आह’ उनका बॉस- 1
(Hot Indian Beauty )
हॉट इंडियन ब्यूटी को के सामने गोरी फिरंगनें भी पानी भरती हैं. ऐसी ही एक देसी सुन्दरी को जब उसके पति के बॉस ने देखा तो दोनों को ऑफिस में आमंत्रित किया.
“तुम अपने पति का ऑफिस देखना … देखती रह जाओगी, क्या शानदार है।”
“ऐसा!”
“और क्या!”
आज भी, गर्मी की इन आलस्य भरी दुपहरियों में, अपने एसी कमरे में लेटी, जब मैं उंगलियों से अपने आनंद-स्थल को सहलाती हूँ, उनकी बात मेरे कानों में गूंजती हैं।
“मैं तुम्हारे ऑफिस जाऊँ और तुम्हारा बॉस नहीं देखेगा?”
“देखेगा तो खुश ही होगा।”
अपने गीले आनंद-स्थल पर मेरी उंगलियों की हरकत तेज हो जाती है।
“तुम ऐसी बात करते हो अपनी बीवी के लिए?”
“देखना तुम्हारी वाइफ फिदा हो जाएगी, उसने कहा था।”
आह! उनका बॉस! साँवला, चौड़ा, ऊँचा, गठीला!
मॉल में अचानक ही एक दिन हमें मिल गया था।
उन्होंने परिचय कराया, “ये मेरी वाइफ हैं।”
मुझसे लगभग आधी फीट ऊपर से उसकी गहरी आँखें मुझ पर एक क्षण अधिक ठहरी थीं, फिर ‘नाइस टू सी यू!’ कहते हुए जैसे एक अदा से झुक गई थीं।
नहीं, झुकी नहीं थीं, मेरे चेहरे से उतर कर वक्षों पर और नाभि पर और नीचे मेरी एड़ियों तक उतर गई थीं।
उस दृष्टि ने मुझे विचलित कर दिया था।
एम एस दण्डपाणि : सफारी सूट, मजबूत कद-काठी, मर्दाना व्यक्तित्व, होंठों पर मुस्कान!
वह मुस्कान केवल शिष्ट थी या कुटिल भी, कहना मुश्किल है।
न चाहते हुए मेरे वक्ष उभारों की नोकें तनती-सी महसूस हुई थीं।
इधर श्रीधर – सुदर्शन, सरल हृदय, आसानी से विश्वास कर लेने वाले।
अपनी काबिलियत और मेहनत से कंपनी में अपनी अच्छी छवि रखने वाले।
उनकी तरक्की के लिए बॉस का प्रसन्न रहना आवश्यक था।
मैंने उनका ख्याल करके बड़ी मुश्किल से उसके बढ़े हुए हाथ से अपना हाथ मिलाया था।
मेरी उंगलियों में गड़ती उसकी सोने की अंगूठी के साथ-साथ उसकी गर्म, मजबूत पकड़ के अहसास से देर तक गीली होती रही। मेरा मतलब है मेरी हथेली।
“किस पर फिदा हो जाएगी?” मैंने फिर उन्हें छेड़ा।
उन्होंने मुझे बाँहों में घेरकर ‘तुम बताओ’ मेरे कुछ कहने से पहले मेरे होंठों पर चुम्बन अंकित कर दिया था।
याद करते हुए मेरी गीली उंगलियाँ मेरी चिकनी चिपचिपी तहों में और तेजी से, और दबाकर फिसलने लगती हैं।
अगर श्रीधर इतने सीधे नहीं होते तो जब वह यानी बॉस दण्डपाणि उनको एचआर मैनेजर के पास कुछ ‘अर्जेंट पेपर वर्क’ निपटाने के लिए रुकने को कहकर ‘प्रिटी यंग ब्राइड’ (खूबसूरत जवाँ दुल्हन) – यानी मुझे – उनके शानदार ऑफिस को दिखाने ले जाने लगा, तो उन्होंने कुछ जरूर कहा होता।
दिन ढल चुका था।
सजकर तैयार होकर जब मैं पहुँची, दफ्तर बंद हो रहा था और एकाध को छोड़कर बाकी निकल चुके थे।
इसलिए जब दण्डपाणि मुझे लेकर ऊपरी मंजिल के उस ऑफिस जा रहा था, लिफ्ट में हमारे सिवा और कोई नहीं था।
मेरा दिल धड़क रहा था।
उसने मुझे छुआ वगैरह तो नहीं था लेकिन काफी नजदीक, बल्कि लगभग सटकर खड़ा रहा था।
ऑफिस में आकर उसने बत्तियाँ जलाकर, पर्दे खींचकर रोशनी धीमी कर दी ताकि बाहर का दृश्य साफ दिखाई पड़े।
हम अड़तालीसवीं मंजिल पर थे।
सामने दिख रही थीं दूर की ऊँची अट्टालिकाओं में जलती बत्तियाँ और नीचे जमीन पर डायमंड नेकलेस-सा मरीन ड्राइव!
ऐसे दृश्य को कोई कुशल फोटोग्राफर खींचकर वॉलपेपर पर सजा लेता है।
मुंबई! सपनों की नगरी, माया नगरी! संघर्ष की नगरी, उपलब्धियों की नगरी।
मुझे गर्व हुआ यहाँ होने का, ऐसी खूबसूरत जगह पहुँचने का।
मुझे गर्व हुआ अपने पति पर!
“कैसा लग रहा है?” वह मेरे पीछे आ खड़ा हुआ था।
उसका हाथ बहुत हल्के से मेरे दाएँ कंधे पर आ लगा था।
उंगलियाँ मेरी साड़ी की तहों के ऊपर, लेकिन एक-दो भटकती हुई बगल की नंगी त्वचा पर आ गई थीं।
मैंने पतली, शिफॉन की साड़ी पहनी थी जिसके काले रंग का कॉन्ट्रास्ट मेरी गोरी त्वचा पर खूब फबता था।
चोली भी काले रंग की, रेशम की चमकीली।
इसका चयन भी पति की इच्छानुसार किया था – ‘स्लीवलेस’ और ‘लो-कट’! (बिना बाँह की और थोड़ी अधिक नीचे तक खुले गले की) एक तरह से ब्रा का ही परिवर्धित रूप।
उन्होंने ही दबाव दिया था,“थोड़ा ऐसा कि… तुम समझती हो न?” कपों में पैड लगा था ताकि ब्रा के बिना भी पहनी जा सके।
“ऐसा ऑफिस अगर काम करने को मिले तो तुम्हें कैसा लगेगा?” उसकी उंगलियाँ मेरी गर्दन पर चली आई थीं।
फिर बालों की जड़ में घूमने लगीं।
फिर मेरी दाहिनी कान की लव से खेलने लगीं।
आज मैंने गोल झुमके पहन रखे थे।
हल्की रोशनी में उसमें जड़े हीरे चमक रहे होंगे।
हीरे की एक यही चीज थी हमारे पास!
वह उसे घुमा रहा था।
“आपने कभी किया है? किसी अन्य स्त्री पर? क्या असर होता है??”
“बहुत ही अच्छा लगेगा। एकदम स्वर्ग जैसा!” बोलते हुए मैं सोच रही थी कि उसकी इस हरकत का क्या करूँ।
क्या ये जतलाऊँ कि मैं इतनी परिपक्व हूँ कि समझ रही हूँ कि वह कितना महत्वपूर्ण व्यक्ति है, फिर भी मुझे समय दे रहा है जबकि उसके पास लाखों काम होंगे.
या कि वह कितना केयरिंग और औरतों की इज्जत करने वाला है कि इतना बड़ा होकर भी अपने से काफी जूनियर की ‘यंग ब्यूटीफुल ब्राइड’ को भी पति जितनी ही महत्वपूर्ण होने ऐसा अहसास दिला रहा है.
जबकि अभी उसके पति ने काम भी शुरू नहीं किया है।
“ऊपर जाने के लिए नीचे से शुरुआत करनी होती है।”
इस ‘नीचे’ से उसका क्या आशय था?
क्या उससे जहाँ उसका हाथ चला आया था?
यानी मेरे नितम्बों के उभार पर?
एक नितम्ब को बहुत हल्के-हल्के गोल गोल सहलाने के बाद वह दूसरे की थाह ले रहा था।
“तुम समझ रही हो न?” उसके होंठ मेरे कान से बहुत दूर नहीं थे।
मैंने अपना ध्यान खिड़की से बाहर की ओर लगा दिया – अट्टालिकाओं में जलती रोशनियाँ, नीचे सड़क पर चलती हुई कारों की बत्तियाँ, स्ट्रीटलाइट की बत्तियाँ सड़क में जगह-जगह पर प्रकाश के वृत्त बनातीं।
मैंने सिर हिलाया; फिर बोलकर भी हामी भरी- हाँ!
हालाँकि मैं क्या समझ रही थी, मुझे खुद नहीं पता।
उसके हाथ ने मेरी कमर को घेर लिया।
“बताऊँ? ज्यादातर लोग इसे समझते नहीं हैं।”
क्या नहीं समझते हैं? उसका हाथ मेरे नितम्बों और कमर पर घूम रहा था।
“Loyalty’s important! (वफादारी महत्वपूर्ण है)” उसने अंग्रेजी में कहा।
कोई ऐसी बात जो भारतीय सभ्यता के पैमानों पर सही नहीं ठहरती हो, अंग्रेजी में सुविधा से हो जाती है।
“Yaaa!” मैंने कहा।
उसकी उंगलियाँ नाभि के नीचे साड़ी के अंदर जाने की उत्सुकता प्रकट कर रही थीं।
“Hell yes! Sure is (बिल्कुल, यह जरूरी है)”
मैंने और सिर हिलाया।
लगा कि मेरे नितम्ब, जाँघें, पेट, सभी उस ‘लॉयल्टी’ (वफादारी) चीज का हिस्सा हैं।
मुझे कुछ नशा-सा आ रहा था।
अगले दो, तीन या शायद पाँच मिनट तक वह मुझे एक हाथ से घेरे कमरे में घूम-घूमकर खास चीजें दिखाता रहा – टेबुल, पर्दे, सोफा, कम्प्यूटर इत्यादि।
मैं अपनी खुली पेट पर उसके कठोर हाथ का स्पर्श और दबाव महसूस करते हुए उसकी बातों में रुचि लेने का शिष्टाचार निभा रही थी।
तभी मेरा मोबाइल बजा।
श्रीधर ने कुछ ही दिन पहले मुझे नया फोन दिया था।
स्क्रीन पर Jaanuuuu… चमक रहा था।
“वाह, क्या बात है! What a love!”
मैं सिर से पाँव तक लाल हो गई।
“हलो…” मैंने पीछे घूमकर फोन में उत्तर दिया।
इन्हें मेरी आवाज सुनकर ऐसी तसल्ली मिली मानो मेरा अपहरण हो गया था।
“कहाँ हो?”
“आपके नए ऑफिस में।”
मैं दण्डपाणि के घेरे से निकलकर डेस्क के पास आ गई।
“अच्छा!” वे खुश हो गए।
दण्डपाणि ने कमरे की सिटकनी चढ़ा दी।
मैं उस भव्य कुर्सी के सामने चली गई जिसपर मेरा पति बैठने वाला था।
लेकिन यह दाँव उल्टा पड़ा।
कुर्सी के पाँवों में चक्के लगे थे।
दण्डपाणि उसे खींचकर मेरे पीछे कुर्सी पर बैठ गया।
“क्या कर रही हो?”
इतना बम भोला तो कोई शिवजी ही हो सकता है।
अपनी कोमल कमसिन बीवी को हट्टे-कट्टे बॉस के साथ अकेले भेजकर पूछ रहा है क्या कर रही हो। क्या कर रही हूँ?
क्या उसे मैं यह बताऊँ कि तुम्हारा बॉस मेरे पीछे कुर्सी पर बैठकर मेरी कमर और जांघों का जायजा ले रहा है।
मैं हट भी नहीं सकती क्योंकि वह अपने पाँवों के बीच मुझे घेरे हुए है।
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया।
“वो कहाँ है?”
“यहीं साथ में!” ‘हैं’ कहूँ या ‘है’, दुविधा में छोड़ दिया।
वे जानना चाह रहे थे बॉस मेरा ध्यान रख रहा है या नहीं।
क्या यह एक पति द्वारा पूछे जाने लायक सवाल था?
दण्डपाणि जबसे मुझे साथ लेकर चला था तभी से मेरा ध्यान रखे था पूरी मुस्तैदी से!
अभी वह चोली के ऊपर से मेरी गोलाइयों को महसूस कर रहा था, जिसकी नोकें सख्त होकर उसकी हथेली में अपनी उपस्थिति जता रही थीं।
उन्हें उत्सुकता थी कि मुझे उनका बॉस कैसा लग रहा है।
मेरे पति को अपना बॉस चाहे जितना भी अच्छा लगता हो, समस्या यह थी कि वे चाहते थे कि वह मुझे भी अच्छा लगे।
अब मैं संकोची, शर्मीली, परंपरागत संस्कारों में पली-बढ़ी, स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई तक सीमित रहने वाली, पति की इच्छा को अपनी इच्छा मानने वाली … उनके बॉस के हाथों में पड़कर जो महसूस कर रही थी, उसे अच्छा कहूँ या बुरा?
वह मेरी दाईं तरफ खुली कमर को सूंघ रहा था।
उस पर हल्के-हल्के होंठ भी सटा रहा था।
अब, ऐसी चीजों से कोई स्त्री भला कैसे अप्रभावित रह सकती है।
मैं डेस्क की तरफ मुँह किए पति से बात कर रही थी।
बाएँ हाथ में मोबाइल और दायाँ हाथ डेस्क पर था।
दंडपाणि की उंगलियाँ मेरी पीठ पर चोली के हुक से छेड़छाड़ कर रही थीं।
मैंने पीछे हाथ बढ़ाया तो उसने उसे अपनी हथेलियों में समेट लिया और नर्मी से सहलाने लगा।
उसकी प्रेमाभिव्यक्ति से घबरा गई और हाथ खींच लिया।
“कैसा है मेरा ऑफिस? पसंद आ रहा है या नहीं।” श्रीधर का प्रश्न था।
मैंने प्रयत्नपूर्वक जवाब दिया- हाँ, बहुत। बहुत सुंदर है।
कमरे की हर चीज सुंदर थी, लेकिन मेरा ध्यान चीजों की बजाय हरकतों पर था।
चोली की पतली पट्टी के सिवा मेरी पीठ नंगी थी।
उसकी बड़ी हथेलियाँ उसके आकार-प्रकार, उसकी धँसान और उठान को नाप रही थीं।
एक हथेली ने मेरी गर्दन पर आकर मेरे बालों को एक तरफ किया और दूसरी ने मेरे बाएँ कंधे पर लगे साड़ी पिन को खोल दिया।
पिन निकलते ही रेशमी पल्लू लहराकर कंधे से गिरा जिसे उसने अपनी एक बाँह बढ़ाकर उस पर सम्हाल लिया।
मैंने छाती ढक ली।
उसने कोमलता से उस हाथ को वक्ष से अलग करके उसमें पल्लू पकड़ा दिया और बाकी साड़ी को साए में से घूम-घूमकर निकालने लगा।
शिफॉन की पतली साड़ी सरसराती हुई यूँ निकलती जा रही थी जैसे ‘चीरहरण’ के लिए ही बनाई गई हो।
“ब्यूटीफुल!” वह मेरी गर्दन के ऊपर से देखते हुए पीछे से फुसफुसाया।
“कौन? साड़ी या मैं?”
वह कुर्सी पर बैठ गया और मेरे नितम्बों में अपना चेहरा धँसाने लगा।
साड़ी हट जाने के बाद साए बस एक पतली परत के नीचे उनकी कोमलता और गुदगुदेपन का अहसास उसे और अच्छे से मिल रहा था।
फिर उसकी हथेलियाँ नीचे उतरीं और साए को अपने साथ उठाती हुई मेरी टाँगों की चिकनी त्वचा को सहलाने लगीं।
मैंने अभी दो दिन पहले ही दोनों पैरों की वैक्सिंग कराई थी।
भरी-भरी पिंडलियों व जाँघों से चढ़ती हुईं जब वे रेशमी पैंटी से टकराईं तो घबराहट और उत्तेजना से मेरी साँस ठहर गई।
पैंटी की किनारी के साथ साथ चलते हुए उसने पूरे ढके हुए क्षेत्र का मुआयना किया जो रेशम से भी चिकना और मुलायम था।
अंततः दोनों पैरों के बीच में जहाँ जगह सँकरी और गर्म थी वहाँ ठहर गईं।
उसकी दृष्टि पैंटी में की हुई चिकनकारी के काले फूलों में उलझी थी।
“बहुत ही सुंदर!”
“बहुत ही सुंदर!” मैं भी यही कह रही थी मोबाइल में, दण्डपाणि के सिर के ऊपर खिड़की के बाहर देखती हुई, पास की इमारतों की ऊपरी मंजिलों में जलती बत्तियों पर नजर टिकाए।
“देखकर पागल हो जाओगे।”
लेकिन असल में पागल कोई और हो रहा था।
उसने मुझे सामने से देखने के लिए कमर से पकड़कर अपनी तरफ घुमा लिया।
भग-होठों के ठीक ऊपर लेस के पारदर्शी कपड़े में गोरी त्वचा के ऊपर काले फूल और खिलकर प्रकट हो रहे थे।
प्रकाश और छाया का आकर्षक खेल – छायाचित्र की तरह।
“माय गॉड!” भटकी-सी आवाज मेरी कुहनियों के नीचे से आई।
“मुझे बताओ उस डेस्क के बारे में … कैसा है?”
श्रीधर बच्चों की तरह ऑफिस की एक-एक चीज के बारे में पूछ रहे थे – डेस्क, गलीचे का रंग, पर्दों की डिजाइन…
इधर उनका बॉस मेरे पैरों के बीच घुसी सबसे खास चीज पर ध्यान लगाए था, जिसकी मेरी पतली-सी पैंटी पहरेदारी कर रही थी।
जब उसकी उंगलियों ने उससे खेलना आरंभ कर दिया तब मेरी श्रीधर को बोलने की ही नहीं, सुनने की भी ताकत जाती रही।
मैं वहाँ बेहद संवेदनशील हूँ।
असल में मैं सभी जगह संवेदनशील हूँ, लेकिन एक दो जगहें तो हालत खस्ता कर देती हैं।
इच्छा हुई उसे रोक दूँ.
मगर उसके ऑफिस में उसकी चीजों के बीच रहते हुए मुझे हिम्मत नहीं महसूस हुई।
उसकी उंगलियों ने पता नहीं क्या किया कि मेरी पेड़ू उचक गई।
उफ़! मेरे कानों में खतरे की घंटियाँ बज गईं।
मगर कानों में श्रीधर थे, मुँह से आवाज निकलते निकलते बची।
क्षुब्ध होकर मैंने कमर मोड़ी।
लेकिन जब तक आप पाँव नहीं चलाते, ज्यादा कुछ नहीं होता।
और जैसी स्थिति में मैं थी, चला नहीं सकती थी।
उनका बॉस आहत होता, जो कि मैं नहीं चाहती थी।
क्या श्रीधर के पास इसका कोई इलाज है? पूछूँ उनसे?
“ठोस है, बड़ा है!” मैंने समाधान की चिंता छोड़ते हुए पति को कहा।
उनका बॉस ‘ठोस और बड़ा’ मेरे पेडू को खींचकर भगों को कपड़े के ऊपर से दबा रहा था।
अपने मोटे होंठों व मोटी उंगलियों से मेरे निचले मोटे, गहरे, फूले होंठों और गुदगुदे उभार का मजा ले रहा था।
मैं पति को टेबल के बारे में, उसके पीछे की कुर्सी के बारे में बता रही थी।
मैंने यह नहीं बताया कि उस कुर्सी में कौन बैठा था, या कि वह क्या कर रहा था, या कि प्रत्युत्तर में मैं क्या कर रही थी, हालाँकि मेरा ज्यादातर ध्यान उसी पर लगा था।
आऽऽह… मेरी पेड़ू उचककर उसके मुँह पर दबी।
मैं रोकती रह गई।
कुर्सी में बैठे समझदार व्यक्ति ने मुँह हटा लिया।
मुझे राहत मिली।
उसने मुझे फिर से घुमाया और आगे कर दिया।
उसे मेरा अग्रभाग अधिक पसंद है या पृष्ठभाग, शायद वह खुद नहीं तय कर पा रहा था।
मुझे घुमाकर कभी आगे करता, कभी पीछे।
मैं पति को रोचक लगने लायक कोई चीज ढूँढ़ रही थी।
उनका बॉस मेरे शरीर में रोचक हिस्सों को ढूंढ रहा था।
“वह रहा तुम्हारे कोट टांगने का स्टैण्ड!”
मैंने एक चीज खोज ही ली।
उसने भी अपनी मनपसंद चीज खोज ली थी – मेरा पूरा पृष्ठ भाग, अर्द्ध पारदर्शी पैंटी की कशीदाकारी में छिपा, जिसे वह गौर से देख रहा था।
“उसको बोलो कि मुझे तुम्हारी ड्रेस अच्छी लग रही है।” अचानक से वह बीच में टपक पड़ा।
मैं हैरान हो गई।
मुझे नहीं लगा था कि वह मेरे बदन से खेलने से आगे मेरी बातचीत में भी घुसना चाहेगा।
उसकी उंगलियां पीछे से आगे आईं और फिर से मेरे सामने के हिस्से से खेलने लगीं।
“उनको मेरी ड्रेस अच्छी लग रही है।” मेरे मुँह से ‘पैंटी’ निकलते निकलते बचा।
श्रीधर को उत्सुकता हो गई कि उसको मेरे ड्रेस में क्या अच्छा लग रहा है।
“फूलों की चिकनकारी!” मेरे मुँह से निकल गया।
“साड़ी पर!” मैंने तुरंत सुधारा।
मैंने चिंता नहीं की कि अचानक से साड़ी में चिकनकारी कहाँ से आ गई।
तब मैंने सोचा कि बोल दूंगी ‘उसकी पाड़ (बॉर्डर) में’
उन जैसे सीधे व्यक्ति को फुसलाना कठिन नहीं था।
लेकिन उनका ध्यान तो इस पर था कि वह मुझे कैसा लग रहा है, हम दोनों साथ में समय ठीक से बिता रहे हैं या नहीं, मैं उस पर अच्छा इम्प्रेशन छोड़ रही हूँ या नहीं।
श्रीधर बोले- मैं उनके साथ काम करने को लालायित हूँ।
उधर वह व्यक्ति उनकी पत्नी के काले फूलों में दबे रहस्यों के उद्घाटन के लिए लालायित था।
वह उन तक पहुँचने का रास्ता ढूंढ रहा था।
जब उसकी उंगलियाँ जांघों की तरफ से इलास्टिक उठाकर अंदर घुसीं, मुझे लगा कि मेरे पास फिक्र करने के लिए अपने पति के भोंदू सवालों से ज्यादा बड़ी चीजें हैं।
जैसे कि मेरी ‘वो’ निगोड़ी इतनी गीली कैसे हो गई।
मैं पति की अनुगामिनी, करवाचौथ मनाने वाली कैसे इस खेल में शामिल हो गई।
नीचे मेरी योनि गीली हो रही थी और ऊपर मेरे चूचुक कड़े हो रहे थे।
मेरे घुटनों में ताकत घटती जा रही थी।
वह जब कभी मुझे ‘सही जगह’ पर छू देता तो मेरी पेड़ू उचक जाती, योनि के अंदर उसकी उंगलियों की हरकत से मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती।
मैं उसे क्यों ऐसा करने दे रही हूँ?
मैं क्यों नहीं उसे …
“उम्मऽऽऽ… अँ… अँह…” फोन में मैंने कुछ कहना चाहा पर मुँह से कुछ और निकल गया।
हॉट इंडियन ब्यूटी की कहानी 3 भागों में है.
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