विशाल लंड से चुदाई का नया अनुभव-1

(Vishal Lund Se Chudai Ka Naya Anubhav- Part 1)

नमस्कार, मैं सारिका फिर से एक अनुभव लेकर आपके समक्ष आयी हूँ. ये कहानी वहीं से शुरू होती है … जहां से माइक, मुनीर और शालिनी की कहानी खत्म हुई थी. पर ये सभी किरदार फिर से मेरी इस कहानी में साथ हैं.

उस रात वो लोग संभोग के बाद क्या करने लगे, ये तो नहीं पता, पर मैं सो गई थी. दो दिन तक उनसे बात भी नहीं हुई थी … क्योंकि मैं घर के कामों में उलझ गयी थी. जन्माष्टमी आने वाली थी, सब उसी में लगे थे और मैं भी घरवालों के साथ व्यस्त हो गयी थी. दो दिन के बाद मेरे बड़े भाई की लड़की और उसका पति आया था, सब मेहमान नवाजी में लग गए.

दोपहर तक मुझे थोड़ा आराम करने का मौका मिला, सो मैं अपने कमरे में सोने चली गई. अकेले थी, सो सोचा कि देखूं कि एडल्ट साइट पे क्या चल रहा है. मैंने तारा और माइक का संदेश देखा. माइक ने मुझसे मिलने की इच्छा जताई थी, तो वहीं दूसरी तरफ तारा ने लिखा था कि वो मुझसे मिलने आ रही है.

मैंने तारा की बात को मजाक में लेते हुए जवाब दिया कि जब मर्ज़ी चली आना.

माइक को मैंने जवाब दिया कि मुझे सोचने का समय चाहिए, मेरे लिए घर से निकल पाना मुश्किल है.

कुछ पलों के बाद मुझे संदेश आया कि मुनीर ऑनलाइन है और वो भी मुझसे मिलने के लिए व्याकुल है. मुनीर ने दोबारा संदेश दिया कि उसके घर कोई मेहमान आया है और उसने अपना कैमरा चालू करके मुझसे आग्रह किया कि मैं देखूं. मैंने देखा तो सामने बिस्तर पर एक नीग्रो दम्पति था. मुनीर ने बताया कि वो उनके अमेरिकी मित्र हैं. माइक दफ्तर गया है और वो तीनों ही सिर्फ घर पर थे. वे दोनों मर्द और स्त्री पूर्ण निर्वस्त्र थे और एक दूसरे के साथ आलिंगन कर रहे थे, जबकी मुनीर अपने कैमरे के सामने मुझसे बातें कर रही थी. नीग्रो दंपति बहुत ही काले थे. स्त्री काफी मोटी ओर लंबी चौड़ी थी, वहीं मर्द का शरीर किसी पहलवान की तरह था. मुझे लगा आज फिर कुछ रोचक दृश्य दिखेगा.

मैं बहुत उत्सुक हो गयी, तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया … तो मैंने तुरंत मोबाइल बन्द कर दिया और दरवाजा खोला. देखा कि हमारा नाती (बड़े भाई साहब की लड़की का बेटा) जो कि दो साल का है, खड़ा था. मैंने उसे गोद में उठाया और प्यार करने लगी. मेरे दिमाग से सब अब निकल चुका था और पीछे से हमारी भतीजी भी गयी, तो हम दोनों कमरे में जाकर बातचीत करने लगे. दिन बस ऐसे ही निकल गया … दोबारा मोबाइल पर ध्यान ही नहीं गया.

अगले दिन माइक का फिर से संदेश आया और उसने मुझे पूछा कि क्या हम मिल सकते हैं. मैंने कभी सोचा तो नहीं था कि ऐसा हो सकता है. पर बार बार माइक और मुनीर द्वारा पूछने पर अब मेरे दिल में हलचल सी होने लगी. अन्दर से डर भी लगने लगा. दिन भर मेरे दिमाग में बस यही बात चलती रही कि क्या जवाब दूँ.

रात हुई तो तारा का भी संदेश आया कि चलो पिछली बार की तरह फिर से कुछ किया जाए.
मैंने सीधा उत्तर दिया कि मेरी विडंबना तुम जानती हो, मैं जल्दी बाहर नहीं जा सकती.
उस पर उसने कहा कि पिछली बार की तरह ही वो मुझे बाहर निकाल लेगी.

मुझे थोड़ा यकीन आया क्योंकि मेरे घर वाले तारा से मिल चुके थे, तो बाहर जाने से मना नहीं करेंगे. पर अब मैं ये सोचने लगी कि बहाना क्या बनाऊँगी. मैंने उसको कहा कि मैं सोच कर बताऊंगी.

तब तक मुनीर का भी संदेश गया और उसने पूछा कि कब मिलने का सोचा है.
पता नहीं क्यों मेरे अन्दर से बात निकल गयी और मैंने उसे उत्तर दे दिया कि सोच कर बताऊंगी.

अगली दोपहर मैंने तारा को संदेश भेजा कि तुम मुझे किसके साथ मिलवाना चाहती हो?
उसने उत्तर दिया- माइक और मुनीर से.
मैं समझ गयी कि ये तीनों मिलकर ही साथ में योजना बना रहे थे. फिर मैंने पूछा कि कहां मिलने की योजना है?

तारा ने उत्तर दिया कि मैं परेशान न होऊं … माइक सारा इंतज़ाम कर लेगा. हम सुरक्षित जगह पर ही मिलेंगे और दिन में ही मिलेंगे ताकि मेरे घर वालों को कोई आपत्ति न हो.
उसकी बातें सुन कर मुझे भरोसा हुआ. पर जब उसने कहा कि कब मिलना है, तो मैं सोच में पड़ गयी.
मैंने कहा- सोच कर बताऊंगी.

अब मैं ये सोचने लगी कि आखिर ये सब होगा कैसे … वो लोग तो मुक्त थे, पर मेरी अपनी परेशानियां थीं.

दिन भर सोचने के बाद मैंने तय किया कि उनको मना कर दूंगी. पर रात को सोचते सोचते पता नहीं, अचानक मैंने निश्चय कर लिया कि मिलूंगी. शायद ये मेरे अन्दर की वासना थी, जो जाग्रत हो गयी थी. कैसे मिलूं … कैसे मिलूं … ये सोचते सोचते मुझे ख्याल आया कि जन्माष्टमी के दिन कोई बहाना बना कर दिनभर के लिए निकल सकती हूं.

करीब 2 बजे रात को मैंने तारा को संदेश भेज कर सारा कुछ बता दिया और सो गई.

अगले दोपहर मेरे पास संदेश आया कि सब तैयार है और तारा मुझे अपने साथ दिन भर के लिए ले जाएगी. मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं था और अन्दर से डर भी लग रहा था. बस एक हफ्ते की बात थी, पर मेरे मन बहुत बेचैन हो रहा था … तरह तरह के ख्याल मेरे मन में आ रहे थे. कभी घर वालों का डर होता, तो मनोबल टूटने लगता. तो कभी माइक के ख्याल से डर लगता … क्योंकि मैं उससे पहले कभी मिली नहीं थी और न ही वो हमारी प्रजाति से था. मैं खुद नहीं बता सकती कि मेरे भीतर क्या चल रहा था. मैंने अपनी सारी व्यथा उन तीनों से कहनी शुरू की, उन्होंने मेरा हौसला बढ़ना शुरू किया … पर मेरी स्थिति मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता था. इन्हीं ख्यालों बातों से एक हफ्ता बीतने को हो गया. जन्माष्टमी से एक दिन पहले उन्होंने मुझे एक संदेश भेजा कि वो मेरे शहर के पास आ गए हैं. मेरे तो जैसे होश ही उड़ गए … दिन भर सोचते हुए रात मैंने उन्हें मिलने से मना कर दिया. तारा पूरी तरह से नाराज हो गयी.

तारा ने मुझसे कहा कि हम सब इतनी दूर से आये हैं … पैसा खर्च किया और अब तुम नाटक करने लगी हो.

उसने करीब 2 बजे रात तक मुझे मनाया. फिर मैं भी उनकी बातें सुन मान गयी. रात बहुत देर से नींद आयी, पर सुबह जल्दी खुल गयी. दस बजे तारा मेरे घर पहुंच गयी … मेरे घर वालों को कुछ हैरानी नहीं हुई क्योंकि सभी तारा से मिल चुके थे.
जब मैंने कहा कि मैं उसके साथ उसके घर जा रही हूँ तो बड़ी जेठानी ने केवल इतना कहा कि ज्यादा रात मत करना और अगर देर हुई तो अगली सुबह जल्दी आ जाना.
जेठानी की बात सुन कर तारा तो जैसे ख़ुशी से झूम गयी, पर उसने अपने आव भाव किसी को पता नहीं चलने दिए. जेठानी की बात सुन कर मेरा भी हौसला मजबूत हो गया.
मैंने हामी भरते हुए तारा से कहा- तारा जल्दी चलो … रात होने से पहले वापस आना है.

हम बाहर निकल ही रहे थे, तो छोटी देवरानी ने टोका. मेरा दिल बैठ सा गया. मैंने भगवान को याद करना शुरू कर दिया और पूछा- क्या हुआ?
देवरानी ने पूछा- क्या आप बाज़ार जा रहे हो?
तारा ने जवाब दिया- हां, थोड़ा पूजा का सामान लेने जाना है.
तब देवरानी ने एक पर्ची दी और पैसे और कहा कि ये सामान भी ले आना.
मैंने पर्ची देखी तो मेकअप का सामान लिखा था, मैंने बोला- अगर देर नहीं हुई तो जरूर ला दूंगी.
देवरानी ने बड़े प्यार से विनती की कि कृपा करके ला देना, इधर मिलता नहीं ये सब … जो मैं इस्तेमाल करती हूं और आपके देवर ध्यान भी नहीं देते.

तभी जेठानी भी बाहर आने लगी, तो तारा ने तपाक से जवाब दिया- हां, सबसे पहले तुम्हारा ही सामान ले लेंगे ताकि जल्दी बाज़ार से निकल सकें.
जेठानी ने पूछा- क्या हुआ गई नहीं … देर करोगी क्या?
देवरानी ने उत्तर दिया कि दीदी बाजार जाएंगी … तो मैंने भी सामान मंगवा लिया. उसने साथ में ये भी बता दिया कि किस जगह आसानी से मिल जाएगी.

हम समय ज्यादा न बर्बाद कर तुरंत गाड़ी में बैठ निकल आये. तारा स्वयं गाड़ी चला रही थी.
मैंने उससे पूछा कि माइक और मुनीर कहां हैं और मिलने की जगह सुरक्षित तो है न?
तारा ने तुरंत जवाब दिया- फिक्र मत करो … इस बार ऐसी जगह पर सारा इंतज़ाम है कि दिल खुश हो जाएगा और किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहेगा.
मैंने कहा- पहले मेरी देवरानी का सारा सामान ले लेते हैं.

हम दोनों पहले बाज़ार चले गए, सारा सामान खरीदा. करीब दोपहर के दो बजे गए थे. काफी देर हो चुकी थी इसलिए अब घबराहट भी होने लगी थी. उधर माइक और मुनीर से मिलने की उत्सुकता भी थी और मुझे भय भी था कि आज क्या होगा.

तारा ने कहा- बस आधे घंटे का रास्ता है परेशान न हो.
पता नहीं उसे इस शहर का पता इतना ज्यादा कैसे था. बहुत ही भयहीन औरत है तारा, सही मायने में वो आज के युग की महिला थी.

करीब 3-4 किलोमीटर शहर से बाहर निकल कर मुख्य सड़क पे आने के बाद उसने एक कच्ची सड़क पकड़ी, जो सीधा जंगल के भीतर जा रहा था. मैं और भी ज्यादा भयभीत होने लगी कि आखिर ये कहां जा रही थी.

थोड़ी दूर और अन्दर जाने पे पता चलने लगा कि ये राष्ट्रीय उद्यान है और ये मुझे पीछे की तरफ ले जा रही थी.
मैंने तारा से कहा- यहां कहां जा रही हो? अन्दर जंगल के सिवा कुछ नहीं है. और यहां काफी लोग आते है घूमने … तुम मुझे वापस मेरे घर छोड़ दो.
तारा ने कहा- तुम बहुत डरती हो, थोड़ा सब्र कर लो तो बात पता चलेगी.

मेरे पास कोई विकल्प नहीं था. उस कच्ची सड़क से दूर कुछ लोग दिखने लगे थे, जो घूमने आए थे. मुझे बहुत घबराहट होने लगी कि कोई पहचान का व्यक्ति न मिल जाए … वर्ना मेरी सारी असलियत बाहर आ जाएगी.

कुछ दूर और चलने पे पूरा सुनसान जंगल और घने पेड़ दिखने लगे. थोड़ी दूर और चल कर एक रास्ता बाड़ के भीतर जाने का दिखा. हम भीतर चले गए तो देखा एक गेस्ट हाउस था. वो ऐसा दिख रहा था, जैसे कोई भूतिया हवेली हो. इधर दूर दूर तक कोई नहीं था, केवल पेड़ों पर बंदर और चिड़ियों की हलचल हो रही थी.

मैंने तारा से पूछा- क्या यही जगह है?
उसने उत्तर दिया- हां.
मैं डर गई और बोली- मुझे वापस घर ले चलो … मुझे डर लग रहा है.
उसने मुझे बताया कि फिक्र करने की कोई बात नहीं, ये बाहर से ऐसा है. भीतर चलो तो असली नज़ारा दिखेगा.

तारा ने गाड़ी से उतरने के बाद बताया कि ये वन विभाग का गेस्ट हाउस है, पर बन्द था.

माइक के एक जानकार ने इसे साफ सफाई करवा कर यहां ठहरने की अनुमति दी है. माइक ने बहुत पैसा खर्च कर सारा इंतज़ाम किया है और वन विभाग के चौकीदार को इधर आने से मना किया हुआ है.

मैं समझ गयी कि माइक किसी रसूखदार पद पर होगा, तभी ये मिला … क्योंकि बहुत से विदेशी पर्यटक यहां आते तो हैं, पर इतनी सुविधा सबको नहीं मिलती. जो भी आते हैं, वो मुख्य द्वार से अन्दर आते हैं और वहीं के गेस्ट हाउस में रुकते हैं. ये गेस्ट हाउस बहुत पुराना था और इस तरफ काफी घना जंगल था, सो किसी के भी इधर आने की बहुत कम संभावना थी.

तारा और मैं बातें करते हुए दरवाजे तक पहुंचे, दरवाजा खटखटाया तो मेरी दिल की धड़कन दोगुनी हो गयी. तभी तारा ने अपने पर्स से एक रेडियो निकाला और उसमें अंग्रेजी में कहा कि हम आ गए हैं.
उधर से माइक की आवाज थी. उसने कहा- ओके.
तारा मेरी तरफ देखती हुई बोली- यहां मोबाइल काम नहीं करता, इसलिये किसी भी मुसीबत में संपर्क करने का यही तरीका है.

तारा की बात खत्म होते ही दरवाजा खुला और सामने एक पहाड़ से व्यक्ति मुस्कुराता हुआ हमारा स्वागत कर रहा था. मैंने जैसा सोचा था, ये सब वैसा नहीं था. एक पल के लिए लगा क्या यही माइक है या कोई हमशक्ल.

करीब 7 फ़ीट का विशालकाय व्यक्ति, गेहुंआ रंग, सुडौल कंधे, मजबूत बाजू, चिकनी चमड़ी.

मैं तो केवल उसके पेट तक ही आ रही थी. मैंने तारा से पूछा- इतना लंबा चौड़ा … क्या ये ही माइक है?
उसने हंस कर बताया- हां माइक 6 फ़ीट 6 इंच का है … पर शरीर की सुडौलता के कारण इतना भयानक दिखता है.

खैर इतना कहते ही माइक ने बड़ी शालीनता से मेरा स्वागत किया और भीतर आने का न्योता दिया.

माइक का स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा. उसने मेरी तारीफ़ करनी शुरू कर दी, पर वो ज्यादातर अंग्रेज़ी में बोल रहा था. तो तारा मुझे अनुवाद कर बता रही थी.

देखा जाए तो माइक और मुझे एक समानता यह थी कि उसे हिंदी ठीक से आती नहीं थी और मुझे अंग्रेज़ी ठीक से नहीं आती थी. माइक केवल एक शार्ट पैंट में था, बाकी पूरा बदन खुला था.

हम दोनों बाकी सभी चीजों में विपरीत थे. उसने मुझे बैठने को कहा और पूछा कि कुछ पियोगी.
तारा ने कहा कि ये शराब नहीं पीती.
तो उसने मुझे ठंडा पीने के लिए कहा और एक तरफ जाने लगा.

जब वह चल रहा था तो मेरी नजर उसकी पैंट पर गयी, उसका लिंग पैंट के अन्दर झूल रहा था. मैं समझ गयी कि उसने अन्दर कुछ नहीं पहना है और साथ ही अचंभित भी थी कि जिस प्रकार लिंग झूल रहा था, वो काफी बड़ा लग रहा था. जब कि वो अभी उत्तेजित भी नहीं था.

मैंने कमरे को देखा. काफी काम करवाया गया था, एक तरफ रसोई घर था, जहां माइक गया था. हम जहां बैठे थे, वहां सोफे रखवाए गए थे. हमारे पीछे एक गलियारा था. शायद पीछे कुछ कमरे थे.

यही सब देखते हुए मैंने तारा से पूछा कि मुनीर नहीं आई है क्या?
तारा ने तुरंत जवाब दिया- माइक और मुनीर कभी अलग नहीं रह सकते.
मैंने कहा- तो वो कहां है?
उसने कहा- भीतर कमरे में होगी.
मैंने कहा- तो फिर चलो मिलते हैं उससे.
एक औरत का दूसरी औरत से मिलने में ज्यादा हिचकिचाहट नहीं होती, जैसा कि मर्दों से मिलने में होती है.
तारा ने कहा- हां चलो.

तब तक माइक एक ठंडा और एक गिलास में मदिरा लेकर आ गया. मदिरा का गिलास उसने तारा को दे दिया और ठंडा मुझे.
माइक ने कहा- मुनीर अंतिम कमरे में है, आओ चलो.

हम तीनों एक साथ चल पड़े. दरवाजे के सामने पहुंचते ही मुझे किसी मर्द के कराहने की आवाज सुनाई दी.

मैंने तारा और माइक की तरफ देखा दोनों मेरी और मुस्कुराते हुए देखने लगे. तारा ने दरवाजा खोला. भीतर जो नजारा था, वो मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था.
एक मर्द अपने घुटनों के बल कुत्तों की तरह बिस्तर पर झुका हुआ था और उसके पीछे मुनीर मर्दों की तरह धक्के मार रही थी.

मेरे को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये आखिर हो क्या रहा है. तारा ने मेरी दुविधा को समझ लिया और उसने मेरा हाथ पकड़ कर भीतर खींचा.

तभी मुनीर ने उस आदमी को धक्के मारते हुए मुझे ‘हैलो …’ कहा और बोली- आखिर हम मिल ही गए सुंदरी.

उस मर्द ने भी अपना सिर उठा कर मुझे देख हैलो कहा. मुझे लगा कि मैं इस मर्द को देख चुकी हूं.

तारा ने मुझे मुनीर के ठीक सामने ले जाकर खड़ा कर दिया और कहा- शौक बड़ी चीज है.

जब गौर से देखा तो मैं अचंभित रह गयी मुनीर एक प्रकार का रबर का लिंग एक बैल्ट के सहारे टिकाये हुए उस व्यक्ति की गांड में घुसा कर गुदा संभोग कर रही थी.

अब तारा ने मुझे समझाया कि ये एक तरह का गुदा मैथुन है … जिसमें अप्राकृतिक लिंग के सहारे समलैंगिक महिलाएं एक दूसरे के साथ संभोग करती हैं.

पर यहां तो एक मर्द और औरत उल्टा कर रहे थे. तारा ने मुझे बताया कि कुछ मर्द ऐसे भी होते हैं, जिनको अपनी गुदा में लिंग लेना पसंद होता है. ऐसे मर्द समलैंगिक भी होते हैं.

मैंने तभी माइक की तरफ देखा, उसने तुरंत कह दिया मुझे ऐसा कोई शौक नहीं है और न ही मैं समलैंगिक हूँ, मुझे केवल औरतें ही पसंद हैं.

मैंने देखा कि मुनीर जहां उसे धक्के मार रही थी, वहीं वो मर्द कराह रहा था और एक हाथ से अपना लिंग जोर जोर से हिला रहा था. मैंने तारा से कहा- मुझसे ये सब नहीं देखा जाएगा.
मैं बाहर जाने लगी, तभी मुनीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- रुको … हम सब तुम्हारे लिए ही तो यहां आए हैं.

फिर माइक ने मुझे पकड़ कर वहीं एक सोफे पे बैठने को कहा. तारा भी मेरे साथ बैठ गयी. मुनीर ने उस व्यक्ति को कुछ कहा और वो व्यक्ति अपनी अवस्था से उठ कर पीठ के बल लेट गया. मुनीर ने जो लिंग लगा रखा था, वो काफी मोटा और लंबा था. उसने उस पर एक क्रीम चिकनाई के लिए लगाई और उसे फिर से उसके गुप्तांग में घुसा धक्के मारने लगी. दोनों अब आमने सामने थे सो मुनीर धक्के मारने के साथ साथ उसके लिंग को पकड़ जोर जोर से हिलाने लगी. बस 5 मिनट के बाद वो मर्द और जोर जोर से कराहने लगा और उसने भी मुनीर का हाथ पकड़ अपने लिंग को और जोर जोर से हिलवाने लगा.

तभी अचानक उसकी एक तेज़ चीख निकली और एक तेज़ पिचकरी उसके लिंग से छूट गई. उसका वीर्य इतनी तेजी से निकला कि सीधा मुनीर के मुख और छातियों पे जा गिरा. वीर्यपात होते ही वो व्यक्ति शांत हो गया और मुनीर ने भी अपना नकली लिंग उसके गुप्तांग से बाहर निकाल लिया. वो व्यक्ति वहीं लेटा रहा, जबकी मुनीर बिस्तर पर से उठ कर हमारे पास आ कर बोली कि अभी मैं सफाई करके आती हूँ.

वो स्नानागार की ओर चली गयी.

थोड़ी देर बाद वो व्यक्ति भी उठा और माइक की तरफ देखते हुए बोला कि आपकी पत्नी मुनीर कमाल की औरत है, काश उसकी पत्नी भी वैसी ही होती.
माइक ने भी पूछा- क्या तुम्हें मजा आया?
उसने उत्तर दिया कि ये मेरे जीवन का मेरा सबसे अच्छा पल था.

फिर उसने मुझे देखा और वयस्क साइट पर जो मेरी आईडी थी, उसने मुझे उसी नाम से मुझे पुकारा.
मैं हैरान हो गयी कि इसे मेरी आईडी के बारे में कैसे पता चला.

तब उसने बताया कि वो भी उस साइट पे है और मेरे मित्रों की सूची में भी है, पर उससे केवल एक बार बात हुई थी, जिसमें उसने ये बात कही थी, जो आज मुनीर ने उसके साथ किया. इसीलिए मैंने इस व्यक्ति से दोबारा बात नहीं की थी. मुझे कुछ याद नहीं, पर शायद ये हुआ भी हो क्योंकि ये व्यक्ति मुझे देखा देखा सा लग रहा था. वैसे भी उसने जो अपना शौक बताया, वो मुझे अनपचा लगा इसलिये मैंने ज्यादा रुचि नहीं ली.

मुझे बस ये पता करना था कि वो कहां का रहने वाला है. उसकी बातों से पता चला कि वो वन विभाग का ही अधिकारी है और इस शहर का नहीं है. बस उसकी पहचान का इस वन विभाग का कोई अधिकारी है. अब मुझे समझ आया कि कैसे माइक ने सारा इंतज़ाम किया होगा. वैसे माइक को देख कर भी लग रहा था कि वो काफी पैसे वाला होगा.

खैर मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं था, पर मैं चाहती थी कि वो व्यक्ति यहां से चला जाए. और हुआ भी ऐसा ही. उसने कहा कि उसे जाना है, उसे जो चाहिए था … वो मिल गया.

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कहानी का अगला भाग: विशाल लंड से चुदाई का नया अनुभव-2

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