केयर टेकर-1

मैं दुनिया में बिल्कुल अकेली थी। मेरे माँ-बाप बचपन में ही एक दुर्घटना में चल बसे थे। मेरे मामा ने ही मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया था। एम कॉम तक मुझे पढ़ाया था। मेरे मामा भी बहुत रंगीले थे। बचपन से ही वो मेरे शरीर से खेला करते थे। मेरे छोटे छोटे मम्मों को वो खूब दबाते थे। मेरी कम समझ और विपरीत लिंग आकर्षण के कारण मुझे इसमें बहुत आनन्द आने लगा था। बस उन्होंने रिश्तों का लिहाज करके मुझे चोदा नहीं था जबकि मुझे तो चूत में बहुत ही खुजली होती थी।

फिर मेरी शादी उन्होंनें एक लंगड़े तलाकशुदा व्यक्ति से करवा दी थी जो एक प्राईवेट फ़र्म में काम करता था। पर मेरा दुर्भाग्य वो भी असमय ही शराब के कारण लिवर की बीमारी से स्वर्ग सिधार गया। वैसे भी मैं उससे बहुत कम समय में ही बहुत परेशान हो चुकी थी। वो अपने अजीब अजीब से दोस्तों को बुला कर शराब पिलाया करता था और फिर वो और उसके दोस्त मुझे बहुत छेड़ते थे। मेरे मम्मे दबा दबा कर मेरी छाती में जलन सी पैदा कर देते थे।

मेरे पति के मरने के बाद मैंने नौकरी बहुत तलाशी पर मुझे स्कूल तक में नौकरी नहीं मिली। किराये का मकान, फिर पानी बिजली का खर्च… चार पांच महीनों में ही मेरे पास कुछ भी ना बचा था, खाने के भी लाले पड़ गये थे। मकान मालिक ने मुझे मकान खाली करने का नोटिस दे दिया था। तभी मेरे घर में जो पहले काम करने वाली आती थी, उसने मुझे बताया कि रामजी सेठ के पास अभी एक चपरासन की नौकरी है, तू तो पढ़ी लिखी है… तुझे वो रख लेंगे।

मजबूरन मैं उससे पता लेकर चल पड़ी। शहर के बाहर उसकी कोठी थी। मैं धीरे से उसकी कोठी में प्रवेश कर गई। सामने सीढ़ी की घोड़ी पर चढ़ा एक युवक बिजली ठीक कर रहा था।

‘शी… शी… ऐ बाबू… रामजी सेठ का घर है ना…?’

उसने मुझे नीचे देखा और बोला- हाँ… यही है… क्या काम है?

‘वो सुना है कि आपके पास कोई काम है?’

‘ओह… काम वाली है? रुक जा…’

वो नीचे उतरा और मुझे से उसने कुछ सवाल किये… फिर कहा- यहाँ से दस किलोमीटर दूर सेठ जी का एक फ़ार्म है… उसकी देखरेख करनी है… दो हजार रुपया तनख्वाह मिलेगी, वहीं रहना होगा और खाना फ़्री… मंजूर हो तो तीन-चार दिन में बता देना।

‘दो हजार… तनख्वाह?’

‘चल ढाई हजार, बस अब और नहीं, करना हो तो कर… वर्ना चल यहाँ से…’

‘ठीक है बाबू जी… ऐ ! तू क्या करता है यहाँ पर…’

‘मैं… मैं तो कुछ नहीं, तुझे क्या?’

‘अरे तो मत बता, भाव क्यों खाता है… मुझे वहाँ कौन ले जायेगा…?’

‘कल आ जाना… मैं कार में ले चलूँगा… कपड़े लत्ते साथ ले आना…!’

मेरा दिल तो खुशी से बल्लियों उछल रहा था… रहने को जो फ़्री मिल रहा था। फिर खाने को भी…

वाह वाह सेठ जी की जय हो…

‘अरे जा ना… कल सवेरे आ जाना…’

‘डेफ़िनेटली… सर जी…’

मेरे मुख से इंगलिश सुनते ही एक बार तो वो भी चकित हो गया… मैं भी घबरा सी गई…

दूसरे दिन उसने मुझे अपने फ़ार्म हाऊस पर पहुँचा दिया।

‘वो सामने पॉल्ट्री फ़ार्म है… और वो बनिये की दुकान… जो कुछ भी लेना हो वहाँ से ले लेना और लिखवा देना… हम उसका भुगतान कर देंगे। डेफ़ीनेटली कामवाली… कम्मो बाई !!!’

मैंने उसे देखा और हंस दी… मेरी नकल करते हो बाबू जी…? ऐ नाम क्या है रे तेरा?

‘मेरा नाम… नाम… हां प्रीतम है…’

‘ओय होय… प्रीतम जी… नाम भी बड़ा रोमान्टिक रखा है…’

वो झेंप सा गया। मुझे उसने सारा घर दिखा दिया… फ़ार्म का एरिया दिखा दिया। खूबसूरत घर था। बस मैंने तो कमर कस ली और दो घण्टे में सारी सफ़ाई कर दी। प्रीतम जा चुका था। फिर मैंने खाने का सामान टटोला और दाल रोटी बना कर छक कर खा ली। घर में सभी सामान काफ़ी था। रात होने लगी थी। मैंने स्नान किया और बाहर आ कर घूमने लगी। शाम की ठण्डी हवा मुझे बहुत भली लग रही थी।

शायद मेरी जिन्दगी की यह पहली सुहानी शाम थी… मैंने भगवान को धन्यवाद दिया। अंधेरा ढलते ढलते मैं अन्दर आ गई। फिर बैठक में टीवी देखा… 72 इन्च का बड़ा टीवी था। केबल कनेक्शन तो था नहीं बस दूरदर्शन ही आता था। साथ में डीवीडी प्लेयर भी लगा हुआ था।

सभी ड्राअर पर ताला लगा था, बस एक ऊपर का खुला था। उसे खोला तो वो पूरा बाहर आ गया। ऊपर से ही उस ड्राअर के खांचे में से उसकी नीची वाली शेल्फ़ में बहुत सी सीडियां बिखरी हुई नजर आ रही थी। मैंने उसके अन्दर हाथ डाल कर कुछ सीडी बाहर निकाल ली।

हुंह ! उस पर तो कुछ नहीं लिखा था… मैंने एक सीडी प्लेयर में डाली और उसे चला दी। उफ़्फ़ ! इतने बड़े टीवी पर कितना अच्छा लग रहा था। तभी मैं सन्न सी रह गई… उसमे तो नंगी फ़िल्म थी। इतना बड़ा लण्ड… और लड़कियाँ नंगी सी। मैंने जल्दी से टीवी बन्द किया और भाग कर पूरा घर बन्द कर दिया। फिर सावधानी से सब तरफ़ देख लिया, सब कुछ ठीक था तो फिर अब मैंने आराम से सोफ़े पर बैठ कर प्लेयर को फिर से चला दिया। मेरा दिल तो खुशी के मारे बेहाल था। बहुत इच्छा थी कि कभी कोई मुझे ब्ल्यू फ़िल्म दिखा दे… यहाँ तो डीवीडी का भण्डार था।

मैं बहुत ध्यान से उस फ़िल्म को देख रही थी। उसे देख कर तो वासना के मारे मेरे तो रोयें तक खड़े हो गये थे। मेरी चूत उसे देख कर पानी छोड़ने लग गई थी। उसे देख मुझे भी लण्ड लेने की तेज इच्छा होने लगी। पर क्या करती ? पता नहीं मैं कब तो अपनी चूत घिसने लगी थी और फिर जोर से झड़ भी गई थी। मैंने टीवी बन्द किया और फिर गहरी गहरी सांसें लेने लगी। बेडरूम में जाकर मैंने सबसे बढ़िया बिस्तर में लोट लगाई और फिर गहरी नींद में समाती चली गई।

दूसरे दिन प्रीतम शाम ढलते आया। उसके पास कुछ कपड़े और सामान था। वो मेरे लिये कुछ कपड़े लाया था। उसमे चूड़ीदार पजामा और कुर्ते थे। सामान में साबुन, टूथपेस्ट, ब्रश, शेम्पू तौलिया वगैरह लाया था।

‘देख कम्मो, सेठ जी की कोई चीज हाथ ना लगाना। उनका बेड रूम साफ़ और चमकीला होना चाहिये। बैठक साफ़ सुथरा… वो बगल वाला तेरा कमरा है… उसे ठीक कर ले..’

उसने सब कुछ मुझे समझा दिया।

‘ऐ प्रीतम… चल खाना खा ले… तैयार है… तेरा मालिक तो तुझे कह देगा कि होटल में खा ले।’

‘खाना… तैयार है… तो चल खिला दे… देखूँ तो कैसा बनाती है।’

‘अरे बस दाल है और ये बैंगन की सब्जी…’

‘कुछ पीती-वीती है कम्मो या बस हांकती ही रहती है…?’

‘अरे मेरे प्रीतम… मुझे कौन पिलायेगा रे… है माल तो निकाल…!’

प्रीतम ने बैठक की अलमारी में से एक अच्छी सी शराब निकाली… और दो गिलास लेकर बैठ गया।

‘अरे क्या कर रहे प्रीतम… सेठ जी की शराब…?’

‘अब चुप हो जा… ले पी…’

‘ऐ प्रीतम कुछ दिखाऊँ तुझे…?’

‘क्या? बता ना…?’

मैंने झट से टीवी ऑन किया और डीवीडी में सीडी लगा दी।

‘अब पी… अब मजा आयेगा…!’

पीते पीते जैसे ही नंगे सीन चालू हुये… प्रीतम मुस्करा उठा।

‘साली… एक नम्बर की चालू है…’

‘चल अब मेरे पास आ जा मेरे प्रीतम…’

वो सरक कर मेरे पास आ गया और वो मेरे ब्लाऊज में से मेरे कठोर मम्मों को झांकने लगा।

‘कैसे लगे? मजा आया?’ मैंने उससे पूछा।

‘साले कैसे फ़ड़फ़ड़ा रहे हैं… निकाल तो बाहर…’

‘तू ही निकाल दे… अपने हाथो से !’ मैंने उसे और उकसाया।

मेरी आंखों में गुलाबी डोरे तैरने लगे थे। उसने मेरा ब्लाऊज खोल दिया और मेरे मम्मों को हाथों में जकड़ लिया।

‘मार डालेगा जालिम… जरा प्यार से…! हैं ना पत्थर जैसे कठोर…?’ मैंने सिसकारते हुये कहा।

उसने मुझे चूमना शुरू कर दिया। मैंने भी उसका लण्ड पकड़ने के लिये उसके पैंट पर हाथ डाल दिया।

अरे क्या करती है ? हाथ हटा नीचे से…

‘क्यूँ ? फ़टती है क्या भेनचोद… लण्ड ही तो है…’

नहीं… मेरा तो निकल ही जायेगा ना…

उफ़्फ़ ! बिना घुसाये ही निकल जायेगा ? देख तो कितना कड़ा हो रहा है तेरा डण्डा…

उसके विरोध के बावजूद मैंने तो उसका लण्ड पकड़ ही लिया। बहुत सख्त हो रहा था।

‘अरे कम्मो, बस हो गया ना… अब छोड़…’

मैंने तो उसकी पैंट का जिप खोल दिया… फिर पेन्ट का हुक भी खोल डाला। पैंट एकदम से ढीला हो गया था।

‘अब बोल मेरे प्रीतम… इतना शर्माना किससे सीख लिया यार… कैसे काम चलेगा यार…?’

मैंने भी अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया। बस अब मेरा पेटीकोट और उसका पैंट नीचे सरकने लगे। वो हमारे पांवों में उलझे हुए थे।

‘देख कम्मो ! कुछ गड़बड़ हो गया तो मुझे मत कहना !’ प्रीतम ने जैसे चेतावनी दी।

‘उफ़्फ़ ! भेनचोद… अरे चोदना ही तो है… उसमें इतने क्या नखरे दिखा रहा है… लण्ड खिला दे ना !!’

‘अरे ! अरे ! कम्मो मान जा साली रण्डी… छिनाल…’

‘साले की चोदने में तो गाण्ड फ़टती है… लण्ड वाला हो कर गाण्डू हो गया है।’

मैंने अपने पांव में उलझा हुआ अपना पेटीकोट नीचे सरकाया और नंगी हो गई। फिर उसने भी अपना पैंट नीचे सरका ही लिया। फिर जल्दी से चड्डी भी उतार दी।

‘तेरी तो मां को लण्ड मारूँ… रण्डी साली… कितनी चालू है साली… कुतिया की चुदायेगी…’

फिर उसने मेरी चूची को उसने अपने मुख में भर लिया और उसे चूस चूस कर गुदगुदाने लगा।

‘सोफ़े पर मजा नहीं आ रहा है यार… चल नीचे ही आजा… फिर लौड़ा घुसा देना।’ मैंने भी मस्ती में मचलते हुये कहा।

‘चल कुतिया… तुझे नीचे ही भचीड़ता हूँ… तेरी माँ ना चोद दी तो कहना…!’
‘यह हुई ना बात… मेरे राजा…’

उसने मुझे उठा कर धीरे से नीचे कालीन पर लेटा दिया और फिर उसने मेरी कोमल चूत पर अपना मुख चिपका दिया।

‘ओह्ह, मेरे राजा… मार डाल मुझे… साले जीभ से ही चोद देगा क्या…’

फिर वो हांफ़ता हुआ मेरे ऊपर ऊपर आ गया।

‘ले अब खा मेरा लण्ड !!!’

उसने मुझे जकड़ कर लण्ड मेरी चूत पर मारा… पर निशाना गलत था… फिर उसने कोशिश की… पर फिर निशाना गलत था।
‘भड़वे ! कभी किसी लड़की को चोदा नहीं है क्या…?’

‘तो क्या हुआ ? चूत को ही तो फ़ाड़ना है ना… एक बार लण्ड घुसेड़ने तो दे…’
‘तेरी तो साले… भेन के लौड़े… जाने कहाँ लण्ड घुसेड़ रहा है… अरे रुक तो !’

उसके कड़क लण्ड को मैंने थाम लिया और उसे अपनी चूत की लकीर पर रख दिया…’भोसड़ी के… अब लगा धक्का… उईईई मां… मर गई रे… अबे साले धीरे डाल ना..!’

‘साली को चोद दूँगा… तेरी फ़ाड़ कर रख दूंगा… अब ले मेरा लौड़ा…’

‘हाय हाय… मेरे चाँद… मेरे फ़्रेश माल… चोद चोद… मजे से चोद… मर जाऊँ साले भड़वे पर…’

उसकी कमर सटासट लण्ड को अन्दर बाहर चलाने लगी। मुझे तो जैसे स्वर्ग सा लगने लगा। बहुत सुन्दर… मन मोहक… दिल को जला देने वाली चुदाई लग रही थी। मेरी कमर भी चलने लगी थी, लयबद्ध तरीके से लण्ड ले रही थी। बहुत महीनों बाद मुझे कोई पेल रहा था। मैं तो सपनों में खो चली थी। कब तक… जाने कब तक… होश ही नहीं रहा… बस खुशियों से भरपूर… जाने कहाँ उड़ रही थी।

तभी मेरे शरीर में जैसे सारी नसें सिमटने लगी। खून उल्टी दिशा में जाने लगा। सारा आनन्द मेरी चूत में भरने लगा। मैं तड़प उठी और प्रीतम को जोर से जकड़ लिया। चूत को लण्ड से दबा दिया। फिर जैसे सारा माल चूत के रास्ते बाढ जैसा बह चला। मेरे दांत भिंच गये। मुख से चीख निकल गई।

‘मार दिया साले… मैं तो उईईई मां… हो… ओ ओ… उस्स्स्स… बस बस… आह्ह्ह… प्रीतम… आह्ह्ह मजा आ गया…’

तभी प्रीतम ने अपना लण्ड मेरी चूत में गहराई तक घुसेड़ दिया। मैं चीख उठी…’अरे… मादरचोद… अब क्या कर रहा है…’

‘अरे उह्ह्ह्ह कम्मो रानी… मेरा लण्ड… मैं तो गया… ओह्ह्ह… ‘

उसका गरम-गरम वीर्य मेरी चूत में भरने लगा… मुझे कितना भला सा लगा… उसका वीर्य अन्दर भरता जा रहा था और मैं चूत को मच-मच करके भींच रही थी। सारा माल चूत का किनारा लेकर बाहर निकल पड़ा था। मैंने नीचे चूत की तरफ़ देखा… फिर पास में पड़े तौलिए से उसे साफ़ कर लिया।

‘चुद गई ना साली… बड़ी ढींगें मार रही थी।’

‘राजा… तूने तो आज मुझे निहाल कर दिया… और चोदेगा या खाना लगाऊँ…?’

‘अरे एक दो बार और हो जाये… ये दारू तो पूरी पी लें…’

‘साला… हरामी… जी नहीं भरा… चल लगा एक पेग और…’

करीब आधा घण्टा और पीने के बाद… प्रीतम ने मेरी गाण्ड भी मार दी। कभी गाण्ड मराई नहीं थी ना… सो सभी कुछ नया नया सा लगा… वो अन्दर घुसता हुआ सुपाड़ा… बड़ा बड़ा सा लण्ड… उफ़्फ़्फ़… उन्दर तक कैसे घुसता चला गया था। फिर तो मेरी गाण्ड ने उसका लण्ड क्या गपा गप लिया कि बस आनन्द आ गया था।

फिर आधे घन्टे बाद फिर से उसने मेरी चुदाई की… बहुत अधिक पीने के कारण मैं तो टल्ली हो गई थी… कोई होश ना था… जाने कितनी बार चोदा होगा उसने…

सुबह जब नींद खुली तो प्रीतम नंग धड़ंग पास में पांव फ़ैलाये बेहोश सा सो रहा था। मैं भी उसके पास ही बिल्कुल नंगी पड़ी हुई थी। उफ़्फ़! बदन टूट सा रहा था… चूत में दर्द हो रहा था… गाण्ड भी दर्द से मचक रही थी।

मैं धीरे से उठी और स्नान करने बाथरूम में घुस गई। स्नान करते करते जाने कब प्रीतम भी आ गया और उसने मुझे नहाते समय एक बार और चोद दिया। मैं उसे मना करती रही… पर वो माने तब ना… कमजोरी में मैं फिर एक बार और झड़ गई। जैसे तैसे स्नान करके करके मैं तो फिर से सोने चली गई।

कहानी का अगला भाग: केयर टेकर-2

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