कमाल की हसीना हूँ मैं-34

शहनाज़ खान 2013-05-26 Comments

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“मम्मऽऽऽ… शहनाज़… मीऽऽऽऽ… ऊँमऽऽऽऽ… तुम बहुत सैक्सी हो। अब अफ़सोस हो रहा है कि तुम्हें इतने दिनों तक मैंने छुआ क्यों नहीं। ओफ…ओहहऽऽऽ तुम तो मुझ पागल कर डालोगी। आआ…आऽऽऽ…हहऽऽऽ… हाँऽऽऽ… ऐसे हीऽऽऽ…” वो अपने लंड को मेरी चूत के ऊपर रगड़ रहे थे।

कुछ देर तक हमारे एक दूसरे के जिस्म को रगड़ने के बाद उन्होंने मुझे बिस्तर के पास ले जाकर मेरे एक पैर को उठा कर बिस्तर के ऊपर रख दिया। अब घुटनों के बल बैठने की उनकी बारी थी। वो मेरी टाँगों के पास बैठ कर बिस्तर पर रखे मेरे पैर और उसके सैंडल की पट्टियों पर अपनी जीभ फिराने लगे।

मुझे ऊँची हील वाले सैक्सी सैंडल पहनना बहुत अच्छा लगता है, इसलिये मैं हरदम सैंडल पहने रहती हूँ। ज्यादातर मर्दों की तरह शायद उन्हें भी हाई-हील सैंडल निहायत पसंद थे, इसलिये ताहिर अज़ीज़ खान जी अपने जीभ मेरे पंजों, पैरों और सैंडलों पर फिराने लगे।

फिर उनकी जीभ मेरी टाँगों और जाँघों से होती हुई मेरी टाँगों के जोड़ पर घूमने लगी। उनकी जीभ मेरे घुटने पर से धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँची।

उन्होंने अपनी जीभ से मेरी चिकनी चूत को ऊपर से चाटना शुरू किया। वो अपने हाथों से मेरी चूत की फाँकों को अलग करके मेरी चूत के भीतर अपनी जीभ डालना चाहते थे।

“नहीं ! ऐसे नहीं !” कहकर मैंने उनके हाथों को अपने जिस्म से हटा दिया और मैंने खुद एक हाथ की उँगलियाँ से अपनी चूत को खोल कर दूसरे हाथ से उनके सिर को थाम कर अपनी चूत से सटा दिया, “लो अब चाटो इसे !”

उनकी जीभ किसी छोटे लंड की तरह मेरी चूत के अंदर बाहर होने लगी। शराब के नशे में मैं बहुत उत्तेजित हो गई थी।

मैं उनके बालों को अपनी मुठ्ठी में पकड़ कर उन्हें खींच रही थी, मानो उन्हें उखाड़ ही देना चाहती थी। दूसरे हाथों की उँगलियों से मैंने अपनी चूत को फैला रखा था और साथ-साथ एक उँगली से अपनी क्लीटोरिस को सहला रही थी।

मैंने सामने आईने में देखा तो हम दोनों की हालत को देख कर अपने ऊपर कंट्रोल नहीं कर पाई और मेरे जिस्म से लावा बह निकला।

मैंने सख्ती से दूसरे हाथों की मुठ्ठी में उनके बालों को पकड़े हुए उनके सिर को अपनी चूत में दाब रखा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उनकी जीभ मेरी चूत से बहती हुई रस धारा को अपने अंदर समा लेने में मसरूफ हो गई। काफी देर तक इसी तरह चुसवाते हुए जब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मैंने उनके सिर को अपनी चूत से खींच कर अलग किया।

उनके सिर के कई बाल टूट कर मेरी मुठ्ठी में आ गये थे। उनके होंठ और ठुड्डी मेरे रस से चमक रहे थे।

“ऊऊहहऽऽ… ताआऽऽहिर…!” अब मैंने वासना और शराब के नशे में अपने खिताब में चेंज लाते हुए उन्हें ऊपर अपनी ओर खींचा।

वो खड़े होकर मुझसे लिपट गये और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर मेरे होंठों को अपने मुँह में खींच लिया और उन्हें बुरी तरह चूसने लगे।

मैं नहीं जानती थी कि उधर भी इतनी ज्यादा आग लगी हुई है। उन्होंने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी।

मुँह में अजीब सा स्वाद समा गया, मैंने ज़िंदगी में पहली बार अपनी चूत के रस का स्वाद चखा। मैंने उनके चेहरे पर लगे अपने रस को चाट कर साफ़ किया।

उन्होंने थिरकते हुए बिस्तर के साईड में रखी फ्रेंच वाईन की बोतल उठा ली। उसके कॉर्क को खोल कर उन्होंने उसमें से एक घूँट लगाया। फिर मैंने भी एक घूँट लगाया और फिर उन्होंने मुझे अपने सामने खड़ा कर दिया।

फिर उस बोतल से मेरे एक मम्मे पर धीरे-धीरे वाईन डालने लगे। उन्होंने अपने होंठ मेरे निप्पल के ऊपर रख दिये, रेड वाईन मेरे सीने से फ़िसलती हुई मेरे निप्पल के ऊपर से होती हुई उनके मुँह में जा रही थी।

बहुत ही एग्ज़ोटिक सीन था वो। फिर वो उस बोतल को ऊपर करके मेरे सिर पर वाईन उड़ेलने लगे। साथ-साथ मेरे चेहरे से, मेरे कानों से और मेरे बालों से टपकती हुई वाईन को पीते जा रहे थे।

मैं वाईन में नहा रही थी और उनकी जीभ मेरे पूरे जिस्म पर दौड़ रही थी। मैं उनकी हरकतों से पागल हुई जा रही थी। इस तरह से मुझे आज तक किसी ने प्यार नहीं क्या था। इतना तो साफ़ दिख रहा था कि मेरे ससुर जी सैक्स के मामले में तो सबसे अनोखे खिलाड़ी थे।

जब बोतल आधी से ज्यादा खाली हो गई तो उन्होंने बोतल मुझे पकड़ा दी और मेरे पूरे जिस्म को चाटने लगे। मैं बोतल से घूँट पीने लगी और वो मेरा जिस्म चाटने लगे।

मेरा पूरा जिस्म वाईन और उनकी लार से चिपचिपा हो गया था। उन्होंने एक झटके में मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और अपनी बाँहों में उठाये हुए बाथरूम में ले गये।

इस उम्र में भी इतनी ताकत थी कि मुझको उठाकर बाथरूम ले जाते वक्त एक बार भी उनकी साँस नहीं फ़ूली।

बाथरूम में बाथ-टब में दोनों घुस गये और एक दूसरे को मसल-मसल कर नहलाने लगे। नहाते वक्त भी मेरे पैरों में सैंडल मौजूद थे। नहाने के साथ-साथ हम एक दूसरे को छेड़ते जा रहे थे।

सैक्स के इतने रूप, मैंने सिर्फ तसव्वुर में ही सोचे थे। आज ससुर जी ने मेरे पूरे वजूद पर अपना हक जमा दिया। वहीं पर बाथ-टब में बैठे-बैठे उन्होंने मुझे टब का सहारा लेकर घुटने के बल झुकाया और पीछे की तरफ़ से मेरी चूत और मेरी गाँड के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगे।

“ऊऊऊऽऽऽ…हहहऽऽऽ…! ताआऽऽऽहिर ! जाआऽऽऽन… ये क्या कर रहे हो? छीऽऽऽ नहीईं वहाँ जीऽऽभ सेऽऽऽ मत चाटो! नऽऽऽहींऽऽऽ… हाँऽऽऽऽ और अंदर… और अंदर ” मैं उत्तेजना में जोर-जोर से चीखने लगी।

ससुर जी ने मेरी गाँड के छेद को अपनी उँगलियों से फैला कर उसके अंदर भी एक बार जीभ डाल दी।

मेरी चूत में आग लगी हुई थी। मैं उत्तेजना और नशे में अपने ही हाथों से अपने मम्मों को बुरी तरह मसल रही थी।

“बस-बस ! और नहीं.. अब मेरी प्यास बुझा दो। मेरी चूत जल रही है… इसे अपने लंड से ठंडा कर दो। अब मुझे अपने लंड से चोद दो। अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। ये आपने क्या कर डाला… मेरे पूरे जिस्म में आग जल रही है। प्लीऽऽऽऽज़ और नहीं… ” मैं तड़प रही थी।

उन्होंने वापस टब से बाहर निकल कर मुझे अपनी बाँहों में उठाया और गीले जिस्म में ही कमरे में वापस आये। उन्होंने मुझे उसी हालत में बिस्तर पेर लिटा दिया।

वो मुझे लिटा कर उठने को हुए तो मैंने झट से उनकी गर्दन में अपनी बांहें डाल दीं जिससे वो मुझसे दूर नहीं जा सकें। अब इंच भर की दूरी भी बर्दाश्त से बाहर हो रही थी।

उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी बाँहों को अपनी गर्दन से अलग किया और अपने लंड पर बोतल में बची हुई वाईन से कुछ बूँद रेड वाईन डाल कर मुझसे कहा, “अब इसे चूसो !”

मैंने वैसा ही किया। मुझे वाईन से भीगा उनका लंड बहुत ही लज़ीज़ लगा। मैं वापस उनके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। उन्होंने अब उस बोतल से बची हुई वाईन धीरे-धीरे अपने लंड पर उड़ेलनी शुरू की।

मैं उनके लंड और उनके टट्टों पर गिरती हुई वाईन को पी रही थी। कुछ देर बाद जब मैं पूरी वाईन पी चुकी तो उन्होंने मुझे लिटा दिया और मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दीं। फिर उन्होंने मेरी कमर के नीचे एक तकिया लगा कर मेरी चूत की फाँकों को अलग किया।

मैं उनके लंड के दाखिल होने का इंतज़ार करने लगी। उनके लंड को मैं अपनी चूत के ऊपर सटे हुए महसूस कर रही थी। अब तो मैं इतने नशे में थी कि मैंने आँखें बंद करके अपने आप को इस दुनिया से काट लिया था।

नशे और वासना में चूर मैं दुनिया के सारे रिश्तों को और सारी मर्यादाओं को भूल कर बस अपने ससुर जी के, अपने बॉस के, अपने ताहिर जानू के लंड को अपनी चूत में घुसते हुए महसूस करना चाहती थी।

अब वो सिर्फ, और सिर्फ मेरे आशिक थे, उनसे बस एक ही रिश्ता था; जो रिश्ता किसी मर्द और औरत के बीच जिस्मों के मिलन से बनता है।

मैं उनके लंड से अपनी चूत की दीवारों को रगड़ना चाहती थी। सब कुछ एक जन्नती एहसास दे रहा था।

उन्होंने मेरी चूत की फाँकों को अलग करके अपने लंड को मेरी चूत के छेद पर रखा।

“अब बता मेरी जान… कितनी प्यास है तेरे अंदर? मेरे लंड को कितना चाहती है?” ताहिर अज़ीज़ खान जी ने अपने लंड को चूत के ऊपर रगड़ते हुए पूछा।

“आआऽऽऽ…हहऽऽऽ… क्या करते हो… ऊँममऽऽऽ… अंदर घुसा दो इसे !” मैंने अपने सूखे होंठों पर जीभ फ़ेरी।

“मैं तो तुम्हारा ससुर हूँ… क्या ये मुनासिब है?”

“ऊऊऽऽ…हहऽऽऽ राऽऽज…!! ताऽऽऽहिर… मेरी जाऽऽऽन… मेराऽऽ इम्तिहान मत लोऽऽऽ… ऊँम्म डाल दो इसे… अपने बेटे की बीवी की चूत फाड़ दो अपने लंड से… कब से प्यासी हूँ तुम्हारे इस लंड के लिये… ओओहहह कितने दिनों से ये आग जल रही थी। मैं तो शुरू से तुम्हारी बनना चाहती थी। ओऽऽऽहहऽऽऽ तुम कितने पत्थर दिल होऽऽऽऽ! कितना तरसाया मुझे… आज भी तरसा रहे हो !”

मैंने उनके लंड को अपने हाथों से पकड़ कर अपनी चूत की ओर ठेला मगर उन्होंने मेरी कोशिश को नाकाम कर दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मेरी चूत का मुँह लंड के एहसास से लाल हो कर खुल गया था जिससे उनके लंड को किसी तरह की परेशानी ना हो। मेरी चूत से काम-रस झाग बनके निकल कर मेरे चूतड़ों के कटाव के बीच से बहता हुआ बिस्तर की ओर जा रहा था। मेरी चूत का मुँह पानी से उफ़न रहा था।

कहानी जारी रहेगी।

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