तीन चुम्बन-1

This story is part of a series:

प्रिय पाठको,

आपने मेरी पिछली कहानी
दो नम्बर का बदमाश
पढ़ी। मुझे बहुत खुशी है कि आप सभी को मेरी कहानी अत्यधिक पसन्द आई, जैसा कि कहानी के मूल्यांकन और मुझे मिले ढेरों प्रशंसा-पत्र हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

अपनी पिछली कहानी में मैने ‘मिक्की’ का जिक्र किया था। लगभग हर प्रशंसा-पत्र में पाठकों ने पूछा है कि यह मिक्की कौन है, इसके बारे में तो कभी पहले किसी कहानी में नहीं लिखा और न ही मिक्की की ही कोई कहानी लिखी है।

तो मेरे अज़ीज दोस्तो, आपकी नज़र है मेरी प्रियतमा मिक्की की कहानी ! यह कहानी नहीं मेरी आत्मा की आवाज़ है।

प्रेम आश्रम वाले गुरूजी कहते हैं कि लड़कियों की पिक्की, बाल आने के बाद बुर या भोस, चुदने के बाद चूत और फटने (बच्चा होने) के बाद फुद्दी बन जाती है।

अब मैं यह सोच रहा था कि मिक्की (मोनिका) की अभी पिक्की ही है या बुर बन गई है। इतना तो पक्का है कि भले ही उसकी पिक्की पूरी तरह से बुर या भोस न बनी हो पर वो बनने के लिए जरूर आतुर होगी। पता नहीं इन कमसिन लड़कियों की पिक्की को बुर बनने की इतनी जल्दी क्यों लगी रहती है। और जब बुर बन जाती है तो चूत बनने के लिए बेताब रहती है।

आप सोच रहे होंगे कि ये मिक्की कौन है?

मिक्की मेरे साले की लड़की है। घर में सब उसे मिक्की और सभी सहेलियां मोना और स्कूल में वो मोनिका माथुर के नाम से जानी जाती है। उम्र १८ के आसपास, +२ में पढ़ती है। गदराया बदन शोख, चंचल, चुलबुली, नटखट, नादान, कमसिन, क़यामत। कन्धों तक कटे बाल, सुतवां नाक, पतले पतले गुलाबी होंठ जैसे शहद से भरी दो पंखुडियां, सुराहीदार गर्दन, बिल्लोरी आँखें, छोटे छोटे नींबू जो अब अमरुद बन गए हैं पतली कमर, चिकनी चिकनी बाहें और केले के पेड़ की तरह चिकनी जांघें। सबसे कमाल की चीज तो उसके छोटे छोटे खरबूजे जैसे नितम्ब हैं।

हे भगवान् … अगर कोई खुदकुशी करने जा रहा हो और उसके नितम्ब देख ले तो एक बार अपना इरादा ही बदलने पर मजबूर हो जाए। उसकी पिक्की या भोस का तो आप और मैं अभी केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं। कुल मिला कर वो एक क़यामत है। ऐसी कन्याएं किसी भी अच्छे भले आदमी का घर बर्बाद कर सकती है। पर मुझे क्या पता था कि भगवान् ने इसे मेरे लिए ही बनाया है।

पहले मैं अपने बारे में थोड़ा बता दूं। मेरा नाम प्रेम गुरु है। मैं एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में काम करता हूँ। उम्र ३२ साल, कद ५’ ८” रंग गेहुँवा। शक्ल-सूरत ठीक ठाक। वैसे आदमियों की शक्ल-ओ-सूरत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता, ख़ास बात उसका स्टेटस होता है और दूसरा उसकी सेक्स पॉवर। भगवान् ने मुझे इन दोनों चीजों में मालामाल रखा है। मेरे लिंग का साइज़ ७” है और मोटाई २ इंच। मेरा सुपाड़ा आगे से कुछ पतला है। आप सोच रहे होंगे फिर पतले सुपाड़े से चुदाई का मज़ा ज्यादा नहीं आता होगा तो आप गलत सोच रहे हैं। यह तो भगवान् का आशीर्वाद और नियामत समझिये। गांड मरवाने वाली औरतें ऐसे सुपाड़े को बहुत पसंद करती है। आदमियों को भी अपना लण्ड अन्दर डालने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती।

जिन आदमियों के लिंग पर तिल होता है वो बड़े चुद्दकड़ होते है फिर मेरे तो सुपाड़े पर तिल है आप अंदाजा लगा सकते हैं मैं कितना बड़ा चुद्दकड़ और गांड का दीवाना हूँ। मेरी पत्नी मधुर ३६-२८-३६, उम्र २८ साल बहुत खूबसूरत है। उसे गांड मरवाने के लिए मनाने में मुझे बहुत मिन्नत करनी पड़ती है। लेकिन दोस्तों ये फिर कभी। क्यों कि ये कहानी तो मिक्की के बारे में है।

वैसे तो ये कहानी नहीं बल्कि मेरे अपने जीवन की सच्ची घटना है। दरअसल मैं अपने अनुभव एक डायरी में लिखता था। ये सब उसी में से लिया गया है। हाँ मुख्य पात्रों के नाम और स्थान जरूर बदल दिए हैं। मैं अपनी उसको (?) बदनाम कैसे कर सकता हूँ जो अब इस दुनिया में नहीं है जिसे मैं प्रेम करता हूँ और जन्म जन्मान्तर तक करता रहूँगा। इसे पढ़कर आपको मेरी सच्चाई का अंदाजा हो जायेगा। मेरा दावा है कि मेरी ये आप-बीती आपको गुदगुदाएगी, हँसाएगी, रोमांच से भर देगी और अंत में आपकी आँखे भी जरूर छलछला जायेंगी।

पहला चुम्बन :

मेरी एक फंतासी थी। किसी नाज़ुक कमसिन कली को फूल बनाने की। पिछले ७-८ सालो में मैं लगभग १५-२० लड़कियों और औरतों को चोद चुका हूँ पर अब मैं इन मोटे मोटे नितम्बों और भारी भारी जाँघों वाली औरतों को चोदते चोदते बोर हो गया हूँ। मैंने अपने साथ पढ़ने वाली कई लड़कियों को चोदा है पर वो भी उस समय २०-२१ की तो जरूर रही होंगी। हाँ अपने कामवाली बाई गुलाबो की लड़की अनारकली जरूर १८ के आस पास रही होगी पर वो भी मुझे तब मिली जब उसकी बुर चूत में बदल चुकी थी। सच मानो तो पिछले ३-४ सालों से तो मैं किसी कमसिन लड़की को चोदने के चक्कर में मरा ही जा रहा था।

शायद आपको मेरी ये बातें अजीब सी लगे- नाजुक कलियों के प्रति मेरी दीवानगी। हमारे गुरूजी कहते हैं चुदी चुदाई लड़कियों/औरतों को चोदने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती क्योंकि वे ज्यादा नखरे नहीं करती और चुदवाने में पूरा सहयोग करती है। इन छोटी छोटी नाज़ुक सी लड़कियों को पटाना और चुदाई के लिए तैयार करना सचमुच हिमालय पर्वत पर चढ़ने से भी ज्यादा खतरनाक और मुश्किल काम है।

कहते है भगवान् के घर देर है पर अंधेर नहीं है। मेरा साला किसी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर है। वो अपने काम के चक्कर में हर जगह घूमता रहता है। इस बार वो यहाँ टूर पर आने वाला था। मधु ने उसे अपनी भाभी और मिक्की को भी साथ लाने को मना लिया।

सुबह-सुबह जब मैं उन्हें लेने स्टेशन पर गया तो मिक्की को देख कर मेरा दिल इतना जोर से धड़कने लगा जैसे रेल का इंजन। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर आ जायेगा। मैंने अपने आप पर बड़ी मुश्किल से काबू किया। सामने एक परी जैसी बिल्लौरी आँखों वाली नाज़ुक सी लड़की कन्धों पर बेबी डोल लटकाए मेरे सामने खड़ी थी – नीले रंग का टॉप और काले रंग की जीन पहने, सिर पर सफ़ेद कैप, स्पोर्ट्स शूज, कानों में छोटी छोटी सोने की बालियाँ, आँखों पर रंगीन चश्मा ? ऊउफ्फ्फ़ … मुझे कत्ल करने का पूरा इरादा लिए हुए।

दोनों जाँघों के बीच जीन पैंट के अन्दर फंसी हुई उसकी उभरी हुई बुर किसी फ़रिश्ते का भी ईमान खराब कर दे ! मुझे लगा कि मेरा पप्पू अपनी निद्रा से जाग कर अंगडाई लेने लगा है। मैं भी कितना उल्लू का पट्ठा हूँ मिक्की को पहचान ही नहीं पाया। ३-४ साल पहले जब मैं अपनी ससुराल के किसी फंक्शन में जब मैंने उसे देखा था तो उसकी उम्र कोई १३-१४ साल के लगभग रही होगी। मैं भी कितना गधा था इतनी ख़ूबसूरत बला की ओर मेरा ध्यान पहले नहीं गया। मैं तो उसे एक अंगूठा चूसने वाली, इक्कड़ -दुक्कड़, छुपम-छुपाई खेलने वाली साधारण सी लड़की ही समझ रहा था। कितनी जल्दी ये लड़की जवानी पूरी बोम्ब बन गई है। मैं उसे ऊपर से नीचे तक देखता ही रह गया। उसका बदन कितना निखर सा गया था। मैं अभी सोच ही रहा था कि उसकी पिक्की की साइज़ कितनी बड़ी हो गई होगी और उसकी केशर क्यारी बननी शुरू हुई या नहीं मेरा मतलब है की वो अभी पिक्की ही है या बुर बन गई है। पता नहीं उसने अभी तक अपनी पिक्की या बुर से मूतने का ही काम लिया है या कुछ और भी, अचानक मेरे साले की आवाज मेरे कानों में पड़ी।

अरे प्रेम ! कहाँ खो गए भई ?

मैं अपने ख़्वाबों से जैसे जागा। आइये-आइये भाई साहब ! रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई? मैंने उनका अभिवादन करते हुए पूछा।

उन्होंने क्या जवाब दिया, मुझे कहाँ ध्यान था, मेरी आँखें तो बस मिक्की पर से हटाने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे खूबसूरत मौके का फायदा कौन कम्बख्त नहीं उठाएगा। आप समझ ही गए होंगे मैंने आगे बढ़ते हुए मिक्की को अपनी बाहों में भरते हुए कहा- अरे मिक्की माउस ! तू तो बहुत बड़ी हो गई है।

अपने सीने से लगाए मैंने उसकी गालों और सिर के बालों पर हाथ फिराया। उसके छोटे छोटे अमरुद मेरे सीने से दब रहे थे। उसके नाज़ुक बदन की कुंवारी खुश्बू मेरे नथुनों में समां गई। मुझे लगा कि मेरे ख़्वाबों की मंजिल मेरे सामने खड़ी है। मेरा दिल तो कर रहा था कि उसका प्यार से एक चुम्बन ले लूँ पर स्टेशन पर उसके माता-पिता के सामने ऐसा करना कहाँ संभव था। न चाहते हुए भी मुझे उस से अलग होना पड़ा लेकिन अलग होते होते मैंने उसके गालों पर एक प्यारी सी थप्पी तो लगा ही दी। फिर मैंने उसका हाथ पकड़ा और हम सभी स्टेशन से बाहर अपनी कार की ओर आ गए।

घर पहुँचने पर मधु ने अपने भैय्या, भाभी और मिक्की का गरमजोशी से स्वागत किया और फिर मिक्की की और बढ़ते हुए कहा,“अरे मोना तू ?” मधु मिक्की को मोना ही बुलाती है, वो उसे अपनी बाहों में लेते हुए बोली।

“नमस्ते बुआजी !” शायद कहीं सितार बजी हो, जलतरंग छिड़ी हो या किसी अमराई में कोयल कूकी हो, इतनी मीठी और सुरीली आवाज मिक्की के सिवा किसकी हो सकती थी।

“अरे ये तो मुझसे भी एक इंच बड़ी हो गई है।” मधु ने कहा।

“हाँ लम्बी तो बहुत हो गई है पर पढ़ाई-लिखाई में अभी भी मन नहीं लगाती !” सुधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए हुए कहा।

“अरे अभी बच्ची है, अपने आप पढ़ लेगी, तुम क्यों चिंता करती हो !” मधु बोली।

मैं सोच रहा था- क्या वाकई ये अभी बच्ची (बची) ही है। उसके स्तन, नितम्ब तो कहर बरपाने वाले बन चुके हैं।

“फूफाजी ! बाथरूम किधर है?” मिक्की ने पूछा।

“आ…न ! हाँ, आओ इधर है !” मैं उसका हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम से लगे बाथरूम की ओर ले गया। मैं जानबूझकर उसे गेस्ट रूम के साथ भी एक बाथरूम में नहीं ले गया था।

“मैं साथ आऊँ क्या अन्दर ?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

“नहीं ! क्यों ?”

“वो फिर कोई छिपकली आ गई तो ?”

“ओह ! हटो आप भी…” वो शर्माते हुए बाथरूम में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया। और मैं बाहर खड़ा उसके सू-सू की आवाज का इन्तजार करने लगा।

बाहर खड़ा मैं अपने सपनो में खोया हुआ था। आज से कोई ३-४ साल पहले जब मैं अपनी ससुराल किसी फंक्शन में गया था तब की एक घटना मेरी आँखों में फिर से घूम गई।

मेरे ससुराल में घर दो-मंजिला है । ऊपर के भाग में एक कमरा और बाथरूम बना है। मैं शाम को छत के ऊपर टहल रहा था। इतने में मिक्की के चीखने की आवाज सुनाई दी और वो लगभग दौड़ते हुए बाथरूम से बाहर आई, वो थर थर कांप रही थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझता उसे ठोकर लगी और वो नीचे गिर पड़ी, मैंने भाग कर उसे उठाया। उसके पैर में चोट लग गई थी, उसकी आँखों में आंसू आ गए।

“अरे क्या हुआ ?”

“वो ! वो !” मिक्की तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।

“हाँ ! हाँ ! क्या हुआ ?”

“वो ! बाथरूम में छिपकली है !”

मेरी हंसी निकल गई। मिक्की को छिपकलियों से बड़ा डर लगता है। जब वो उठी तो उसके मुंह से कराह सी निकली,“उईई … माँ !”

“क्या हुआ ?”

“मेरे पैर में चोट लग गई है !” उसने अपना घुटना मसलते हुए कहा।

मैंने उसके घुटने पर हाथ फिराया। उसने मिड्डी और टॉप पहना था। मिड्डी में उसकी पुष्ट जांघे तो कमाल की थी। मैं उसकी बुर तो नहीं देख सकता था पर उसके गोरे गोरे घुटनों और जाँघों को देख कर अंदाजा तो लगा ही सकता था कि वो तो पूरी कमायत ही होगी।

मैंने उसका घुटना सहलाया। वो थोड़ा सा छिल गया था, थोड़ा सा खून भी चमकने लगा था।

मैंने कहा, “अब तुम्हें डॉक्टर इंजेक्शन लगायेगा !”

तो वो रोने लगी और बोली,“नहीं मैं इंजेक्शन नहीं लगवाउंगी ! मुझे इंजेक्शन से बड़ा डर लगता है !”

“भई गाँव में तो बस थूक लगा देते हैं पर यहाँ तो ? “ मैंने आगे की बात जानबूझ कर नहीं कही।

“हाँ ये ठीक है ?” मिक्की ने हामी भरी।

मैंने तुंरत उसके घुटने पर अपनी जीभ लगा दी और थोड़ा सा थूक उस पर लगा कर एक चुम्मा ले लिया। मिक्की खिलखिला कर हंस पड़ी।

“ओह ।। फूफाजी … आप भी …?”

“क्यों क्या हुआ ?”

“कोई घुटनों पर भी पप्पी लेता है ?”

उसने मेरी ओर आश्चर्य से देखा तो मैंने कहा, “अच्छा तो कौन सी जगह पप्पी लेते है?”

‘पप्पी तो गालों पर ली जाती है!” वो मासूमियत से बोली।

“अच्छा ! तो आओ फिर गालों पर भी ले लेते हैं !”

मैं आगे बढ़ा और उसके नरम मुलायम गुलाबी होंटों पर अपने होंठ रख दिए। मैंने धीरे धीरे उसके होंठो को चूमा और फिर अपनी जीभ उन पर फिराने लगा जैसे सावन का प्यासा बारिश की हर बूँद को पी जाना चाहता है, मैं उसके होंठों को चूसने लगा। वह पूरा साथ दे रही थी उसके लिए तो मानो ये एक खेल ही था। मैंने अपनी जीभ उसके मुंह में डालने की कोशिश की तो वो हँसने लगी। मेरा दिल धड़क रहा था। मेरी भावनाओं का उसे इतनी छोटी उम्र में क्या भान होगा वो तो इसे केवल अपने अंकल का प्यार ही समझ रही थी पर मेरे लिए तो यह अमूल्य निधि की तरह था। हमारा यह चुम्बन कोई तीन चार मिनट तो जरूर चला होगा। फिर हम अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए अलग हो गए।

मेरे पास उसे गोद में उठाने का सुनहरा अवसर था। मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसे भला क्या ऐतराज़ हो सकता था। उसके पैर में तो चोट लगी थी और वो अपने पैरों से चल कर तो नीचे नहीं जा सकती थी। मैं उसे गोद में उठाये सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और अपनी आँखें बंद करके मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया। उसके छोटे-छोटे नींबू मेरे सीने से लगे थे। मैं तो जैसे निहाल ही हो गया। मिक्की को बेड-रूम में छोड़ कर मैं ऊपर आ गया। मेरा पप्पू तो पैन्ट में धमा-चौकड़ी मचा रहा था। अब मेरे पास मुठ मारने के अलावा और क्या रास्ता बचा था। मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया !! और ????

दोस्तों मिक्की और मेरा यह पहला चुम्बन था। आप सोच रहे होंगे इस चुम्बन लेने में क्या मजा आया होगा। क्या नैतिक और सामाजिक रूप से मुझ जैसे पढ़े लिखे और शरीफ समझे जाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसा करना ठीक था ? मैंने क्या गलत किया है मैंने तो एक चतुर भंवरे की तरह एक कच्ची-कलि का रस उसे बिना कोई नुक्सान पहुंचाए पी लिया था। मैंने उसकी कोमल भावनाओं से बिना खिलवाड़ किये एक चुम्बन ही तो लिया है? इसमें इतना हो हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। आप शायद अभी मेरी इन बातों को नहीं समझेंगे।

दूसरा और तीसरा चुम्बन भी जल्दी ही –

इस कहानी का मूल्यांकन कहानी के अन्तिम भाग में करें !

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top