वासना के पंख-7

(Vasna Ke Pankh- Part 7)

क्षत्रपति 2018-09-28 Comments

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दोस्तो, आपने इस गर्म सेक्स कहानी के पिछले भाग में पढ़ा कि शारदा सामूहिक चुदाई के लिए तो मान गई लेकिन अब तक उसके संस्कार उसे अपने पति के अलावा किसी और से चुदवाने की इजाज़त नहीं दे रहे थे। वहीं दूसरी ओर संध्या तो प्रमोद से चुदाने के लिए तैयार बैठी थी। अब आगे…

सामूहिक चुदाई की पहली कोशिश नाकाम हो चुकी थी। आगे भी इसके हो पाने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। आखिर हर किसी को अपनी ज़िन्दगी में कोई तो नया रंग भरना ही था। प्रमोद और मोहन दोनों अपने अपने तरीके से कोशिश करने लगे।
प्रमोद ने अपनी उन ब्लू फिल्म वाली कैस्सेट्स का सहारा लिया जो वो एम्स्टर्डम से लाया था, लेकिन मोहन के लिए अब कुछ नया करने को बचा नहीं था। पंकज अभी छोटा था उसके सोने तक वैसे भी मोहन कुछ कर नहीं पाता था और देर रात तक इतना समय होता नहीं था कि कुछ खास किया जा सके।
धीरे धीरे मोहन और संध्या का काम जीवन नीरस होने लगा था।

लेकिन प्रमोद के अभी कोई बच्चे नहीं थे उसने शारदा के साथ ब्लू फिल्म देखना शुरू किया। हालाँकि शारदा विवाहेतर संबंधों के पक्ष में नहीं थी फिर भी पता नहीं क्यों उसे 1974 में बनी इमैन्युएल (Emmanuelle) नाम की फिल्म बहुत पसंद आई। उसमें भी नायिका का पति उसे मज़े करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता था। लेकिन शायद जो उसे पसंद आया था वो उस नायिका के कामानंद का प्रदर्शन था।

इस फिल्म का कई भाग थे और कई महीनों तक शारदा बस उन्ही को देखने की माँग करती रहती थी। आखिर एक दिन प्रमोद के कहने पर उन्होंने 1976 में बनी ऐलिस इन वंडरलैंड देखी। ये एक तरह से हास्य फिल्म थी। सेक्स में कॉमेडी का मिलना ही एक अलग अनुभव था उस पर हिंदी फिल्मों की तरह गाने भी। चुदाई करते करते गाना गाते कलाकार सोच कर ही हँसी आती है। ये शारदा ही नहीं बल्कि प्रमोद के लिए भी एक नया अनुभव था।

लेकिन इस फिल्म से शारदा को एक और नई बात सीखने को मिली जो उसने पहले कभी सपने भी नहीं सोची थी। और वो थी रिश्तों में चुदाई। इस फिल्म में ऐलिस, एक जुड़वां भाई-बहन से मिलती है जिनका नाम ट्विडलीडी और ट्विडलीडम था। वो बच्चों की तरह खेलते खेलते चुदाई करते रहते हैं। शारदा को ये बात अजीब सी लगी।

शारदा- इन्होंने ऐसा क्यों दिखाया? भाई-बहन भी कभी ऐसा करते हैं क्या!
प्रमोद- ज़्यादातर नहीं करते। लेकिन शारदा, दुनिया बहुत बड़ी है हर तरह के लोग हैं। कुछ लोग करते भी होंगे।
शारदा- पता नहीं। मुझे तो नहीं लगता। वैसे भी ये तो मजाकिया फिल्म है वो भी काल्पनिक दुनिया के बारे में इसलिए दिखा दिया होगा।

प्रमोद- तुमको ऐसा लगता है तो फिर मैं तुमको एक और फिल्म दिखाता हूँ। मैंने भी नहीं देखी है लेकिन पोस्टर देख कर ही समझ गया था कि उसमें क्या है।
शारदा- क्या नाम है उस फिल्म का?
प्रमोद- टैबू
शारदा- मतलब?
प्रमोद- वर्जित।

यह शायद दुनिया की पहली फिल्म थी जिसमें माँ-बेटे के बीच के कामुक रिश्ते को इतनी गहराई से दिखाया था। फिल्म में माँ-बेटे की चुदाई देख कर तो शारदा थर थर कांपने लगी, वो दृश्य उसके सेक्स को झेल पाने की मानसिक शक्ति से बहुत ऊपर था; उसके हाथ पैर ढीले पड़ गए और दिल की धड़कन राजधानी एक्सप्रेस के साथ रेस लगाने लगी।

उस दिन शारदा चुदाई के समय एक लाश की तरह पड़ी रही लेकिन जो अनुभव उसकी चूत को हुआ वो शायद पहले कभी नहीं हुआ था। सच है… सेक्स, शरीर का नहीं दिमाग का खेल है।

प्रमोद और शारदा ने जब ये ब्लू फिल्में देखना शुरू किया तब इस सब के बिलकुल विपरीत मोहन और संध्या की आँखों से नींद गायब थी और वो एक रात बिस्तर पर पड़े पड़े अपने नीरस काम-जीवन पर चर्चा कर रहे थे। वही पुराना घिसा-पिटा चुदाई का खेल खेलने में अब उन्हें कोई रूचि नहीं रह गई थी।

संध्या- देखो क्या से क्या हो गया। कहाँ तो आप प्रमोद के साथ मज़े कर लेते थे और कहाँ अब मेरे होते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे।
मोहन- तब तो माँ की चुदाई देख कर मस्ती करते थे अब अकेले अकेले मज़ा नहीं आ रहा। प्रमोद की बीवी ने भी मना कर दिया नहीं तो अपनी ज़िन्दगी ऐश में कटती।
संध्या- क्या कहा आपने? माँ की चुदाई?

मोहन तो संध्या को पूरी कहानी बताई कि कैसे वो अपनी माँ और प्रमोद के पापा की चुदाई देखते थे और दरअसल कैसे उनके आपस में मुठ मारने की शुरुआत भी उसकी माँ की वजह से ही हुई थी।

यह सब सुनते सुनते संध्या के दिमाग में एक खुराफात आई।
संध्या- प्रमोद के पापा तो मम्मी को अब भी चोदते होंगे। क्यों ना हम भी उनकी चुदाई देख देख के चुदाई करें?
मोहन- नहीं यार, अब वो सुराख से देख कर मज़ा नहीं आयेगा, और वैसे देखते देखते तुमको कैसे चोद पाऊंगा।
संध्या- ये तुम्हारी माँ के बेडरूम और हमारे बेडरूम के बीच की दीवार में एक तरफ़ा आईना लगवा लें तो कैसा रहेगा?
मोहन- हम्म! आईडिया तो अच्छा है लेकिन माँ यहाँ आई तो उसे दिख जाएगा कि उस आईने से हमें सब दीखता है। एक मिनट सोचने दो।

आखिर सोच समझ कर सही प्लान मिल ही गया। सबसे पहले अपने बेडरूम को नया बनाने की बात की गई और फिर मोहन ने कहा कि हम अपने आराम के साथ साथ माँ को भी वही आराम देंगे और इस तरह दोनों बेडरूम को फिर से बनवाने का काम शुरू किया। दोनों बेडरूम के बीच की दीवार में दोनों तरफ एक जैसे आईने लगवाए गए जिनके बीच दीवार नहीं थी। पंकज के लिए एक छोटा बिस्तर बनवाया गया जो एक पार्टीशन के उस तरफ रखा था जिस से चुदाई के वक़्त कोई बाधा ना हो।

दोनों बेडरूम के दर्पण एक दम सामान्य दर्पण ही दिखाई देते थे लेकिन मोहन के बेडरूम के दर्पण को सरका कर आसानी से हटाया जा सकता था। उसके बाद केवल माँ के बेडरूम का दर्पण लगा रहता जिसमें से मोहन के तरफ से सब साफ़ दिखाई देता था। ये बात मोहन ने संध्या को भी नहीं बताई थी कि माँ के तरफ वाला दर्पण भी हटाया जा सकता था लेकिन उसको खोलने की कुण्डी प्रमोद के बेडरूम की ही तरफ थी।

तो अब सबके सोने के बाद मोहन के बेडरूम का दर्पण हटा दिया जाता और वो खिड़की अब एक लाइव टीवी बन जाती लेकिन अक्सर उस पर एक ही बोरिंग का कार्यक्रम चल रहा होता था जिसमें मोहन की माँ सोती हुई दिखाई देती थी। लेकिन कभी कभी मोहन और संध्या की किस्मत अच्छी होती तो उस पर लाइव ब्लू फिल्म चलती थी जिसकी हीरोइन मोहन की माँ होती थी।

कई महीनों तक मोहन और संध्या ने बड़े मज़े किये. संध्या को तो बड़ा जोश आ जाता था और वो मोहन की माँ को रंडी, छिनाल और पता नहीं क्या कह कर चिढ़ाती थी कि देख कैसे तेरी माँ अपने यार से चुदा रही है।
मोहन को भी इस बात से और जोश आता और वो संध्या को दुगनी ताकत से चोदता। मोहन और संध्या के काम-जीवन में फिर से एक नई ऊर्जा आ गई थी।

लेकिन ये सब ज्यादा समय नहीं चल पाया। एक दिन जब प्रमोद के पापा सुबह खेत पर घूमने गए तो वहां उनको सांप ने काट लिया और जब तक कोई उनको वहां बेहोश पड़ा देख पता बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल जाते जाते ही उनकी मौत हो गई। माहौल थोड़ा ग़मगीन हो गया और इस बीच किसी के दिमाग में ये बात नहीं आई कि अब मोहन और संध्या को उनकी लाइव ब्लू फिल्म देखने को नहीं मिलेगी।

ग़म और ख़ुशी रात और दिन की तरह होते हैं। एक जाता है तो दूसरा आता है। अगले ही महीने शारदा ने बताया कि वो गर्भवती है। प्रमोद को लगा कि शायद उसके बाबूजी उसके बेटे के रूप में वापस आने वाले हैं। सारे ग़म फिर खुशी में बदल गए।
लेकिन मोहन और संध्या के लिए तो सब कुछ फिर से नीरस हो गया था। प्रमोद के ऐश भी खत्म होने ही वाले थे क्योंकि ना केवल शारदा गर्भवती होने के कारण अब पहले जैसे चुदा नहीं सकती थी बल्कि उसने उन सब ब्लू फिल्मों को भी ताले में बंद कर दिया था क्योंकि उसे लगता था कि इस सब का आने वाले बच्चे पर गलत असर पड़ेगा।

जहाँ चाह वहां राह … नदी अपना रास्ता खुद ढूँढ लेती है। संध्या ने मोहन को एक तीर से दो निशाने लगाने की सलाह दी।

संध्या- देखो जी, ऐसे वापस नीरस होने से कोई फायदा नहीं है। उधर शारदा भी पेट से है। मेरे टाइम पर प्रमोद भाईसाहब ने आपका साथ दिया था। अब आप उनका साथ दे दो…
मोहन- साथ देने का वादा तो तूने भी किया था।
संध्या- अरे! अब आप कहोगे तो मैं मना करुँगी क्या। आप जाकर निमंत्रण तो दो।
मोहन- चुदाई निमंत्रण? हे हे हे!!!

मोहन जब शहर गया तो प्रमोद की दुकान पर जा कर उसने अपनी बात उसे बता दी और कह दिया कि जब मन करे आ जाना। प्रमोद ने हमेशा की तरह पूरी ईमानदारी के साथ शारदा से पूछ लिया।

प्रमोद- मोहन आया था कुछ काम से तो आधे घंटे दुकान पर बैठ कर गया। कह रहा था कि संध्या पेट से थी तो तुमने बड़ा साथ दिया था। अब मैं चाहूँ तो वो मेरा साथ दे सकता है।
शारदा- हाँ तो चले जाओ… और अगर आपके दोस्त को दिक्कत ना हो तो संध्या के साथ भी कर लेना जो करना हो।
प्रमोद- अरे नहीं, तुमको तो वो पसंद नहीं था ना। मैं उसके साथ नहीं करूँगा।

शारदा- नहीं नहीं, वो तो मुझे कोई हाथ लगाए ये पसंद नहीं है। आपको अच्छा लगता है ये सब तो मैं क्यों आपकी तमन्नाओं के रास्ते का पत्थर बनूँ।
प्रमोद- तुमको पक्का कोई समस्या नहीं है ना?
शारदा- मुझे क्या समस्या होगी? बल्कि मैं तो कहती हूँ ऐसे जम के चोदना उसको कि वो भी याद रखे कि शारदा का पति क्या मस्त चोदता है।

प्रमोद को तो मन ही मन मज़ा आ गया। पहली बार वो किसी पराई नारी को चोदने जा रहा था वो भी अपने बचपन के यार के साथ मिल कर। आखिर अगले रविवार की दोपहर वो घर से निकला तब भी शारदा ने कह कर भेजा कि अच्छे से चोदना, जल्दी झड़ के मेरी नाक मत कटा देना।

प्रमोद शाम तक गाँव पहुँच गया। खाना खा पीकर सब सोने चले गए और प्रमोद, मोहन के साथ बैठ कर दारू पी रहा था। अभी एक-एक पैग ही लगाया था कि संध्या ने आकर कहा कि पंकज सो गया है।

दोनों मोहन के बेडरूम में चले गए। संध्या एक पतली सी नाइटी पहने बिस्तर के बीचों बीच लेटी थी लेकिन उसने अपना ऊपरी हिस्सा कोहनियों के बल उठा रखा था। मोहन ने अपना शर्ट निकाल फेंका और केवल चड्डी में संध्या के पीछे जाकर बैठ गया। संध्या ने अपना सर उसकी गोद में रख दिया।

मोहन ने अपने दोनों हाथ उसकी नाइटी के अन्दर डाल कर कुछ देर उसके स्तनों को वैसे ही सहलाया फिर धीरे से नाइटी की डोरियाँ कन्धों पर से नीचे सरका कर उसे कमर तक खिसका दिया। बाकी संध्या ने खुद नाइटी कमर से नीचे निकाल कर फेंक दी। अब वो पूरी नंगी थी। प्रमोद ने सोचा नहीं था कि सबकुछ इतना जल्दी हो जाएगा। वो तो अभी शर्ट ही निकाल रहा था और उसका तो अभी ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ था।

मोहन- आओ ठाकुर! भोग लगाओ।
प्रमोद- नहीं यार तुम्हारी पत्नी है, शुरुआत तुम ही करो।
संध्या- सुनो जी, आप ही ज़रा चाट के गीली कर दो। तब तक मैं प्रमोद भाई साहब का खड़ा करती हूँ। भाई साब आप इधर आइये।

मोहन नीचे जा कर संध्या की चूत चाटने लगा और संध्या ने प्रमोद की चड्डी नीचे खींच कर निकाल दी। उसका लंड बड़ा तो हो गया था लेकिन अभी खड़ा नहीं हुआ था। संध्या ने उसे गपाक से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। पता नहीं वो संध्या की चूत की खुशबू थी या उसके प्रमोद के लंड को चूसने का दृश्य जिसने मोहन का लंड जल्दी ही कड़क कर दिया। मोहन ने तुरंत उठ कर अपनी चड्डी उतारी और वहीं बैठ कर संध्या को चोदना शुरू कर दिया।

तभी संध्या उठी और कुश्ती के किसी दाव की तरह मोहन को चित करते हुए उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई। प्रमोद को अचम्भा ये हो रहा था कि इस पूरे दाव में उसने मोहन के लंड को अपनी चूत से निकलने नहीं दिया।

संध्या- वो क्या है ना भाई साब, लेटे-लेटे लंड चूसना थोड़ा मुश्किल रहता है। आइये अभी अच्छे से चूस के दो मिनट में आपके लंड को लौड़ा बनाती हूँ।

संध्या किसी घुड़सवारी करती हुई लड़की की तरह उछल उछल कर मोहन को चोद रही थी और एक हाथ से पकड़ कर प्रमोद का लंड भी चूस रही थी। पता नहीं क्या सच में वो प्रमोद को बेहतर चूस पा रही थी या फिर उसके उछलते हुए स्तनों का वो मादक दृश्य था, या फिर शायद संध्या का मोहन पर हावी होने का वो अंदाज़ जो प्रमोद को बड़ा उत्तेजक लगा था; जो भी जो प्रमोद का लंड अब कड़क होकर झटके मारने लगा था। संध्या ने प्रमोद को छोड़ा और झुक कर अपने स्तन मोहन की छाती पर टिका दिए।

संध्या- भाईसाब, आप एक काम करो पीछे वाले छेद में डाल दो। अपने दोस्त की बीवी की गांड मार लो आज!
प्रमोद- यार तू डाल ले ना पीछे, मैं आगे आ जाता हूँ। मुझे पीछे का कोई आईडिया नहीं है।
मोहन- आईडिया तो मुझे भी नहीं है यार। मैंने भी आज तक इसकी गांड नहीं मारी है। तू ही कर दे उद्घाटन।
संध्या- हाँ हाँ भाईसाब जल्दी डाल दो। बड़े दिन से मन था आगे-पीछे एक साथ लंड लेने का। एक फोटो में देखा था तब से सपने देख रही हूँ। आज आप मेरा सपना सच कर ही दो।

प्रमोद ने थोड़ा थूक अपने लंड पर लगाया और थोड़ा संध्या की गांड पर और लंड को उसकी गांड के छेद पर रख कर दबा दिया। लंड की मुंडी तो आसानी से चली गई लेकिन तभी संध्या की गांड का छल्ला कस गया और उसका लंड ऐसे फंस गया कि ना अन्दर जा रहा था ना बाहर। थोड़ी देर तक कोशिश करने के बाद कहीं जा कर प्रमोद अपने लंड को पूरा अन्दर घुसा पाया।
अब संध्या ने कमर हिलाना शुरू किया चूत का लंड अन्दर जाता तो गांड का बाहर आता और जब पीछे धक्का मरती तो चूत का लंड बाहर की ओर निकलता और गांड वाला अन्दर घुस जाता।

प्रमोद और मोहन को कुछ करना ही नहीं पर रहा था। अकेली संध्या दो-दो लंडों को एक साथ चोद रही थी। आखिर उसकी उत्तेजना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, वो कुछ देर तक बहुत तेज़ी से स्टीम इंजन की रॉड के जैसे आगे पीछे हुई और फिर झड़ गई।
जब संध्या के धक्के बंद हुए तो मोहन और प्रमोद ने अपने लंड आगे पीछे करना शुरू किया। अब जब लंड आगे पीछे हुए तो दोनों को एक दूसरे के लंड का अहसास भी हुआ। पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं जब वो बचपन में लंड से लंड लड़ाते थे। आखिर दोनों से इस नए अनुभव का रोमांच बर्दाश्त नहीं हुआ और जल्दी ही दोनों संध्या की चूत और गांड में ही झड़ गए।

उसके बाद एक बार मोहन ने अकेले गांड मारने का अनुभव लिया और प्रमोद ने खड़े खड़े संध्या को चोदा ये देख कर मोहन का लंड भी खड़ा हो गया और संध्या प्रमोद के गले में बाँहें डाल कर और उसकी कमर को अपनी टांगों में जकड़ कर लटक गई फिर पीछे से मोहन ने उसकी गांड में अपना लंड डाल दिया और फिर दोनों ने मिलकर संध्या को अपने दो-दो लंडों पर उछाल-उछाल कर चोदा।

आखिर संध्या को बीच में सैंडविच बना कर तीनों नंगे ही सो गए। सुबह प्रमोद की नींद जल्दी खुल गई थी। उसने संध्या के अंगों से खेलना और सहलाना शुरू किया तो संध्या भी उठ गई। उसने प्रमोद को अपने साथ आने को कहा। दोनों नंगे ही कमरे से बाहर आ गए। प्रमोद को समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है, संध्या चाहती क्या है। उसने धीरे से खुसुर-फुसुर बात करने का सोचा।

प्रमोद- हम कहाँ जा रहे हैं?
संध्या- मेरी सासू माँ के कमरे में।
प्रमोद- पागल हो क्या? मुझे ऐसे नंगे वहां क्यों ले जा रही हो?
संध्या- माँजी इस समय नहा रही होतीं हैं मेरी बड़ी तमन्ना थी उनके नहाते टाइम उनके बिस्तर में चुदवाने की, लेकिन कभी नींद ही नहीं खुलती थी।

संध्या ने धीरे से दरवाज़ा थोड़ा सा खोल कर देखा। अन्दर कोई नहीं था। शायद संध्या की सासु अटैच्ड बाथरूम में नहाने गई हुईं थीं। संध्या ने दरवाज़ा पूरा खोल कर खुला ही छोड़ दिया और प्रमोद को अन्दर बुला कर जल्दी से उसका लंड चूसने लगी। अन्दर से नल के चलने की आवाज़ आ रही थी। प्रमोद की धड़कन डर के मारे बहुत तेज़ हो गई थी। शायद इसी वजह से उसका लंड भी जल्दी खड़ा हो गया।

संध्या जल्दी से लेट गई और अपनी टांगें चौड़ी कर दीं। उसकी चूत भी पूरी गीली हो गई थी। प्रमोद ने बिना समय गंवाए अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया और संध्या के ऊपर लेट कर उसे जल्दी जल्दी चोदने लगा। तभी अन्दर से मग भर भर के पानी डालने की आवाज़ आने लगी।

ॐ गंगे च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि!…

संध्या- जल्दी चोदो माँ जी आने वाली हैं।

प्रमोद ने चुदाई की रफ़्तार इतनी बढ़ा दी कि शायद कोई और टाइम होता तो छह कर भी इतना तेज़ नहीं चोद पाता। तभी बाथरूम के दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आई और प्रमोद ने आव देखा ना ताओ संध्या को वैसे ही गोद में उठा कर बाहर की तरफ भगा। इधर भी भाग ही रहा था कि उसके लंड ने संध्या की चूत में अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। आखिर उसने मोहन के कमरे में जा कर ही सांस ली। संध्या को बिस्तर पर पटक के खुद भी उसी के ऊपर लेट गया। उसका लंड अभी भी संध्या की चूत में था। इस सब में मोहन की भी नींद खुल गई थी।

मोहन- क्या हुआ सुबह सुबह चुदाई शुरू कर दी? और ये दरवाज़ा क्यों खोल रखा है। देखो माँ के उठने का टाइम हो गया है कहीं इधर आ गईं तो लफड़ा हो जाएगा।

इस बात पर दोनों हंस पड़े। प्रमोद का लंड अब तक अपनी सारी मलाई संध्या की कटोरी में खाली कर चुका था। वो उठा और जा कर दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर प्रमोद ने बताया कि वो अभी क्या गुल खिला के आये हैं।
यह सुन कर तो मोहन के भी दिल की धड़कन बढ़ गई।

खैर सबने उठ कर नाश्ता किया और प्रमोद को विदा किया। प्रमोद जब घर पहुंचा तो शारदा उसी की राह देख रही थी।

शारदा- क्या क्या किया फिर रात को?
प्रमोद- मोहन और मैंने संध्या को खूब चोदा और गांड भी मारी। यहाँ तक कि दोनों काम साथ में भी किये, एक चोद रहा था और एक गांड मार रहा था। खूब गर्म सेक्स का मजा लिया.
शारदा- आप झूठ बोल रहे हो ना? मुझे चिढ़ाने के लिए?

प्रमोद- झूठ क्यों बोलूँगा? तुम्ही ने तो कहा था ना कि नाक मत कटाना। तो मैंने संध्या को मोहन से ज्यादा ही चोदा होगा। मज़ा आ गया उसको।
शारदा- मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी।

इतना कह कर शारदा दुखी होकर बेडरूम में चली और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया। प्रमोद ने बाहर से समझाया कि उसके कहने ही पर तो वो गया था अगर वो मन कर देती तो नहीं जाता। आखिर जब कुछ नहीं हुआ तो वो चुपचाप दूकान पर चला गया। शाम को आया तो शारदा सामान्य थी। उसने अपने व्यवहार के लिए माफ़ी भी मांगी और कहा कि ये पहली बार था इसलिए वो बर्दाश्त नहीं कर पाई लेकिन आगे से वो ऐसा नहीं करेगी।

अगले कुछ महीनों में प्रमोद 2-4 बार गाँव गया लेकिन उसको समझ आ गया कि शारदा को ये पसंद नहीं आ रहा था। वो कुछ ना भी कहती तो उसके व्यवहार से समझ आ जाता कि वो इस सब से खुश नहीं है। आखिर समय आने पर शारदा ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने सोनाली रखा। प्रमोद ने शारदा को वादा किया कि अब वो संध्या को चोदने गाँव नहीं जाएगा।

मोहन और प्रमोद अक्सर मिलते रहते थे। कभी कभी संध्या भी आ जाती थी और कभी कभी छुट्टियों में प्रमोद का परिवार भी गाँव जाता था। दोनों परिवारों की दोस्ती खत्म नहीं हुई और ना ही कम हुई लेकिन उस दोस्ती में से सेक्स का जो हिस्सा था वो खत्म हो गया था।

अब मोहन और संध्या अपने जीवन में रंग भरने के लिए क्या करेंगे? क्या मोहन को अपना पहला प्यार वापस मिल जाएगा? जानने के लिए इंतज़ार करें अगले भाग का।

मित्रो, यह गर्म सेक्स कहानी आपको कैसी लगी, बताने के लिए मुझे मेल करें!
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आपके प्रोत्साहन से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है।

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