यौनसुख से वंचित पाठिका से बने शारीरिक सम्बन्ध -1

(Yaun Sukh Se Vanchit Pathika Se Bane Sharirik Sambandh-1)

This story is part of a series:

प्रिय पाठको, आप सब को मेरा प्यार भरा नमस्कार!
मेरी कहानी तुझ को भुला ना पाऊँगा को आप सब लोगों ने बहुत सराहा और वो शायद उस महीने की सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक रही।
बहुत सारे मेल और फ़ेसबुक फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी आई उनमें से बहुत सारे लोग मेरे नेट फ्रेंड बन भी गये।

उस कहानी को एक पाठिका मंजरी (बदला हुआ नाम) ने पढ़ा जो कि वसुंधरा में रहती हैं, उनका मेरे पास मेल आया तो मैंने औपचारिकता वश उनके मेल का जवाब भी दिया और कहानी की तारीफ के लिए धन्यवाद भी दिया।
पर वो मुझे लगातार मेल करती रही परन्तु मैं उन्हें लगातार जवाब नहीं दे रहा था।

और एक दिन उन्होंने मुझे मेल करके कहा- दलबीर जी, आपकी कहानियाँ काल्पनिक होती हैं ना?
मैंने उन्हें जवाब दिया- नहीं मंजरी जी, ऐसी बात नहीं है, पर कहानी को कलात्मक रूप देने के लिए कहानी का कुछ मेकअप करना पड़ता है।

इस पर उनका जवाब आया- अगर ऐसा है तो आप मुझे हर बार जवाब क्यों नहीं देते?
अब इस बात का कोई खास जवाब मेरे पास था भी नहीं क्योंकि एक तो अपनी क्लिनिक में मैंने जनवरी में एक लॅबोरेटरी खोली है जिस कारण से काम का बोझ बढ़ गया है तो यही बात मैंने उनको मेल में बता दी।

तो उसका जवाब आया- कभी तो टाइम होता होगा आपके पास?
मैंने उनसे कहा- आप यह बताइए कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?
तो उनका जवाब आया- क्या आप याहू मेसेन्जर पर आ सकते हैं?

तो मैंने उस दिन मेल का जवाब नहीं दिया और दो दिन बाद मैंने जब अपना मेल बॉक्स खोला तो पाया कि उनकी एक और मेल आई है, और यह मेल अभी कुछ देर पहले ही डिलीवर हुई थी, इसमें मंजरी ने कहा था कि उसने मुझे Y/M पर रिक्वेस्ट भेजी है और वो मुझसे चैटिंग करना चाहती है।

मैंने अपने याहू मेसेन्जर में लॉग इन किया तो वहाँ पर मंजरी की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई हुई थी।
मैंने वो रिक्वेस्ट एक्सेपट कर ली तो उसका तुरंत मैसेज आया- हाय!
मैंने भी रिप्लाई किया- हैलो!

उसने पूछा- आप कैसे हैं दलबीर जी?
मैंने जवाब दिया- ठीक हूँ!

और कुछ औपचारिक बातें करने के बाद मैंने पूछा- हाँ मंजरी जी, अब बताइए क्या कहना चाहती हैं आप?तो उसने मुझे कहा- क्या हम वीडियो चैट कर सकते हैं?
मेरे पास वेब कैम नहीं था इसलिए मैंने उसे इसके लिए मना कर दिया।

इस पर वो बोली- क्या मैं आपकी तस्वीर देख सकती हूँ?
मेरे कंप्यूटर में मेरी कुछ तस्वीरें पड़ी हुई थीं पर मैंने उसे कहा- पहले आप दिखाइए?
उसने तुरंत फोटो शेयरिंग खोला और अपनी कुछ तस्वीरें मुझे भेज दीं, वो सुंदर थी, बड़ी बड़ी आँखें तीखा नाक, अंडाकार चेहरा…

एक पिक्चर में वो मुस्कुरा रही थी तो उसके बायें गाल पर गड्ढा पड़ रहा था जो कि उसके व्यक्तित्व को बहुत आकर्षक बना रहा था और सबसे ज़्यादा कातिल उसके चेहरे पर निचले होंठ के पास एक तिल था जो उसकी सुंदरता को चार चाँद लगा रहा था।

उसकी तस्वीरें देखने के बाद मैंने भी अपनी कुछ तस्वीरें उसे भेज दीं।
मैं कोई बहुत सुंदर तो नहीं हूँ पर साधारण चेहरे पर भी मेरी ऊपर को मुड़ी हुई मूँछें और मेरी मुस्कुराहट मेरे चेहरे को आकर्षक बना देती हैं।
वो भी मेरी पर्सनेलिटी से प्रभावित हुई।

उसने पहले तो मेरी कहानी की तारीफ की और बताया कि उसने मेरी सारी कहानियाँ पढ़ी हैं मैंने भी औपचारिकता वश उसे शुक्रिया अदा किया।
उसने मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछा और मैंने भी उत्तर में उसे अपने बारे में काफ़ी कुछ बताया।

तब उसने मुझसे पूछा मेरे और मेरी पत्नी के सम्बन्ध में…
मैंने भी करीब करीब उसे काफ़ी कुछ बताया और कहा कि उसे मेरे और दीपो के बारे में पता लग गया था इसलिए हमारे सम्बन्ध सामान्य तो नहीं हैं पर कोई ऐसी बिगड़ी भी नहीं है, मेरी पत्नी समझदार सुलझी हुई गृहणी है, केवल शारीरिक सम्बन्ध को उसका मन नहीं करता बाकी लगभग सब कुछ ठीक है।

कुछ देर तक उसकी रिप्लाइ नहीं आई पर वो ऑन लाइन दिख रही थी और मुझे लगा कि शायद घर पर कोई और भी होगा या कोई काम पड़ गया होगा तो मैं भी ऑफ लाइन नहीं हुआ और मेरा कुछ और काम था उसे निपटने लगा।

लगभग 7-8 मिनट बाद उसने पूछा- आर यू देयर?
तो मैंने पूछा- बोलो?
उसने कहा- दलबीर जी, समझ में नहीं आ रहा कि अपनी बात आपसे कैसे कहूँ!
मैंने कहा- देखो मंजरी जी, अगर आपको विश्वास है तो बात करो, या फिर जब भरोसा हो जाए तब कह देना और अगर भरोसा नहीं है तो इस बात को यहीं ख़त्म करते हैं, क्योंकि आपको भी कुछ काम होगा और मैं भी बिज़ी रहता हूँ।

इस पर उसका उत्तर तुरंत आया- नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है, आप पर बहुत सोचकर भरोसा करा है, पर ये समझ नहीं आ रहा कि अपनी बात कहाँ से शुरू करूँ?
इस पर मैंने कहा- ऐसा करते हैं, पहले कुछ दिन तक सिर्फ़ दोस्तों की तरह से बात करते हैं फिर जब आप खुद को मेरे साथ सहज महसूस करें तब अपने मन की बात कह देना।

अब मैंने सवाल पूछा- अच्छा आप अपने बारे में भी कुछ बताइए?
उसने बताया:
मेरा एक बेटा है करीब 13 साल का, जो देहरादून में पढ़ता है, पति का पहले अपना बिज़नेस था जो कि सीलिंग के चक्कर में बंद हो गया था।
बिज़नेस बंद होने के बाद बहुत परेशानी आ गई थी, पहले ज़ेवर बिके, फिर घर भी बिक गया, जो भी काम करने की कोशिश करते थे, सब में नुकसान हो जाता था।
धीरे धीरे सर पर बहुत कर्ज़ा हो गया, सारे रिश्तेदार पीठ फेर गये।

पति इंजीनियर थे तो काफ़ी भाग दौड़ करने के बाद उनकी नौकरी अमेरिका में लग गई थी। वहाँ जाकर पति ने बहुत मेहनत की और पैसा घर भेजना शुरू कर दिया और 2 साल के अंदर ही सारे कर्ज़े उतार दिए।
फिर उन्होंने और पैसा भेजा और हमने किराए का मकान छोड़ कर अपनी कोठी खरीद ली और बेटे को भी देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया।
अब मेरे पति को गये हुए करीब 6 साल हो गये हैं, वो पैसा तो बराबर घर पर भेजते हैं पर एक अकेली औरत का काम सिर्फ़ पैसे से ही नहीं चलता, कुछ और ज़रूरतें भी होती हैं।

मैंने उनको पलट कर जवाब दिया- मैं समझ गया कि आपकी ज़रूरत क्या है, पर मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?
मंजरी ने जवाब दिया- मैं अपनी वो ज़रूरत आपसे पूरी करना चाहती हूँ!

मैं कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया तो उसने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- जो पति आपके लिए और आपके बच्चे के लिए देश छोड़ कर परदेश में पड़ा है क्या यह उसके साथ धोखा नहीं होगा?
जो जवाब मुझे मंजरी से मिला, उसे सुन कर मैं काफ़ी हैरान हुआ।
उसने कहा- जी, ये मैं उनकी इजाज़त से ही कर रही हूँ।

मैंने उसे कहा- टाइप करने में बहुत देर लगती है, क्या हम फोन पर बात कर सकते हैं?
मैंने उससे कहा- अगर मैं फोन काट दूं तो वो नाराज़ ना हो बल्कि मेर फ़ोन का इंतज़ार करे!
और इसके बाद मैं उससे इजाज़त ले कर लॉग आउट हो गया क्योंकि मुझे कुछ और भी काम था।

अगले पूरे दिन मैं व्यस्त रहा तो ऑन लाइन नहीं हो पाया और जब शाम को मैं ऑन लाइन हुआ तो मुझे उसके ऑफ-लाइन मैसेज मिले ‘आप कहाँ हैं?’ आई एम वेटिंग, वेयर अरे यू?
तो मैंने भी उसे रिप्लाई किया- कल बात करेंगे।

अगले दिन सुबह करीब 11 बजे मैं लैब की रिपोर्ट्स के प्रिंट निकल रहा था और मैंने याहू मेसेन्जर में भी लॉग इन कर रखा था, तब उसका मैसेज आया, मैंने कहा 10 मिनट रूको।

10 मिनट बाद मैं उससे चैट करने लगा तो उससे वही सवाल पूछा जो 2 दिन से मेरे दिमाग़ में घूम रहा था- मंजरी, आपने कहा कि आप ये उनकी मर्ज़ी से कर रही हैं, इसका क्या मतलब है?
मैंने कुछ झिझक कर पूछा और इसके साथ ही कहा- अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो मेरे फोन पर कॉल करो!
उसने रिप्लाई दिया- ओ. के.

इसके तुरंत बाद उसकी कॉल आई, मैंने फोन उठाया तो उसकी आवाज़ भी बहुत अच्छी थी, बहुत बारीक तो नहीं, पर कर्ण प्रिय आवाज़ थी उसकी!
तब मैंने उसे पूछा- हाँ मंजरी जी, अब बताइए, आपकी बात का मतलब मैं ठीक से नहीं समझ पाया।

तब वो गंभीरता से बोली- दलबीर जी, प्रदीप को गये हुए 6 साल हो चुके हैं और आप मेरा यकीन करना इन 6 सालों में मैंने अपनी आग को बिल्कुल अपने काबू में रखा पर अब पिछले 1 साल से अपने आपको काबू में रख पाना बहुत मुश्किल हो गया है। अब मैं जब भी प्रदीप से आने के लिए कहती हूँ तो वो कहते हैं आकर क्या करूँगा यहाँ हूँ तो पैसा कमा रहा हूँ। अभी करीब 27-28 दिन पहले मेरी प्रदीप से फ़ोन पर बात हुई थी मैंने उनसे खुल कर बात करी कि मेरे से अब नहीं रहा जाता तो प्रदीप ने मुझे बताया ‘मंजरी तुम भी जानती हो कि अमेरिका में भारत की तरह सेक्स पर रोक नहीं है तो मेरा तो यहाँ काम चल जाता है, तुम भी अपना काम वहाँ कोई अच्छा सा आदमी देख कर चला लो!’

उनकी यह बात सुन कर मैं काफ़ी देर तक रोई पर और इस बात को स्वीकार नहीं कर पाई, उस रात मुझे नींद भी नहीं आई पर सुबह दोबारा से उनका फोन आया और उन्होने मुझे नेट कॉल करने के लिए कहा, हमारी बात काफ़ी देर तक हुई और वो वेब केम पर मेरे सामने थे, उन्होंने मुझे समझाया कि ‘ये शरीर की ज़रूरत है, और मैं इस बात पर कभी भी तुमसे नाराज़ नहीं होऊँगा।’
तो मैंने उन्हें ये कह कर टाल दिया कि ‘मैं तुम्हें ये सोच कर बताऊंगी।’
और हमारी बात यहीं पर ख़त्म हो गई।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

‘फिर?’ मैंने कुछ पल की चुप्पी के बाद पूछा।
उसने उत्तर दिया- मैं कई दिन सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुँची कि अभी तो ये ऐसी बात कह रहे हैं पर हो सकता है कि ये सिर्फ़ मुझे आज़माने के लिए ही ऐसी बात कर रहे हों।

अगले तीन दिन तक मैं बहुत गहराई से इस बारे में सोचती रही, तीन दिन बाद हमारी बात फिर हुई लगभग आधे घंटे की बातचीत के बाद उन्होने मुझे बड़े प्यार से समझाया:

मंजरी जानू, मैं तुम पर कोई शक नहीं कर रहा, ना ही कभी भविष्य में करूँगा। मैं इस बात को समझता हूँ कि ये सब ज़रूरी है एक इंसान के लिए, और अगर तुम मेरी जानकारी के बगैर भी किसी से सम्बन्ध बना लेतीं तो मुझे क्या पता चल जाता? नहीं ना ! तो फिर मेरी जानकारी में तुम ये सब कर सकती हो।
फिर भी अगर आगे के जीवन के लिए कोई डर तुम्हारे मन में है तो मैं तुम्हारा पूरा भविष्य सुरक्षित कर देता हूँ, मकान तुम्हारे नाम पर ही है, ज़ेवर सारे तुम्हारे पास ही हैं, अगर तुम कोई और सुरक्षा चाहो तो जितने लायक मैं हूँ मैं वो भी कर दूँगा।
मेरे मन में कोई शक वाली बात होती तो मैं तुमसे ये सब ना कह रहा होता, और जब मैं विदेश में रह कर अपने लिए शारीरिक सुख पा सकता हूँ, तो फिर तुम्हें रोकने का क्या अधिकार है मुझे!

अगर मैंने कुछ ना किया होता तो शायद मैं तुम्हें रोकता… पर अब मुझे लगता है कि जो अधिकार मुझे है वो तुम्हें भी है, मंजरी मेरी जान मेरे उस वक्त में तुमने मेरा साथ दिया जब सब मेरा साथ छोड़ गये थे और तुमने मुझे कामयाब करने के लिए अपने ज़ेवर भी मेरे हवाले कर दिए थे और उस बुरे वक्त में तुमने मेरा साथ दिया एक बीवी की तरह… एक माँ की तरह तुमने मेरी देखभाल करी, एक दोस्त की तरह मेरी एक अच्छी सलाहकार बनीं तो भला मैं तुम्हारा सुख क्यों ना चाहूँगा!

यह कहते कहते वो रो पड़े थे।

तब मैंने उन्हें कहा:
प्रदीप आप रोओ मत, मैं वही करूँगी जो आप चाहते हो, अब बस हंस दो!
इस तरह से कुछ आम बातें हमारे बीच में हुईं, फिर मैंने प्रदीप से पूछा कि बताओ मैं किस के साथ करूँ, किस पर विश्वास करूँ? तो वो सोच में पड़ गये और कहा हम इस बारे में रात को बात करेंगे और ये कह कर उन्होने कॉल बंद कर दी।
वहाँ पर ये सुबह थी और हमारे यहाँ रात, उस रात में जब मैं लेटी तो मन में तरह तरह के ख़याल आए और बहुत देर तक मैं जागती रही फिर ना जाने कब मेरी आँख लग गई।

मंजरी ये सब बता रही थी और मैं बहुत गौर से उसकी बातें सुन रहा था और विचार कर रहा था मंजरी की ज़िंदगी पर!
इतने में मेरे पास कोई मरीज़ आ गया और मैंने मंजरी से कुछ देर बाद बात करने को कह कर फोन काट दिया।

मरीज़ से फ्री होकर मैंने उसे कॉल की तो उसने मेरा फोन तुरंत उठाया, मानो मेरी कॉल का ही इंतज़ार कर रही थी।
मैंने उससे बात के बीच में फोन काटने के लिए माफी माँगी, इस पर वो बोली- कोई नहीं जी, मैं समझ सकती हूँ आपका काम है वो भी ज़रूरी है।

आगे उसने बताया- फिर अगली सुबह जब उनके यहाँ रात हो गई थी तो हम दोनों स्काइप पर ऑन लाइन हुए हम एक दूसरे को देख रहे थे, एक दूसरे से बात कर रहे थे। तब मैंने उन से दोबारा पूछा अब ‘मुझे सलाह दो कि मैं क्या करूँ?’ तब उन्होंने कहा कि कोई ऐसा आदमी हो जो मैच्योर हो, सुलझा हुआ हो, और हमारी जान पहचान का ना हो।

मैंने फिर पूछा कि ‘ऐसा आदमी कहाँ मिलेगा और अगर हम किसी पर विश्वास करें और वो अच्छा आदमी ना निकला तो?’
तब उन्होने कहा- देखो डियर, यह फ़ैसला तो तुम्हें ही लेना पड़ेगा। पहले उससे बात करना, फिर कोई फ़ैसला लेना!

‘दलबीर जी, प्रदीप के जाने के बाद जब घर के हालात सुधार गये थे, घर पर फिर से सारे साधन आ गये, घर कंप्यूटर भी आ गया और नेट कनेक्शन भी लग गया तो मुझे एक दिन अन्तर्वासना की साइट मिली और मैं करीब 3 साल से लगातार इसकी कहानियाँ पढ़ती हूँ आपकी भी सारी कहानियाँ पढ़ी हैं, और आपकी कहानी ‘तुझको भुला ना पाऊँगा’ पढ़ने के बाद और आपसे मेल के मध्यम से टच में रह कर देखा कि आप एक सही आदमी हैं।

मैंने उत्तर दिया- हो सकता है कि मैं भी अच्छा आदमी ना होऊँ?
तो वो बोली- मुझे तो ऐसा नहीं लगता क्योंकि जो अच्छा आदमी नहीं होगा वो हमेशा खुद को अच्छा साबित करने की कोशिश करेगा, पर आप मुझे ऐसे नहीं लगते।
उसके इस उत्तर पर मैंने उसे कहा- मंजरी जी, ये अच्छा लगा कि आप मुझ पर विश्वास करती हैं पर फिर भी मैं चाहता हूँ कि पहले हम कहीं पब्लिक प्लेस पर मिलें एक दूसरे को थोड़ा जानें उसके बाद आगे बढ़ने के बारे में सोचें।

एक पल रुक कर मैंने फिर कहा- अगर आप मुझे मिलने के बाद आगे बढ़ना चाहेंगी तो हम दोबारा मिलेंगे, वर्ना इस बात को यहीं पर ख़त्म समझेंगे।
उसने तुरंत ही पूछा- आप बताओ कि कब मिल सकते हो?
मैंने कहा- जब आप कहो, पर मैं दोपहर के बाद ही फ्री होता हूँ।

‘क्या आप इस संडे को मिल सकते हैं?’ उसने एक पल भी गँवाए बगैर पूछा।
मैंने पूछा- कहाँ?
तो वो बोली- महागुन माल या फिर पेसिफिक?
मैंने उत्तर दिया- शाम को बताऊँगा।

शाम को मैंने उसे फ़ोन किया और बता दिया कि हम विकास मार्ग पर मिल रहे हैं।

कहानी जारी रहेगी।
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