संयुक्त परिवार में बिंदास चुदाई का खेल- 3
(Daughter In Law Sex Illicit Story)
डॉटर इन लॉ सेक्स इल्लिसिट स्टोरी में शादी के कुछ दिन बाद ही बहू ने अपने ससुर की कामुम दृष्टि अपने बदन पर महसूस की तो इस गंदे सेक्स सम्बंध की सोच से उसकी चूत गीली हो गयी.
साथियो, आपने कहानी के पिछले भाग
ससुर की नजर जवान बहू के वक्ष पर
में अभी तक पढ़ लिया था कि रात को हुए संभोग के दौरान नग्न सोनाली को देख कर उसके पापा प्रमोद को अपने ऊपर काबू नहीं रहा था.
उसी वासना के न/शे में प्रमोद ने अपने कमरे में जाकर अपनी पत्नी शारदा को खूब चोदा था.
अब आगे डॉटर इन लॉ सेक्स इल्लिसिट स्टोरी:
अगले दिन पंकज और सोनाली अपने घर चले गए और सचिन भी रूपा और प्रमोद के साथ ऑफिस आ गया.
चूंकि दोनों का ऑफिस प्रमोद के शोरूम के ऊपर ही था इसलिए तीनों का साथ आना स्वाभाविक था.
खैर … अब सब अपने अपने काम में लग गए.
प्रमोद को अक्सर दिन में कोई खास काम होता नहीं था.
अधिकांश काम सेल्समैन सम्हाल लेते थे.
कभी कभार ही प्रमोद को डिस्काउंट या कोई पेमेंट सम्बन्धी निर्णय के लिए पूछा जाता था.
बाकी शाम को हिसाब-किताब देखते समय ही प्रमोद व्यस्त होता था.
इसलिए अक्सर समय काटने के लिए कोई न कोई टाइमपास काम निकाल कर अपने केबिन में बैठा रहता था.
आज वह किसी पुरानी फिल्म की सीडी को कंप्यूटर पर कॉपी करने की कोशिश कर रहा था ताकि उसे बाद में कंप्यूटर या पेन ड्राइव पर लेकर घर के टीवी पर देखा जा सके.
जमाना बदल रहा था.
पुराने जमाने की सीडी अब कोई इस्तेमाल नहीं करता था इसलिए कोई ख़ास सॉफ्टवेयर उसने इंटरनेट से डाउनलोड किया था, जिससे रोज अपनी पुरानी सीडी कॉपी करने का काम किया करता था.
उस सॉफ्टवेयर में वीडियो का जो सीन कॉपी हो रहा होता था, उसका एक छोटा चित्र दिखाई देता था ताकि पता चलता रहे कि कहां तक कॉपी हो गया.
प्रमोद ने देखा कि काफी समय से वह सॉफ्टवेयर एक ही सीन पर अटका हुआ है.
उसने कुछ करने का प्रयास किया तो पता चला कंप्यूटर हैंग हो गया है.
उसने सोचा कौन माथापच्ची करे, जब बेटा खुद सॉफ्टवेयर का इतना जानकार है, तो उसी से सही करवा लेते हैं.
ये सोचकर उसने एक नौकर को ऊपर से सचिन को बुलाने के लिए भेजा.
थोड़ी देर बाद उसकी पुत्रवधू रूपा नीचे आई- पापाजी, ये थोड़े बिज़ी थे तो उन्होंने मुझे भेजा है. बताइये क्या हो गया आपके कंप्यूटर को?
प्रमोद- अरे नहीं जब सचिन फ्री हो जाए तब उसे ही भेज देना. मुझे ऐसा कोई काम नहीं है.
रूपा- क्या पापाजी! सचिन और मैं एक ही कॉलेज में पढ़े हैं. ऐसा कुछ नहीं है जो वह कर सकता हो और मैं नहीं.
प्रमोद- ठीक है देख लो फिर … ये कंप्यूटर हैंग हो गया है!
रूपा की सबसे पहली नजर तो उस दृश्य पर पड़ी जो वह सॉफ्टवेयर कॉपी करने का प्रयास कर रहा था.
एक साधारण दृश्य ही था, जिसमें एक परिवार के कुछ लोग टेबल पर बैठे डिनर कर रहे थे.
लेकिन ये फिल्म रूपा की देखी हुई थी.
टैबू सीरीज की ये दूसरी फिल्म थी.
खैर … रूपा ने मन ही मन मुस्कुराते हुए पहले तो उस सॉफ्टवेयर को जबरन बंद किया ताकि कंप्यूटर हैंग न रहे.
फिर उसने एक दूसरा सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करके प्रमोद को समझा दिया कि उसे कैसे इस्तेमाल करना है.
रूपा- पापा जी, ये काफी पुराने जमाने का सॉफ्टवेयर था. नए ऑपरेटिंग सिस्टम पर ठीक से नहीं चलता इसलिए मैंने ये नया डाल दिया है, अब आपको कोई दिक्कत नहीं होगी.
प्रमोद- थैंक्यू बहूरानी! कभी कुछ समझ नहीं आया तो फिर बुला लूँगा.
रूपा- जरूर … वैसे वह फिल्म मेरी फेवरेट फिल्मों में से एक है.
प्रमोद- अरे नहीं बेटा आप शायद गलत समझ रही हो. आपको नहीं पता होगा इस फिल्म के बारे में!
रूपा- टी … टू (टैबू 2). इशारा सही हो तो समझ लीजिये कि फिल्म भी सही है!
प्रमोद ये सुन कर थोड़ा हैरान हो गया क्योंकि ये फिल्म पारिवारिक रिश्तों में चुदाई के दृश्यों से भरी पड़ी थी.
ऐसा कोई रिश्ता नहीं था जिसके बीच इस फिल्म में चुदाई न हुई हो.
लेकिन कल ही तो प्रमोद ने इन भाई-बहनों की चौकड़ी को एक ही कमरे में देखा था जहां से उसकी बेटी ही नंगी बाहर आई थी.
ऐसे में अगर बहू को ऐसी फिल्म पसंद हो तो क्या बड़ी बात है.
लेकिन जब तक प्रमोद ये सब बातें समझ कर हजम कर पाता, रूपा केबिन का दरवाज़ा खोलकर बाहर जाने ही लगी थी.
प्रमोद ने हिम्मत करके कहा- अच्छा, तो फिर फेवरेट फिल्म का फेवरेट सीन कौन सा था, वह भी बता ही दो.
रूपा तब तक बाहर आकर पीछे से दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी इसलिए उसने बाहर की ओर देख कर चेहरे पर मजबूरी वाले भाव लाते हुए कहा- अभी रहने दीजिये. मौका देख कर बताती हूँ.
इतना कहकर उसने अपने ससुर को एक शैतानी मुस्कराहट के साथ देखा और फिर दरवाज़ा बंद करके चली गई.
शाम को जब तीनों साथ वापस घर जा रहे थे, तब भी रूपा और प्रमोद के बीच आंखों ही आखों में जो शरारती बातें हुईं.
इसके बाद रूपा को पक्का समझ आ गया कि ससुरजी अपने मन ही मन तो उसे नंगी कर ही चुके हैं, अब तो बस मौके की तलाश में हैं कि कब अपनी बहू की चुदाई कर दें.
उस रात रूपा ने थकान का बहाना करके सचिन से नहीं चुदवाया और मोबाइल में सुबह तीन बजे का वाइब्रेशन वाला अलार्म डाल कर सो गई.
सुबह तीन बजे आम तौर पर नींद गहरी होती है इसलिए रूपा तो सिरहाने रखे मोबाइल के कम्पन से उठ गई लेकिन सचिन को बिल्कुल होश नहीं था.
जब रूपा बिस्तर से उठ कर बाहर गई, तब उसने एक जांघों तक लंबा झीने कपड़े का छोटा सा काफ्तान पहना हुआ था, जिसके अन्दर वह पूरी नंगी थी.
अगर उजाला होता तो उस कफ्तान के बावजूद भी देखने वाले को शायद वह नंगी ही दिखाई देती.
रूपा सीधे अपने सास-ससुर के कमरे में गई.
ससुर जी पलंग के इसी ओर सो रहे थे तो सासू दूसरी ओर.
किस्मत से सासू मां ने करवट भी दूसरी और ही ली हुई थी.
ससुर जी ने बस एक पजामा पहना हुआ था और ऊपर कुछ नहीं था.
रूपा पलंग के किनारे जा कर जमीन पर बैठ गई और उसने धीरे से ससुरजी के पजामे का नाड़ा खींच कर खोल दिया.
उन्होंने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी तो रूपा ने अपने ससुर का लंड अपने मुँह में तुरंत ही भर लिया और चूसने लगी.
कुछ देर तो प्रमोद को लगा कि वह सपना देख रहा है लेकिन फिर उसकी नींद खुली और अपनी बहू को इस तरह लंड चूसती देख वह हड़बड़ा गया- अरे … अरे … रूप … ये क्या कर रही हो!
रूपा ने चूसना रोक कर अपने मुँह पर उंगली रख कर इशारे से चुप रहने को कहा. फिर खुसफुसाती हुई बोली- शऽऽऽऽ… फेवरेट सीन!
ये सुन कर तो प्रमोद के तोते ही उड़ गए क्योंकि उस फिल्म में बेटी ने ठीक ऐसा ही अपने पिता के साथ किया था.
प्रमोद समझ गया कि ये बात लंड चूसने पर नहीं रुकने वाली है. कुछ ही देर में वह अपनी बहू को चोद रहा होगा.
ये सोचते ही उसका लंड कुछ ही क्षणों में चट्टान की तरह खड़ा हो गया और इससे पहले कि वह आगे कुछ सोचता, रूपा ने अपना नगण्य सा परिधान उतार फेंका और वह अपने ससुर के घोड़े पर सवार हो गई.
थोड़ी देर तो प्रमोद स्थिति का आकलन ही करता हुआ निश्चल पड़ा था और रूपा उसके लंड को अपनी चूत में झूला झूला रही थी.
फिर प्रमोद का ध्यान रूपा के नग्न सौंदर्य पर गया तो उसने अपने हाथों से पहले उसके दोनों चूचों को सहलाया, फिर उसके नंगे शरीर को महसूस करता हुआ उसके नितम्बों को मसलने लगा … जो पहले ही पेंडुलम की तरह आगे पीछे हो रहे थे.
तभी शारदा ने करवट बदली और अब वह पीठ के बल सो रही थी कमरे में चल रहे डॉटर इन लॉ सेक्स से अनभिज्ञ
प्रमोद ने रूपा को अपने ऊपर से उतर कर बाजू में लेटने का इशारा किया और रूपा ने वही किया.
अब प्रमोद उसे पीछे से चोदने लगा और उसके हाथ रूपा के स्तनों को मसल रहे थे.
कुछ देर इसी तरह चोदने के बाद प्रमोद झड़ने की कगार पर ही था कि अचानक शारदा ने फिर से करवट बदली और उसका हाथ प्रमोद के कंधे पर आ गया.
हाथ थोड़ा और आगे होता तो शायद शारदा का हाथ रूपा के स्तन पर पड़ता.
इस बात से घबरा कर प्रमोद ने अपना लंड रूपा की चूत से बाहर खींच लिया लेकिन तभी वीर्य का फ़व्वारा छूट पड़ा और रूपा की जांघ गीली हो गई.
प्रमोद ने रूपा को जाने के लिए इशारा किया.
वह भी समझ गई थी इसलिए धीरे से पलंग से नीचे आई और अपना कफ्तान उठा कर चुपके से बाहर निकल गई.
अगले दिन रूपा मौका देख कर ऑफिस से निकली और अपने ससुर जी के केबिन में पहुंच गई.
दरवाज़ा बंद करके सीधे उनकी कुर्सी के बाजू से उन्हें अपनी बांहों में भर कर बोली- थैंक्यू पापा जी! जब से मैंने वह फिल्म देखी थी मेरा बहुत मन था ये करने का. आज आपने मेरा सपना पूरा करवा दिया.
प्रमोद- तुम ये मोहन के साथ करना चाहती थीं? फिल्म में तो पिता …
रूपा- नहीं मतलब हां … लेकिन मेरा वह मतलब नहीं था. आई मीन, मेरी मां तो है नहीं न … तो बाबा अकेले ही होते.
प्रमोद- ओह!
रूपा- मज़ा तो एडवेंचर का ही था न!
प्रमोद- लेकिन तुम्हारे एडवेंचर के चक्कर में मेरी तो जान ही निकल गई थी!
रूपा- ओऽ … लेकिन आपको मज़ा तो आया न?
प्रमोद- बहुत! लेकिन आगे से ऐसे रिस्क नहीं ले सकते.
रूपा- यहां आपके केबिन में सेफ है? जब दिल करे मदद के बहाने बुला लिया करना.
प्रमोद- अभी फ्री हो?
रूपा- अरे बिल्कुल … मैं तो आई ही यही सोच कर थी!
बस फिर प्रमोद ने अपनी बहू को वहीं टेबल पर झुका कर चोद दिया.
उसके बाद रूपा रात को सचिन से और दिन में अपने ससुर से चुदने लगी.
उधर रूपा की शादी के बाद मोहन निश्चिन्त हो गया था इसलिए खेती-बाड़ी में ही खपे रहने के बजाए अक्सर अपना खाली समय पंकज के घर पर ही बिताने लगा था.
पंकज ने रूपा वाला कमरा अपने पिता के नाम कर दिया था.
सोनाली भी इससे खुश थी कि दिन में जब पंकज घर में नहीं होता तो उसे अकेलापन नहीं लगता था.
लेकिन अक्सर उसने महसूस किया था कि जब वह ससुरजी के आसपास अपने काम में व्यस्त होती तो वह उसे अपनी नजरों से नंगी कर रहे होते थे.
एक रात चुदाई के बाद जब सोनाली पंकज की बांहों में नंगी लिपटी पड़ी थी तब सोनाली बोली- पता है आपको? बाबा अक्सर मुझे वैसी नजर से देखते हैं!
पंकज- जरा खुल कर बताओ.
सोनाली- अब इतने नादान मत बनो. मतलब जैसे अपने मन में मेरे कपड़े उतार रहे हों … वैसी नजरों से.
पंकज- तुमको बुरा लगता हो तो मैं बात करता हूँ बाबा से!
सोनाली- अरे नहीं. बेचारे काफी समय से अकेले हैं. मन तो करता होगा … मैं समझ सकती हूँ. ऊपर से जैसे ही मैं उनकी तरफ देखती हूँ तो नजरें झुका लेते हैं. मुझे तो कभी कभी दया आ जाती है.
पंकज- इतनी दया आती है तो थोड़ा उपकार ही कर दो!
सोनाली- सच्ची! आपको बुरा नहीं लगेगा?
पंकज- तुमने अपने भाई के साथ किया वह बुरा नहीं लगा तो बेचारे मेरे अकेले बाप को सुख दोगी तो मैं बुरा क्यों मानूँगा? उल्टा मुझे तो ख़ुशी होगी कि तुम बाबा को सुख ही दे रही हो … और फिर तुम भी दिन भर बोर होती होगी. थोड़ा तुम्हारा भी मनोरंजन हो जाया करेगा.
अगले दिन सोनाली जब अपने काम में व्यस्त थी तब मोहन हमेशा की तरह उसे देख कर आंखें सेंकने में लगा था.
फिर जैसे ही सोनाली उसकी तरफ देखती तो वह आंखें फेर लेता.
सोनाली- बाबा मुझे पता है … आप मुझे किस नजर से देखते हो. लेकिन जब मैं आपको देखती हूँ तो आप झिझक जाते हो. मुझे पता है सासू मां का नहीं रहने के बाद आपने कितनी तपस्या करके इनको और रूपा को पाला है … और इस काबिल बनाया है. ऐसे में अगर मुझसे आपको कोई भी सुख मिल सके तो मैं खुद को धन्य समझूंगी. इसलिए आप शर्माया न करो.
मोहन- तुम्हारे जैसी बहू बड़ी किस्मत से मिलती है. कितनी बड़ी बात कह दी तुमने. लेकिन सच तो ये कि शादी के बाद तुम्हारे पापा और हम दोनों ही एक दूसरे की बीवियों के दीवाने थे. लेकिन फिर तुम्हारे पापा शहर आ गए और इधर संध्या चल बसी. तुम बहुत कुछ अपनी मां जैसी दिखती हो इसलिए तुमको देख कर समधन की याद आ जाती हैं. बस इसलिए …
सोनाली- जो भी हो, आप बस जो दिल करे वह बता देना. आपकी कोई भी तमन्ना पूरी करके मुझे ख़ुशी ही मिलेगी.
उस दिन के बाद मोहन अपनी बहू को और खुल कर निहारने लगा लेकिन उससे अधिक उसने कुछ करने या कहने की हिम्मत नहीं की.
कुछ दिन बाद मोहन खाना खाकर उठा और सोनाली उनकी थाली उठाने के लिए झुकी तो मोहन की नजर सोनाली के स्तनों पर टिक गई.
वह तब तक वैसा ही खड़ा रहा जब तक सोनाली वहां से हट नहीं गई.
उसके बाद मोहन हाथ-मुँह धोने चला गया और सोनाली किचन में.
सोनाली जब किचन से बाहर आई तो उसके गाउन के ऊपर के दो तीन बटन खुले हुए थे.
एक बार फिर मोहन की नजर उन गोलाइयों के बीच की घाटी पर टिक गई.
इस बार वह सुन्दर नज़ारा और पास आता ही चला गया, जब तक सोनाली के उरोज अपने ससुर की नाक से बस दो इंच दूर थे.
सोनाली ने अपना बांया स्तन गाउन से खींच पर बाहर निकाला और उसे नीचे से पकड़ कर ऐसे आगे किया जैसे कोई चीज किसी को दी जाती है!
सोनाली- लीजिये बाबा, मुँह मीठा कीजिए.
मोहन- ये क्या कर रही हो बहू?
सोनाली- मैंने देखा आपका मन इसे देख कर ललचा रहा था तो सोचा आपकी ये भूख भी मिटा ही दूँ.
मोहन- नहीं … तुम मेरे बेटे की अमानत हो. मैं ऐसे उसके साथ धोखा नहीं कर सकता.
सोनाली- आप चिंता न करें. मैं एक पतिव्रता पत्नी हूँ. जिस दिन आपको बिना झिझक देखने के लिए प्रेरित किया था, उसी दिन आपके बेटे से इजाजत ले ली थी.
इतना कह कर सोनाली ने अपना चूचुक अपने ससुर जी के होंठों से लगा दिया.
कई सालों का भूखा इंसान खुद को कितना रोक पाता.
मोहन अपनी बहू के स्तन पर टूट पड़ा. दोनों हाथों से मसल मसल कर ऐसे चूसने लगा, जैसे किसी रसीले आम की आखिरी बूँद तक निचोड़ लेना चाहता हो.
थोड़ी देर बाद वह उठा और सीधे अपने कमरे में जाकर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया और फिर शाम को पंकज के घर आने के बाद ही बाहर आया.
रात को जब सब खाना खा रहे थे तब सोनाली ने कहा- मैंने आज तक बाप-बेटे का ऐसा प्यार नहीं देखा.
पंकज- क्यों क्या हुआ?
सोनाली- मैंने आप से बात की थी न बाबा के बारे में … तो आज मैंने उनको ‘वह वाली गोल मिठाई’ दी, लेकिन बाबा तो मिठाई खाने को तैयार ही नहीं थे. कहने लगे कि बेटे की है. लेकिन जब मैंने उनसे कहा कि उनके बेटे की भी इच्छा है, तब कहीं जा कर चखी है बस!
मोहन शर्मा गया और बिना किसी की ओर देखे हाथ धोने चला गया.
रात को सोने के लिए जब मोहन अपने कमरे की तरफ जाने लगा तो पंकज ने उन्हें रोक कर कहा- आज मेरे कमरे में ही चलिए. साथ में मिठाई खाते हैं.
मोहन- क्या बात कर रहे हो. ऐसे कहीं होता है क्या?
पंकज- आपने हमारे लिए इतना कुछ किया तो क्या हम आपकी ख़ुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकते? जो मैं रोज करता हूँ, वही अगर आप भी कर लोगे तो सोनाली घिस थोड़े ही जाएगी.
उसके बाद दोनों पंकज के कमरे में पहुंचे तो सोनाली ने दोनों के साथ अपने पति की तरह ही व्यवहार करते हुए एक साथ सम्भोग शुरू किया.
सोनाली को सामूहिक चुदाई का पहले ही अनुभव था इसलिए दो-दो लंडों को एक साथ चूसना उसके लिए बड़ी बात नहीं थी.
फिर पति से चुदाई करवाते हुए ससुरजी के लौड़े की चुसाई करती रही ताकि घबराए हुए ससुरजी का लंड भी सीना तान कर खड़ा हो सके.
कुछ देर बाद जब ससुर जी का लंड खड़ा हुआ तो सोनाली अपने ससुर के ऊपर चढ़ कर उनके नंगे बदन से लिपट कर चुदवाने लगी.
उधर पीछे से पंकज सोनाली की गांड मारने लगा तो मोहन को संध्या और अपने साले के साथ के वे दिन याद आ गए जब वह अपनी पत्नी और साले के साथ त्रिकोणीय चुदाई किया करता था.
उन पुरानी यादों के ताज़ा होने से मोहन इतना आनंदित हुआ कि उसने सोनाली को चोदते-चोदते बहुत आशीर्वाद दिए.
उस रात तीनों एक दूसरे से लिपट कर वहीं नंगे ही सो गए.
अगली सुबह मोहन ने सोनाली को बताया कि उसकी बड़ी तमन्ना थी शारदा के साथ ये सब करने की … लेकिन वह कभी पूरी हो नहीं पाई इसलिए वह सोनाली का बहुत शुक्रगुज़ार है कि उसने उसकी ये तमन्ना पूरी करवा दी.
उसके बाद सोनाली रात को पंकज से और दिन में अपने ससुर से चुदने लगी.
छुट्टी के दिन वह दोनों से एक साथ चुदाया करती.
इस तरह बाप बेटे के बीच सम्बन्ध और भी दोस्ताना हो गए.
लेकिन कभी तो खेती की देखरेख करने के लिए मोहन को गांव जाना ही था.
आखिर वह दिन आया और मोहन गांव के लिए निकला.
रास्ते में वह प्रमोद के घर रूपा से मिलते हुए जाने वाला था.
दोस्तो, इस डॉटर इन लॉ सेक्स इल्लिसिट स्टोरी के अगले अंकों में आपको परिवार के निकट संबंधों में सेक्स का खेल एक विशेष अनुभूति कराएगा.
आप अपने विचार मुझे ईमेल से जरूर भेजें. कहानी के अंत में कमेंट्स भी कर सकते हैं.
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डॉटर इन लॉ सेक्स इल्लिसिट स्टोरी का अगला भाग:
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