जंगल में चुद गयी यार से

(Jungle Xxx Kahani)

जंगल Xxx कहानी में मैं अपने गांव के पास वाले जंगल में खुले में अपनी भाभी के भाई के लंड से चुद गयी. मैं उससे घर में चुदवाना चाहती पर उसके जोर देने पर मैं मान गयी.

नमस्कार दोस्तो, मैं आपकी पुरानी लेखिका सारिका कंवल हूँ.
कैसे हो आप सब? आशा करती हूँ आप सब अच्छे होंगे.

मैं भी आप सबकी दुआओं से अच्छी हूँ और आज फिर से एक रोचक किस्सा आप सबके लिए लायी हूँ.

कविता की वजह से मुझे एक अलग और अनोखा अनुभव हुआ. वो मुझे बहुत पसंद आया और मैंने प्रीति के साथ कई बार समलैंगिक संभोग का मजा लिया.

हम दोनों कई बार तो इतनी उत्तेजित हो जाती थीं कि उंगलियों की जगह हम एक दूसरे की योनि में खीरा, बैगन, गाजर जो मिला, वही घुसा दिया करती थीं.

कई बार तो झाड़ू का डंडा या फिर बेलन को घुसा कर संभोग करने लगती थीं.

हम दोनों जब भी मिली हैं, हमारी उत्तेजना सातवें आसमान तक चली जाती थी और एक दूसरी को यूं मसलती रगड़ती थीं. जैसे जन्म जन्म की शत्रु हों.

पर एक स्त्री के साथ संभोग करने और एक पुरूष के साथ संभोग करना दोनों ही बहुत अलग होता है.

कुछ दिनों के बाद मुझे मर्द की कमी खलने लगी.
हालांकि प्रीति के साथ संभोग कर मैं एक पुरूष से भी ज्यादा संतुष्ट महसूस करती थी मगर जो कमी होती है, उसे कैसे पूरा किया जा सकता था.

किसी चीज की कमी उसी चीज़ से पूरी होती है, उसके जैसे मिलती जुलती चीज़ से कदापि नहीं होती है.

मेरा संपर्क सुरेश से निरंतर रहा पर उसके साथ संभोग की स्थिति कभी नहीं बनी.
वो संभोग के लिए मुझसे बार बार आग्रह करता रहता था पर मैं समय नहीं निकाल पा रही थी.

मेरी भी अब इच्छा होने लगी थी कि किसी मर्द के साथ संभोग करूँ क्योंकि मेरे गर्म शरीर को किसी मर्द के गर्म शरीर का स्पर्श किए हुए काफी समय हो चुका था.

अब मेरी भी इच्छा हो रही थी कि किसी मर्द की मर्दानगी का अपने शरीर को अहसास दिलाऊं.

जब भी सुरेश मुझसे बात करते हुए गंदी गंदी गालियों भरे शब्दों का प्रयोग करता तो मेरे शरीर में आग सी लग जाती थी.
मेरा जी करता था कि भाग कर सुरेश के पास चली जाऊं और नंगी होकर कहूँ कि मेरे शरीर को मसल दे, जितनी ताकत है पूरी ताकत से रगड़ दे मुझे.

खैर … फिर मुझे किसी तरह मौका मिल ही गया.
मैं जानती थी कि मौका मिलेगा ही.
यह जंगल Xxx कहानी इसी मौके की है.

मुझे मायके जाने का किसी तरह से बहाना मिल गया और बस फिर क्या था.
सुरेश भी उसी गांव का था, उसने भी छुट्टी ले ली.

हमारे गांव में 3 दिनों के लिए एक तरह का मेला लगता है और पूरा गांव रात भर मेले में होता है या फिर मंदिर में.

लगभग हर घर का परिवार रात भर मेले में होता था. यहां तक के अगले बगल के गांव से बहुत भारी भीड़ हो जाती थी.
मैंने ये मेला कई सालों से नहीं देखा था. शादी जब हुई थी, तो मैं हर साल बच्चों को लेकर जाती थी. कभी कभी पति भी साथ होते थे.

पतिदेव ने मुझे खुद ही सुरेश के साथ जाने की स्वीकृति दे दी.
फिर क्या था … गांव जाने का रास्ता 3 घंटे का था.

उसने अपनी कार ली और बस हम दोनों सवार होकर निकल पड़े.
अभी हमें शहर से निकले 20 मिनट ही हुए थे कि सुरेश का मुँह खुला और फिर से वही गंदे गंदे शब्दों की बारिश सी होने लगी.

मैं उसकी बातों से लज्जित होने सी लगी और मैंने कहा- ऐसे बात मत करो.
मेरी भावनाओं को समझते हुए उसने गंदे शब्दों का प्रयोग बंद कर दिया, पर उसके दिमाग में जो था … वो उसने मुँह से कह दिया.

पर उसकी गंदी बातों से मेरी योनि में सनसनाहट पैदा हो गयी और योनि की पंखुड़ियां फड़फड़ाने लगी थीं.

सुरेश- सारिका बहुत दिन हो गए यार … मैं तुम्हें चोदना चाहता हूँ.
मैं- ठीक है मगर कोई जगह और सही मौका मिले, तब ही चोदने दूंगी.

सुरेश- वो तो ठीक है, पर क्या करूँ. बहुत दिन हो गए. मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया है.
मैं- अब क्या चाहते हो कि चलती गाड़ी में ही तुम्हें दे दूँ.

सुरेश- कहीं जगह देख कर गाड़ी लगा देते हैं और पीछे की सीट में चुदाई कर सकते हैं.
मैं- पागल हो क्या … किसी ने देख लिया तो दोनों फंस जाएंगे. तीन चार दिन गांव में रहूंगी, बहुत मौका मिलेगा. तब जितना मर्ज़ी, जितनी देर चोदना चाहो, चोद लेना. पर यह मुसीबत मत पालो.

सुरेश- अरे बीच में जंगल पड़ेगा. वहीं कहीं झाड़ियों के बीच … या गाड़ी में जहां चाहो, वहां चुदाई कर लेंगे. कोई नहीं आएगा जंगल में.
मैं- नहीं, मैं इतना जोखिम नहीं उठा सकती.

सुरेश- मान भी जाओ यार … मेरा जल्दी निकल जाएगा.
मैं- देखो मैंने मना नहीं किया. मैं चुदने को तैयार हूं, पर जोखिम नहीं लेना मुझे! समय होगा तब आराम से चोद लेना. ऐसे में न तुम्हें मजा आएगा न मुझे!
सुरेश- वो तो है, पर मुझे थोड़ी सी राहत मिल जाती, तुम्हारी राह में अभी तक मुठ मार कर दिन गुजार रहा था. मान भी जाओ न … कुछ मिनट में ही हो जाएगा.

सुरेश की अनुमति मांगने की बात अब उसकी जिद में बदल गयी.

करीब दो घंटे के सफर के बाद जंगल भी आ गया इसका मतलब था कि हमारा गांव नजदीक ही था.
उसके बार बार विनती करने पर आखिर मैंने स्वीकार कर ली.

थोड़ा जंगल के अन्दर जाने पर सब सुनसान दिखने लगा; किसी की आवाजाही न के बराबर थी.

सुरेश ने गाड़ी किनारे में खड़ी की और बोला- पीछे की सीट को लंबा करके कर सकते हैं.
वो सीट को सरकाते हुए बोला.

तभी सामने से एक गाड़ी गुजरी.
मैं- नहीं, ये जगह ठीक नहीं. गांव पहुंच कर रात को मैं पक्का तुम्हें दूंगी. बस थोड़ा सब्र कर लो.

सुरेश- अरे हम लोग सीट में नीचे रहेंगे, कोई नहीं देख सकेगा. जो भी यहां से गुजरेगा, वो अपनी गाड़ी में होगा. किसी को इतनी फुर्सत नहीं कि वो हमें देखने रुक सके … और इस जंगल में कोई पैदल आने जाने वाला नहीं क्योंकि शहर और गांव यहां से काफी दूर हैं.
मैं- नहीं, तुम चाहो जो कहो. मैं यहां नहीं करने दूंगी तुम्हें. रात को जैसे कहोगे वैसे दूंगी पर यहां नहीं.

सुरेश- ठीक है, गाड़ी में नहीं अगर जंगल के अन्दर झाड़ियों के बीच कोई ठीक जगह मिले तो दोगी?
मैं थोड़ा सोचने के बाद बोली- ठीक है चलो … अगर मुझे ठीक लगा तो दूंगी वरना हम दोबारा इस बारे में बात नहीं करेंगे. अगर तुमने जिद की तो कभी नहीं दूंगी.
सुरेश थोड़ा नर्म होता हुआ बोला- ठीक है तुम्हें ठीक लगे तो देना!

हम गाड़ी से निकल कर जंगल के अन्दर चले गए.
थोड़ी ही दूर गए थे कि जंगल घना हो गया और हमें हमारी गाड़ी भी नहीं दिख रही थी.

लंबे लंबे पेड़, चारों तरफ कंटीली झाड़ियां. कहीं बैठ भी नहीं सकते थे लेटने की तो बात ही नहीं सोच सकते थे.

मैंने कहा- अब और अन्दर जाना ठीक नहीं है. ये जगह ठीक है. पर यहां करोगे कैसे … न बैठने की जगह है न लेटने?
सुरेश- मैं खड़े खड़े में ही सब कर लूंगा, पीछे से आगे से, जैसा तुम्हें ठीक लगेगा.

मैं- खड़े खड़े में आगे से घुसेगा भी नहीं.
सुरेश- ठीक है तुम पेड़ पकड़ कर झुक जाना. मैं पीछे से कर लूंगा. ज्यादा समय नहीं लगेगा.

इतना कहते हुए उसने उसने पैंट खोल अपनी चड्डी घुटनों तक सरका कर लिंग बाहर निकाल लिया.
वो पहले से ही उत्तेजित था और उसका लिंग खड़ा था एकदम खूंटे की तरह.

उसने हाथ से लिंग हिलाते हुए मुझसे कहा- तुम साड़ी ऊपर उठा कर इस पेड़ को पकड़ कर झुक जाओ और अपनी गांड ऊपर उठा दो.

मैं- रूको मुझे काफी देर से पेशाब लगी थी, पहले वो कर लूं.
सुरेश- ठीक है.

मेरी मूत्र की थैली काफी भर गई थी क्योंकि दो घंटे से लगातार हम चले ही जा रहे थे.
ऊपर से गाड़ी की ठंडी एसी की वजह से पसीना नहीं निकला था.

सुरेश से बहस की वजह से मैं उसे बोल ही नहीं पायी कि मुझे पेशाब लगी थी.

खैर … अब मैंने अपनी साड़ी उठायी और उसी के सामने अपनी पैंटी नीचे सरका कर बैठ गयी.

मैं ठीक उसके मुँह के सामने बैठ गयी थी और जैसे ही मैंने धार छोड़नी शुरू की, बहुत सुकून सा लगने लगा.
पेट और मूत्र की थैली दोनों ही धीरे धीरे हल्का लगने लगा.

सामने सुरेश अपने लिंग पर हाथ फेरता हुआ मुझे ललचायी नजरों से देखे जा रहा था.

मैं उसे अपनी योनि दिखा कर पेशाब कर रही थी और उसकी बैचैनी बढ़ती जा रही थी कि कब मैं समाप्त करूँ.
तभी सुरेश बोला- और कितनी देर तक करोगी … दो मिनट से ज्यादा हो गया.

मैं- क्या करूँ इतनी जोर से लगी थी, ऊपर से तुम्हारे चक्कर में बोल भी नहीं पायी. अब आराम से मुझे हल्का हो लेने दो.
सुरेश- वैसे मूत की धार भी तुम्हारी चूत से मस्त लग रही. एकदम रसीली, ब्लू फिल्मों में देखा है ना … कैसे चोदने के समय औरतें पानी छोड़ती हैं!

मैं- मुझे नहीं पता … वो असली होता है या नकली?
सुरेश- असली हो या नकली पर देखने में मजा आता है. तुम्हारा कभी ऐसे पानी निकला है?

मैं- तुमने भी तो मुझे चोदा है तुम्हें नहीं पता?
सुरेश- हां, पर मेरे चोदने से न निकला हो शायद पति के साथ निकला हो!

मैं- ऐसा कुछ नहीं होता. जो होता है, वो तुम्हें पता है.
सुरेश- हां जानता हूँ. तुम बस चिपचिपा पानी छोड़ती रहती हो, जब तक लंड तुम्हारी चूत को रगड़ता है. जब झड़ती हो तो ज्यादा छोड़ती हो … हा हा हा हा. वैसे तुम्हारी बुर से मूत की धार भी मस्त लग रही है.

मैं- इतना पसंद है तो पी लो!
सुरेश- अरे इसमें क्या है, बोलोगी तो तुम्हारा मूत भी पी लूंगा … हा हा हा हा.

मैं उसे कमीना कुत्ता बोलती हुई उठी और पेड़ पकड़ कर झुक गयी, बोली- चलो आ जाओ.

सुरेश अपने लिंग को हिलाता हुआ मेरे पीछे आया और अपने हिसाब से जगह बनाते हुए मेरे एक चूतड़ को हाथ से फैला कर अपने दूसरे हाथ से लिंग को मेरी योनि की दिशा दिखाने लगा.

किसी तरह की कोई उत्तेजना मेरे अन्दर नहीं जग रही थी, बस एक औपचारिकता निभाने जैसा था.
मेरी योनि बिल्कुल भी गीली नहीं थी बस पेशाब की कुछ बूंदें होंगी शायद.

सुरेश को मेरी योनि द्वार मिलते ही उसने जोर लगाया.
लिंग मेरी योनि में जाने तो लगा पर ऐसा लगा मानो बाहर की चमड़ी अन्दर धंसने लगी.
ज्यों-ज्यों वो दबाव डालता, त्यों-त्यों मेरी योनि की चमड़ी अन्दर की तरफ खिंचती चली जा रही थी … और मेरी पीड़ा बढ़ती जा रही थी.

जब मुझसे बर्दाश्त होना असंभव लगने लगा, तब मैं बोली- सुरेश, दर्द हो रहा मुझे. थूक लगा लो सही से नहीं घुस रहा.
सुरेश- थोड़ा देर बुर चाटूं क्या … उससे तुम्हारी गीली हो जाएगी.
मैं- ठीक है, मगर जल्दी करो सब कोई गलती से आ गया तो बुरे फसेंगे.

मेरी बात सुनते ही वो मुझसे अलग हुआ और घुटनों के बल खड़ा हो गया.
उसने मेरे दोनों चूतड़ों को हाथों से फैलाया और अपना मुँह मेरे मोटे और बड़े से कूल्हों के बीच फंसा कर मेरी योनि में अपनी जीभ फिरानी शुरू कर दी.

वो बार बार मेरी योनि में थूक देता और फिर जीभ से उसे मेरी योनि में फैला देता.
इससे थोड़ी थोड़ी उत्तेजना मुझे भी होनी शुरू हो गयी थी.

बड़े से चूतड़ होने के वजह से उसे पीछे से मेरी योनि चाटने में सहूलियत नहीं हो रही थी चाहे मैं कितनी भी चूतड़ उठा देती या टांगें फैला देती.

अंत में मैं आगे की ओर पलट गई और साड़ी पकड़ कर अपनी जांघें फैला कर उसे अपनी योनि दे दी.
पीछे से वो मेरा गुदाद्वार ज्यादा चाट रहा था और योनि कम.

मेरा मन दो हिस्से में बंट गया था, इस वजह से मुझे उस तरह की सनसनी महसूस नहीं हो रही थी.
मैं केवल चाहती थी कि सुरेश किसी तरह झड़ जाए बाकी मजे तो बाद में भी आराम और फुर्सत से कर सकते थे.

मैंने कहा- अच्छे से गीला हो गया लगता है. थोड़ा और थूक लगा लेना, चला जाएगा … पर अब जल्दी करो.

मेरी बात सुन कर सुरेश खड़ा हो गया और मैं दोबारा उसी अवस्था में अपनी साड़ी पकड़ कर झुक गयी.
सुरेश जल्दी से मेरे पीछे आया और लिंग के सुपारे पर थूक मल कर उसे मेरी योनि की द्वार से टिका कर लिंग पर दबाव दिया.

लिंग का सुपारा आराम से मेरी योनि में प्रवेश कर गया, उसकी गर्माहट से मुझे पता चल गया था.
अब उसने मेरे दोनों चूतड़ों को मजबूती से पकड़ा और जोर जोर से मुझे 5- 6 धक्के मारे.
मेरा पूरा बदन हिल गया.

उसके तीव्र झटकों से भीतर मेरे बच्चेदानी में जोरदार चोट लगी.
मैं संभल भी नहीं पायी और बोल पड़ी- आराम से, ऐसे कोई मारता है क्या … लग रहा पेट फट जाएगा मेरा!

सुरेश- तुमने ही तो बोला कि जल्दी करो इसलिए तेज़ी से शॉट मार रहा था.
मैं- रफ्तार से करो, जोर से नहीं … मेरी बच्चेदानी में चोट लग रही.

सुरेश- तुम्हारी बुर चाट कर बहुत ज्यादा जोश आ गया था … हा हा हा. गजब की खुशबू आ रही थी, मुझे चाटने में मजा आया. थोड़ा नमकीन था पर अच्छा लगा.
मैं हंसती हुई बोली- वो मेरा नमकीन पानी ही था … कहीं मेरा मूत तो नहीं था?
सुरेश- हां मूत ही था, कुछ बूंद तुम्हारी झांटों में भी लगा था, चाट कर साफ कर दिया … हा हा हा हा.

मैं- अब मुझे चूमना मत. इतना पसंद था तो मैं तुम्हारे मुँह में ही मूत देती पहले कहते तो … ही ही ही.

सुरेश हल्के हल्के मुझे धक्के मारता हुआ बोला- अरे नहीं, वैसा नहीं चाहता … पर तुम अगर चाहती हो, तो मेरे मुँह में भी कभी मूत देना!
मैं- मुझे वैसा कुछ पसंद नहीं है. अब तुम बकवास बंद करो और जल्दी जल्दी अपना काम खत्म करो.

मेरी बात सुनते ही उसने अपनी रफ़्तार बढ़ाई.

मुझे कुछ खास अहसास नहीं हो रहा था, मैं केवल उसका साथ दे रही थी.

मेरी ऐसे संभोग की कोई इच्छा नहीं थी इस वजह से मेरे भीतर किसी तरह की उत्तेजना नहीं थी; बस योनि में लिंग का घर्षण महसूस करने की वजह से चिकनाई निकल रही थी.
सुरेश मुझे ऐसे धक्के मारे जा रहा था मानो और कितना अन्दर अपना लिंग घुसाना चाहता था.

ऊपर से उसकी बकवास कम नहीं हो रही थी.

सुरेश- कसम से तुम्हें चोदने का मजा ही कुछ और है … खासकर जब तुम गर्म होती हो तो मजा सातवें आसमान तक चला जाता है.
मैं- अभी मजा नहीं आ रहा क्या?

सुरेश- आ रहा … तभी तो चोद रहा हूँ.
मैं- जोर जोर से मारो ओर खत्म करो.

सुरेश- हां, वही तो कर रहा हूँ.
मैं- और कितना समय लगेगा तुम्हें?
सुरेश- बस थोड़ी देर और.

धक्के तेज़ी से और जोर जोर से लगने लगे मुझे, मैं न चाह कर भी मुँह से आवाजें निकालने लगी.

उसका लिंग बार बार मेरे बच्चेदानी को छूकर आता था.
उसका जल्दी हो जाए इस वजह से मैंने जितना हो सका, अपने चूतड़ उठा दिए ताकि वो अच्छे से अपना लिंग मेरी योनि में प्रवेश कराता रहे.

करीब 10 मिनट में आखिर कर वो हांफ़ता और गुर्राता हुआ मेरी योनि के भीतर झड़ गया.
उसने मेरी कमर को पूरी ताकत से पकड़ लिया और लिंग को मेरी योनि की गहराई में धंसा कर मुझे ठोकर मारता रहा.

जब तक के उसने वीर्य का आखिरी बूंद तक मेरी योनि के भीतर छोड़ न दिया, वो लगा रहा.
उसके लिंग का सुपारा ऐसा महसूस हो रहा था मानो मेरे बच्चेदानी के मुँह से चिपक गया हो और चिपचिपा लावा उगल रहा.

कुछ देरी के बाद उसने अपना लिंग मेरी योनि से बाहर खींचा और मुझसे अलग हुआ.
उसका चिपचिपा गाढ़ा वीर्य मेरी योनि से छलक गया, पर इतना गाढ़ा था कि योनि से चिपक कर लटका रह गया.

मैंने झट से झाड़ियों में से एक पत्ता तोड़ा और वीर्य पौंछ कर पैंटी पहन ली.
उधर सुरेश ने भी अपना पैंट पहन लिया और हम चलने को तैयार हो गए.

दोस्तो, आपको मेरी जंगल Xxx कहानी कैसी लग रही है, प्लीज़ मुझे मेल करके जरूर बताएं.
अभी तो ये यौनरस बिखरना शुरू हुआ है. आगे आगे देखिएगा … कितना मजा आएगा.
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जंगल Xxx कहानी से आगे की कहानी: मेरी सहेली मेरे यार से चुद गयी नदी किनारे

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