दगड़ी हम दोस्तों ने बहुत रगड़ी

(Dagdi Ham Doston Ne Bahut Ragdi)

दोस्तो, यह कहानी बहुत पुरानी है, तब की है जब मैं और मेरे दोस्त स्कूल के आखिरी साल में थे, हम तीन चार ही शरारती दोस्त थे, क्लास की लड़कियों पर लाइन मारना, स्कूल के बाथरूम में जाकर गंदे चुटकुले सुनना सुनाना, एक दूसरे के साथ मुट्ठ मारने का मुक़ाबला करना कि देखें ‘किसका देर में छुटता है’, यही सब चलता था।

मगर हम दोस्तो में से चूत मारी किसी ने भी नहीं थी, तो हर कोई चाहता था कि एक बार तो चूत मारने का मौका मिले।
अक्सर क्लास की लड़कियों की स्कर्ट के नीचे से दिखती टाँगें देख कर खुश होते, कोई पटी किसी के पास नहीं थी मगर सबने अपनी अपनी मोहर लगा रखी थी, वो मेरी है, वो तेरी है।

खैर ऐसे ही एक दिन गर्मियों की छुट्टियाँ थी और हम चारों दोस्त फ्री थे तो बेकार में बैठे थे कि वैसे ही किसी ने आइडिया दिया, चलो स्कूल चलते हैं।
बेमतलब में ही हम स्कूल चले गए, खाली गलियारों में घूमते रहे, इस कमरे में देख, उस कमरे में देख।

सारा स्कूल देख कर मैदान में आ गए, बड़ा बड़ा घास उग हुआ था, उसी में लेट गए।

थोड़ी देर बाद प्यास लगी तो पानी पीने नल के पास गए। वहाँ देखा एक औरत पानी भर रही थी, सारा स्कूल खाली, आस पास कोई नहीं, चार मुश्टंडे और एक औरत।

और औरत भी जवान, कोई 35-36 साल की रही होगी, सांवला सा रंग, बदन भी ठीक ठाक, चेहरा भी साधारण सा, मतलब यह कि हमारे लिए तो पर्फेक्ट थी।

हम उसके पास गए।
एक ने बात शुरू की- तुम यहीं रहती हो?
उसने हम सब को ध्यान से देखा और हाँ में सर हिलाया।

‘पहले तो कभी नहीं देखा?’ मैंने कहा।
‘तुम लोग इसी स्कूल में पढ़ते हो?’ उसने पूछा।
हम सबने कहा- हाँ।

‘यहाँ कहाँ रहती हो’ फिर एक ने पूछा।
‘वो उधर, चौकीदार मर्द है मेरा!’ वो बोली।

हम सब ने आपस में एक दूसरे को देखा, चौकीदार तो बुढ़ऊ सा है, यह उसकी बीवी।
सब के मन में यह बात आई कि अगर चौकीदार से कुछ न बनता हो तो यह औरत हम सब के काम आ सकती है, मगर अब इससे पूछे कौन कि तेरा मर्द तेरी ठुकाई अच्छे से करता है या नहीं।

अभी हम सब ये सोच ही रहे थे कि वो औरत बोली- आप लोग यहाँ क्या कर रहे हैं, स्कूल तो बंद है?
उसकी आँखों में एक चमक सी थी।

मैंने यूं ही कह दिया- घर में खाली बैठे थे, तो सोचा स्कूल में ही घूम आते हैं।

उसकी बाल्टी भर गई, जब वो बाल्टी उठाने के लिए झुकी तो हम सबकी नज़रें उसके ब्लाउज़ के गले के अंदर गई, और उसके मोटे मोटे चूचे देखने लगी, मगर अतुल के मन में ना जाने क्या आया उसने आगे बढ़ कर उसकी एक चूची दबा दी।

वो बिदक गई- ओए, ये क्या करते हाओ, बदतमीज़, अकेले नहीं हैं हम, अभी आने वाले हैं ये, सब बता देंगे इनको!
उसने बाल्टी उठाई और चली गई।

हम पहले तो थोड़ा डर गए मगर सवाल सबने यही पूछा- कैसा लगा, चूची नर्म थी या सख्त?
अतुल बोला- थी तो नर्म सी ही, मगर बहुत अच्छा लगा, अगर ये मान जाए तो चोद चोद के इसकी चूत का भोंसड़ा बना दूँ।

हम सबने एक दूसरे की तरफ देखा- चलो ट्राई करके देखें, सीधा सीधा पूछा ही लेते हैं।
हम चारों उसके क्वाटर की तरफ चल पड़े।

वहाँ पहुँच कर बाहर ही खड़े हो गए, हमे देखा तो वो बाहर आ गई- यहाँ क्यों आए, क्या चाहिए?
उसने अकड़ कर पूछा।

दीपक बोला- देखो, हम चारों ने आज तक किसी की ली नहीं है, क्या तुम दोगी?
वो तो और बिदक गई- हे राम, क्या हम तुमको ऐसी वैसी दिखती हूँ, शर्म नहीं आती हमसे ऐसे बात कहते हुये, चलो भागो यहाँ से, हरामज़ादे कहीं के!

मगर अब हम सब के मन में यह बात तो चल ही रही थी कि जो होगा देखा जाएगा, अगर मान गई तो ठीक नहीं तो ज़बरदस्ती पकड़ लेंगे, और कुछ नहीं तो चारों जन इसके चूचे तो दबा कर ही जाएंगे।

पुनीत बोला- देखो गुस्सा मत करो, हमने सिर्फ पूछा है, अगर चाहो तो हम तुम्हें पैसे भी दे सकते हैं।
‘अरे, हम कोई रंडी हैं क्या, जो पैसे लेंगे?’ वो गुस्से से बोली।
‘तो प्यार से दे दो!’ मैंने कहा।

उसने मेरी तरफ देखा और बोली- क्या लल्ला, बहुत आग लगी है क्या?
मैंने सीधा उसकी आँखों में देखा और बोला- पूछ मत, सब के सब मरे जा रहे हैं, अगर तुम मान जाओ तो हमारा सब का उदघाटन करवा दो, आज तक किसी ने नहीं मारी, मारी क्या देखी तक नहीं किसी ने।

पहले तो उसने सब की तरफ देखा और फिर बोली- देखो मैं कोई ऐसी वैसी औरत नहीं, हाँ तुम्हारी मदद के वास्ते मैं तुमको करने दूँगी, मगर सिर्फ एक बार, दोबारा यहाँ मत आना और हाँ, एक बार में सिर्फ एक आए, सब साथ मत आना।

हम सब की तो खुशी का ठिकाना न रहा, हमें तो उम्मीद ही नहीं थी कि वो मान जाएगी।
अतुल बोला- ऐसा करते हैं, देखेंगे सब एक साथ, पर करेंगे बारी बारी।

हम सब उसके पीछे पीछे उसके कमरे में घुस गए।
दीपक बोला- देखो हम सबने कभी भी नहीं देखी, पहले हमको दिखा दो, उसके बाद सब बाहर चले जाएंगे, और एक एक करके तुम्हारे साथ करेंगे।
‘ठीक है!’ वो बोली और उसने अपना आँचल हटाया, सब के सब की आँखें खुल गई, ब्लाउज़ के नीचे कुछ नहीं था, उसने अपनी साड़ी खोली, फिर तो हमने ही आगे बढ़ कर उसके ब्लाउज़ खोल दिया और पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे एक मिनट में ही नंगी कर दिया।
सबसे पहले जो काम किया, वो था उसके चूचे दबाने का, सबने जी भर भर के उसके चूचे दबा के देखे, फिर उसे बिस्तर पे लिटा दिया और उसकी टाँगें चौड़ी करके उसकी चूत को खोल खोल कर देखने लगे।

वो बहुत शर्मा रही थी- अरे ये क्या कर रहे हो, ऐसे नहीं देखते!
मगर उसकी किसने सुननी थी।

चारों ने उसके नंगे बदन को खूब सहलाया और उसके बाद फिर बारियाँ बंटी।
पहला नंबर अतुल का, दूसरा दीपक का, तीसरा पुनीत का और चौथा मेरा!

हम तीनों जा कर बाहर बैठ गए, अतुल अंदर ही रह गया।
बाहर बैठे हम आपस में उसके बदन के बारे में बातें करने लगे, और कैसे कैसे उसे चोदेंगे, इस की प्लानिंग करने लगे।

कोई 15 मिनट बाद अतुल बाहर आया तो उसने दीपक की पीठ ठोकी- चल बेटा, दौड़ के जा।
दीपक उठा कर बड़े जोश के साथ गया।

हमने अतुल को घेर लिया- क्या हुआ, कैसे हुआ?
हम उसका तजुरबा जानने को बेताब थे।
अतुल बोला- यार मज़ा आ गया, साली बहुत शोर मचाती है, जैसे पहले कभी लंड लिया ही न हो।

मैंने पूछा- चूत कितनी टाइट है?
अतुल बोला- ठीक है, कोई ज़्यादा टाइट नहीं, मादरचोद रोज़ चुदती होगी, चौकीदार से, मगर ड्रामा ऐसे करती है जैसे कच्ची कुँवारी हो।
ऐसे ही बातें करते करते, 10 मिनट में दीपक भी बाहर आ गया, फिर पुनीत गया, और वो भी बाहर आ गया।

फिर मेरा नंबर आया।
मैं जब अंदर गया तो वो बिस्तर पे बिलकुल नंगी लेटी थी।
सांवला बदन, लंबी मगर भरी हुई, चिकनी टाँगें, मगर घुटनों के नीचे उसकी टाँगों पर बाल थे, जांघों पर नहीं थे।
चूत पर तो पूरा गुच्छा भर के बाल थे, जैसे कभी काटे ही नहीं हो, थोड़ा सा पेट और ऊपर दो साँवले चूचे, उन पर तने हुये निपल काले रंग के!

मैंने जाते ही सबसे पहले अपने कपड़े उतारे। शर्ट, पेंट, बनियान और चड्डी भी उतार दी, बिल्कुल नंगा होकर मैं उसके पास बेड पे जा कर बैठ गया।
उसने हाथ बढ़ा कर मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और सहलाने लगी।

मैंने भी पहले उसकी गाल को चूमा और फिर होंठों को उसके बाद नीचे आ कर उसके चूचे अपने हाथों में पकड़े और दबा के देखे, फिर
मुँह में लेकर चूसे, चाहे इससे पहले मेरे तीन दोस्त भी इन्हें चूस चुके थे, मगर औरत तो कभी जूठी होती ही नहीं।

मैंने उससे पूछा- लंड चूसोगी?
उसने कहा- हाँ, अगर तुम चुसवाओगे, तो क्यों नहीं चूसूंगी।

मैं उसकी छाती पे चढ़ गया और अपना लंड जो अब तक पूरी तरह से तन कर सख्त हो चुका था, उसके होंठों पर रखा, जिसे उसने अपना मुँह खोल कर अंदर ले लिया और लगी चूसने।
पहले बार किसी औरत से अपना लंड चुसवा रहा था तो बहुत मज़ा आ रहा था।

मैंने उसकी चूत में उंगली डाली तो वो तो मुझसे पहले आए महारथियों ने अपना माल छोड़ छोड़ कर भरी पड़ी थी।
मेरे हाथ पे भी माल लग गया, पर ये नहीं पता था कि किसका माल है ये।
थोड़ा सा चूस कर वो बोली- चलो आ जाओ नीचे!
मतलब अंदर डालो।

मैंने उसकी टाँगें चौड़ी की और अपना लंड उसकी चूत पे रखा और अंदर को ठेला, और वो घुस गया।
‘अरे वाह, आज मैं चूत चोद रहा हूँ!’ मेरे मन में ख्याल आया।

अब पहली बार था तो जैसे तैसे बस धड़ाधड़ धक्के मार रहा था।
वो नीचे लेटी ‘हाय आह ऊई मर गई!’ और ना जाने क्या क्या कह रही थी।
मुझे पता था सब ड्रामा कर रही थी, तो मैं भी ज़्यादा ही जोश से लगा था।
मगर यह उसका अपना तरीका था, जो औरत ज़्यादा शोर मचाती है, वो मर्द को उतनी जल्दी स्खलित करती है। मर्द को लगता है कि उसने तो इस औरत की फाड़ के रख दी, मगर इसी चक्कर में वो ज़्यादा जोश में जल्दी झड़ जाता है।
मेरे साथ भी यही हुआ।
मुश्किल से 5 मिनट लगे होंगे और मैंने भी अपना माल उसकी चूत में गिरा दिया।

फारिग हो कर मैं भी बाहर आ गया।

उसके बाद तो हमारा रोज़ का ही प्रोग्राम बन गया। चौकीदार होता था मेन गेट पे और हम पीछे से दीवार फांद कर स्कूल में घुस जाते, और चौकीदार की बीवी की खूब बजाते।
फिर तो उसके साथ हर अंदाज़ में करके देखा।

सारी गर्मी की छुट्टियाँ हमने उसको चोदा और उसकी चूत को अपने अपने माल से भरते रहे।

अरे हाँ, एक बात तो बतानी भूल ही गया, चौकीदार का नाम था, दगड़ू और उसकी बीवी का नाम हमने रखा था, दगड़ू की दगड़ी… जो हमने खूब रगड़ी।
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