शादीशुदा भाभी की कुंवारी चूत-5

(Shadishuda Bhabhi Ki Kunwari Chut- Part 5)

This story is part of a series:

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि

एक दिन मम्मी को शक हो गया था, जब मैं बाथरूम में बैठ कर अपने चूत के दाने को मसल कर सिसकारियां ले रही थी.

तब मम्मी ने मुझे सब समझाया और हमेशा मास्टरबेट यानि हस्तमैथुन करने को मना भी किया, पर कभी कभी के लिए मुझे छूट भी दे दी. मम्मी हर बार मुझे ये जरूर समझाती थीं कि मास्टरबेट तक तो ठीक है, पर शादी से पहले कभी किसी लड़के के साथ सेक्स मत करना.

अब आगे:

मैं मम्मी द्वारा समझाई गई बातों को अमल में लायी और जब कभी ज्यादा मन करता, तभी मास्टरबेट कर लेती. इसी तरह मेरी लाइफ अच्छे से लग रही थी.

आज से करीब 5 महीने पहले मेरे लिए मुम्बई से शादी का रिश्ता आया, लड़के वाले काफी अमीर लोग थे. उनका डायमंड का पुश्तैनी कारोबार था, लड़का भी अपने माँ बाप का इकलौता था और अब अपने पापा के साथ मिल कर अपना पुश्तैनी कारोबार ही संभाल रहा था.

मेरे घर वालों ने अपने हिसाब से लड़के वालों के बारे में पूरी जानकारी जुटाई. अंत में जब कुछ भी गलत नहीं लगा, तो मम्मी पापा को भी रिश्ता अच्छा लगा.

अब मेरे भी मन में अजीब तरह की खुशी होने लगी, सोचा चलो अब उंगली से काम नहीं चलाना पड़ेगा. कुछ दिन बाद ही मेरे पास भी एक लंड होगा, जो सिर्फ मेरी चूत चोदेगा. अब मुझे गाजर मूली या किसी और चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी.

सब कुछ तय होने के बाद दोनों घर वालों के बीच एक मीटिंग फिक्स हुई, जिसमें लड़के को और मुझे भी शामिल होना था. मैं तो लड़के से मिलने के लिए मन ही मन में बहुत खुश और एक्साईटेड थी. लड़के का नाम हितेश था.

वो दिन भी आ गया, जब मैं पहली बार हितेश से मिली … दिखने में एकदम राजकुमार लग रहा था हितेश … 5 फ़ीट 10 इंच की लंबाई … बॉडी भी ठीक ठाक … चेहरा भी अच्छा खासा … मैं तो देखते ही उस पर फिदा हो गयी.

घर वालों ने हमें कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दिया ताकि हम आपस में बात कर सकें. पर हितेश जैसे खुश नहीं था, वो ऐसे बर्ताव कर रहा था, जैसे वो सिर्फ रस्म निभा रहा हो. उसके बर्ताव से मुझे थोड़ा अजीब लगा, फिर सोचा शायद पहली बार मिल रहे हैं, तो हितेश शरमा रहा होगा. उसने मुझसे ज्यादा कुछ पूछा या बात नहीं की.

फिर हम दोनों की सहमति के बाद घर वालों ने दो महीने बाद सगाई और सगाई के 2 महीने बाद शादी की तारीख को फिक्स कर दिया.

उस दिन के बाद मैं रोज़ ही हितेश के कॉल का इंतजार करती … रात को सोने के टाइम यही दिमाग में आता कि कल पक्का हितेश कॉल करेगा और सुबह उठते ही सबसे पहला यही खयाल आता कि आज हितेश का कॉल आएगा ही. पर ऐसा होता नहीं था.

इधर चारु हमेशा मुझे हितेश के नाम से चिढ़ाती और उसकी देखा देखी बाकी लड़कियां भी मुझे हितेश का नाम लेकर चिढ़ाने लगीं.

तय समय पर सगाई भी हो गयी. कहते हैं ना कि लड़के और लड़की का सगाई और शादी के बीच का टाइम गोल्डन पीरियड होता है, क्योंकि दोनों में मिलने की, सुहागरात की और पता नहीं किस किस चीजों की तड़प होती है. मेरे अन्दर भी थी और शायद सिर्फ मेरे ही अन्दर थी. हितेश को जैसे कुछ मतलब ही नहीं था.

उसके फ़ोन कॉल्स के इंतजार और शादी की तैयारियों में कब दिन निकल गए, पता ही नहीं चला. शादी का दिन भी आ गया और शादी भी हो गयी.

ससुराल में आते ही बाकी की रस्म रिवाजों में सुबह से शाम हो गयी, पर रस्में थीं कि खत्म ही नहीं हो रही थीं. मैं तो रात होने का इंतजार कर रही थी. जब हितेश मुझे अपनी बांहों में कस कर पकड़ेंगे और मेरी ख्वाहिश पूरी हो जाएगी.

शाम हुई … ज्यादातर रिश्तेदार अपने अपने घर को जा चुके थे. एकाध जो बचे थे, उनके लिए पहले से ही गेस्टहाउस में सारी व्यवस्था कर दी गयी थी. घर में ज्यादा लोग नहीं थे.
मुझे भी मेरे रूम में छोड़ दिया गया … अब मैं सिर्फ और सिर्फ हितेश का इंतजार कर रही थी कि कब वो आए और हम दो जिस्म एक जान हो जाएं.

दो घण्टे तक इंतजार के बाद भी जब हितेश नहीं आए, तब मैं अपने कमरे से निकल कर बाहर देखने आयी. मैंने सोचा शायद दिन भर की भाग दौड़ और रस्मों की वजह से शायद थक कर हितेश कहीं भी सो गए होंगे, पर वो मुझे कहीं नहीं दिखा.

थोड़ी देर इधर उधर देखने के बाद मैं फिर से अपने रूम में आकर हितेश का इंतजार करने लगी. दिन भर की थकान के कारण कब मुझे नींद आ गयी, पता ही नहीं चला.

सुबह जब आंख खुली, तो काफी दिन निकल आया था. फ्रेश होकर जब सासू माँ के पास गई, तब उनसे पता चला कि हितेश ऑफिस जा चुके हैं.
पूरा दिन मैं यही सोचती रही कि क्या बात है जो हितेश कमरे में आए ही नहीं और सुबह बिना मुझसे बात किये ही ऑफिस चले गए. फिर खुद को समझाने के लिए यही सोचा कि हो सकता है दोस्तों के बीच कहीं बिजी होंगे इसलिए.

फिर रात हुई, फिर से हितेश के इंतजार में काफी देर तक बैठी रही, पर आज भी हितेश नहीं आए और पता नहीं कब मुझे नहीं आ गयी.

यही सिलसिला जब 5-6 दिन चला. दिन में कभी कभार हमारी थोड़ी बहुत बात हो जाती, पर ज्यादातर समय वो मुझसे दूर ही भागते. हितेश मुझे जानबूझ कर कोई मौका नहीं दे रहे थे. मुझसे बात करने का. वो सुबह जल्दी निकल जाते और रात को देर से आते. इस वजह से मुझे बात करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. तब मेरे धैर्य ने मेरा साथ छोड़ दिया … अब मैंने डिसाइड कर लिया कि चाहे जो भी हो, मुझे हितेश से बात करनी है. उनसे असली वजह जाननी है कि वो मुझसे दूर क्यों भाग रहे हैं.

वजह जाननी था, पर किससे और कैसे? एक बार तो सोचा मम्मी से बता दूँ सब … नहीं, नहीं मम्मी को नहीं बता सकती वरना मम्मी पापा दोनों परेशान होंगे … फिर किससे? सासू माँ से बात करूँ क्या? हाँ, सासू माँ से ही बात करनी पड़ेगी, शायद वो जानती हों, हितेश के इस बर्ताव का कारण.

यही सब सोच कर मैंने सासू माँ से बात करने का फाइनल किया. हितेश और पापा जी के ऑफिस जाने के बाद मैं सीधा सासू माँ के कमरे में गयी … देखा वो कोई मैगजीन देख रही थीं.
मुझे देखते ही उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया.

सासू माँ- आओ आओ कल्पना बेटा, कब से अकेली बैठी बोर हो रही थी, अच्छा किया जो तू खुद ही चली आयी, वरना मैं ही तेरे पास आने वाली थी.
मैं- मम्मी जी. मुझे आपसे कुछ बात करनी है?
सासू माँ- हां, बोलो बेटा, क्या बात करनी है?

फिर मैंने उन्हें हितेश के बारे में और उनके बर्ताव के बारे में सब बता दिया. मेरी बातें सुनने के बाद मम्मी जी ने एक लंबी सांस ली और बोलीं- तू जानती है बेटा, पिछले 3- 4 दिन से मैं इसी बात का इंतजार कर रही थी कि तू कब मेरे पास आएगी.
मैं- मतलब?
सासू माँ- मतलब ये कि बेटा, मुझे सब पता है कि हितेश ने अभी तक तुझे छुआ तक नहीं है … और वो तुझसे दूर भागता है.
मैं- ह्म्म्म … पर क्यों मम्मी जी? क्या हितेश की जिंदगी में कोई और है क्या? क्या ये शादी हितेश की मर्जी के खिलाफ हुई है?
सासू माँ- नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं है.
मैं- फिर कैसी बात है मम्मी जी, प्लीज आप खुल कर बताइए.

सासू माँ- अब जो कुछ मैं तुझे बोलने जा रही हूं, किसी भी माँ बाप के लिए उससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता और उन माँ बाप के लिए तो और … जिनकी एकलौती औलाद ऐसी निकल जाए.
मैं- ऐसी मतलब कैसी?
सासू माँ- बेटा, हितेश गे है.

इतना सुनते ही जैसे मेरे दोनों कान सुन्न हो गए, समझ में ही नहीं आया कि अभी जो मम्मी जी ने कहा, क्या मैंने वही सुना या कुछ गलत सुन लिया … कन्फर्म करने के लिये मैंने पूछा.
मैं- क्या? क्या कहा अभी आपने?
सासू माँ- हां बेटा, हितेश गे है. उसे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं है.

अब तो मेरी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या बोलूं? जब इन लोगों को सब पता था … तो उससे मेरी शादी क्यों करायी. अब समझ में आया कि वो शुरू से ही मेरे साथ क्यों अजीब बर्ताव कर रहा था.

कुछ देर तक चुप रहने के बाद … मैं- जब आपको सब पता था, तो क्यों किया आपने ये सब मेरे साथ, जब आपके लड़के को लड़कियों में कोई इंटरेस्ट है ही नहीं … तो क्यों मेरी जिंदगी बर्बाद की आपने?
इतना बोलते बोलते मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे. सासू माँ ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरे सर पर हाथ फिराते हुए बोली- मेरी पूरी बात सुन ले बेटा, उसके बाद तू जो कहेगी, वही होगा.

उसके बाद सासू माँ ने बोलना शुरू किया:
बेटा, तू तो जानती है, हितेश हमारा एकलौता बेटा है … शुरू से ही हमने उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी, बहुत ही लाड़ प्यार से पाला है हमने उसे, शुरू से ही मुझे उसकी हरकतें थोड़ी अजीब लगती थीं, तब सोचा कि बचपना है … धीरे धीरे सब सही हो जाएगा, पर जैसे जैसे वो बड़ा होता गया, वैसे वैसे उसकी हरकतें भी बढ़ती गईं. जब वो जवान हुआ, तो उसकी हरकतें भी जवान होने लगीं. कुछ दिनों बाद ऑफिस में उसके दूसरे लड़कों के साथ के किस्से सुनने को मिलने लगे.

जब बात हम तक पहुंची, तो हमने भी सच का पता लगाने के लिए ऑफिस में बिना किसी को बताए कुछ जगहों पर कैमरे लगवा दिए. अगले 15 दिनों में ही उसके अलग अलग लड़कों के साथ किये गए करतूत हमारे सामने आ गए.
जब हमने लड़कों को अलग बुला कर उसने पूछा, तो सबका एक ही जवाब था कि हितेश उन सबको नौकरी का डर दिखा कर उनसे वो सब करवाता था.

फिर हमने हितेश से बात करने का सोचा, आखिर हमारे वंश का सवाल था. जब हमने हितेश से बात की, तो उसका सीधा सीधा जवाब था कि उसे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं है और अगर हमने उसे फ़ोर्स किया तो वो घर छोड़ कर चला जाएगा.
कई बार समझाने के बाद भी वो नहीं माना.

फिर मैंने और तेरे पापाजी ने मिल कर फैसला किया कि किसी भी तरह उसे शादी के लिए मनाना है और उसके लिए हमे ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो हमारी परेशानी समझ सके. इससे हमारी इज़्ज़त भी बच जाएगी और हमारा वंश भी. दो साल की खोज के बाद हमें तू मिली, हमने तुझ पर 3 महीने नज़र रखी. तुझे अच्छी तरह से समझने के बाद हमें लगा कि तू ही हमारी मजबूरी समझ सकती है, इसलिये हमने तेरे यहां हितेश का रिश्ता भिजवाया. हमने हितेश को भी बता दिया कि उसे क्या करना है और उसके बाद का तो तुझे सब मालूम ही है.

मैं इन लोगों की परेशानी समझ गयी, पर मेरी परेशानी कौन समझेगा, यही सोचते हुए मैंने बात की- ये सब तो ठीक है मम्मी जी पर वंश कैसे बढ़ेगा आपका … जब हितेश कुछ करेगा ही नहीं तो?
सासू माँ ने लंबी सांस लेते हुए कहा- ये जरूरी तो नहीं ना बेटा कि हितेश ही कुछ करे, तो ही हमारा वंश आगे बढ़ेगा.
मैं- मतलब?
सासू माँ- देख बेटा, मैं तुझसे उम्र में काफी बड़ी हूँ, मैंने तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है और मेरा अनुभव ये है कि आज की तारीख में कोई भी मर्द सिर्फ एक औरत के साथ और कोई भी औरत सिर्फ एक मर्द के साथ नहीं रह सकती. आजकल सबको अलग अलग टेस्ट चाहिए होता है. तुझे इस सोसाइटी के बारे में ही बता दूँ, इसी सोसाइटी के करीब 90℅ औरत और मर्द का कहीं न कहीं टांका भिड़ा है.
मैं- इसका मतलब ये तो नहीं ना मम्मी जी कि सब वही करें?

सासू माँ- बात तो तेरी ठीक है बेटा … पर आजकल की पीढ़ी भी तो किसी एक साथ खुश नहीं है ना, लड़कों की बात करूँ तो दो दो तीन तीन गर्लफ्रैंड को घुमाते और एक साथ बजाते हैं. लड़कियां भी तो कम नहीं हैं, उनका भी मन नहीं भरता एक से … इसलिए हर 5-6 महीने में ब्वॉयफ्रेंड बदलती रहती हैं.
मैं- पर मम्मी जी मैंने कभी नहीं कुछ ऐसा, आज तक मैं कुंवारी ही हूँ.
सासू माँ- जानती हूं बेटा, बताया न तुझे की 3 महीने तक हमने तुझ पर नज़र रखी थी, तो हमें सब पता है तेरे बारे में.

मैं- अब मैं क्या करूँ मम्मी जी? मेरी तो कुछ भी समझ में ही नहीं आ रहा है. आप लोगों पर गुस्सा भी आ रहा है और तरस भी.
सासू माँ- बेटा, गुस्सा या तरस मत कर हम पर, तू अपनी लाइफ अपने हिसाब से जी.
मैं- बिना किसी मर्द के ऐसी भी क्या लाइफ मम्मी जी?
सासू माँ- बेटा किसने कहा कि मर्द के बिना लाइफ बिता, मैं तो कहती हूं कि हर रोज़ नए मर्द के साथ लाइफ बिता.

मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आया कि मम्मी जी कहना क्या चाहती हैं.
मैं- मतलब मम्मी जी?
सासू माँ- अब मैं तुझसे खुल कर बात करूँगी बेटा, आजकल हर औरत को दूसरा मर्द और हर मर्द को दूसरी औरत ही पसंद आते हैं. औरत की बात करूँ तो कोई अपने नौकर से, तो कोई अपने ड्राइवर से और कोई कोई तो वॉचमैन तक से चुदवा रही हैं इस सोसाइटी में … और जिनको इन सब में इंटरेस्ट नहीं है, वो सब भाड़े पर बुला कर चुदवा लेती हैं. उधर मर्द का भी सेम ही है, कोई अपनी नौकरानी को, तो कोई ऑफिस में काम करने वाली किसी साथी को चोद ही रहा है और जिनके पास ऐसा कोई जुगाड़ नहीं है, वो कॉलगर्ल को बुला कर चोद लेता है. मैं खुद कई औरतों को जानती हूं, जो ऐसा करती हैं और कुछ लड़कियां, जो अभी 20 की भी नहीं हुई हैं, वो भी चुदवा रही हैं. उन्हें भी …
मैं- पर मम्मी जी, कब तक पराये मर्द के साथ लाइफ जिएंगे, कोई अपना भी तो होना चाहिए ना आगे की लाइफ बिताने के लिए …
सासू माँ- देख बेटा, जब तक जवानी है ना … तब तक ही लाइफ को जिया जाता है. उसके बाद तो बस लाइफ बिताया जाता है … तो जब तक जवानी है तब तक जी अपनी लाइफ … और जवानी के बाद जिसके पास पैसा है. उसे किसी भी तरह की फ़िक्र करने की बात ही नहीं.

मैं उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी.

सासू माँ- एक बात बता दूँ बेटा तुझे, मैं भी कोई सती सावित्री नहीं हूँ, मैंने भी 2-4 बार अलग अलग टेस्ट लिया है. तेरे पापाजी भी कम नहीं हैं, वो तो अभी भी ऑफिस की एक औरत को चोदते हैं.
ये कहते हुए वो हँसने लगीं.
उनके मुँह से ऐसी बातें सुन कर मुझे शरम आ गयी, तो मैंने सर झुका लिया.

मेरे सर पर हाथ फेरते हुए सासू माँ बोलीं- बेटा, मैंने खुद 2-3 बार भाड़े पर बुला कर मज़े किये हैं, अगर तू कहे तो तेरे लिए भी किसी को बुला लूँ?
मैंने आश्चर्य से कहा- आप जानती हैं ऐसे बंदों को?
सासू माँ- जानती तो नहीं हूँ, पर ऐसे बंदे ढूंढना कोई मुश्किल काम भी नहीं है. बोल तो ढूंढना शुरू कर दूँ तेरे लिए?
मैं- मम्मी जी, इतना बड़ा फैसला लेने के लिए मुझे कुछ वक्त चाहिए, मैं आपको एक दो दिन में सोच कर बताती हूँ.

सासू माँ- ठीक है बेटा, सोच ले अच्छे से और जो भी तेरा फैसला हो बता देना.

शादीशुदा भाभी की कुंवारी चूत चोदन कहानी पर आप अपने विचारों से मुझे अवगत कराएं.
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कहानी जारी है.

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