समझदार बहू-1

(Samajhdar Bahu- Part 1)

विनय पाठक ने आणन्द, गुजरात से अपनी आप बीती को एक लेख के रूप में मुझे भेजी है. वैसे तो यह आम सी बात है और बहुतों की जिंदगी आपसी समझ की कमी से कुछ इसी तरह की हो जाती है और अलगाव बढ़ जाता है. पर फिर जिंदगी में कोई आ जाता है तो दुनिया महक उठती है रंगीन हो जाती है.

मेरी उमर अब लगभग 46 वर्ष की हो चुकी है. मैं अपना एक छोटा सा बिजनेस चलाता हूँ. 20 साल की उम्र में शादी के बाद मेरी जिंदगी बहुत खूबसूरत रही थी, ऐसा लगता था कि जैसे यह रोमान्स भरी जिंदगी यूं ही चलती रहेगी. उन दिनों जब देखो तब हम दोनों खूब चुदाई करते थे. मेरी पत्नी सुमन बहुत ही सेक्सी युवती थी. फिर समय आया कि मैं एक लड़के का बाप बना. उसके लगभग एक साल बीत जाने के बाद सुमन ने फिर से कॉलेज जॉयन करने की सोच ली. वो ग्रेजुएट होना चाहती थी. नये सेशन में जुलाई से उसने एडमिशन ले लिया… फिर चला एक खालीपन का दौर… सुमन कॉलेज जाती और आकर बस बच्चे में खो जाती. मुझे कभी चोदने की इच्छा होती तो वो बहाना कर के टाल देती थी. एक बार तो मैंने वासना में आकर उसे खींच कर बाहों में भर लिया… नतीजा… गालियाँ और चिड़चिड़ापन.

मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता था कि हम दोनों में ऐसा क्या हो गया है कि छूना तक उसे बुरा लगने लगा था. इस तरह सालों बीत गये.

उसकी इच्छा के बिना मैं सुमन को छूता भी नहीं था, उसके गुस्से से मुझे डर लगता था. मेरा लड़का भी 21 वर्ष का हो गया और उसने अपने लिये बहुत ही सुन्दर सी लड़की भी चुन ली. उसका नाम कोमल था. बी कॉम करने के बाद उसने मेरे बिजनेस में हाथ बंटाना चालू कर दिया था. मेरी पत्नी के व्यवहार से दुखी हो कर मेरे लड़के विजय ने अपना अलग घर ले लिया था. घर में अधिक अलगाव होने से अब मैं और मेरी पत्नी अलग अलग कमरे में सोते थे. एकदम अकेलापन…

सुमन एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी करने लगी थी. उसकी अपनी सहेलियाँ और दोस्त बन गये थे. तब से उसके एक स्कूल के टीचर के साथ उसकी अफ़वाहें उड़ने लगी थी… मैंने भी उन्हें होटल में, सिनेमा में, गार्डन में कितनी ही बार देखा था. पर मजबूर था… कुछ नहीं कह सकता था. मेरे बेटे की पत्नी कोमल दिन को अक्सर मुझसे बात करने मेरे पास आ जाती थी. मेरा मन इन दिनों भटकने लगा था. मैं दिन भर या तो अन्तर्वासना पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ता रहता था या फिर पोर्न साईट पर चुदाई के वीडियो देखता रहता था. फिर मुठ मार कर सन्तोष कर लेता था.

कोमल ही एक स्त्री के रूप में मेरे सामने थी, वही धीरे धीरे मेरे मन में छाने लगी थी. उसे देख कर मैं अपनी काम भावनायें बुनने लगता था. इस बात से कोसों दूर कि कि वो मेरे घर की बहू है. कोमल को देख कर मुझे लगता था कि काश यह मुझे मिल जाती और मैं उसे खूब चोदता… पर फिर मुझे लगता कि यह पाप है… पर क्या करता… पुरुष मन था… और स्त्री के नाम पर कोमल ही थी जो कि मेरे पास थी.

एक दिन कोमल ने मुझे कुछ खास बात बताई. उससे दो चीज़ें खुल कर सामने आ गई. एक तो मेरी पत्नी का राज खुल गया और दूसरे कोमल खुद ही चुदने तैयार हो गई.

कोमल के बताये अनुसार मैंने रात को एक बजे सुमन को उसके कमरे में खिड़की से झांक कर देखा तो… सब कुछ समझ में आ गया… वो अपना कमरा क्यों बंद रखती थी, यह राज़ भी खुल गया. एक व्यक्ति उसे घोड़ी बना कर चोद रहा था. सुमन वासना में बेसुध थी और अपने चूतड़ हिला हिला कर उसका पूरा लण्ड ले रही थी. उस व्यक्ति को मैं पहचान गया वो उसके कॉलेज टाईम का दोस्त था और उसी के स्कूल में टीचर था.

मैंने यह बात कोमल को बताई तो उसने कहा- मैंने कहा था ना, मां जी का सुरेश के साथ चक्कर है और रात को वो अक्सर घर पर आता है.

“हाँ कोमल… आज रात को तू यहीं रह जा और देखना… तेरी सासू मां क्या करती है.”
“जी, मैं विजय को बोल कर रात को आ जाऊँगी…”

शाम को ही कोमल घर आ गई, साथ में अपना नाईट सूट भी ले आई… उसका नाईट सूट क्या था कि बस… छोटे से टॉप में उसके स्तन उसमे आधे बाहर छलक पड़ रहे थे. उसका पजामा नीचे उसके चूतड़ों की दरार तक के दर्शन करा रहा था. पर वो सब उसके लिये सामान्य था. उसे देख कर तो मेरा लौड़ा कुलांचे भरने लगा था. मैं कब तक अपने लण्ड को छुपाता. कोमल की तेज नजरों से मेरा लण्ड बच ना पाया.

वो मुस्करा उठी. कोमल ने मेरी वासना को और बाहर निकाला- पापा… मम्मी से दूर रहते हुए कितना समय हो गया…?

“बेटी, यही करीब 16-17 साल हो चुके हैं!”
“क्या?? इतना समय… साथ भी नहीं सोये…??”
“साथ सोये? हाथ भी नहीं लगाया…!”
“तभी…!”
“क्या तभी…?” मैंने आश्चर्य से पूछा.
“पापा… कभी कोई इच्छा नहीं होती है क्या?”
“होती तो है… पर क्या कर सकता हूँ… सुमन तो छूने पर ही गन्दी गालियाँ देती है.”
“तू नहीं और सही… पापा प्यार की मारी औरतें तो बहुत हैं…”
“चल छोड़!!! अब आराम कर ले… अभी तो उसे आने में एक घण्टा है…चल लाईट बंद कर दे!”

“एक बात कहूँ पापा, आपका बेटा तो मुझे घास ही नहीं डालता है… वो भी मेरे साथ ऐसे ही करता है!” कोमल ने दुखी मन से कहा.
“क्या तो… तू भी… ऐसे ही…?”
“हाँ पापा… मेरे मन में भी तो इच्छा होती है ना!”
“देखो तुम भी दुखी, मैं भी दुखी…” मैंने उसके मन की बात समझ ली… उसे भी चुदाई चाहिये थी… पर किससे चुदाती… बदनाम हो जाती… कहीं???… कहीं इसे मुझसे चुदना तो नहीं है… नहीं… नहीं… मैं तो इसका बाप की तरह हूँ… छी:… पर मन के किसी कोने में एक हूक उठ रही थी कि इसे चुदना ही है.
कोमल ने बत्ती बन्द कर दी. मैंने बिस्तर पर लेते लेटे कोमल की तरफ़ देखा.

उसकी बड़ी बड़ी प्यासी आँखें मुझे ही घूर रही थी. मैंने भी उसकी आँखों से आँखें मिला दी. कोमल बिना पलक झपकाये मुझे प्यार से देखे जा रही थी. वो मुझे देखती और आह भरती… मेरे मुख से भी आह निकल जाती. आँखों से आँखें चुद रही थी. चक्षु-चोदन काफ़ी देर तक चलता रहा… पर जरूरत तो लण्ड और चूत की थी.

आधे घण्टे बाद ही सुमन के कमरे में रोशनी हो उठी. कोमल उठ गई. उसकी वासना भरी निगाहें मैं पहचान गया.
“पापा वो लाईट देखो… आओ देखें…”

हम दोनों दबे पांव खिड़की पर आ गये. कल की तरह ही खिड़की का पट थोड़ा सा खुला था. कोमल और मैंने एक साथ अन्दर झांका. सुरेश ने अपने कपड़े उतार रखे थे और सुमन के कपड़े उतार रहा था. नंगे हो कर अब दोनों एक दूसरे के अंगों को सहला रहे थे. अचानक मुझे लगा कि कोमल ने अपनी गाण्ड हिला कर मेरे से चिपका ली है. अन्दर का दृश्य और कोमल की हरकत ने मेरा लौड़ा खड़ा कर दिया… मेरा खड़ा लण्ड उसकी चूतड़ों की दरार में रगड़ खाने लगा.

उधर सुमन ने लण्ड पकड़ कर उसे मसलना चालू कर दिया था और बार-बार उसे अपनी चूत में घुसाने का प्रयत्न कर रही थी. अनायास ही मेरा हाथ कोमल की चूचियों पर गया और मैंने उसकी चूचियाँ दबा दी.
उसके मुँह से एक आह निकल गई.

मुझे पता था कि कोमल का मन भी बेचैन हो रहा था. मैंने नीचे लण्ड और गड़ा दिया. उसने अपने चूतड़ों को और खोल दिया और लण्ड को दरार में फ़िट कर लिया. कोमल ने मुझे मुड़ कर देखा.
फ़ुसफ़ुसाती हुई बोली- पापा… प्लीज… अपने कमरे में!”
मैं धीरे से पीछे हट गया.
उसने मेरा हाथ पकड़ा… और कमरे में ले चली.

“पापा… शर्म छोड़ो… और अपने मन की प्यास बुझा लो… और मेरी खुजली भी मिटा दो!” उसकी विनती मुझे वासना में बहा ले जा रही थी.
“पर तुम मेरी बहू हो… बेटी समान हो…” मेरा धर्म मुझे रोक रहा था पर मेरा लौड़ा… वो तो सर उठा चुका था, बेकाबू हो रहा था. मन तो कह रहा था प्यारी सी कोमल को चोद डालूँ…
“ना पापा… ऐसा क्यों सोच रहे हैं आप? नहीं… अब मैं एक सम्पूर्ण औरत हूँ और आप एक सम्पूर्ण मर्द… हम वही कर रहे हैं जो एक मर्द और औरत के बीच में होता है.”
कोमल ने मेरा लण्ड थाम लिया और मसलने लगी.
मेरी आह निकल पड़ी.

जवानी लण्ड मांग रही थी.
मेरा सारा शरीर जैसे कांप उठा- देखा कैसा तन्ना रहा है… बहू!”
“बहू घुस गई गाण्ड में पापा… रसीली चूत का आनन्द लो पापा…!” कोमल पूरी तरह से वासना में डूब चुकी थी. मेरा पजामा उसने नीचे खींच दिया. मेरा लौड़ा फ़ुफ़कार उठा.
“सच है कोमल… आजा अब जी भर के चुदाई कर ले… जाने ऐसा मौका फिर मिले ना मिले. ” मैं कोमल को चोदने के लिये बताब हो उठा.
“मेरा पजामा उतार दो ना और ये टॉप… खीच दो ऊपर… मुझे नंगी करके चोद दो… हाय…”

कहानी का दूसरा भाग : समझदार बहू-2

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