कमाल की हसीना हूँ मैं-33

शहनाज़ खान 2013-05-25 Comments

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मेरी पीठ मेरे ससुर ताहिर अज़ीज़ खान जी के सीने से लगी हुई थी। मैंने अपना सिर पीछे की ओर करके उनके कंधे पर रख दिया। साढ़े-चार इंच ऊँची हील के सैंडल पहने होने से मेरा कद उनके कद से मेल खा रहा था। उनके हाथ मेरे सीने के दोनों उभारों को बुरी तरह मसल रहे थे। आईने में हमारा ये पोज़ बड़ा ही सैक्सी लग रहा था।

उन्होंने मेरे दोनों निप्पल अपनी उँगलियों से पकड़ कर आगे की तरफ खींचे। मेरे दोनों निप्पल खिंचाव के कारण लंबे-लंबे हो गये थे। उनके मसलने के कारण दोनों बूब्स की रंगत सफ़ेद से गुलाबी हो गई थी।

उनकी गरम साँसें मैं अपनी गर्दन पर इधर से उधर फिरते हुए महसूस कर रही थी।

उनके होंठ मेरी गर्दन के पीछे, जहाँ से मेरे बाल शुरू हो रहे थे, वहाँ जाकर चिपक गये। फिर उन्होंने मेरी गर्दन पर हल्के से दाँत गड़ाये। उनके होंठ मेरी गर्दन पर घूमते हुए मेरे बाँये कान तक आये। वो मेरे बाँये कान के ऊपर अपने होंठ फिराने लगे।

औरत का कान एक जबरदस्त उत्तेजक हिस्सा होता है, मैं उनकी हरकतों से उत्तेजित हो गई, मैंने अपने हाथ में पकड़ी व्हिस्की की बोतल को टाँगों के बीच अपनी चूत पर सख्ती से दाब रखी थी।

मेरे मुँह से उत्तेजना में टूटे हुए शब्द निकल रहे थे, मैंने अपने होंठों को दाँतों में दबा रखा था, फिर भी पता नहीं किस कोने से मेरे मुँह से ‘आआऽऽऽ हहऽऽऽ ममऽऽऽऽ ऊऊऽऽऽ हहऽऽऽ’ की आवाजें निकल रही थीं।

फिर उन्होंने कान पर अपनी जीभ फ़िराते हुए कान के निचले हिस्से को अपने मुँह में भर लिया और हल्के-हल्के से उसे दाँत से काटने लगे।

मेरे हाथ से बोतल नीचे छूट गई और मैंने उनके सिर को अपने हाथों से थाम लिया। हमारे जिस्म संगीत की धुन पर एक दूसरे से सटे हुए इस तरह से थिरक रहे थे कि मानो दो नहीं एक ही जिस्म हों।

उन्होंने मुझे अपनी ओर घुमाया और मेरे उरोज पर अपने होंठ रख कर मेरे निप्पल को चूसने लगे। इसी तरह की हरकतों की ख्वाहिश तो तब से मेरे मन में थी जब से मैंने उन्हें पहली बार देखा था।

मुझे उनके साथ पैरिस आने का न्यौता कबूल करते समय ही पता था कि इस टूर में हम दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता जन्म लेने वाला है, मैं इसके लिये शुरू से ही उतावली थी। मैं भी उनको अपनी ओर से पूरा मज़ा देना चाहती थी। मैं भी उनकी छातियों पर झुक कर उनके छोटे-छोटे निप्पलों को अपने दाँतों से कुरेदने लगी। मैंने अपनी जीभ से उनके निप्पलों को सहलाना शुरू किया तो उत्तेजना से उनके निप्पल भी खड़े हो गये।

मैं उनके बालों से भरे सीने को सहला रही थी। मैंने अपने दाँतों को उनके सीने में गड़ा कर जगह-जगह अपने दाँतों के निशान छोड़ दिये। मैंने कुछ देर तक उनके निप्पल से खेलने के बाद अपने होंठ नीचे की ओर ले जाते हुए उनकी नाभि में अपनी जीभ घुसा दी और उनकी नाभि को अपनी जीभ से चाटने लगी।

वो मेरे खुले बालों में अपनी उँगलियाँ फ़िरा रहे थे। फिर मैं घुटनों के बल उनके सामने बैठ गई और उनके लंड को अपने हाथों में लेकर निहारने लगी।

मैंने मुस्कुरा कर उनकी ओर देखा। उनके खतना लंड का गोल-मटोल टोपा गुब्बारे की तरह फूला हुआ था। मैंने उसकी टिप पर अपने होंठ लगा दिये। एक छोटा सा किस लेकर अपने चेहरे के सामने उनके लंड को सहलाने लगी।

उनके लंड को अपने मुँह में लेने की इच्छा तो हो रही थी लेकिन मैं उनके अनुरोध करने का इंतज़ार कर रही थी। मैं उनके सामने यह नहीं दिखाना चाहती थी कि मैं पहले से ही कितना खेली खाई हुई हूँ।

“इसे मुँह में लेकर प्यार करो !”

“ऊँऽऽ नहीं ! यह गंदा है।” मैंने लंड को अपने से दूर करने का नाटक किया, “छी ! इससे तो पेशाब भी किया जाता है। इसे मुँह में कैसे लूँ?”

“तूने अभी तक जावेद के लंड को मुँह में नहीं लिया क्या?”

“नहीं वो ऐसी गंदी हरकतें नहीं करते हैं।”

“यह गंदा नहीं होता है… एक बार तो लेकर देख ! ठीक उसी तरह जैसे चोकोबार आईसक्रीम को मुँह में लेकर चाटती हो।”

असलियत में तो मैं उस लंड को मुँह में लेने के लिये इतनी बेकरार थी कि अगर उसमें से तो पेशाब भी निकल रहा होता तो मैं उसे पवित्र पानी समझ कर पी जाती पर फिर भी मैं जानबूझ कर झिझकते हुए अपनी जीभ निकाल कर उनके लंड के टोपे पर फिराने लगी।

मेरे बाल खुले होने की वजह से उनको देखने में परेशानी हो रही थी। इसलिये उन्होंने मेरे बालों को पकड़ कर जूड़े के रूप में बाँध दिया। फिर मेरे चेहरे को पकड़ कर अपने लंड को मेरी ओर ठेलने लगे।

मैंने उनकी हरकत के इख्तयार में अपना मुँह खोल दिया। उनका लंड आधा अंदर जा कर मेरे गले के दर में फंस गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

“बसऽऽ और नहीं जायेगा !” मैंने कहना चाहा, मगर मुँह से बस, “ऊँऽऽऽ ऊँऽऽऽ” जैसी आवाज निकली। इसलिये मैंने उनके लंड को अपने मुँह में लिये-लिये ही उन्हें इशारा किया।

वो अपने लंड को अब आगे-पीछे करने लगे। मैं उनके लंड को अपने मुँह से चोद रही थी और साथ-साथ उनके लंड पर अपनी जीभ भी फ़िरा रही थी।

“पूरा ले ! मज़ा नहीं आ रहा है ! पूरा अंदर जाये बिना मज़ा नहीं आयेगा।” उन्होंने अपने लंड को बाहर खींचा।

“इतना बड़ा लंड पूरा कैसे जायेगा? मेरा मुँह मेरी चूत जैसा तो है नहीं कि कितना भी लंबा और मोटा हो सब अंदर ले लेगा !” मैंने कहा।

उन्होंने मुझे उठाया और बिस्तर पर ले जाकर लिटा दिया, मैं पीठ के बल लेट गई, अब उन्होंने मेरे जिस्म को कंधों से पकड़ कर बिस्तर से बाहर की तरफ़ खींचा। अब मेरा सिर बिस्तर से नीचे लटकने लगा था।

“हाँ ये ठीक है… अब अपने सिर को बिस्तर से नीचे लटकाते हुए, अपने मुँह को खोल!” वो बोले।

मैंने वैसा ही किया। इस पोजीशन में मेरा मुँह और गले का छेद एक सीध में हो गये थे।

ससुर जी अब मेरे मुँह में अपने लंड को डालते हुए मुझसे बोले, “एक जोर की साँस खींच अंदर !”

मैंने वैसा ही किया। वो अपने लंड को अंदर ठेलते चले गये। उनका मोटा लंड सरसराता हुआ गले के अंदर घुसता चला गया। पहले तो उबकाई जैसी आई। लेकिन उनका लंड फंसा होने के कारण कुछ नहीं हुआ।

उनका लंड अब पूरा अंदर घुस चुका था। उनके लंड के नीचे लटकते दोनों गेंद अब मेरी नाक को दाब रहे थे। एक सेकेंड इस हालत में रख कर उन्होंने वापस अपने लंड को बाहर खींचा।

उनके लंड ने जैसे ही गले को खाली किया, मैंने अपने फ़ेफ़ड़ों में जमी हवा खाली की और वापस साँस लेकर उनके अगले धक्के का इंतज़ार करने लगी। उन्होंने झुक कर मेरे दोनों मम्मों को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और उन्हें मसलते हुए वापस अपने लंड को जड़ तक मेरे मुँह में ठेल दिया।

फिर एक के बाद एक धक्के मारने लगे। मैंने अपनी साँसें उनके धक्कों के साथ एडजस्ट कर ली थी। हर धक्के के साथ मेरे मम्मों को वो बुरी तरह मसलते जा रहे थे और साथ-साथ मेरे निप्पलों को भी उमेठ देते।

जैसे ही वो मेरे निप्पलों को पकड़ कर खींचते, मेरा पूरा जिस्म कमान की तरह ऊपर की ओर उठ जाता। काफी देर तक यूँ ही मुँह में ठेलने के बाद उन्होंने अपना लंड बाहर निकाल लिया। और ज्यादा देर तक चूसने से हो सकता है मुँह में ही निकल जाता।

उनका लंड मेरे थूक से गीला हो गया था और चमक रहा था। उनके उठते ही मैं भी उठ बैठी। उन्होंने मुझे बिस्तर से उतार कर वापस अपने आगोश में ले लिया।

मैंने उनके सिर को अपने हाथों से थाम कर उनके होंठों पर अपने होंठ सख्ती से दाब दिये। मेरी जीभ उनके मुँह में घुस कर उनकी जीभ से खेलने लगी। साढ़े-चार इंच ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने होने के बावजूद मुझे अपनी ऐड़ियों को और ऊपर करना पड़ा, जिससे मेरा कद उनके कद के कुछ हद तक बराबर हो जाये।

मेरे सैंडलों के ऐड़ियाँ अब ज़मीन से ऊपर उठी हुई थी और मेरे पंजे मुड़े हुए थे। फिर मैंने अपने दोनों मम्मों को हाथों से उठा कर उनके सीने पर इस तरह रखा कि उनके निप्पलों को मेरे निप्पल छूने लगे।

उनके निप्पल भी मेरी हरकत से एकदम कड़े हो गये थे। मेरे निप्पल तो पहले से ही उत्तेजना में तन चुके थे। मैंने अपने निप्पल से उनके निप्पल को सहलाना शुरू किया।

उन्होंने मेरे चूतड़ों को सख्ती से पकड़ कर अपने लौड़े पर खींचा, “मम्मऽऽऽ.. शहनाज़ मीऽऽ.. ऊँमऽऽ.. तुम बहुत सैक्सी हो। अब अफ़सोस हो रहा है कि तुम्हें इतने दिनों तक मैंने छुआ क्यों नहीं। ओफ.. ओह..हऽऽऽ तुम तो मुझ पागल कर डालोगी। आ..आआऽऽऽ..हहहऽऽऽ.. हाँऽऽऽ ऐसे हीऽऽऽ..” वो अपने लंड को मेरी चूत के ऊपर रगड़ रहे थे।

कहानी जारी रहेगी।

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