दिल्ली से लखनऊ-2

आशीष 2009-01-12 Comments

प्रेषक : रिन्कू

कुछ देर बाद मैंने अपना एक हाथ उसके सीट के पीछे वाली बैक पर रख लिया और बोला- यार, बस की सीट आराम दायक नहीं है।

वो बोली- बैक सीट ऐसे ही होती है।

मैं कुछ सोच ही रहा था, वो बोली- मुझे नींद आ रही है !

मैं बोला- ठीक है, सो जाओ।

उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख लिया और आँखें बंद कर ली।

इधर मेरे लंड खड़ा हो गया और फनफ़नाने लगा कि बस अब सब कुछ हो जाये।

वो मेरे से सटी हुई थी और मेरे धड़कनें तेज थी। अब मेरा दिलो-दिमाग मेरे काबू में नहीं था।

मैंने धीरे से अपना हाथ उसके चूचियों से सटा दिया। बस जब जब झटके लेती, तब तब चूची दबती। मुझे मज़ा आ रहा था और उसे भी।

फ़िर उसने अपना एक हाथ मेरी जांघ पर रख दिया, मुझे काफी अच्छा महसूस हो रहा था।

अब मुझे डर नहीं लग रहा था। मैंने उसकी एक चूची को अपने हाथ में ले ली और दबाने लगा। वो मना भी नहीं कर रही थी ..

मैंने दूसरी चूची भी सहलानी शुरू कर दी। अब उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और उसका भी हाथ चलने लगा था। उसने मुझे कस के पकड़ लिया। हम दोनों काफी ज्यादा सटे हुए और चिपके हुए थे एक दूसरे से।

मैंने उसकी टीशर्ट में एक हाथ डाल दिया। अब उसकी नग्न चूचियाँ मेरे हाथ में थी और मैं कस के उनको दबा रहा था। कुछ देर में ही ब्रा का हुक भी खोल दिया मैंने ! अब उसकी दोनों चूचियाँ आज़ाद थी और बिल्कुल तनी हुई थी, मैं उनकी घुन्डियाँ मसलने लगा जिससे वो और ज्यादा उत्तेजित हो रही थी और साँसे तेज़।

उससे भी रहा न गया। उसने एक हाथ से उसने मेरा लण्ड पकड़ लिया और जोर से सहलाने लगी। मेरे लंड से पानी निकलने लगा था।

इधर मैंने चुम्बन भी शुरू कर दिया, मैं और वो दोनों जबरदस्त चूमा-चाटी कर रहे थे, उसके होंठ मीठे और मुलायम थे, मेरा मन कर रहा था कि खा जाऊँ संतरे की इन ख़ट्टी-मीठी फ़ांकों को !

उसने मेरे लण्ड को सहलाना तेज़ कर दिया और मेरा लण्ड मोटा और लम्बा होकर अपने फुल मोशन में आ गया था। मैं उत्तेज़ना के चरम पर था और मेरा लण्ड आग उगलने को तैयार !

इधर मैं उसकी दोनों चूचियों को जोर जोर से दबा रहा था, उधर उसने मेरे लण्ड को मसल मसल कर बुरा हाल कर रखा था।

मैंने उसे सीट पर ही लिटा सा दिया और खुद उसके ऊपर हो गया। मैंने उसकी जींस का बटन भी खोल दिया और हाथ उसकी पैंटी के अन्दर डाल दिया। मैं उसकी योनि में ऊँगली करने लगा पर उसने मना कर दिया।

पर मैं नहीं रुका और करता रहा, अब वो ऊँगली करने पर उचक रही थी और उफ़ उफ़ उफ़ की हल्की आवाज़ कर रही थी….

उसकी चूत मोटी और कसी थी और वो पूरे जोश में थी- सेक्स के चरम पर।

मैंने ऊँगली करना जारी रखा, वो जोर जोर से उचक रही थी और धीरे धीरे बोल रही थी- फक मी फक मी …

इतने में मुझे अहसास हुआ कि कुछ गीला गीला ..वो झड़ चुकी थी पर उसने मेरे लण्ड को कस कर पकड़ा हुआ था और आगे-पीछे कर रही थी।

और अगले कुछ ही पलों में मैं भी झड़ गया।

दोस्तो, उस रात उसकी चुदाई नहीं हो पाई क्योंकि मेरे पास कंडोम नहीं था और मैं कोई खतरा भी नहीं लेना चाहता था, जाहिर है कि वो भी शायद इससे आगे ना बढ़ने देती बस में !

फिर हम दोनों करीब बीस मिनट के बाद एक दूसरे से अलग हो गये, उसने अपनी जींस चढ़ाई और मैंने अपना लोअर।

सुबह के चार बज चुके थे, बस एक ढाबे पर रुकी, ड्राईवर चाय पीने के लिए रुका था। हम दोनों भी नीचे उतरे और फ्रेश होकर आगे बैठ गये। दोनों बहुत खुश थे, थोड़ी देर बाद मैं सो गया।

सुबह हो चुकी थी, लखनऊ आने वाला था तो उसने मुझे जगाया, उसने पूछा- लखनऊ में कहाँ रुकोगे?

मैं बोला- कंपनी का गेस्ट हाउस है, उसी में।

पूछा- कहाँ पर है?

मैं बोला- विनीत खंड में !

वो बोली- पास में ही मेरा होस्टल है। फिर उसने मुझे अपना ईमेल और फ़ोन नंबर दिया, बोली- कोई प्रॉब्लम हो तो कॉल कर लेना !

और उसने मेरा भी नंबर लिया।

लखनऊ आ चुका था और हम दोनों अपने अपने रास्ते चले गये। मुझे लखनऊ करीब दस दिन रुकना था। मुझे इस बात का दुःख था कि रात को चुदाई नहीं हो पाई पर मुझे क्या पता था कि किस्मत फिर एक बार मौका देगी..

दो दिन के बाद उसका एक फ़ोन आया और फिर जो हुआ वो आपको अगली कहानी में सब विस्तार से बताऊंगा…

तब तक आप अपने विचार और सुझाव मुझे जरूर बताएँ !

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category कोई मिल गया or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

दिल्ली से लखनऊ-2

Comments

Scroll To Top