विदुषी की विनिमय-लीला-6

लीलाधर 2011-05-31 Comments

लेखक : लीलाधर

उन्होंने एक हाथ से मेरे बाएँ पैर को उठाया और उसे घुटने से मोड़ दिया। अंदरूनी जाँघों को सहलाते हुए आकर बीच के होठों पर ठहर गये। दोनों उंगलियों से होठों को फैला दिया।

“हे भगवान !” मैंने सोचा,”संदीप के सिवा यह पहला व्यक्ति था जो मुझे इस तरह देख रहा था।” मुझे खुद पर शर्म आई।

वे उंगलियों से होठों को छेड़ रहे थे, जिससे मैं मचल रही थी। एक उंगली मेरे अंदर डूब गई। मेरी पीठ अकड़ी, पाँव फैले और नितम्ब हवा में उठने को हो गये। वे उंगली अंदर-बाहर करते रहे‌- धीरे धीरे, नजाकत से, प्यार से, बीच-बीच में उसे वृत्ताकार सीधे-उलटे घुमाते। जब उनकी उंगली मेरी भगनासा सहलाती हुई गुजरी तो मेरी साँस निकल गई। मैं स्वयं को उस उंगली पर ठेलती रही ताकि उसे जितना ज्यादा हो सके अंदर ले सकूँ।

अनय ने वो उंगली बाहर निकाली और मुझे देखते हुए उसे धीरे-धीरे मुँह में डालकर चूस लिया। मैं शरम से गड़ गई। वे भी शर्माए हुए मुझे देख रहे थे। ऊन्होंने जीभ निकालकर अपने होंठों को चाट भी लिया। क्या योनि का द्रव इतना स्वादिष्ट होता है? मुझे आश्चर्य हुआ, वासना कैसी गंदी चीज को भी प्यारी बना देती है। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मेरी गीली फाँक पर ठंडी हवा का स्‍पर्श महसूस हो रहा था। मैंने पुनः पैर सटा लिये। उन्होंने ठेलते हुए फिर दोनों पैरों को मोड़कर फैला दिया। मैंने विरोध नहीं के बराबर किया। वे मेरे बीच आ गए।

जैसे जैसे वे मुझे विवश करते जा रहे थे मैं हारने के आनन्द से भरती जा रही थी।

लक्ष्‍य अब उनके सामने खुला था। ठंड लग रही योनि को अनय के गर्म होंठों का इंतजार था।

भौंरा फूल के ऊपर मँडरा रहा था।

वे झुके, ‘फुलझड़ी’ में उनकी साँस भरी। मैं उत्‍कंठा से भर गई। अब उस स्‍वर्गिक स्‍पर्श का साक्षात होने ही वाला था। आँखों की झिरी से देखा…. वे कैसी तो एक दुष्‍ट मुस्‍कान के साथ उसे देख रहे थे…

वे झुके… और….

फूले होंठों को ऊपर-ऊपर आधा छूती आधा मँडराती चुम्बनों की एक श्रृंखला ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर गुजरने लगी। मैंने कैसे करके तो अपने को ढीला किया, मगर जब जीभ की नोंक अंदर सरकी तो मैंने बिस्तर की चादर मुट्ठियों में भींच ली।

वे देख रहे थे मैं कितने तनाव में हूँ। उन्होंने बिस्तर पर अपनी पकड़ छोड़ी और मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिये। मेरी दरार में धीरे धीरे जीभ चलाते हुए वे रस का स्वाद लेने लगे। उनके मुँह से संतुष्टि की आवाजें निकल रही थीं। मैं इतनी जोर-जोर कराह रही थी और चूतड़ हिला रही थी कि मुझे चाटने में उन्हें शायद खासी मुश्किल हो रही होगी।

उन्होंने मेरे हाथ छोड़ दिये। मेरी जाँघें उनकी शक्तिशाली बाहों की गिरफ्त में आ गईं। कुरेदते हुए होंठ कटाव के अंदर कोमल भाग में उतरे और भगनासा को गिरफ्तार कर लिया। मैं बिस्‍तर पर उछल गई। पर वे मेरे नितम्‍बों को जकड़कर होंठों को अंदर गड़ाए रहे। इस एकबारगी हमले ने मेरी जान निकाल दी।

अंदर उनकी जीभ तेजी से सरक रही थी। यह एक तूफानी नया अनुभव था। मैं साँस भी ले नहीं पा रही थी। उनकी नाक मेरी भगनासा को रगड़ रही थी। ठुड्डी के रूखे बाल गुदा के आसपास गड़ रहे थे, जीभ योनि के अंदर लपलपा रही थी… ओ माँ ओ माँ ओ माँ…

मैं मूर्छित हो गई। कुछ क्षण के लिये मेरी साँस बंद हो गई। वे रुक गये…

यह अद्भुत अनुभव था। पुरुष की चाहे जो भी फैंटसी रहती हो पर मुझे उनके मुँह में स्खलित होना बहुत अच्छा लगा।

वे अचानक उठे और चड्ढी को सामने से दबोचे तेजी से बाहर बाथरूम चले गए। इतनी उत्तेजना ने उनकी भी छुट्टी कर दी थी।

मेरे नीचे चादर भीगकर ठंडी लग रही थी। मैं यहाँ पड़ी थी, पूरी तरह नंगी और उत्तेजित ! अकेली कमरे में !

मैंने इधर उधर देखा। हालाँकि यह अशिष्टता होती मगर मैंने बिस्तर के बगल वाली दराज को खींचा। उसमें कागज में कोई चीज लिपटी थी। कवर पर बनी तस्वीर से समझ गई कि क्या चीज है पर वास्तव में इसे कभी देखा नहीं था।

यह एक वाइब्रेटर था। हाथ में लेते ही सिहर गई।

“वाह, स्मार्ट लड़की की तरह तुमने बिल्कुल काम की चीज खोजी है !” वे कमरे में प्रवेश करते हुए बोले। उनकी कमर में तौलिया लिपटा था और हाथ में एक छोटी सी कटोरी थी, जिसे उन्होंने पास रखी तिपाई पर रख दिया।

“शायद हर लड़की पसंद करती होगी !” उन्होंने वाइब्रेटर की ओर इशारा किया।

मैंने शर्माकर उसे तुरंत नीचे रख दिया,”सॉरी !”

“इसमें सॉरी की कोई बात नहीं ! कभी आजमाया होगा !”

मैंने बहुत हिचकते हुए ना में सिर हिलाया।

“केले से या बैंगन से? जब संदीप नहीं रहते होंगे, मन होने पर?”

‘हाँ यह तो किया था।’ पर चुप रह गई।

वे हँसे, “यह तो एकदम स्वाभाविक बात है। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूँ इससे कैसे करते हैं।”

उन्होंने मुझे लिटा दिया। मेरे नितम्बों के नीचे तकिया डालकर पाँव फैला दिये। मेंने विरोध नहीं किया।

“अब आँखें बंद कर लो और एंजॉय करो !”

भगोष्ठों पर वाइब्रेटर का ठंडा स्पर्श महसूस हुआ। यह काफी मोटा था, और लम्‍बा भी, कुदरती लिंग से बहुत ज्यादा।

मैं सिहरी।

“प्लीज पूरा मत डालना !” मैं फुसफुसाई।

वे हँस पड़े, “अरे नहीं ! अगर अंदर घुस गया तो मुझे डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा।

मैं समझ रही थी अब वाइब्रेटर को सम्भोग के धक्कों की तरह अंदर बाहर करेंगे, पर वह तो मुझे आश्‍चर्य में डालता भौंरे की तरह गुंजार करने लगा। उसके कंपन से शरीर में आनन्द की लहरें दौड़ने लगीं।

एक पराया आदमी मेरा अप्राकृतिक मैथुन कर रहा था, अजीब लग रहा था, लेकिन मैं आनन्द से सीत्‍कार भर रही थी। वे ‘बहुत अच्छी, बहुत सुंदर’ कहकर उत्साह बढ़ा रहे थे और वाइब्रेटर की गति तेज कर रहे थे।

यह बहुत ही आनन्दायी था, तकलीफदेह हद तक। मैं झड़ने लगी। अनय ने मुझे बाँहों में जकड़ लिया। तब तक जकड़े रहे जब तक मेरी थरथराहटें नहीं पड़ गईं।

मेरे संतुष्ट चेहरे को उन्होंने प्यार से चूमा। वे मेरे हाथ पाँव, बाँहें, कंधे, पेट सहला रहे थे। एक छोटी-मोटी मालिश ही कर दी उन्होंने।

संदीप… मेरे पति का ख्याल मेरा पीछा कर रहा था… क्या कर रहे होंगे वे? क्या उनके बिस्तर पर भी शीला ऐसे ही निढाल पड़ी होगी? क्‍या वे उसे ऐसे ही प्‍यार कर रहे होंगे? मैंने अपने दिल में टटोला, कहीं मुझे ईर्ष्या तो नहीं हो रही थी?

आँखें खोली, अनय मुझे ही देख रहे थे – मेरे सिरहाने बैठे। मैंने शर्माकर पुन: आँखें मूँद लीं। उन्होंने झुककर मुझे चू्मा- लगा जैसे यह मेरे सफल स्‍खलन का पुरस्‍कार हो। मैंने उस चुम्बन को दिल के अंदर उतार लिया।

मैंने आंखें खोलीं- तौलिए की फाँक सामने खुली थी। नजर एकदम से अंदर दौड़ गई। अंधेरे में सिकुड़े लिंग की अस्पष्ट झलक…

सात इंच… “पूरा अंदर तक मार करेगा, साला।” संदीप की बात कान में गूँज गई।

अभी सिकुड़ी अवस्था में कैसा होगा वो? भूरा, गुलाबी, नोंक पर सिमटी त्वचा, अंदर से झाँकता गुलाबी मुख… मासूम… बच्चे-सा, मानो कोई गलती करके सजा के इंतजार में सिर झुकाए…

गलती तो उसने की ही थी- काम करने से पहले ही झड़ गया था।

अच्‍छा है। मैं दो दो चरम सुखों से थकी हुई थी। स्तऩ चूचुक, भगनासा आदि इतने संवेदनशील हो गए थे कि उनको छूना भी पीड़ाजनक था। एक क्षण को लगा वह सचमुच योनि-प्रवेश के समय न उठे, बस थोड़ी देर के लिए। उस समय उनकी लज्‍जित चिंतित अवस्‍था पर दया करूँ।

संदीप की बात मन में घूम गई,” पूरा अंदर तक मार करेगा, साला !”

हुँह ! कितना फुलाया हुआ घमंड। पुरुष खाली लिंग ही रहता है।

ओह ! कहाँ तो पर पुरुष के स्पर्श की कल्पना भी भयावह लगती थी, कहाँ मैं उसके लिंग के बारे में सोच रही थी। किस अवस्था में पहुँच गई मैं !

उन्होंने कटोरी उठाई।

“क्या है?”

मुस्कुराहते हुए उन्होंने उसमें उंगली डुबाकर मेरे मुँह पर लगा दिया।

ठंडा, मीठा, स्‍वादिष्‍ट चाकलेट। गाढ़ा। होंठों पर बचे हिस्से को मैंने जीभ निकालकर चाट लिया।

“थकान उतारने का टानिक ! पसंद आया न?”

सचमुच इस वक्त की थकान में चाकलेट बहुत उपयुक्त लगा। चाकलेट मुझे यों भी बहुत पसंद था। मैंने और के लिए मुँह खोला।

उन्होंने मेरी आखों पर हथेली रख दी, “अब इसका पूरा स्‍वाद लो।”

होंठों पर किसी गीली चीज का दबाव पड़ा। मैं समझ गई। योनि को मुख से और फिर वाइब्रेटर से भी आनन्दित करने करने के बाद इसके आने की स्वाभाविक अपेक्षा थी।

मैंने उसे मुँह खोलकर ग्रहण दिया। चाकलेट से लथपथ लिंग। फिर भी उनकी यह हरकत मुझे हिमाकत जान पड़ी। एक स्‍त्री से प्रथम मिलन में लिंग चूसने की मांग… स्वयं उसकी योनि को चूमने-चाटने के बावजूद…

उत्‍थित कठोर की अपेक्षा सिकु़ड़े कोमल लिंग को चूसना आसान होता है। मुँह के अंदर उसकी इधर से उधर लचक मन में कौतुक जगाती है। प्रथम स्खलन के बाद उसे अभी बढ़ने की जल्दी नहीं थी। मैं उसमें लगे चा़कलेट को चूस रही थी। उसकी गर्दन तक के संवेदनशील क्षेत्र को जीभ से सहलाने रगड़ने में खास ध्यान दे रही थी। वह मेरे मुँह में ऊभ-चूभ कर रहा था।

चाकलेट की मिठास में रिसते वीर्य और प्रीकम का हल्का चूना मिला-सा नमकीन स्वाद उसे अप्रिय बना रहा था। लेकिन साथ ही मन में कहीं एक गर्व भी था- उन पर अपने असर के प्रति…

मिठास घटती जा रही थी और नमकीन स्वाद बढ़ रहा था। लिंग फूलता जा रहा था। धीरे धीरे उसे मुँह में समाना मुश्किल हो गया। पति की अपेक्षा यह लम्बा ही नहीं, मोटा भी था। उसे वे मेरे मुँह में संकोचसहित अंदर ठेल रहे थे।

यह पुरुष की सबसे असहाय अवस्था होती है। वह मुक्ति की याचना में गिड़गिड़ाता सा होता है जबकि उसे वह सुख देने का सारा अधिकार स्त्री के हाथ में होता है। अनय तो दुर्बल होकर बिस्तर पर गिर ही गए थे। मैं उन पर चढ़ गई थी। आक्रामक होकर गुलाबी टोपे पर संभालकर दाँत गड़ाती और फिर उस पर जीभ लपेटकर चुभन के दर्द को आनन्द में मिलाती उन्हें एकदम अंदर खींच लेती।

वे मेरा सिर पकड़कर उस पर दबा रहे थे। उनका मुंड मेरे गले की कोमल त्वचा में टकरा रहा था। मैं उबकाई के आवेग को दबा जाती। अपने पति के साथ मुझे इसका अच्छा अभ्यास था। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

पर यह उनसे काफी लम्बा था। रह-रहकर मेरे गले की खोखल में घुस जाता। मैं साँस रोककर उबकाई और दम घुटने पर विजय पाती। जाने क्यों मुझे पूरा यकीन था शीला के पास इतनी दूर जाने का हुनर नहीं होगा। अनय मेरी क्षमता पर विस्मित थे। सीत्कारों के बीच उनके बोल फूट रहे थे, “आह, कितना अच्छा, यू आर एक्सलेंट़, ओ माई गौड…”

उनका अंत नजदीक था। मुझे डर था दो बार स्‍खलन के बाद वे संभोग करने लायक रहेंगे? लेकिन हमारे पास सारी रात थी। वे कमर उचका उचकाकर अनुरोध कर रहे थे। मेरे सिर को पकड़े थे।

क्‍या करूँ? उन्‍हें मुँह में ही प्राप्‍त कर लूँ? मुझे वीर्य का स्‍वाद अच्‍छा नहीं लगता था पर अपने पति को यह सुख कई बार दे चुकी थी। लेकिन इन महाशय को? इनके लिंग को मैं कितने उत्‍साह और कुशलता से चूस रही थी। फिर उसको उसके सबसे बड़े आनन्द के समय रास्ते में छो़ड देना स्‍वार्थपूर्ण नहीं होगा? उन्‍होंने कितनी उदारता और उमंग से मुझे मुँह से आनन्दित किया था।

अचानक लिंग पत्‍थर-सा सख्त होकर जोर से धड़का। मैं तैयार थी। साँस रोककर उसे कंठ के कोमल गद्दे में बैठा लिया। गर्म लावे की पहली लहर हलक के अंदर ही उतर गई।

एक और लहर !

मैं पीछे हटी। हाथ से उसकी जड़ पकड़ी और घर्षण की आवश्‍यक खुराक देते रहने के लिए सहलाने लगी। वीर्य उगलते छिद्र को जीभ से चाटते, कुरेदते़, रगड़ते द्रव को जल्‍दी-जल्‍दी निगलने लगी।

संदीप और इनका स्‍वाद एक जैसा था। सचमुच सारे मर्द एक जैसे होते हैं। इस ख्याल पर हँसी आई। मैंने मुँह में जमा हो गए अंतिम द्रव को जबरदस्‍ती गले के नीचे धकेला और जैसे उन्‍होंने मुझे किया था वैसे ही मैंने झुककर उनके मुँह को चूम लिया। लो भाई, मेरा भी जवाबी इनाम हो गया। किसी का एहसान नहीं रखना चाहिए अपने ऊपर।

उनके चेहरे पर बेहद आनन्द और कृतज्ञता का भाव था। थोड़े लजाए हुए भी। सज्‍जन व्‍यक्‍ति थे। मेरा कुछ भी करना उन पर उपकार था जबकि उनका हर कार्य अपनी योग्यता साबित करने की कोशिश। मैंने तौलिए से उनके लिंग और आसपास के भीगे क्ष्‍ोत्र को पोंछ दिया। उनके साथ उस समय पत्‍नी का-सा व्‍यवहार करते हुए शर्म आई…

पढ़ते रहिएगा !

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