ा और उस दिन जो जो हुआ, सब सिलसिलेवार बताता चला गया। मैं स्तम्भित सी उसकी बातें सुनती रही। उसका गला और आँखें दोनों भरी हुई थी, मैं एक शब्द भी नहीं बोली, लग रहा था कि वो सच में शर्मिन्दा था, लग रहा था कि वो अभी फ़ूट फ़ूट कर रो पड़ेगा।

उसकी बात पूरी हुई, मैंने कहा- तुम जाओ!

वो रो पड़ा- मैं अपने किए पर बहुत शर्मिन्दा हूँ, मुझे माफ़ कर दीजिए।

मैंने कहा- तुम जाओ!

‘आप मुझे थप्पड़ मारिये, गालियाँ दीजिए पर उसके बाद एक बार कह दीजिए कि आपने मुझे माफ़ कर दिया।’

मैंने कहा- सुना नहीं? तुम जाओ यहाँ से!

‘माफ़ी लिये बिना नहीं जाऊँगा, मेरे दिल पर बड़ा भारी बोझ है यह! मैं आपके पाँव पड़ता हूँ!’

कहते हुए वो सच में मेरे घुटनों पर झुक गया।

मैंने उसे कन्धों से पकड़ कर उठाया- मैं तुम्हें अच्छी लगती हूँ?

‘मुझे इस तरह मत सताइए, मारिये मुझे! पर मुझे माफ़ कर दीजिए!’

मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया- तुम चाहते हो मुझे? तुम्हें अच्छा लगा था वो सब करके?

‘मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ, मुझे माफ़ कर दीजिए प्लीज़!’

मैंने उसके गालों पर हाथ रखे, उसके आंसू पौंछे- क्यों अच्छी लगती हूँ मैं? क्या अच्छा लगता है मुझमें? मुझे प्यार करना चाहते हो?’

वो कुछ नहीं बोला पर मेरी बातों से उसे कुछ ढासस बंधा कि मैं उससे कुपित नहीं हूँ।

‘कुछ तो बोलो!’

‘हाँ, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।’

‘अच्छा तो अगर मैं तुम्हें अपने साथ कुछ करने दूँ तो तुम क्या करोगे?’

‘मैं बस एक बार आपको प्यार से अपनी बाहों में लेना चाहूँगा।’

‘और?’

‘बस…!’

‘डर रहे हो कहते हुए?’

‘हाँ!’

‘बिना डरे बोलो कि क्या क्या करना चाहोगे?’

‘मैं… मैं… आपको किस…!!!’

‘किस या कुछ और? तुम्हारी निगाहें तो मेरी इनकी तरफ़ होती हैं हमेशा!’

हाँ, ये भी…!’

‘तो बताओ क्या करोगे?’

उसने हिम्मत करके मेरे दायें उभार की ओर इशारा किया, बोला कुछ नहीं!

मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने दाएँ उभार पर रख लिया- यह चाहिये तुम्हें?

मेरे स्तन से उसका हाथ जैसे ही स्पर्श हुआ, वो सिहर गया।

‘क्या करोगे इसका? उस दिन क्या किया था? चूसा था? अब क्या करोगे?’

वो स्थिर खड़ा रहा, उसकी आँखें मेरी आँखों में झांक रही थी, कृतज्ञता व्यक्त कर रही थी।

मैंने उसका चेहरा अपने वक्ष पर झुकाया- लो!

साथ ही अपनी साड़ी का पल्लू हटा दिया। उसके हाथ मेरी पीठ पर आए और वो मेरी चूची को ब्लाऊज के ऊपर से ही चूसने लगा।

मैंने उसे उसके मन की करने दी। उसकी सांसें फ़ूल रही थी, उसके गर्म श्वास मेरे गले पर महसूस हो रहे थे।

‘हुक खोल लो!’

उसने सिर उठा कर अविश्वास से मेरे चेहरे को देखा तो मैं खुद ही हुक खोलने लगी। उसने मेरे हाथ हटाए और चट चट मेरे ब्लाऊज़ से सारे हुक खोल दिए, मेरी ब्रा को ऊपर सरका कए मेरे चुचूक को मुंह में लेकर किसी शिशु की तरह चूसने लगा।

मैंने अपने दोनों हाथ पीठ पर ले जा कर ब्रा का हुक खोल दिया और अपने दोनों उरोज निरावृत कर दिए।

फ़िर मैंने उसका चेहरा अपने दूसरे उभार की ओर घुमा दिया तो वो मेरा बायाँ स्तन चूसने लगा।

कुछ देर बाद मैंने पूछा- कैसा लग रहा है?

उसने फ़िर अपना चेहरा ऊपर उठाया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

मैंने उससे अपने होंठ छुड़ा कर कहा- अब तुम बेईमानी कर रहे हो!

लेकिन उसने बिना कुछ बोले फ़िर से मेरे लबों को अपने लबों की गिरफ़्त में ले लिया।

काफ़ी देर वो मुझे चूमता रहा। हम दोनों उत्तेजित हो चुके थे।

मैंने अपना ब्लाऊज और ब्रा पूरी तरह से अपने बदन से अलग करते हुए कहा- इन्हें जोर जोर से चूसो शचित!

और मैं शचित को अपने ऊपर लेते हुए वहीं दीवान पर लेट गई। मेरी आँखें बन्द थी!

अब शचित मेरी एक चूची को हाथ से मसल रहा था और दूसरी को चूस रहा था। धीरे धीरे वो मेरे पेट पर आया और मेरी नाभि को खोजने लगा। मेरी साड़ी बिल्कुल नाभि पर बन्धी थी तो उसने धीरे धीरे मेरी साड़ी की प्लीट्स खींचनी शुरू की।

मैंने उसे रोक दिया!

कहानी जारी रहेगी!
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top