बहकते ज़ज्बात दहकता जिस्म-1

रोनी सलूजा अपनी ऑफिस की सहायिका लीना की कहानी आपके समक्ष लेकर उपस्थित है।
मेरी कहानियाँ पढ़ने वाले सभी लीना को जानते हैं, नये पाठकों को ‘कामदेवियों की चूत चुदाई’ इस कहानी में लीना के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपको मिल जाएगी !

एक दिन लीना ने मेरे को अपने साथ हुई जो घटना बताई उसे सुन कर मैं स्तब्ध रह गया यानि इन दो साल में वो मेरे साथ रहते अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ते क्या से क्या हो गई!
यह कहानी लीना की जुबानी आपके समक्ष पेश है !

मैं लीना 25 वर्ष गाँव की रहने वाली हूँ, बारहवीं के बाद मेरी पढ़ा बंद हो गई, चार साल पहले मेरी शादी हो गई थी तो शहर आ गई।

मेरे पति संतोष कुमार एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब करते हैं दस बजे से सात बजे तक !

इसलिए घर पर बोर होने से अच्छा मैंने कोई नौकरी कर लेना उचित समझा और पास में ही रोनी सलूजा सर के ऑफिस में काम मिल गया।

यहाँ मेरे को दो साल हो गए, जब मैंने नौकरी शुरू की थी, तब बहुत सीधी सादी थी परन्तु अब मुझे कम्पयूटर चलाना, बनना संवरना, कैसे किसी कस्टमर अपनी बातों से प्रभावित और संतुष्ट किया जाता है, ऑफिस में रहकर सब सीख लिया है। यहाँ रहकर ही अपनी
अल्हड़ मस्त जवानी का भी अहसास हो चुका है।

रोनी सर के सानिध्य ने मुझे जाने क्या क्या सिखा दिया, उनकी कहानी में पढ़ा होगा कैसे उन्होंने मुझे उत्तेजित करके पहली बार मेरे साथ यौन सम्बन्ध बनाये थे और जो असीम सुख मुझे मिला उसके बाद तो मुझे जैसे उनकी लत ही लग गई !

समय गुजरता रहा।

करीब तीन माह पहले मेरे दूर के रिश्ते का भाई जीतू नौकरी की तलाश में शहर आया था जो चार साल पहले मरियल सा दीखता था अब खूबसूरत और बांका जवान हो गया था, पांच माह बाद उसकी शादी होनी है।

उसको देखा तो देखती ही रह गई!

वो भी मुझे देख मेरी खूबसूरती की तारीफें करने लगा।

दरअसल शहर की हवा जो मुझे लग गई थी तो मुझ पर निखार आना तो स्वभाविक ही था।

मेरा फिगर 32– 29-34 है, मुझे उसके मुख से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लग रहा था।
वो दो दिन हमारे घर रुका, उसने और मेरे पति ने भी उसकी नौकरी के लिए यथा संभव प्रयास किये पर नतीजा कुछ न निकला।
वैसे भी अपने मन का जॉब मिलना इतना आसान तो नहीं होता!
न जाने उसमे क्या आकर्षण था कि उसके जाने के बाद मुझे उसकी याद आती रही, लगता जैसे वो मेरा दिल ले गया हो।
यदि एक बार काम वासना दिलो-दिमाग पर हावी हो जाये तो भावनाओं को बहकते देर नहीं लगती, न ही ज़ज्बात अपने वश में रहते हैं।

फिर वो 20–25 दिन में शहर आता रहा और मेरे मन में उससे मिलन करने की ख्वाहिश हावी होती रही, उससे कैसे यौन सम्बन्ध बनाया जाये, इसी उहापोह में लगी रहती !

मैंने सोचा रोनी से इस बारे में बात करूँ और उससे मिलन का कोई रास्ता पूछ लूँ पर इसमें मुझे काम बिगड़ने की आशंका ज्यादा लगी!

जीतू की नजरों से मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वो मुझे गलत नजर से देखता होगा पर मेरी नजरों में खोट आ चुका था, मैं बस मौके की तलाश में रहने लगी और वो मौका मुझे पिछले महीने में मिला।

अन्तर्वासना डॉट कॉम की कहानियाँ पढ़ते पढ़ते मुझे कई आईडिया मिल गए थे और जब सगे सम्बन्धी आपस में सम्भोग कर सकते हैं तो दूर के रिश्ते में ऐसी गुस्ताखी तो चल ही सकती है !

उस दिन जीतू सुबह नौ बजे गाँव से आ गया था। चाय नाश्ते के बाद दस बजे मेरे पति अपने काम पर चले गए, मैं अपने प्लान के मुताबिक बाथरूम में नहाने गई और सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

आज मैं अपने नंगे बदन की नुमाइश गैर मर्द के सामने करने वाली थी, मेरे हिसाब से मेरे खूबसूरत बेपर्दा जिस्म को देख जीतू के ज़ज्बातों का बहकना स्वाभाविक है, सेक्स की कल्पना मात्र से मेरे पूरे जिस्म में रोमांच और सिहरन सी उत्पन्न हो रही थी, दिल घबरा रहा था, उत्तेजनावश सारा बदन कंपकंपा रहा था, मेरे स्तनों की घुन्डियाँ कड़क हो कर तन गई थी, योनि गीली हो चली थी, मैं अपने आप में इतनी खुश थी और कल्पना कर रही थी कि बस कुछ देर बाद ही जीतू मुझे पलंग पर पटक कर रौंद रहा होगा।

अपनी योजना से संतुष्ट होकर मैंने जीतू को आवाज लगाई कि मेरा तौलिया बाहर रह गया है, जरा दे दो।

जैसे ही जीतू दरवाजे पर आया, मैंने आधा दरवाजा खोल दिया, लेकिन जीतू का चेहरा दूसरी तरफ था और उसने मेरे नंगे जिस्म को एक नजर नहीं देखा।

और वो मुझे तौलिया देकर चला गया !

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर कई घड़े ठण्डा पानी डाल दिया हो, मैं अपने गीले पेंटी ब्रा वहीं छोड़कर कपड़े पहन कर बाहर आ गई।

आकर जीतू को कहा कि वो नहा ले।

मैं खाना लगाने लगी।

जब वो नहा कर आया तो खाना लगते समय उसको अपने स्तनों को भी दिखने की कोशिश कर रही थी, जो उसने एक बार तो देख लिए, फिर वो खाना खाने में मस्त हो गया।

मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था।

मैंने बाथरूम में जाकर देखा। मुझे पूरी पूरी उम्मीद थी कि मेरी ब्रा पेंटी देख कर जीतू को जोश आ गया होगा और उसने उन पर हस्तमैथुन करके जरूर अपना वीर्य गिराया होगा!
लेकिन यह तो कहानियों में की बात है, वहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ, बस उसने उन्हें उठाकर एक साइड में रख दिया था !

निराशा से भरी मैं 11 बजे अपने ऑफिस आ गई, सोचा आज वासना की सताई लीना को रोनी का प्यार और उसका हथियार तृप्त कर देगा।

पर रोनी को तो जैसे तन की भाषा समझने की फुर्सत ही नहीं थी !
वो मुझे जलता छोड़कर अपनी साईट पर चला गया।

यहाँ ऑफ़िस में पर नेट पर मेरी एक सहेली से बात होती रहती है, उसको मैंने अपने दिल की बात बताई तो उसने भी कुछ टिप्स और आईडिया दिए।

शाम को घर पहुँची तो मेरे पति आ चुके थे, आज जो आग मेरे बदन को जला रही थी पति के साथ रात में चुदाई करवा कर ठंडी की !

कहानी जारी रहेगी।

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