बीवी को नंगी दिखा कर दोस्त की बीवी चोदी-1

(Biwi Nangi Dikha Kar Dost ki Biwi Chodi-1)

मेहर राम 2013-11-26 Comments

मेरा नाम राजीव है, उम्र 32 वर्ष, मैं एक प्राइवेट फर्म में ऑफिस इंचार्ज के पद पर हूँ।

मेरी पत्नी ऊषा 24 वर्ष की है, बेहद सुंदर एवं गदराई हुई। हमारी शादी को अभी केवल एक साल ही हुआ है।

हाल ही में मैंने कई सेक्स कहानियाँ पढ़ी हैं एवं मेरा मन भी आपको अपनी एक सच्ची घटना बताने का कर रहा है।

बात शुरू करने के पहले मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मैं एक सामान्य भारतीय परिवार का हूँ तथा बद अच्छा, बदनाम बुरा में यकीन करता हूँ। अर्थात लोकलाज का ख्याल रखना पड़ता है। हाँ अनजान स्थान एवं अनजान लोगों के बीच खुलने में कोई बुराई नहीं है, बशर्ते सुरक्षित मामला हो।

मुझे सेक्स में तो मजा आता ही है, पर इससे भी ज्यादा बीवी को बिल्कुल नंगी देखने में आता है। चूंकि मैं अपनी बीवी के साथ माँ-बाप से अलग किराए के घर में रहता हूँ, अतः घर में हम दो प्राणी पति-पत्नी ही रहते हैं, वो भी तीसरे मंजिल पर।

अतः सेक्स के पहले एवं कुछ देर बाद तक वो बिल्कुल नंगी रहती है, यहाँ तक कि बाथरूम से नहाकर हमेशा पूरी नंगी ही कमरे तक आती है, कभी कभार एक तौलिया लपेट कर आती है।

बीवी को ऐसी हालत में देखकर मुझे बहुत उत्तेजना होती है और उसे चोदकर ही शांत होता हूँ।

घर में अकेले रहने के कारण मेरी बीवी साड़ी नहीं पहनती, केवल सूट ही पहनती है। वो भी बिना पैन्टी एवं ब्रा के।

कई बार रात में वो मेरा लोअर एवं टीशर्ट पहन लेती है। एक बात और, चुदाई के फौरन बाद अगर वो टॉप पहन भी ले तो भी नीचे कुछ नहीं पहनती ताकि कपड़ा गीला ना हो, क्योंकि चुदाई के बाद काफी देर तक उसका रस निकलता है और पैन्टी वो पहनती नहीं है।

अब बात उस घटना की जिसने मेरे यौन जीवन में नया आयाम दिया।

हुआ यूं कि मेरी पत्नी ने एक प्रतियोगी परीक्षा के लिए लखनऊ परीक्षा केन्द्र लिया था। इधर हमारी शादी की वर्षगांठ भी आ रही थी। अतः ऊषा को परीक्षा दिलाने मैंने साथ जाने का प्रोग्राम बनाया। परीक्षा का समय एवं ट्रेन का समय कुछ ऐसा फंसा कि तीन दिन का प्रोग्राम बना।

हम नियत समय पर ट्रेन में सवार हुए और सुबह 10 बजे लखनऊ पहुँचे। हमें एक होटल लेना था, इसके लिए हम ऑटो स्टैन्ड की ओर जाने लगे।

अचानक हमारी मुलाकात मेरे एक ऑफिस कुलीग आनन्द से हुई। वह भी उसी ट्रेन से आया था और अपनी पत्नी को वहीं परीक्षा दिलवाने आया था।

उसकी नई-नई शादी हुई थी, अतः शायद शर्म के मारे उसने मुझे लखनऊ आने की योजना पहले नहीं बताया होगा।

हालांकि मैं उसका बॉस हूँ, पर यह उसका निजी मामला था।

अब जबकि मुलाकात हो ही गई थी, अतः अलग-अलग होटल लेने का कोई मतलब नहीं था। हमने पास ही एक होटल लिया, जिसमें हमारे कमरे अगल-अगल थे।

लखनऊ हमारे लिए अजनबी शहर था। इसलिए ऊषा ने केवल दो जोड़ी सूट एवं बाकी जींस टॉप लिए थे, पर अब तो एक जानने वाला था।

शुरू में ऊषा कपड़ों के लिए परेशान हुई, पर जब मैंने उसे यह समझाया कि वो भी तो अपनी बीवी को चोदने ही आया है। उससे क्या शरमाना, तुम उससे खुल कर व्यवहार करना बिल्कुल बोल्ड !
तब वो शांत हुई।

हमने 11 बजे चेक-इन किया और तय किया कि फ्रेश होकर थोड़ा आराम करते हैं, फिर 12.30 पर मेरे कमरे में खाने पर मिलते हैं।
ऊषा ने फ्रेश होकर लैगी और टॉप पहन लिया था। मैंने पहले ही बताया कि उसके पास पैन्टी एवं ब्रा नहीं है।
अतः उसके टॉप को देखकर किसी का भी लण्ड हिल जाए।

वो असहज महसूस कर रही थी क्योंकि आनन्द और उसकी बीवी आने वाले थे और उसे अब ब्रा की कमी खल रही थी।

मैंने उसे अपने से लिपटाया और थोड़ा रगड़ते हुए समझाया कि वो बेहद हसीन है, कुछ गलत नहीं है। बस जरा भी शरमाना नहीं। कमी को ही ताकत बना लो, वो हसीना ही क्या? जो किसी मर्द के लण्ड में आग ना लगा पाए।

बहरहाल वे लोग ठीक समय पर आ गए। हमने खाना आर्डर किया और आराम से खाना खाया।

मैंने नोटिस किया कि आनन्द चोरी-चोरी ऊषा के टॉप को निहार रहा था, ऊषा ने भी नोटिस लिया था।

मैंने चुटकी ली, “क्या बात है आनन्द ! नई बीवी, तीन दिन अकेले, यह तो हनीमून है !

इस पर आनन्द खिलखिलाया, जबकी उसकी बीवी ने सिर झुका लिया।

अब ऊषा ने चुटकी ली- देवरानी जी, शरमा गई? मतलब सच ही है! देखना देवर जी ज्यादा परेशान ना करना मेरी निधि को !

“मैं क्यों परेशान करूँगा ! परीक्षा दिलवाने तो आया हूँ।” आनन्द ने बात घुमाई।

3 बजे तक हमने लंच खत्म कर लिया और तय हुआ कि थोड़ा आराम करके 5 बजे साथ में लखनऊ घूमने चलते हैं और डिनर भी बाहर ही करेंगे।

लंच के दौरान हम उत्तेजित हो चुके थे और उनके जाते ही हमने कपड़े उतार फेंके और शुरू कर दी चुदाई।

चुदाई के दौरान आपस में यह बात कर रहे थे कि आनन्द इस समय निधि को कैसे चोद रहा होगा। तुम्हारे चुच्चे को देखकर उसका लण्ड खड़ा हुआ होगा या नहीं। इस सब के दौरान हमें अदभुत आनन्द मिला, वो भी आनन्द की वजह से।

चुदाई के दौरान ही हमने यह तय किया कि मजा बढ़ाने के लिए थोड़ा और बोल्ड हुआ जा सकता है।

हम एक साथ झड़े। मैंने अपने कपड़े पहन लिए जबकि ऊषा ने टॉप बस पहना और बाथरूम में चली गई, अपनी चूत साफ करने के लिए।

इसी बीच दरवाजे पर हल्की नॉक हुई, जैसी आनन्द ने पिछली बार नॉक किया था। मैंने दरवाजा खोला तो वह जल्दी से अंदर आ गया। उसने बताया कि उसके सूटकेस की चाभी शायद यहीं छूट गई है। ऐसा कहते हुए वह मेज के आसपास जहाँ वह बैठा था, ढूँढने लगा।

मैं थोड़ा परेशान हुआ क्योंकि ऊषा कोई कपड़ा अंदर नहीं ले गई थी। साथ ही तौलिए से चूत पोंछते हुए बाहर आना उसकी आदत है।

हालांकि इस ख्याल से कि आनन्द को मेरी बीवी की चूत के जरा से दर्शन हो सकते हैं, मेरा लण्ड पुनः खड़ा हो गया था।

अगले दो मिनट मेरे लिए बड़ी उधेड़बुन वाले रहे कि ऊषा ने इसकी आवाज सुन ली होगी या नल की आवाज के कारण उसे पता ही ना हो कि रूम में पतिदेव के अलावा भी कोई और भी है।

और दोस्तो, हुआ भी ठीक यही।

मेरी बीवी तौलिए को लपेटने की जगह कंधे पर डाल एक सिरा अपनी चूत पोंछते हुए एकदम से बाहर आ गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

नजारा बेहद शानदार एवं लण्ड झड़ा देने वाला था। आनन्द को एक क्षण के लिए चूत दिख गई थी और अगले ही क्षण मेरी बीवी ‘आउच’ कहती हुई वापस बाथरूम में घुस गई।

आनन्द इस घटना से हतप्रभ रह गया और जाने का उपक्रम किया।

तो मैंने उसे समझाया- चलो कोई बात नहीं, औरतों की आदत ही ऐसी होती है, माइंड मत करो।

इसी समय ऊषा आ गई। कमर पर तौलिया लपेटकर, और आंनद से बोली- क्या आनन्द बाबू, असली चाभी लिए घूम रहे हो, ताले में फिट करने की जगह कोई दूसरी चाभी ढूंढ रहे हो।

शुरू में आनन्द नहीं समझा पर मैंने उसे इशारे से अपने लण्ड पर हाथ रखकर बताया- चाभी।

‘चाभी’ का मतलब समझते ही वह खिलखिलाया और बोला- क्या भाभी, छेड़ रही हैं, लगता है आप ताला ही खुलवा रही थी अभी !!

ऊषा ने तपाक से बोला- अब खुलवा रही थी या डलवा रही थी या चुदवा रही थी, जो भी था मेरा ताला है। मैं जब चाहे खुलवाऊँ, निधि नहीं करने दे रही क्या? या चाभी सचमुच में गड़बड़ है?

इस आखरी बात ने आनन्द के अहम को ठेस पहुँचा और उसने मायूस होकर बताया- अरे ये चाभी तो ठीक है, ताला ही अभी जंग लगा है। शायद कल तक खुल जाए।

आनन्द की बात से हमें उसके साथ सहानुभूति हुई।

ऊषा ने कहा- कोई बात नहीं देवर जी, सब्र का फल बड़ा नमकीन होता है।

आनन्द चला गया पर हम दोनों इस वार्तालाप से पुनः अति वासनामय थे। अतः एक और दौर चुदाई में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला।

अब हम अपने सेक्स में नई उर्जा महसूस कर रहे थे। हमने सोचा कि यदि आनन्द और निधि इसी कमरे में हमारे सामने और हम उनके सामने चुदाई करें तो?

अभी तक की वार्ता से यह समझ में आ रहा था कि आनन्द आसानी से खुल जाएगा।

कहानी जारी रहेगी।
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