प्रेम अध्याय की शुरुआत-3

अब शुरुआत हुई एक हसीन सफ़र की। एक हसीन शाम की मेरी जिंदगी की.. ! मेरी अब तक की सबसे खुशनुमा स्मृतियों की ! जिसकी याद से ही अलग सी गुदगुदी, सिहरन दौड़ जाती है दिल में !

मैं ड्राइविंग सीट पर था और पारो मेरे साथ बैठी थी। करीब सौ किलोमीटर का सफ़र था और पूरे रास्ते तंग पहाड़ी घाटियों से गुजरते थे। जिधर भी देखो उधर बस पहाड़, हरियाली और बहुत ही शांत वातावरण था।

तभी मुझे मेरे पैरों पर कुछ महसूस हुआ, मैंने देखा वो मुस्कुरा रही थी और फिर मैंने भी एक हल्की सी मुस्कान से उसका जवाब दिया।

मैंने पूछा- क्या इरादा है जान?

उसने अपना सर शर्म से दूसरी तरफ कर लिया। शायद एक झिझक सी थी। हो भी क्यों न आखिर किसी को पहली बार इतने करीब आने देना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होता।

मैंने कार किनारे करके रोक दिया सामने बेहद खूबसूरत नज़ारा था। मैं जिस सड़क पर था अब उसके दोनों तरफ बस बादल ही बादल थे दूर कहीं ध्यान से देखने पर बादलों का सीना चीरते पहाड़ नज़र आ रहे थे।

मेरे लिए तो ये किसी जन्नत के नज़ारे जैसा ही था।

मैं कार से उतर कर उसके दरवाजे के तरफ आ गया। अब उसकी तरफ के दरवाज़े को खोल उसे उठा कर पहले खुद बैठा फिर उसे अपनी गोद में बिठा लिया। वो अब भी शरमा रही थी। मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ किया और उसके होठों से अपने होंठ मिला दिए। उस चुम्बन में मुझे खुद में मिला लेने की चाह थी जैसे। मैं चाह कर भी अपने होंठ अलग नहीं कर पा रहा था। यह उसकी जिस्म की प्यास थी या प्यार की भूख, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, बस इतना लग रहा था कि जैसे वो हमेशा के लिए इन लम्हों को अपनी आप में कैद कर लेना चाहती हो।

थोड़ी देर बाद मुझसे अलग हो वो मेरे गले लग गई। धीरे से मेरे कान के पास अपने होंठ लाकर फ़ुसफ़ुसाई- आई लव यू ! तुमने मुझे मेरी जिंदगी वापिस कर दी है। अब तक ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं जिए जा रही हूँ, अपने सपनों के लिए अपने परिवार के लिए ! पर तुमसे मिल कर मैंने जाना कि जिंदगी क्या चीज़ है। यह लम्हा मेरी जिंदगी का सबसे हसीन लम्हा है।

बोलते वक़्त उसकी आँखों में आसू आ गए थे।

मैंने उसके सर को अपने सीने से लगा दिया, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा था कि मैं क्या कहूँ।

थोड़ी देर बाद मैंने कहा- जान, अब हटोगी भी.. बहुत भारी हो तुम ! देखो, मैं तो दब ही जाऊँगा !

उसने मेरी ओर देखते हुए कहा- अच्छा जी तो इतनी ही कैपेसिटी है आपकी..?

मैंने कहा- जगह पे चलो, तब दिखाता हूँ अपनी कैपेसिटी !

फिर हम दोनों हंसने लग गए। मैं ड्राइविंग सीट पर वापिस आ गया।

थोड़ी देर बाद हम अपने निर्धारित गन्तव्य पर पहुँचे। उस जगह का नाम भी ‘पारो’ था। मैं उसकी ओर देख मुस्कुराने लगा। होटल था ताज ताशी ! ताज ग्रुप का होटल था तो बताने की ज़रुरत नहीं है कि कैसा होगा।

मैंने औपचारिकता पूरी की, हम दोनों अपने कमरे में पहुँचे। उस कमरे को देख ऐसा लगा जैसे सफ़र की मंजिल वास्तव में ऐसी ही होनी चाहिए। कमरे में एक बालकनी भी थी जिससे उस पूरी जगह की ख़ूबसूरती का बेहतरीन नज़ारा मिल रहा था। वहाँ की वादियों में हल्की ठंडक थी। मैं तो वादियों का नज़ारा ही ले रहा था कि तभी एक वेटर आकर कॉफ़ी और स्नैक्स दे गया। इस कमरे के दो हिस्से थे, एक में हमारा बिस्तर लगा था और एक किसी अतिथि के लिए बैठने की जगह बनी हुई थी। मैं थका हुआ था ही, सो सीधा बिस्तर पर गिरा पड़ा। पारो नहाने गई थी तो कॉफ़ी के लिए मैंने उसका इंतज़ार करना ठीक समझा।

सूरज डूबने वाला था, मैं वापिस बालकनी में आ गया। वहाँ एक झूला लगा था, उसी पर बैठ गया। एक ओर सूरज डूब रहा था और दूसरी तरफ चाँद बादलों से झाँक रहा था। धीरे धीरे हल्का अँधेरा सा हो गया।

मैं तो बिना पलकें झपकाये उस नज़ारे को देख रहा था, तभी मुझे अपनी आँखों पे एक बेहद नर्म और हल्के गर्म हाथों का एहसास हुआ। मैंने भी कुछ नहीं कहा, बस धीरे धीरे उसके हाथों से उसे महसूस करता हुआ उसके चेहरे तक ले गया फिर उसे छूता हुआ हाथ नीचे उसके उरोजों पे लाने लगा।

मैं उन उभारों के पास पहुँचा ही था कि वो हाथ हटा भागने लग गई। मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसका गाउन मेरे हाथ में आ गया। कस के एक झटका दिया तो कपड़ा फटने की आवाज़ आई और वो सीधे मेरे ऊपर गिर पड़ी, उसका गाउन ऊपर से फट गया था.. लाल रंग का जालीदार गाउन थी, वैसे भी बहुत मुश्किल से ही उसका बदन ढक पा रहा था। मेरे उस झटके ने तो रही सही कसर भी निकाल दी थी। उसने शर्म से अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया।मैं उसके हाथों को चूमते हुए उसके हाथ हटाने लगा। अब मेरे होंठ उसके अधरों का रसपान कर रहे थे। अब वो भी काफी अभ्यस्त हो चुकी थी।

मैं उसे चूमता हुआ उसके कपड़े अलग करने लग गया। अब तो जिस्म पर बस दो अन्तःवस्त्र ही थे। मैंने उनके ऊपर से ही उसे चूमता हुआ सहलाने लगा। वो उसका जवाब सिस्कारियों में ही दे रही थी। जब मैं दांत गड़ाता तब उसकी सिसकारियाँ थोड़ी तेज़ हो जाती और जब मैं आराम से चूमता तब उसकी आवाज़ भी धीमी हो जाती।

झूला भी एक झूलने वाला बिस्तर ही था। ऊपर आसमान, ठंडी हवाएँ जो हमारे तन की आग को और भी भड़का रही थी, चांदनी रात और चाँद सी हसीना का साथ। मैंने उसे चूमते हुए अपने कपड़े भी निकाल दिए। अब मैंने उसकी चोली को उसकी काया से अलग कर दिया। उसके उरोजों का रसपान करने को मेरी जीभ स्वतः ही आगे बढ़ गई, उन उरोजों के अग्र भाग को अपने कामुक वार से घायल करता हुआ चूम रहा था, मेरे ही मुख की लार से मैंने उसके दोनों उरोजों के हर हिस्से को ही गीला कर दिया था। अब तो जैसे उनमें मुझे चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब भी नज़र आ रहा था। मुझे तो अब चन्द्रमा की चमक भी फीकी लग रही थी। मैं किसी तरह उरोजों के मोहपाश से खुद को छुड़ा कर अपनी मुख्य मंजिल की तरफ चल पड़ा। अब उसके जिस्म पर बचा एकमेव वस्त्र भी मैंने उतार दिया। हवाओं की ठंडक का भी अब कोई असर नही था हम पर ! हम तो जैसे खो चुके थे एक दूसरे में। इतनी ठण्ड भी हमारे अन्दर की आग को शांत कर पाने में असमर्थ ही थी।

अब मैं अपनी मंजिल पर था, उसने अपने पैरों के बीच जैसे मुझे कैद ही कर लिया था, मैंने भी अपने मुख का दायरा बढ़ाया और उसकी योनि को खा जाने जा यत्न करने लगा, मेरे जीभ निरंतर उस योनि द्वार पर वार किये जा रही थी।

तभी मुझे कुछ सूझा और अपनी उँगलियों को उसकी योनि की चिकनाई से चिकनी की और उसके पिछले द्वार पर सहलाते हुए अपनी एक उंगली अन्दर सरका दी। इस अप्रत्याशित हमले से वो भी थोड़ी असहज हो गई पर धीरे धीरे उसे इसमें भी आनन्द आने लगा। वो खुद को रोक न पाई और थोड़ी ही देर में अपने प्यार की धार से मुझे नहला दिया।

अब उसकी बारी थी, मैंने अपना लिंग उसके मुख के पास कर दिया। वो थोड़ी असहज थी क्योंकि यह आखिर पहला अनुभव ही था उसके लिए, एक बार उसने मेरी तरफ देखा, फिर धीरे धीरे मेरे लिंग को मुख में भरने लग गई। मैंने उसका हाथ पकड़ा और अपने लिंग पर टिका दिया। हाथों से लिंग को सहलाते हुए और अपनी जिह्वा के वार से मुझे घायल करने लग गई। एक बार तो मुझे लगा जैसे मैं रोक ही नहीं पाऊँगा। पर आज मैं इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था तो उसके मुख से अपने लिंग को अलग किया और उसके योनिद्वार पर टिका दिया। उसके होठों को अपने होठों से लगा कर थोड़ा दबाव बनाया तो लिंग का अगला हिस्सा उसके अन्दर था।

उसके जिस्म का कसाव मुझे उसके दर्द का आभास करा रहा था। मैं उसे सहलाता रहा और उसके सामान्य होने का इंतज़ार किया और फिर थोड़ा तेज़ दबाव देकर पूरे लिंग को उसके जिस्म के अन्दर धकेल दिया। अब तो वो कुछ भी कहने की हालत में नहीं थी। मैं थोड़ी देर उसी अवस्था में रह कर उसके होंठ और उरोज सहलाता रहा।

जब उसने थोड़ी हरकत की तो फिर मैं उस पर हावी हो गया। उसी अवस्था में करने के बाद अब मैंने आसन बदला। उसे पलट कर पीछे से उसकी योनि में धक्के लगाने लगा। मेरे हर धक्के के साथ झुला भी हिलकर अपनी गति बढ़ा रहा था।अब मैं अपने चरम पे था, तो अपनी गति को बढ़ाकर अपना सारा वीर्य उसके अन्दर ही उड़ेल दिया। हम दोनों साथ साथ स्खलित हो चुके थे। झूलला अब भी हिल रहा था और अब हवाओं का असर हम महसूस कर सकते थे।

मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और कमरे में आकर आपस में लिपट कर सो गए।

अगले दिन हमने पास के गाँव में घूमने का निर्णय लिया और चले गए। वहाँ पर एक मंदिर में लड़के-लड़की का एक जोड़ा बैठा था, दोनों एक दूसरे को खाना खिला रहे थे।

मैंने पारो से पूछा- जान भूख लगी है?

उसने कहा- अगर तुम भी मुझे खिलाओ तो मैं खाऊँगी।

मैं भी वहाँ पर उसे ले गया पहले मंदिर में परमपिता को प्रणाम किया तो वहाँ के पुजारी ने अपनी भाषा में कुछ हमसे पूछा, मुझे लगा कि जैसे वो पैसे मांग रहा है।

मैंने उसे हजार का नोट जो मेरे पास था दे दिया।

थोड़ी देर में उसने दो थाली मंगाई और हमारी तरफ बढ़ा दी। भूख तो हम दोनों को ही लगी थी सो हम दोनों ने एक दूसरे को खिलाना शुरू कर दिया।

हमारे साथ होटल का एक स्टाफ ड्राईवर भी था। खिलाने के बाद पुजारी ने थोड़े मंत्र पढ़े और हमसे कुछ पूजा करवाई। सब ख़त्म कर के पारो ने भी पुजारी को थोड़े पैसे दिए और हम वापिस अपने कार के पास आ गए।

ड्राईवर जो काफी वक़्त से हमें देख रहा था, उसने हमसे कहा- सर, यह यहाँ के लोगों का रिवाज है, इसी रिवाज से यहाँ शादी होती है। अब आप दोनों ने फिर से यहाँ की रीतियों के मुताबिक़ शादी कर ली है।

मुझे तो ऐसा लगा मानो काटो तो खून नहीं !

पारो भी जैसे कहीं खो सी गई इस बात को जान कए !

होटल में हमने अपनी बुकिंग पति पत्नी की ही करवाई थी तो ड्राईवर ने हमें वहाँ रोका नहीं।

सारे रास्ते हम दोनों चुप थे। मैं तो उससे नज़रें भी नहीं मिला पा रहा था, हम दोनों अपने कमरे में पहुँचे, ड्राईवर ने हमारी शादी की बात वहाँ के मैंनेजर को बताई तो वो भी हमें बधाई देने लगा।

खैर जैसे तैसे हम खुद को सम्भालते हुए अपने कमरे में पहुँचे।

पहली आवाज़ पारो की आई- क्या हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं हो सकता?

मैंने कहा- यह रिश्ता बाकी सभी रिश्तों से ज्यादा बड़ा है ! पति पत्नी का रिश्ता है ये.. और हमने इसे भी मजाक बना दिया !

उसने कहा- नहीं, शायद यह भी जिंदगी का एक तोहफा है। मैं तो बहुत खुश हूँ..

मैंने कहा- तुम समझ नहीं रही हो ! तुमने तो अपनी जिंदगी के सारे लक्ष्य हासिल कर लिए और मैं क्या हूँ, आखिर मैं कुछ भी तो नहीं हूँ। और चाहे मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ मैं तुम्हें अपना तो लूँगा पर कभी दिल में बसा नहीं पाऊँगा।

उसने कहा- तुम जो भी कहो पर मैंने तो तुम्हें अपना भी लिया है और अपने दिल में बसा भी लिया है। किसी को बिना चाहे उसके साथ जिंदगी बिताने से तो अच्छा है अपने प्यार के साथ दो पल बिताना। मैं यह नहीं कहती कि मैं तुम्हारा इंतज़ार करुँगी या और कुछ ! मैं तुमसे कुछ चाहती भी नहीं, बस मुझे खुद को तुम्हारा कहने से अब मत रोकना !

मैं चुप था, थोड़ी देर बाद मैंने कहा- ठीक है, तुमने तकलीफ चुनी है अब कभी मुझे दोष न देना ! तुम मेरी ही रहोगी पर मैं तुम्हारा कब हो पाऊँगा, यह मुझे भी नहीं पता !

उसने दौड़ कर मेरे पास आकर मेरे होठों को चूम लिया।

आप सभी पाठक मुझसे पूछते हैं कि यह कहानी वास्तविक है या काल्पनिक ! तो मैं बता दूँ कि यह काल्पनिक है।

तो कृपया इससे जुड़े सवाल न पूछें।

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