बदले की आग-6

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अगले दिन मुन्नी के पति वापस आ गए और 5-6 दिन बिना किसी हंगामे के निकल गए।

भाभी मुझसे बहुत खुश थीं और उन्होंने मुझे अपनी चूत का फ्री लाइसेंस दे दिया था। हर 2-3 दिन में एक बार उनकी चूत मार लेता था।

मुन्नी-भाभी की दोस्ती हो गई थी, जब मैं घर वापस आता था तो राखी, भाभी और मुन्नी अक्सर बातें करती दिख जाती थीं।

मुन्नी मुझे देख कर एक मीठी मुस्कान देती थी।

मुन्नी का मर्द एक हफ्ते बाद दुबारा ट्रक पर चला गया।

मुन्नी ने मुझसे नौकरी के लिए कहा, मैंने उसको डॉक्टरनी से मिलवा दिया। मुन्नी को नौकरी मिल गई।

मुन्नी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, अगले दिन से वो नौकरी पर जाने लगी। दो दिन बाद मुन्नी को आँख मारते हुए मैंने कहा- 3-4 दिन बाद महिना होने वाला है।

मुन्नी बोली- कल आपके पैसे दे दूँगी।

अगले दिन मुन्नी ने भाभी के सामने पैसे दे दिए।

भाभी उँगलियों से चूत का ईशारा करते हुए बोली- भैयाजी को ब्याज भी देना है।

मुन्नी बोली- ब्याज देने को तो मेरा भी मन कर रहा है।

मैंने आगे बढ़कर उसकी दाएँ तरफ की ब्लाउज ऊपर उठाकर उसका एक गोल गुदाज़ स्तन बाहर निकाला और उसकी निप्पल भाभी के सामने चूसी और बोला- कल इतवार है, पार्क में मिलते हैं।

मुन्नी बोली- पक्का ना?

और हम दोनों अगले दिन 12 बजे अपनी पुरानी जगह आ गए। मुन्नी सज़ धज कर आई थी।

मैंने उससे कहा- एक नई जगह चलते हैं।

मुन्नी को मैं एक घर में ले गया और उसकी मालकिन को दो सौ रुपए दो घंटे के दे दिए।

अंदर एक पलंग पड़ा था, दरवाज़ा बंद करने के बाद मुन्नी मेरी गोदी में आकर बैठ गई, उसने अपना ब्लाउज उतार दिया और मेरे हाथ अपनी चूचियों पर रख कर बोली- आपसे चुदने में बड़ा मज़ा आता है, आप हर इतवार मुझे चोदा करो ना।

मुन्नी ने मुझे अपनी चूत का फ्री लाइसेंस दे दिया था, उसकी माल चूचियाँ मलते हुए मैंने उसके होंट चूसे और इसके बाद एक घंटे तक उसकी जवानी का रस पिया।

इसके बाद मुन्नी और मैं एक दूसरे से लिपट कर लेट गए और बातें करने लगे।

मुन्नी ने बताया कि उसके महीने के दस दिन हुए थे, डॉक्टरनी ने डेढ़ हजार उसे दे दिए थे उससे उसने उधार चुका दिया।

मैंने मुन्नी को चूमते हुए कहा- तुम्हारे पैसे किसने चुराए होंगे?

मुन्नी बोली- पैसे 15 दिन पहले मेरे आदमी ने ट्रक पर जाने से पहले मेरे पास रखवाए थे और मैंने एक डिब्बे में रख दिए थे।

लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता कि चोर को यह कैसे पता चला कि पैसे उस डिब्बे में रखे हैं। और मैंने अपनी याद में कभी घर अकेला भी नहीं छोड़ा।

मैंने पूछा- तुम्हारे घर इन 15 दिन में कौन कौन औरत आदमी आये थे?

मुन्नी बोली- मेरी याद में तो मेरी जान पहचान की 5-6 औरतें ही आई थीं।

बातों बातों में मैंने पूछा- तुम्हारी सहेली कुसुम भी तो है।

हँसते हुए बोली- हाँ, वो तो मेरे गाँव की सहेली है, मेरा हाथ टूटा था तब उसी ने सारा घर देखा था। वो बेचारी एक दिन इस बीच आई थी, परेशान थी गाँव की लड़ाई में बाप और भाई जेल चले गए थे, मुझसे पैसे मांग रही थी, कह रही थी मनी आर्डर करना है। बेचारे अभी 7-8 दिन पहले छूटे हैं। उसके जाने के तो दो दिन बाद मैंने पैसे डिब्बे में देखे ही थे। कल रात को वो मेरे घर आएगी और दो दिन रहेगी भी।

मैंने मुन्नी की चूत में उंगली करते हुए कहा- उससे मुझे मिला देना।

मुन्नी बोली- तुमसे मिला दूँगी लेकिन बहुत तीखी लड़की है। एक बार तेरे मोहन भैया ने अकेला देखकर पीछे से उसके चूतड़ सहला दिए थे, उसने उन्हें एक थप्पड़ मार दिया था।

मैंने मुन्नी की चूत में लोड़ा लगाते हुए कहा- मेरी प्यारी मुन्नी रंडी, मैं उन्हीं औरतों को छेड़ता हूँ जो खुद मस्ती का इशारा करती हैं या बदमाश होती हैं और आज तक मैंने उन्हीं औरतों की चोदी है जिन्होंने खुद चूत खोलकर मुझसे चुदवाई है।

मुन्नी मेरी टांगों पर टांगें लपेटती हुई लण्ड और अंदर लेते हुई बोली- नाराज क्यों होते हो? चोदो न, पूरी आग लगा दी है इस चूत में तुमने !

और मैं एक बार फिर मुन्नी को चोदने लगा। चुदाई के बाद मुन्नी पेटीकोट पहनने लगी, मैंने उसके पेटीकोट का नाड़ा बाँधते हुए कहा- तुम्हारा चोर भी मैं जल्दी ही पकड़ लूँगा, यह पक्का है ! तुम्हारा चोर, चोर नहीं एक चोरनी है।

मुन्नी ब्लाउज पहनती हुई बोली- अगर मेरा चोर कोई औरत हुई तो मैं उसको कुतिया की तरह चुदवाऊँगी और साली की गांड पक्का फटवाऊँगी ! मेरी मदद करोगे न? मेरे सामने उसकी गांड चोदोगे न?

मैंने उसके दोनों स्तन उमेठते हुए उसके ब्लाउज के बटन लगाए और कहा- चिंता न कर, उस कुतिया को तो मैं दो दो लण्डों से एक साथ तुम्हारे सामने चुदवाऊँगा ! अपनी प्यारी मुन्नी की बेइज्ज़ती का बदला भी तो लेना है।

इसके बाद कपड़े पहन कर हम दोनों बाहर आ गए।

मुन्नी से बातें करके मुझे लगा कि कुसुम पैसे चुरा सकती है।

राखी ने मेरे कहे अनुसार कुसुम को बताया भी था कि मुन्नी के पास पच्चीस हजार की रकम है और कुसुम के बाप और भैया जेल से छूट भी चुके हैं साथ ही साथ कुसुम मुन्नी की रसोई में भी काम कर चुकी है।

मेरे दिमाग में विचार आया कि पोस्ट ऑफिस में चेक किया जाए, अगर मुन्नी ने पैसे चुराए होंगे तो उसने मनीआर्डर किया होगा।

अगले दिन शाम को मैं आया तो मुन्नी और कुसुम बाहर गली में खड़ी थी।

कुसुम एक पतली सी 23-24 साल की सेक्सी औरत थी। मुन्नी ने मुझे नमस्ते की और कुसुम को बताया- ये राकेश भाईसाहब हैं, गीता के देवर हैं।

मैंने एक मुस्कान कुसुम को मारी।

मेरे आगे निकलने पर कुसुम मजाक उड़ाने वाले लहजे में मुन्नी से बोली- ये उन्हीं मोहन जी के भाई हैं जिनके गाल पर मैंने पंजा छापा था और गीता भाभी वो ही हैं न जिनकी चुदती चूत का मज़ा हम दोनों ने लिया था।

मैंने मन ही मन सोच लिया कि इस कुसुम की चूत बजानी ही पड़ेगी।

अगले दिन समय निकाल कर मैं डाकघर गया और वहाँ पर बैठे बाबू को सौ का नोट देकर पता किया कि कुसुम ने कोई मनीआर्डर किया है या नहीं?

मेरा शक सही निकला, कुसुम ने एक महीने में पच्चीक हजार के दो मनी आर्डर अपने गाँव में किए थे।

एक मनीआर्डर उसी दिन हुआ था जिस दिन मुन्नी के पैसे चुराए गए थे। बाबू को सौ रुपए और देकर मैंने कागज़ की फोटोकॉपी ले ली।
अब मेरा शक पक्का हो गया कि कुसुम ने ही मुन्नी के पैसे चुराए हैं।
साथ ही साथ मेरे चेहरे पर एक कुटिल मुस्कराहट भी आ गई क्योंकि मेरी चाल सफल हो गई थी।

मुझे कुसुम की चूत का दरवाज़ा खोलने की चाभी भी मिल गई थी।

इसके अलावा गीता, मुन्नी की बेइज्ज़ती और मोहन भैया के थप्पड़ का भी बदला लेना था।

अगले दिन हम और मोहन भैया रात में चाल में खड़े थे, कुसुम नीचे से निकली। मोहन भैया की तरफ मैंने देखते हुए कहा- साली टनाटन माल है।

भैया बोले- मरखनी है, संभल कर रहना ! साली ने एक बार मुझे थप्पड़ मार दिया था।

मैंने कहा- भैया, तुम चिंता न करो, कुछ दिनों में हम दोनों इसकी चोदेंगे।

मोहन ने मेरी बात हंसी में उड़ा दी।

अगले दिन सुबह कुसुम सलवार सूट पहने सीढ़ियों से नीचे जा रही थी, आस पास कोई नहीं था, पीछे से मैंने उसके चूतड़ सहला दिए।
उसने गुस्से से मुझे देखा और थप्पड़ मारने वाली थी, मैं धीरे से बोला- पोस्टऑफिस- मनीआर्डर पच्चीस हजार !

उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया, उसके हाथ मैं पहले से लिखी अपने मोबाइल नंबर की चिट देकर मैंने उसकी गांड में पीछे से उंगली की और मुस्कराता हुआ वहाँ से खिसक लिया।

जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ मेरे घर से निकलने के थोड़ी देर के बाद ही उसका फ़ोन आ गया, उसने पूछा- तुम ये पच्चीस हजार क्या कह रहे थे?

मैंने हँसते हुए कहा- पूरी कहानी मुन्नी दीदी के सामने शाम को आकर बता दूँगा।

कुसम की आवाज़ अचकचा गई, बोली- तुम मुन्नी से कुछ नहीं कहना, मुझे तुमसे मिलना है।

मैंने उसे पार्क में बुला लिया।

पार्क में कुसुम आ गई, उसे लेकर मैं कमरे पर आ गया। पलंग पर हम दोनो बैठ गए, मैंने उससे पूछा- तुमने पैसे चुराए थे?

वो अचकचाती हुई बोली- यह झूठ है।

मैंने उसकी कुर्ती में हाथ घुसा दिया और उसकी छोटी छोटी चूचियाँ दबाते हुए मैंने उससे कहा- तुम्हारी चोरी अब पकड़ी गई है, सीधे सीधे बता दो कि पैसे कैसे चुराए हैं और बाकी के पच्चीस हजार कहाँ से आए नहीं तो मुन्नी और तुम्हारे आदमी को सब बता दूंगा।

अब कुसुम टूट गई थी, बोली- हाँ, मैंने ही चुराए थे। गाँव की लड़ाई में बाप और भाई जेल चले गए थे, मामला सुलझाने के लिए पचास हजार रुपए चाहिए थे। मेरे घर के लोग सोचते हैं कि हम मुंबई में बहुत पैसे कमा रहे हैं। उन्होंने मुझसे मदद मांगी, मेरे पास तो पाँच हजार भी नहीं थे। जब मैं परेशान थी तो एक दिन राखी मिल गई, उसने मुझे बताया कि मुन्नी के पास पच्चीस हजार रुपए ट्रक के रखे हैं। मुझे पता था कि मुन्नी किस डिब्बे में पैसे रखती है क्योंकि जब उसका हाथ टूटा था तब उसका खाना मैं ही बनाती थी। मेरे पास उसके ताले की डुप्लीकेट चाभी भी थी। अगले दिन मैं मुन्नी के घर गई, घर पर मुन्नी जब पेशाब करने गई तो चुपके से मैंने डिब्बा खोलकर देखा तो उसमें रुपए रखे थे। दो दिन बाद जब मुन्नी बाहर थी तब मैं राखी की एक साड़ी पहन कर आई और डिब्बे में से रुपए निकाल लिए।

इस बीच मैंने कुसुम का कुरता उतार दिया और उसके छोटे छोटे टमाटर जैसी चूचियाँ देखकर मैंने कहा- आह, आज तो मज़ा आ जाएगा, छोटी छोटी चूचियाँ पिए तो अरसा हो गया।

मैं अपने को रोक नहीं पाया और कुसुम की एक चूची पूरी मुँह में भर ली और स्तन का रस पीने लगा।

कुसुम ने बोलना जारी रखा, बोली- जब पैसे लेकर वापस जा रही थी तब गली के मोड़ पर मोहन भैया ने मेरे चूतड़ सहला दिए, मैंने घबरा कर एक थप्पड़ उन्हें मार दिया और जल्दी से वहाँ से भाग ली।

मैं दूसरे हाथ से उसकी पजामी का नाड़ा खोलते हुए बोला- मुन्नी को पता चल गया तो वो तुम्हारे गाँव में और तुम्हारे खसम को सब बता देगी।

मुझसे चिपकते हुए कुसुम बोली- आप मुन्नी दीदी को कुछ मत बताना ! आप जो कहोगे वो मैं करवा लूँगी।

मैंने उसके होंटों पर पप्पी लेते हुए उसके चुचूकों पर नाख़ून गड़ाए और कहा- पहले अपनी फुद्दी का दर्शन तो करा दो।

कुसुम ने बिना देर किये अपनी पजामी नीचे सरका दी, उसकी चिकनी जांघें और लड़कियों जैसी चूत अपनी जवानी का मुजरा पेश कर रही थीं। मैंने उसकी चूत के होंटों पर उंगली फिराते हुए कहा- आह, आज तो मज़ा आ जाएगा ! तुम्हारी जवानी तो बड़ी रसीली है !

उसकी टांगें फ़ैला कर मैंने अपना हाथ उसके योनि प्रदेश में घुसा दिया और उसकी चूत और जांघें सहलाने लगा।

कुसुम अब पूरी नंगी थी और मेरी जाँघों पर बैठी हुई थी।
कहानी जारी रहेगी !
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