ज्योतिषी की सलाह-4

सूत्रधार 2008-10-07 Comments

प्रेषक : रिशु

कहानी का पिछला भाग: ज्योतिषी की सलाह-3

रिशु अब उसकी चूत पर झुका। होठों के बीच उसकी झाँटों को ले कर दो-चार बार हल्के से खींचा और फ़िर उसकी जाँघ खोल दी। उसकी चूत की फ़ाँक खुद के पानी से गीली हो कर चमक रही थी। रिशु अपने स्टाईल में जल्द ही चूत चूसने लगा और रश्मि के मुँह से आआअह आआअह ऊऊऊऊ ओह जैसी आवाज ही निकल रही थी।

रिशु चूसता रहा और रश्मि चरम सुख पा सिसक सिसक कर, काँप काँप कर हम लोगों को बता रही थी कि उसको आज पूरी मस्ती का मजा मिल रहा है।

जल्द ही वो निढ़ाल हो कर थोड़ा शान्त हो गई।

तब रिशु ने उसको कहा- अब मेरे लण्ड को चूस कर उसका एक पानी झाड़।

रश्मि शान्त पड़ी रही, पर रिशु उसके बदन को हल्के हल्के सहला कर होश में लाया और फ़िर उसको लण्ड चूसने को कहा।

रश्मि एक प्यारी से अदा के साथ उठी और फ़िर रिशु के लण्ड को अपने मुँह में ले लिया। वो अब मुझसे बिना शर्म किए खूब मजे लेने के मूड में थी। कभी हाथ से वो मुठ मारती, कभी चूसती और जल्द ही रिशु का लण्ड फ़ुफ़कारने लगा, फ़िर झड़ भी गया।

पर रश्मि ने ना में सर हिला दिया, तब रिशु तुरंत उठा और सारा माल रश्मि की चूची पर निकाल दिया। झड़ने के बाद भी रिशु का लण्ड हल्का सा ही ढीला हुआ था, जिसको उसने अपने हथेली से पौंछ दिया और फ़िर रश्मि को कहा- अब इसको चूस कर फ़िर से तैयार कर !

जब रश्मि ने चूस कर उसका खड़ा कर दिया तब उसने रश्मि को नीचे लिटा दिया। फ़िर उसकी टाँगों को पेट की तरफ़ मोड़ दिया, खुद अपने फ़नफ़नाए लण्ड के साथ बिल्कुल उसकी खुली हुई बुर के पास घुटने पर बैठ गया। हल्के हल्के से लण्ड अब उसकी बुर के मुहाने पे दस्तक देने लगा था। रश्मि अपनी आँख बन्द करके अपने बुर के भीतर घुसने वाले लण्ड का इन्तजार कर रही थी। रिशु ने अपने लण्ड को अपने बाँए हाथ से उसकी बुर पर टिकाया और फ़िर उसको धीरे धीरे भीतर पेलने लगा। रश्मि के मुँह से सिसकारी निकल गई और जब लण्ड आधा भीतर घुस गया, तब रिशु ने एक जोर का धक्का लगाया और पूरा सात इन्च भीतर पेल दिया।

रश्मि हल्के से चीखी- उई ई ईई ईईए स्स्स्स्स् स माँ आआआह !

और रश्मि की चुदाई शुरु हो गई। जल्द ही वह भी अपनी बुर को रिशु के लण्ड के साथ “ताल से ताल मिला” के अन्दाज में हिला हिला कर मस्त आवाज निकाल निकाल कर चुद रही थी, साथ ही बोले जा रही थी- आह चोदो ! वाह, मजा आ रहा है, और चोदो, जोर से चोदो, लूटो मजा मेरी बुर का, मेरी चूत का, बहुत मजा आ रहा है, खूब चोदो ! खूब चोदो !

फ़िर जब रिशु ने चुदाई की रफ़्तार बढ़ाई, रश्मि के मुँह से गालियाँ भी निकलने लगी- आआह मादरचोद ! ऊऊ ऊ ऊओह बहनचोद ! साले चोद जोर से चोदो रे साले मादरचोद।

रिशु भी मस्त हो रहा था, यह सब सुन सुन कर मस्ती में चोदे जा रहा था और रश्मि की गाली का जवाब गाली से दे रहा था- ले चुद साली, बहुत फ़ड़क रही थी, देख आज कैसे बुर फ़ाड़ता हूँ। साली कुतिया, आज लण्ड से तेरी बच्चादानी हिला के चोद दूँगा। देखना तू !

दोनों एक दूसरे को खूब गन्दी गन्दी गाली दे रहे थे और चुदाई चालू थी।

थोड़ी देर बाद रिशु ने लण्ड बाहर निकाल लिया। तब रश्मि ने उसको लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। वो अब ऊपर से उसके लण्ड पर कूद रही थी और मैं उसके सामने होकर देख रहा था कि कैसे लण्ड को उसकी बुर लील रही थी।

पाँच मिनट बाद रिशु फ़िर उठने लगा और फ़िर रश्मि को पलट कर उसको घुटनों और हाथों पर कर दिया फ़िर पीछे से उसकी बुर में पेल दिया, बोला- अब बन गई ना रश्मि तू कुतिया ! साली चुद और चुद साली ! यहाँ लण्ड खा गपागप गपागप गपागप। मादरचोद ! बोल रन्डी, बोल साली कुतिया।

और वो भी नशे में बोल पड़ी- रन्डी रन्डी, साले बहनचोद तुम लोगों ने मुझे रन्डी बना दिया।

रिशु अब एक बार फ़िर लण्ड बाहर निकाल लिया और फ़िर उसको सीधा लिटा दिया। ऊपर से एक बार फ़िर चुदाई शुरु कर दी।

और करीब तीस मिनट के बाद रश्मि एक बार फ़िर काँपने लगी, वो फ़िर एक बार झर रही थी। तभी रिशु भी झरा- एक जोर का आआआआह और फ़िर पिचकारी रश्मि की झाँट पर छोड़ दी।

अब रिशु उठा और मुझे इशारा किया और अब मैं आगे बड़ा। रश्मि नशे में पड़ी हुई एकदम कच्ची कली जैसी, फ़कत कुँवारी, कोरी रसमलाई जैसी। मैंने सोचा अब देर करना ठीक नहीं क्योंकि इसका नशा अब थोड़ा कम तो होगा ही। मैंने अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखा और उसकी कमर के नीचे एक हाथ डाला। उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और फिर एक ही झटके में तीन इंच लंड अन्दर ठोंक दिया। रश्मि की घुटी-घुटी चीख निकल गई। कोई 2-3 मिनट के बाद जब उसकी चूत कुछ आराम में आई तब मैंने हौले-हौले धक्के लगाने शुरु किए पर अभी लंड पूरा नहीं घुसाया। आखिर वो मेरी सगी बहन थी मैं उसे खूब मजे दे कर चोदना चाहता था। मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फेरना चालू रखा।

उसकी गाँड के छेद से जैसे ही मेरी उँगलियाँ टकराईं तो मैं तो रोमांच से भर उठा। बालों की कंघी के दाँत जैसी गाँड की तीख़ी नोकदार सिलवटों वाला छेद। आहहहह… क्या मस्त क़यामत है साली की गाँड की छेद। कुँवारी गाँड की पहचान तो उसके उभरे हुए सिलवटों से होती है। मुझे तो इस गाँड के छेद में अपना रस भर कर स्वर्ग के इस दूसरे दरवाज़े का लुत्फ हर क़ीमत पर उठाना ही है। पर पहले तो चूत चोदनी है, गाँड की बात बाद में।

मैंने रिशु से उसकी गांड के नीचे एक तकिया लगाने को कहा और अपना एक हाथ उसकी पतली कमर के नीचे डाल कर पकड़ लिया। अपने होंठ उसके होंठों पर रख करक उन्हें चूमा और फिर दोनों होंठ अपने मुँह में भर लिए। वो फिर से पूरी गर्म और मस्त हो चुकी थी। उसने तो अब नीचे से हल्के-हल्के धक्के भी लगाने शुरु कर दिए थे। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया।

धक्का इतना ज़बर्दस्त था कि गच्च से जड़ तक उसकी चूत में समा गया। मेरा लंड रिशु से बड़ा था, रश्मि दर्द के मारे छटपटाने लगी। उसने मेरी पीठ पर अपने नाखून इतने ज़ोर से गड़ाए कि मेरी पीठ पर भी ख़ून छलक आया।

रश्मि ज़ोर से चीख़ी ओईईई… माँ… मर… गईईई… और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।

मैंने उससे कहा- बस मेरी जान मैंने उसके नमकीन स्वाद वाले आँसूओं पर अपनी जीभ रख दी।

मोनू ! मुझे मार ही डाला… ओओईईई… निकाल बाहर… मैं मर जाऊँगी… उईईई माँआआआआ…।

वो रोए जा रही थी। मैं जानता था कि यह दर्द 3-4 मिनट का है बाद में तो बस मज़े ही मज़े। मेरा लंड तो जैसे निहाल ही हो गया। इतनी कसी हुई चूत कहाँ मिलेगी फिर इसीलिए रिशु शादी करना चाहता है इससे। कोई 5 मिनट के बाद रश्मि कुछ संयत हुई। उसकी चूत ने भी फिर से रस छोड़ना चालू कर दिया। मैंने उसकी कपोलों, होंठों और माथे पर चुम्बन लेने शुरु कर दिए और अपने धक्कों की गति बढ़ा दी।

फिर मैंने उससे पूछा- क्यों मेरी रंडी, कैसा है तेर भाई का लंड?

तो वह नशे में बोली- मोनू, तूने तो मेरी जान ही निकाल दी, ओईई… आआहह… या… ओह अब रूको मत ऐसे ही धक्के लगाओ… आहहह… या… ओई… मैं तो गईईईई…।

और उसके साथ ही वो एक बार फिर झड़ गई। मैं तो जैसे स्वर्ग में था। मैंने लगातार 8-10 धक्के और लगा दिए। अब तो उसकी चूत से फच्च-फच्च का मधुर संगीत बजने लगा था।

यह सिलसिला कोई 20 मिनट तो ज़रूर चला होगा। मेरा लंड बेचारा कब तक लड़ता। मैंने दनादन 5-7 धक्के और लगा दिए। रश्मि भी फिर से झड़ने के कगार पर ही तो थी। और फिर… एक… दो… तीन चार… पाँच… पता नहीं कितनी पिचकारियाँ मेरे लंड ने छोड़ दीं… रश्मि ने मुझे कस कर पकड़ लिया और उसकी चूत ने भी काम-रज छोड़ दिया। उसकी बाँहों में लिपटा मैं कोई दस मिनट उसके ऊपर ही पड़ा रहा। दस मिनट के बाद रश्मि जैसे नींद से जागी।

मैं उठ कर बैठ गया, रश्मि भी मेरी ओर सरक आई, उसने मेरे होंठों पर दो-तीन चुम्बन ले लिए।

मैंने उससे थैंक यू कहा तो उसने कहा- आखिर चोद हो डाला अपनी बहन को तूने कुत्ते…

मैंने रिशु की तरफ देखा- वो तो सोफे पर ही सो गया था। तब मैं रश्मि को गोद में उठा कर बाथरूम की ओर ले जाने लगा।

उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दी और आँखें बन्द कर लीं। मैंने देखा पूरा तकिया मेरे वीर्य और काम-रज़ से भीगा हुआ था। रश्मि पॉट पर बैठकर पेशाब करने लगी। आहहहह… फिच्च… स्स्स्सीईई… का वो सिसकारा और मूत की पतली धार तो कयामत ही थी। मैं तो मन्त्र-मुग्ध सा बस उस नज़ारे को देखता ही रह गया। पॉट पर बैठी रश्मि की चूत ऐसी लग रही थी जैसे एक छोटा करेला किसी ने छील कर बीच में से चीर दिया हो।

रिशु और मेरी जबरदस्त चुदाई से उसकी चूत के होंठ सूजकर पकौड़े जैसे हो गए थे। बिल्कुल लाल गुलाबी। उसकी गाँड का भूरा और कत्थई रंग का छोटा सा छेद खुल और बन्द हो रहा था। मैंने उससे कहा- एक मिनट रूको, मूतना बन्द करो और उठो… प्लीज़ जल्दी !

क्या हुआ? रश्मि ने मूतना बन्द कर दिया और घबरा कर बीच में ही खड़ी हो गई। मैंने उसे अपनी ओर खींचा। मैं घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चूत को दोनों हाथों से खोल करक उसकी मदन-मणि के दाने को चूसने लगा।

वो तो आहहह… उहह्हह करती ही रह गई, उसने कहा- ओह… क्या कर रहे हो भैया ओफ्फ्फ… इसे साफ तो करने दो ! ओह गन्दे ओईई… माँ…

अरे प्यार में कुछ गन्दा नहीं होता ! मैंने कहा और फिर उसके किशमिश के दाने को चूसने लगा।

रश्मि कितनी देर तक बर्दाश्त करती। उसकी चूत के मूत्र-छिद्र से हल्की सी पेशाब की धार फिर चालू हो गई जो मेरी ठोड़ी से होती हुई गले के नीचे गिर सीने से होती मेरे लंड को जैसे धोती जा रही थी। उसने मेरे सिर के बाल पकड़ लिए कसकर।

मैं तो मस्त हो गया। जब उसका पेशाब बन्द हुआ तो उसने नीचे झुक कर मेरे होंठ चूम लिए और अपने होठों पर जीभ फिराने लगी। उसे भी अपनी मूत का थोड़ा सा नमकीन स्वाद ज़रूर मिल ही गया। हम साफ़-सफाई के बाद फिर बिस्तर पर आ गए।

कहानी का अगला भाग: ज्योतिषी की सलाह-5

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