भाभी का ब्लाउज देख लंड खड़ा हुआ

(Porn Soft Sex Kahani)

रोहित रवि 2025-11-14 Comments

पोर्न सॉफ्ट सेक्स कहानी में एक लड़का जिसने कभी चूत नहीं देखी थी, वह कपड़े प्रेस करने का काम करता था. वह लड़कियों और महिलाओं के वस्त्र देख कर उत्तेजित हो जाता था.

दोस्तो, मेरा नाम सरजू दिवाकर है। मेरी उम्र अभी 24 साल है।
मैं एक धोबी हूँ।
मेरी अभी शादी नहीं हुई है।

मेरी पोर्न सॉफ्ट सेक्स कहानी का मजा लें.

मैं कम उम्र से ही माँ के साथ शहर की बैंक ऑफिसर कॉलोनी में कपड़े प्रेस करने में उनकी मदद करता था।
माँ कॉलोनी में ही एक कोठी के आंगन में कपड़े प्रेस करती थीं।

उस कोठी में एक बैंक मैनेजर का परिवार रहता था जो हमारी धोबी जात का था।
वे मेरी माँ को अपनी सगी बहन की तरह मानते थे।

उन लोगों की आदत बहुत अच्छी थी। वे कोठी खाली करके अपने गृहनगर चले गए और कोठी हमें रहने के लिए दे दी।
वे किराया भी नहीं लेते थे।
बस इतना कहा था कि इस कोठी की देखभाल करते रहना और अगर कोई किराए पर रहने आए तो उसे किराए पर दे देना।

हमारा खुद का घर कॉलोनी से 4 किलोमीटर दूर था।
हमने अपने घर को किराए पर देकर कोठी में रहना शुरू कर दिया।

माँ-बेटे के लिए एक कमरा काफी था।
गैलरी काफी चौड़ी थी, जहाँ माँ फर्श पर दरी-चादर बिछाकर कपड़े प्रेस करती थीं।

एक बड़ा सा गेट था, जिसे हम कस्टमर के आने के लिए खुला रखते थे।
हमारा कमरा कपड़ों से भरा रहता था और आय भी अच्छी होती थी।

पिता की मृत्यु कई वर्ष पहले हो गई थी लेकिन माँ ने मेरी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी।
मैं भी माँ का हाथ बटाता था और घरों में कपड़े देने जाता था।

मैं कॉलोनी की सुंदर औरतों की तरफ आकर्षित होने लगा था।
कॉलोनी की सुंदर औरतें कपड़ों की गठरी लेकर कोठी पर आती थीं और माँ से काफी देर तक बातें करती थीं।

मैं उन्हें कमरे की खिड़की से छुपकर देखता था — उनके ब्लाउज में कसे हुए कद्दू जैसे बूब, चिकनी नंगी कमर, और नाभि।
मेरा मन करता था कि अभी उनका ब्लाउज खोलकर दूध पीने लगूँ।
उन्हें देखकर मुझे बहुत मज़ा आता था।

एक दिन माँ एक आंटी का ब्लाउज प्रेस कर रही थीं।
ब्लाउज बहुत सेक्सी, साधारण सा था … मेहरून रंग का कॉटन।

ब्लाउज प्रेस हो चुका था।

माँ ने उसे बिछा हुआ छोड़कर गेट के बाहर प्रेस से राख निकालने लगीं, फिर उसमें कोयला भरकर गर्म होने के लिए छोड़ दिया।

माँ ने मुझे आवाज़ लगाई, “ओ सरजू, मैं जरा सरला भाभी के यहाँ कपड़े देने जा रही हूँ। उन्हें आज कहीं बाहर जाना है और कुछ बकाया भी लेना है! हाँ, मैंने प्रेस गर्म होने के लिए छोड़ दी है। तू बस आराम-आराम से एक गठरी के कपड़ों पर प्रेस करता रहियो और हैंगर में टांग दियो। मैं आधे घंटे बाद आकर तह बना दूँगी। इतना तो तू कर सकता है! और हाँ, ये ब्लाउज बिछा हुआ है, इस पर एक बार प्रेस और मार दियो। वैसे तो मैंने कर दिया है, पर प्रेस ठंडी हो गई थी, वरना मैं खुद कर देती। ठीक है, मैं जाती हूँ, ध्यान रखियो!”

इतना कहकर माँ चली गईं।

बिछा हुआ सेक्सी ब्लाउज देखकर पैंट के अंदर मेरा मुन्नू जाग गया।

मैंने ब्लाउज पर गर्म प्रेस फिरा दी।
अब ब्लाउज और चिकना हो गया था और प्रेस उस पर फिसलने लगी थी।
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।

मैंने पूरा ब्लाउज देर तक प्रेस करके बिल्कुल सपाट और चिकना कर दिया। मेरा मुन्नू पूरा तन गया था।

फिर मुझे एक सनक सवार हुई। मैंने अपना मुन्नू पैंट से बाहर निकाला और उस बिछे हुए गर्मागर्म सेक्सी ब्लाउज पर लेटकर हल्के-हल्के रगड़ने लगा।
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था क्योंकि मैं पहली बार ऐसा कर रहा था।

अब मैं मदहोश हो गया था।
करीब दस-पंद्रह मिनट तक मैं अपने लंड से ब्लाउज प्रेस करता रहा और मैंने सारा वीर्य उस बिछे हुए ब्लाउज पर निकाल दिया।

पहली बार वीर्य निकालने के बाद मैं डर गया था कि माँ अब क्या कहेंगी।
मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

मैंने फटाफट से ब्लाउज को अच्छी तरह धोया और सूखने के लिए छत पर रस्सी पर टांग दिया।

मैं सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा, तभी माँ मुझे आवाज़ देने लगीं।
मैं और डर गया कि अब क्या होगा।
मैंने एक भी कपड़ा प्रेस नहीं किया था।

हिम्मत करके मैं नीचे गया।

माँ ने मुझे आते ही कहा, “तू ऊपर क्या कर रहा था? और ये क्या, सारे कपड़े तो वैसे ही पड़े हैं! तूने किया क्या इतनी देर? पता है कोयला कितना महंगा आ रहा है! कोई काम बता दूँ तो तू ऐसे ही करता है, नालायक कहीं का! और वो ब्लाउज कहाँ है, जो मैं तेरे भरोसे छोड़कर गई थी?”

मैंने डरते हुए जवाब दिया, “वो स्याही लग गई थी मेरे हाथ में, और प्रेस करते समय ब्लाउज पर लग गई। स्याही का दाग छुड़ाने के लिए मैंने ब्लाउज धो दिया और छत पर डाल आया।”

माँ ने कहा, “जा, नीचे ला वो ब्लाउज! पता नहीं तूने स्याही का दाग अच्छे से छुड़ाया कि नहीं। एक काम तो ढंग से होता नहीं तुझसे!”
मैंने वो ब्लाउज माँ को लाकर दे दिया।

माँ ने मुझसे कहा, “बाज़ार चला जा और एक बड़ा सा टाट का बोरा और चोकर ले आ!”
मैं चुपचाप बाज़ार चला गया और बोरे में चोकर भरकर लाने लगा।
मैं सोचने लगा, पता नहीं माँ इस चोकर का क्या करेंगी।

मुझे अब वो ब्लाउज वाला सीन याद करके बहुत मज़ा आता था और मेरा मुन्नू तन जाता था।

अब मेरा लंड ब्लाउज का भूखा हो गया था।

मैंने माँ को चोकर से भरा बोरा लाकर दे दिया।

कुछ देर बाद माँ ने उस बोरे को गद्दे जैसा बना दिया।
मैं समझ गया कि माँ ने ये प्रेस करने के लिए बनाया है।
माँ ने प्रेस वाली दरी-चादर हटाकर उसे बिछा दिया और उसके ऊपर दरी और चादर बिछाकर कपड़े प्रेस करने लगीं।

तभी पड़ोस की विमला नौकरानी आ गई और माँ से गप्पें मारने लगी।

उसने पूछा, “आंटी, आपने ये इतना मोटा क्या बिछा रखा है?”
माँ ने कहा, “कुछ नहीं, बोरे में भूसा भरकर बनाया था। इससे प्रेस बहुत हल्की और आराम से होती है, और कपड़े में फंसती नहीं है!”

अब माँ ने प्रेस ब्लाउज पर रख दी और प्रेस अपने आप उस पर फिसलने लगी।

ये देखकर मुझे और भी ज़्यादा मज़ा आ रहा था।
मन कर रहा था कि माँ से प्रेस छीनकर मैं प्रेस करने लगूँ।

मेरा मुन्नू ये देखकर उछलने लग रहा था।

अब मैं माँ को ब्लाउज प्रेस करते हुए देखता तो मेरा लंड ललचाने लगता था।
इतने सेक्सी-सेक्सी ब्लाउज देखकर मेरा मन औरतों के कपड़ों पर प्रेस करने का बहुत करता था।

मैंने माँ से कहा, “माँ, एक प्रेस और ले लो! मैं भी कपड़े प्रेस कर दिया करूँगा, और आपको भी आराम हो जाएगा!”

माँ ने कहा, “नहीं, तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और थोड़ा-बहुत हाथ बटा दिया कर! सहालग में काम बढ़ेगा, तब ले लेंगे!”

अब खाली समय में मैं कपड़ों पर प्रेस करने लगा था और सहालग आने का इंतज़ार करने लगा था।

जब माँ कमरे में होती थीं, तो मैं ब्लाउज और लंबी-लंबी कुर्तियों पर प्रेस रखकर छोड़ देता था।
प्रेस अपने आप फिसलने लगती थी, और मुझे ऐसे सॉफ्ट सेक्स में बहुत मज़ा आता था।

मैं औरतों के कपड़ों को देर तक प्रेस करके सपाट और चिकना कर देता था।
पुरुषों के कपड़ों को प्रेस करने में मुझे बहुत बोरियत होती थी और मैं जल्दी-जल्दी प्रेस करके रख देता था।

अब मैं कपड़े प्रेस करने में एक्सपर्ट हो गया था।
माँ भी मुझसे खुश होने लगी थीं और कहती थीं, “तू अब बहुत बढ़िया प्रेस करने लगा है!”

माँ को भी अब आराम मिल जाता था।

मुझे आंटियों और लड़कियों के कपड़े प्रेस करने में बहुत मज़ा आता था।

कभी-कभी ऐसी चिकनी साड़ियाँ, ब्लाउज, और कुर्तियाँ प्रेस करने को मिलती थीं कि मन करता था, अभी इन सबको अपने लंड से प्रेस कर दूँ।
लेकिन मेरा मुन्नू बेचारा प्रेस करने के लिए तड़पता रहता था और मैं माँ के सामने मन मारकर रह जाता था।

शाम को शिप्रा भाभी कपड़ों की गठरी लेकर आईं।
वो बहुत सुंदर, सेक्सी, और गोरी-चिकनी थीं।

उन्होंने लॉन्ग कुर्ती और चुस्त मेहरून रंग की लेगी पहनी थी और उनकी गांड बहुत चौड़ी थी।
मैं रूम में से छुपकर देख रहा था।
वो गठरी देकर चली गईं।

अब मेरा मन शिप्रा भाभी के कपड़ों को प्रेस करने का हो रहा था।

शाम के 7 बज चुके थे।
प्रेस अब लगभग ठंडी होने को थी और मुझे शिप्रा जैसी खूबसूरत भाभी के कपड़ों को अपने लंड से प्रेस करने की तड़प हो रही थी।
लेकिन माँ के सामने ऐसा करना नामुमकिन था।
फिर भी प्रेस करने का बहुत मन हो रहा था।

मैंने माँ से कहा, “माँ, आप आराम कर लो! एक गठरी कपड़े मैं प्रेस कर देता हूँ!”

पाँच-छह गठरियाँ बची हुई थीं।
माँ ने कहा, “रहने दे, प्रेस ठंडी हो गई है, और समय भी हो गया है। अब कल करूँगी!”

मैं निराश हो गया।
खाना खाने के बाद हम लोग सोने की तैयारी करने लगे।

माँ अब गहरी नींद में सो रही थीं और मेरा ध्यान शिप्रा भाभी के कपड़ों की गठरी पर था।

मैं चुपके से उठा और गठरी खोलने लगा।
गठरी में 5 कुर्ती-लेगी और 3 जोड़ी पैंट-शर्ट थीं।
कुर्ती-लेगी को देखकर मेरा लंड तड़पने लगा।

मैंने उस गठरी को पहले से रखी हुई गठरियों के नीचे दबाकर रख दिया ताकि उसका नंबर सबसे बाद में आए और मुझे प्रेस करने का मौका मिल जाए।
फिर मैं चुपचाप आकर लेट गया।

अगले दिन माँ कपड़े प्रेस करने की तैयारी करने लगीं।
उन्होंने कट्टे से कुछ कोयला निकाला और मुझे आवाज़ दी, “सरजू, वो हथौड़ी कहाँ है?”

वो गठरियों को अलग हटाकर ढूँढने लगीं।
मैंने हथौड़ी ढूँढकर माँ को दे दी।

माँ ने गठरियों को उसी जगह पर रखना शुरू किया और अब शिप्रा भाभी की गठरी सबसे ऊपर हो गई।
मेरा प्लान चौपट हो गया।

कुछ देर में प्रेस गर्म हो गई।
माँ ने सबसे पहले शिप्रा भाभी की गठरी उठाई और मैं देखता रह गया।

माँ ने शिप्रा भाभी की एक लंबी सी कुर्ती बिछाई, उस पर पानी छिड़का, और फिर कुर्ती की आस्तीन पर गर्म प्रेस सरकाने लगीं।

कुछ दिन बाद सहालग शुरू होने वाली थी।
माँ ने मुझसे एटीएम से कुछ पैसे निकलवाए और मेरे साथ बाज़ार चली गईं।

माँ उस गली में जाने लगीं, जहाँ लोहे का सामान मिलता था।
मैंने अंदाज़ा लगाया कि माँ अब नई प्रेस खरीदने वाली हैं।
मेरा अंदाज़ा बिल्कुल सही निकला।

माँ ने 20 नंबर की लोहे की कोयले वाली एक बड़ी प्रेस खरीद ली।

मैं बहुत खुश हो गया था क्योंकि अब मुझे सुंदर भाभियों के कपड़ों पर प्रेस करने को मिलेगा।

घर पहुँचकर माँ ने मुझसे कहा, “कल सुबह उठकर ऊपर वाला कमरा साफ कर देना! दो-तीन दिन बाद सहालग शुरू हो रही है, और काम बहुत ज़्यादा मिलने वाला है!”

मैंने ऑनलाइन एक हैंगर नुमा इलेक्ट्रिक कपड़े सुखाने की मशीन भी मँगा ली थी।
सुबह उठकर मैं खुशी-खुशी कमरा साफ करने लगा।

नीचे माँ बोरे में भूसा भरकर प्रेस करने वाला बिछौना बना रही थीं।
ये देखकर मैं और खुश हो गया।

एक-दो दिन बाद काम बहुत ज़्यादा मिलने लगा और कपड़ों की गठरियों का ढेर लगने लगा।
माँ ने मुझे एक पुरानी चादर और दरी देकर कहा, “इसे ऊपर वाले कमरे में ले जा और ये बोरा भी ले जाना। इसी के ऊपर दरी-चादर बिछाकर प्रेस करना। और ये नई वाली प्रेस ले जा!”

मैंने कहा, “नई वाली प्रेस आप ले लो, मैं पुरानी से काम चला लूँगा!”

माँ ने कहा, “जैसा तुझे सही लगे, वैसा कर! बस काम शुरू कर दे, कपड़ों का ढेर लगा पड़ा है!”

मैं प्रेस और कपड़ों की गठरियाँ ऊपर ले गया और प्रेस में कोयला भरकर गर्म होने के लिए छोड़ दिया।

सबसे पहले मैंने गठरी में से एक लंबी सी कुर्ती निकाली और प्रेस करना शुरू कर दिया।
कुर्ती पर प्रेस करने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
मेरा लंड कुर्ती को प्रेस करने के लिए ललचा रहा था लेकिन इन कपड़ों को आज ही कस्टमर को देना था।

शाम 6 बजे मुझे शिप्रा भाभी की आवाज़ सुनाई दी।
मैं जल्दी से नीचे सीढ़ियों में छुपकर उन्हें देख रहा था।

शिप्रा भाभी ने हँसते हुए माँ को एक बड़ी सी गठरी देते हुए कहा, “ये लो आंटी, आपकी अमानत!”

चार-पाँच मिनट गप्पे मारकर शिप्रा भाभी चली गईं।
मैंने उनकी गठरी को अच्छे से पहचान लिया था।

आज मुझे बहुत मज़ा आने वाला था, क्योंकि मैंने शिप्रा भाभी की गठरी में ब्लाउज की आस्तीन लटकती हुई देख ली थी।

मैंने सोचा कि कहीं माँ इस गठरी के कपड़े प्रेस न करने लगें।
इससे पहले मुझे किसी बहाने से इस गठरी को ऊपर लाना होगा

मैं पानी पीने के बहाने नीचे गया।
पानी पीकर मैंने माँ से कहा, “माँ, एक गठरी और ऊपर ले जा रहा हूँ!”
माँ ने कहा, “ठीक है, ये वाली ले जा! अभी शिप्रा दे गई थी!”

अब मैं शिप्रा भाभी की गठरी ऊपर ले गया और मेरा लंड मचलने लगा।
मैंने आज ऊपर वाले कमरे में सोने का प्लान बना लिया।

8 बज चुके थे।
माँ ने खाना खाने के लिए आवाज़ दी।
खाना खाने के बाद माँ मुझसे कहने लगीं, “अब तू ऊपर वाले कमरे में ही सो जाया कर! सफाई तो हो ही गई है। बक्से में से गद्दा और चादर निकालकर ले जा!”

ये सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।
मैं थोड़ी देर बाद ऊपर चला गया और अपना बिस्तर बिछा लिया।
प्रेस में कोयला डालकर गर्म करने लगा।

फिर मैंने शिप्रा भाभी की गठरी खोलकर सारे कपड़े अपने बिस्तर पर गिरा दिए।
उसमें तीन चिकनी साड़ियाँ, तीन ब्लाउज, छह कुर्ती-लेगी और तीन जोड़ी पैंट-शर्ट थीं।

पैंट-शर्ट को मैंने अलग रख दिया।
कपड़ों के ढेर पर अपना लंड खोलकर मैं उन पर गिर गया।

चिकनी साड़ी के स्पर्श से मेरा लंड पूरा तन गया था, मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
तब तक प्रेस गर्म हो चुकी थी।

मैंने शिप्रा भाभी का पिंक रंग का सेक्सी सादा ब्लाउज बिछाया और उस पर प्रेस सरकाने लगा।
प्रेस करने से ब्लाउज बहुत चिकना हो गया था।

अब मैं प्रेस को ब्लाउज पर छोड़ देता, और प्रेस अपने आप सरकने लगती थी।
फिर मैं शिप्रा भाभी के गर्मागर्म बाहें फैलाए बिछे हुए ब्लाउज पर हल्के-हल्के अपना लंड रगड़ने लगा।
सॉफ्ट पोर्न में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।

मैंने शिप्रा भाभी का गर्म ब्लाउज पहन लिया।

फिर मैंने उनकी चिकनी मुलायम साड़ी बिछाकर प्रेस करने लगा।
साड़ी और भी ज़्यादा चिकनी हो गई थी।

मैंने अपने लंड से शिप्रा भाभी की साड़ी को प्रेस किया और मेरा लंड बिल्कुल मदहोश हो गया था।
फिर मैंने उनकी चिकनी साड़ी पहन ली।

इसके बाद मैंने शिप्रा भाभी की एक लंबी कुर्ती बिछाई और प्रेस करके बिल्कुल चिकनी और सपाट कर दी।

अब शिप्रा भाभी की कुर्ती बेचारी बाहें फैलाए बिछी हुई थी मानो अपनी इज़्ज़त की भीख माँग रही हो।
लेकिन मेरा लंड बिल्कुल भी बख्शने वाला नहीं था।

मैं बिछी हुई कुर्ती पर लेटकर अपने लंड को मज़ा दे रहा था।
फिर मैंने शिप्रा भाभी की लंबी सी कुर्ती को ब्लाउज के ऊपर ही पहन लिया।
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।

इसके बाद मैंने उनकी बैंगनी रंग की चौड़ी गांड वाली लेगी बिछाई और गर्म प्रेस से चिकना-सपाट कर दिया।

अब शिप्रा भाभी की लेगी बिछी हुई अपनी गांड दिखा रही थी।
मेरा लंड लेगी की गांड पर फिसल-फिसलकर मज़े ले रहा था।

फिर मैं थककर थोड़ी देर लेट गया और शिप्रा भाभी की साड़ी, कुर्ती, और ब्लाउज पहने हुए सो गया।
सपने में मेरा लंड शिप्रा भाभी की गांड में गोते लगा रहा था।

अचानक 11 बजे मेरी आँख खुली, और मेरा लंड चिकनी साड़ी में तंबू बनाए हुए था।
मैंने उठकर फिर से प्रेस में कोयला डालकर गर्म किया।
शिप्रा भाभी का डीप नेक वाला मेहरून रंग का ब्लाउज बाहें फैलाकर बिछा दिया और उसे गर्म प्रेस से बिल्कुल चिकना कर दिया।

अब बेचारा डरा-सहमा सा ब्लाउज बाहें फैलाए बिछा हुआ था।

मेरा भूखा लंड ब्लाउज पर तबीयत से लोट लगाने लगा और परम आनंद की ओर बढ़ने लगा।

मेरी किनारे रखी हुई पीतल की काली पड़ चुकी प्रेस खामोशी से अपनी पीछे की दो आँखों से नज़ारे देख रही थी।
अब शिप्रा भाभी के ब्लाउज ने मेरे लंड को संतुष्ट कर दिया था।

अब मेरा लंड रोज़ सुंदर-सुंदर भाभियों के कपड़ों से मज़े लेता था।
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